Shiv Parvati Prem Vivah Katha
प्रेम या विवाह के बंधन में बंधीं नई-नई जोड़ियों को बजाय ताजमहल देखने या विदेश जाने के सबसे पहले भगवान शिव और पार्वती (Shiv-Parvati) जी के मंदिरों में जाना चाहिए, जिनकी अमर प्रेम कहानी के आगे आज की दुनिया की बड़ी से बड़ी लव स्टोरी भी फेल हैं. शिव-पार्वती का विवाह कोई साधारण विवाह नहीं, बल्कि प्रेम, तपस्या और त्याग-समर्पण की कहानी और परीक्षा है. जितने उतार-चढ़ाव इस प्रेम कहानी में हैं, उतने तो आज की किसी भी कहानी में नहीं.
पार्वती जी (Parvati ji) को जो भगवान शिव से प्रेम हुआ, बस उन्होंने ठान लिया कि विवाह होगा तो केवल और केवल शिवजी के साथ. लेकिन भगवान शिव (Bhagwan Shiv) को पाना आसान तो नहीं, तो पार्वती जी ने भी ऐसी तपस्या की कि तीनों लोक थर्रा गए. सबने लाख समझाया कि ‘तुम राजकुमारी और महादेव हैं एक योगी-वैरागी, किसी सुख-सुविधा के बीच नहीं रहते, आखिर तुम उनके साथ कैसे रहोगी’. स्वयं भगवान शिव ने भी पार्वती जी की बहुत परीक्षा ली, लेकिन पार्वती जी के प्रेम और तप के आगे आखिरकार भगवान भी हार गए.
सभी मनुष्यों की आदर्श हैं पार्वती जी
माता पार्वती ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को अपने पति रूप में पाया है. इतनी कठोर तपस्या न आज तक किसी ने की है, और न ही आगे भी कोई कर सकेगा. पार्वती जी का मंत्र था कि तपस्या या मेहनत तब तक करनी है, जब तक सफलता न मिल जाए. इसीलिए पार्वती जी सभी मनुष्यों की आदर्श भी हैं. उन्होंने अपनी तपस्या के बल पर ये सिद्ध किया है कि संकल्प, प्रेम, कठिन मेहनत और तप से कुछ भी पाया जा सकता है, कितनी ही बड़ी परीक्षा में सफल हुआ जा सकता है.
सभी देवियां करती हैं पार्वती जी की आराधना
आदिकाल से ही स्त्रियां मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए गौरी जी की आराधना करती आ रही हैं. गौरी जी की आराधना से विवाह में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. सभी युगों में जब-जब माता लक्ष्मी ने मानव कल्याण के लिए पृथ्वी पर जन्म लिया है, तब-तब उन्होंने भगवान विष्णु जी को पति रूप में पाने के लिए मां गौरी जी की ही आराधना की है. त्रेतायुग में माता सीता हों या द्वापर युग में माता रुक्मिणी, सभी रूपों में उन्होंने माता गौरी जी के आशीर्वाद से अपने मनचाहे वर की प्राप्ति की. वहीं, पत्नियां अपने पति का प्रेम और अमर सुहाग का वरदान पाने के लिए पार्वती जी का पूजन करती हैं.
कथा (Shiv Parvati Vivah Story)
जब पार्वती जी का हुआ जन्म
शिव-गौरी का संबंध जन्म-जन्मांतर का है, इसीलिए देवी सती ने गिरिराज हिमालय (Himalaya) के घर पार्वती जी के रूप में जन्म लिया. पार्वती जी का प्रभाव बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं कि ‘पार्वती जी के जन्म से संसार में सभी तरह की संपत्तियां और सिद्धियां छा गईं. पर्वत की नदियों में पवित्र जल बहने लगा. हिमालय पर अनेक तरह के नए-नए वृक्ष फूलों और फलों से लद गए और वहां कई तरह की सुंदर मणियों की खानें प्रकट हो गईं. पर्वत पर सभी तरह के पशु-पक्षी अपनी स्वाभाविक शत्रुता भूलकर एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहने लगे. सब नर-नारी, पशु-पक्षी और सभी तरह के जीव बड़े आनंद और सुख से रहने लगे. पर्वत पर रोज नए-नए मंगल उत्सव होने लगे’.
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पार्वती जी जब बड़ी हुईं, तो रोज अपनी सहेलियों के साथ भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश चली जाया करती थीं. दरअसल, वह मन ही मन भगवान शिव से बहुत प्रेम करने लगी थीं. लेकिन तब ये बात उन्होंने किसी को नहीं बताई. वहीं, भगवान शिव अपनी योग साधना में ही लीन रहते थे. उन पर किसी बात का कोई असर ही नहीं होता था.
नारद जी ने बताई पार्वती जी की भगवान शिव से विवाह होने की बात
एक बार देवर्षि नारद हिमालय के घर पहुंचे. देवर्षि नारद को देखकर हिमालय ने उनका बड़े आदर से स्वागत-सत्कार किया और अपनी पुत्री पार्वती जी के बारे पूछा. उन्होंने नारद जी से कहा कि “कृपया आप हमें हमारी पुत्री पार्वती के गुण-दोषों और विवाह आदि के बारे में बताएं”.
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इस पर नारद जी ने कहा, “हे हिमालय! आपकी पुत्री तो गुणों की खान है और सुंदर, सुशील और समझदार है. वह शक्ति का अवतार हैं. संसारभर में उसकी पूजा होगी और जो भी उसकी पूजा करेगा, उसके लिए किसी भी तरह का सुख दुर्लभ नहीं रह जाएगा. संसारभर की सभी स्त्रियां पार्वती का नाम जपते हुए पतिव्रत धर्म का पालन करने लगेंगी. पार्वती अपने पति की प्रिय होगी और उसका सुहाग अमर रहेगा. अपनी पुत्री की वजह से तुम्हें भी हमेशा यश की प्राप्ति होगी और तुम्हारा सब तरह से कल्याण होगा.”
नारद जी की बात सुनकर पार्वती जी हुईं प्रसन्न, माता-पिता हुए चिंतित
बातों ही बातों में नारद जी ने यह भी बताया कि “पार्वती जी का विवाह भगवान शिव से होगा”. ये सुनकर पार्वती जी बेहद प्रसन्न हुईं, लेकिन पार्वती जी के माता-पिता, सहेलियां आदि बड़ी चिंता में आ गए, क्योंकि उन सबके मन में भगवान शिव की यही छवि थी कि वे एक योगी हैं, सिर पर जटा रखते हैं, पूरी तरह से वैरागी हैं, किसी सुख-सुविधा के बीच नहीं रहते, बल्कि सर्प, नाग और भूत-प्रेतों आदि से घिरे रहते हैं.
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लेकिन फिर नारद जी ने समझाया कि “भगवान शिव ही सर्वशक्तिमान और अत्यंत दयालु हैं. उनका वेश वैसा नहीं है, जैसा सबको दिखाई देता है. उनके रूप और सौंदर्य के आगे तो करोड़ों कामदेवों की छवि भी फीकी है. सारी अमंगल चीजें महादेव से जुड़कर मंगल और शुभ हो जाती हैं. संसार में ऐसा कोई नहीं, जिसके स्वामी भगवान शिव न हों. इंसान के कर्मफल को बदलने की शक्ति भी उन्हीं के हाथों में है. उन्हें समझना किसी के वश की बात नहीं”. तब जाकर पार्वती जी के माता-पिता और सहेलियों की चिंता कम हुई.
फिर नारद जी ने यह भी बताया कि “शिव जी की आराधना बहुत ही कठिन है, लेकिन तपस्या करने से वे बड़ी जल्दी प्रसन्न भी हो जाते हैं. उन्हें पाने के लिए पार्वती को कठोर तपस्या करनी होगी.” ऐसा कहकर नारद जी ने पार्वती जी और उनके माता-पिता को आशीर्वाद दिया.
माता-पिता को मना-समझाकर तपस्या करने चलीं पार्वती जी
नारद जी की बात सुनकर पार्वती जी ने भगवान शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या करने की ठान ली. उन्होंने अपने माता-पिता को प्रेम से समझाया, मनाया और फिर कठोर तपस्या करने के लिए वन में चली गईं. कहते हैं कि पार्वती जी जब तपस्या करने के लिए जाना चाहती थीं, तब उनके माता-पिता उन्हें इस बात की अनुमति नहीं दे रहे थे. इससे पार्वती जी बहुत दुखी हो गई थीं. ये देखकर पार्वती जी की सहेली, उनकी सहायता करने के लिए उन्हें अपने साथ वन में ले गईं, जहां पार्वती जी ने प्रसन्नता के साथ अपनी तपस्या शुरू कर दी.
सभी तरह के सुखों को त्यागकर करने लगीं केवल महादेव का ही ध्यान
पार्वती जी ने सभी तरह के सुखों का त्याग कर दिया. उन्होंने भोजन भी त्याग दिया और हजारों सालों तक कठोर से कठोर व्रत किए और केवल भगवान शिव के ही नाम का जप और उन्हीं का ध्यान करती रहीं. उनकी कठिन तपस्या से तीनों लोक डगमगाने लगे.
आखिरकार पार्वती जी की तपस्या सफल हुई और आकाशवाणी हुई कि “हे पार्वती! तुम्हारी तपस्या सफल हुई. तुम्हें भगवान शिव ही मिलेंगे. कृपया अब तुम अपनी ये कठिन तपस्या छोड़ दो.” आकाशवाणी सुनकर पार्वती जी बेहद प्रसन्न हुईं. नारद जी की सलाह से पार्वती जी की तपस्या सफल हुई थी, इसलिए पार्वती जी ने नारद जी को अपना गुरु मान लिया था.
अब भगवान शिव ने लेनी चाही पार्वती जी के प्रेम की परीक्षा
अब भगवान् शिव ने पार्वती जी के प्रेम की परीक्षा लेनी चाही. इसके लिए उन्होंने सप्तर्षियों को पार्वती जी के पास भेजते हुए कहा, “आप लोग पार्वती के पास जाकर उनकी परीक्षा लीजिए और उनके पिता से भी कहिए कि वे पार्वती को घर वापस बुला लें. पार्वती जी को उनके घर भिजवाइए.”
सप्तर्षियों ने पार्वती जी से शिवजी के लिए कहीं ये बातें
भगवान शिव जी के कहने पर सप्तर्षि पार्वती जी के पास पहुंचे. उस समय पार्वती जी तपस्या की मूर्ति लग रही थीं. सप्तर्षियों ने पार्वती जी के प्रेम की परीक्षा लेने के लिए, उनसे भगवान शिव के लिए बड़ी अजीब-अजीब सी बातें कहीं. उन्होंने पार्वती जी से कहा, “तुम जिसके लिए इतनी तपस्या कर रही हो, वे तो बड़े उदासीन हैं, अजीब सा वेश धारण करते हैं, कपालों की माला पहनते हैं, ना उनका कोई कुल है और ना कोई घर-बार, पूरे शरीर पर सांपों को लपेटे रहते हैं, आखिर ऐसा पति मिलने से तुम्हें कौन सा सुख मिलेगा?”
“ऐसे पुरुष के साथ कोई स्त्री टिक सकती है क्या?” सप्तर्षियों ने कहा
सप्तर्षियों ने कहा, “पहले सती ने भी पंचों के कहने पर भगवान शिव से विवाह किया था और फिर वह जीवित ही नहीं रहीं. सती जी के जाने के बाद तो अब भगवान शिव किसी बात की चिंता ही नहीं करते, भीख मांगकर खाते हैं. आखिर हमेशा अकेले रहना पसंद करने वाले पुरुष के साथ कोई स्त्री टिक सकती है क्या? तुम नारद के बहकावे में आ गई हो. आखिर नारद के कहने से किसका घर-बार बसा है”.
सप्तर्षियों ने पार्वती जी से आगे कहा, “हमारी बात मानो, तुम्हारे लिए बहुत ही सुंदर, पवित्र, सुशील और सुखदाई अच्छा वर भगवान विष्णु हैं, जिनकी कीर्ति चारों तरफ फैली है. वह बैकुंठ में सभी सुख-सुविधाओं के साथ रहते हैं. हम ऐसे वर को लाकर तुमसे मिला देंगे.”
सप्तर्षियों की बात का पार्वती जी ने दिया ये जवाब
सप्तर्षियों की बात सुनकर पार्वती जी हंस पड़ीं. उन्होंने कहा, “माना कि मेरे भगवान शिव में बहुत अवगुण हैं, लेकिन मेरा तो एक ही मन है और उसमें केवल भगवान शिव ही बस चुके हैं. मैं तो उनके लिए अपना सब कुछ हार चुकी हूं, तो अब मैं उनके गुण-दोषों को क्यों देखूं. मुझे तो स्वयं भगवान शिव भी सौ बार मना करें, तो भी मैं करोड़ों जन्मों तक यही कहूंगी कि मैं केवल भगवान शिव से ही विवाह करूंगी, नहीं तो कुमारी ही रहूंगी.”
“कहीं और जाकर ऐसी बातें कीजिए”, पार्वती जी ने कहा
पार्वती जी ने सप्तर्षियों से आगे कहा, “सबकी निंदा करने वालों को आलस्य तो होता नहीं. कभी यहां तो कभी वहां जाकर इस तरह की बातें करते रहते हैं. लेकिन संसार में और भी बहुत से वर-कन्या हैं, कृपया आप सभी जाकर उनसे ऐसी बातें कीजिए. मैं तो पर्वत की पुत्री हूं. एक बार जहां स्थिर हो गईं, वहां से नहीं हटूंगी, फिर चाहे मेरा शरीर ही छूट जाए. मैंने नारद जी को अपना गुरु माना है, और जिसे अपने गुरु की बात पर ही विश्वास न हो, उसे कोई भी सुख-सिद्धि मिल भी नहीं सकती. कृपया अब आप सब जाइए, आपको देर हो रही होगी.”
भगवान शिव के प्रति पार्वती जी का ऐसा प्रेम देखकर सप्तर्षियों ने उन्हें प्रणाम किया और कहा, “हे जगत जननी माता! हे भवानी! आपकी जय हो… हमने भगवान शिव के लिए जो कुछ भी कहा, कृपया उसके लिए हमें क्षमा कर दीजिए. हम तो उन्हीं के कहने पर केवल आपकी परीक्षा लेने आए थे. आप और भगवान शिव, समस्त संसार के माता-पिता हैं.”…
और इस तरह पार्वती जी हर परीक्षा में पूरी तरह सफल रहीं. बड़ी धूमधाम से उनका विवाह भगवान शिवजी के साथ हुआ, जिसका साक्षी संसार का हर एक प्राणी बना था. विवाह के बाद पार्वती जी महादेव जी के साथ सुख और आनंद के साथ रहने लगीं.
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