घर में मंदिर का होना क्यों जरूरी है
या मूर्ति पूजा का महत्व
एक व्यक्ति ने पूछा कि अगर भगवान कण-कण में हैं, तो मंदिर या मूर्ति की क्या जरूरत? तो संत ने कहा कि ‘हवा भी हर जगह है, नहीं तो हम सांस ही नहीं ले पाते, लेकिन हवा को भी फील करने के लिए हमें पंखे की जरूरत पड़ती है.’
अगर आपके मन में कोई आकार ही नहीं होगा, कोई ईश्वरीय छवि ही नहीं होगी, तो आपका ध्यान करना बहुत कठिन हो जाएगा. मूर्तियां और मंदिर हमें उस ब्रह्म या ईश्वर से जुड़ने का माध्यम बनकर हमारी मदद करते हैं. ये हमारे लिए एक सेतु का काम करते हैं. इस सेतु का निर्माण हमें ही करना पड़ता है अपने लिए, और इस सेतु की रक्षा भी हमें ही करनी पड़ती है अपने लिए.
घर में या पूरी सृष्टि में या इस पूरे ब्रह्मांड में ही दो तरह की ऊर्जा पाई जाती है- पॉजिटिव और नेगेटिव या शुभ और अशुभ. घर में शुभ ऊर्जा या पॉजिटिव एनर्जी आती रहे, इसके लिए घर में एक पॉजिटिव जगह का होना बहुत जरूरी है, जहां पवित्रता रखी जाती हो, जहां आकर व्यक्ति बुरा सोचने से भी बचता हो… घर में ऐसी पॉजिटिव जगह होती है- मंदिर. मंदिर के जरिए घर में शुभता बनी रहती है, पवित्रता बनी रहती है और पॉजिटिव एनर्जी भी बनी रहती है.
हम जब भी खुद को अकेला महसूस करते हैं, तब हमारे कदम अपने आप ही मंदिर की तरफ जाने लगते हैं. जो बात हम किसी से नहीं कह पाते, वो बात हम भगवान से कह देते हैं. भगवान से मन ही मन कोई भी बात कह देने से हमारा मन भी हल्का हो जाता है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे मन से निकली आवाज कहीं ना कहीं भगवान तक पहुंचती है. हमारे और भगवान के बीच ऐसी कड़ी को जोड़ने का साधन बनते हैं मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति या प्रतिमा.
हम जब भी किसी मंदिर में जाते हैं, या देवी-देवताओं की मूर्ति देखते हैं, तब अपने आप ही हमारे अंदर उस समय के लिए कुछ पॉजिटिव एनर्जी और विचार आने लगते हैं, अपने आप ही हमारा मन खुद को किसी अदृश्य शक्ति से कनेक्ट करने लगता है. जब ऐसा ही मंदिर या देवी-देवताओं की मूर्ति हमारे अपने घर में होती है, तो हम खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करते, क्योंकि हमें विश्वास होता है कि कोई अदृश्य शक्ति हमारे आसपास रहकर हमारी रक्षा कर रही है.
आप नोटिस कीजिए कि जिस भी स्थान पर जो कार्य बहुत गहनता से किया जाता है, यह बहुत मन लगाकर किया जाता है, कुछ समय बाद वह स्थान एक तरह से सिद्ध हो जाता है. जैसे अगर आप अपने घर के किसी बिस्तर पर या किसी कमरे में बहुत दिनों तक मन लगाकर पढ़ाई करते हैं, तो एक समय बाद आप पाएंगे कि उस बिस्तर पर या उस कमरे में बैठकर जो भी पढ़ाई करता है, उसी का मन पढ़ाई में लगने लगता है.
इसी तरह घर के एक छोटे से स्थान, जहां रोज कीर्तन-आरती, मंत्र-जप आदि होते हैं, घंटे, शंख आदि बजते हैं, जिस स्थान पर आकर एक सामान्य व्यक्ति कुछ समय के लिए अपने बुरे विचारों को त्याग देता है, वह स्थान यानी मंदिर हमारे लिए बहुत पॉजिटिव हो जाता है. उस स्थान पर मन से किया गया कोई भी काम व्यर्थ नहीं जाता.
जिस घर में एक पूजा स्थान या भगवान का मंदिर होता है, जहां रोज मन से भगवान की पूजा-उपासना, मंत्र-जप, आरती आदि होती है, जहां रोज घंटे और शंख बजाए जाते हैं, ऐसे घरों से आर्थिक समस्याएं दूर रहती हैं. विशेष रूप से सेहत स जुड़ीं समस्याओं से छुटकारा मिलता है, साथ ही घर के लोगों में आपसी तालमेल भी बना रहता है.
पूजा का स्थान एक निश्चित जगह पर होना चाहिए. यानी पूजा का स्थान आए दिन बदलना नहीं चाहिए. पूजा स्थान घर के किसी खास जगह पर बनाना चाहिए, जिसके आसपास अपवित्रता की संभावना बहुत कम होती हो. जब पूजा या घर का मंदिर स्थान एक निश्चित स्थान पर और सही तरीके से बनाया जाता है, और उसी स्थान पर रोज भगवान की पूजा कर प्रार्थना की जाती है, तो उस पूजा स्थान का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है और यह प्रभाव पूरे घर पर देखने को मिलता है. पूजा स्थान की स्थापना में नियमों का पालन बहुत महत्वपूर्ण होता है. अगर सही तरीके से मंदिर की स्थापना की जाती है, तो उसका असर भी जरूर देखने को मिलता है.
घर में पूजा स्थान या मंदिर के नियमों से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें-
♦ सामान्य रूप से घर का मंदिर ईशान कोण में यानी उत्तर-पूर्व के कोने में होना चाहिए. लेकिन अगर ईशान कोण में मंदिर बनाना संभव ना हो, तो पूर्व दिशा का प्रयोग भी किया जा सकता है, यानी मंदिर को पूर्व दिशा की तरफ रखें.
♦ भगवान की पूजा करते समय हमारा मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए. लेकिन अगर पूर्व दिशा में मुंह नहीं कर सकते, तो पश्चिम दिशा में भी मुंह करके पूजा की जा सकती है.
♦ घर की जिस जगह पर आपने मंदिर स्थापित किया है, अगर उस जगह पर सूर्य का प्रकाश भी आता हो तो यह बहुत ही अच्छा है.
♦ वैसे तो मंदिर की दीवारों में कोई भी कलर इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन आमतौर पर मंदिर की दीवारों पर डार्क कलर का प्रयोग नहीं करना चाहिए. अगर पूजा का स्थान हल्का पीला या सफेद या हल्का गुलाबी रंग का हो तो बेहतर होता है.
♦ जिस स्थान पर आप देवी-देवताओं को स्थापित करें, वह स्थान कुछ खुला हुआ हो, यानी बंद-बंद सा मंदिर ना बनवाएं. अब जैसे कुछ लोग रात को घर के मंदिर के दरवाजे ही बंद कर देते हैं, ऐसा न करें. भगवान को एक छोटी सी जगह पर बंद करके न रखें. इससे अच्छा सिंपल पर्दा डालिए.
♦ मंदिर के स्थान को आए दिन नहीं बदलना चाहिए, ताकि रोज की पॉजिटिव एनर्जी या शक्तियां एक जगह पर इकट्ठी हो सकें.
♦ मंदिर को रोज हमेशा साफ-सुथरा रखने की कोशिश करें. माचिस या जली हुई माचिस की तीली आदि जैसी चीजों को मंदिर में नहीं रखना चाहिए. ऐसी चीजों के लिए मंदिर के पास ही एक अलग जगह बना लें.
♦ एक छोटे से मंदिर में बहुत सारे देवी-देवताओं की मूर्ति या तस्वीरों को भरकर न रखें. इसका मतलब ये है कि घर के मंदिर में देवी-देवताओं की उतनी ही मूर्ति या तस्वीरें रखी जानी चाहिए, जितने पर सभी मूर्ति या तस्वीरें आसानी से दिखाई दें, एक-दूसरे पर चढ़ें नहीं.
♦ आमतौर पर घर में देवी-देवताओं की कोई भी मूर्ति 12 अंगुल या 6 इंच से ज्यादा की नहीं रखनी चाहिए, लेकिन चित्र के लिए कोई नियम नहीं है. आप चाहे जितना बड़ा या छोटा चित्र लगा सकते हैं.
♦ घर में गणेश जी की मूर्ति होना और रोज उनकी पूजा होना बेहद शुभ और अच्छा होता है, लेकिन घर के मंदिर में गणेश जी की मूर्तियों की संख्या 3, 5, 7 या 9 जैसी विषम संख्या में नहीं होनी चाहिए. 2, 4 या 6 जैसी सम संख्या में मूर्तियां रखी जा सकती हैं.
♦ पूजा स्थान पर एक शंख, गोमती चक्र और एक पात्र में जल भरकर जरूर रखना चाहिए. उस जल को रोज पेड़-पौधों में डाल दें और फिर नया जल भरकर रख दें.
♦ पूजा के बाद भगवान को अर्पित किया हुआ जल प्रसाद के रूप में ग्रहण करना चाहिए.
♦ शंखनाद से किसी भी स्थान की नकारात्मकता को दूर किया जा सकता है. जिस घर में शंख होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है. शंख को कभी भी जमीन पर नहीं रखना चाहिए.
♦ अगर कलश के साथ हैं, तो कलश को हमेशा थाली में रखना चाहिए. आमतौर पर पूजा कलश के साथ ही की जाती है.
♦ घर के पूजा स्थान पर पूर्वजों का चित्र नहीं रखना चाहिए. अपने गुरु का चित्र तो रखा जा सकता है, बशर्ते वह गुरु इस योग्य हों… लेकिन जिन लोगों का देहांत हो गया है, उनका चित्र पूजा स्थान पर नहीं रखना चाहिए.
♦ घर के पूजा स्थान में भगवान शनि देव जी की कोई भी मूर्ति या चित्र नहीं रखना चाहिए.
♦ घर में कभी भी रौद्र या उदास रूप की मूर्ति नहीं रखनी चाहिए. अगर कोई मूर्ति खंडित हो गई है, तो उसे तुरंत ठीक करवा लें.
♦ पूजा स्थान घर के स्टोर रूम में या रसोईघर में नहीं बनाना चाहिए. अपने घर में एक कोई भी छोटा सा स्थान ढूंढ लें जो दुर्गंध, गंदगी अपवित्रता आदि से काफी हद तक दूर हो.
♦ पूजा का एक समय निश्चित करें, जैसे अगर आप सुबह 8 बजे के आसपास और शाम को 6 बजे के आसपास पूजा करते हैं, तो रोज इसी समय पूजा करने की कोशिश करें. थोड़ा आगे-पीछे समय हो जाने से फर्क नहीं पड़ता है. मतलब यह है कि पूजा-उपासना या मंत्र-जप का एक निश्चित समय होना अच्छा होता है.
♦ शाम की पूजा में दीपक जरूर जलाया जाता है. शाम के समय शिवलिंग के पास और तुलसी के पास दीपक रखने का बहुत ही महत्व होता है. घर की पूजा में सरसों के तेल का दीपक नहीं जलाया जाता है. घर की पूजा में घी का या तिल के तेल का दीपक जलाया जाता है. दीपक को पूजा स्थान के सामने बीच में रखना चाहिए.
♦ पूजा से पहले थोड़ा सा कीर्तन या बोल-बोलकर किसी मंत्र का उच्चारण कर लेना चाहिए, जैसे आप चाहें तो आप बोल-बोलकर गायत्री मंत्र का जप करें, या “हरे राम हरे कृष्ण” करें आदि.
♦ अगर आपके पास कोई गुरु मंत्र नहीं है, तो ऐसी दशा में आपको गायत्री मंत्र का जप जरूर करना चाहिए. गायत्री मंत्र के जप के बाद किसी भी मंत्र का जप किया जा सकता है.
♦ पूजा स्थान में बांस की अगरबत्ती न जलाएं, क्योंकि बांस को जलाना अशुभ होता है, साथ ही बांस के जलने से निकलने वाला धुआं सेहत को बहुत नुकसान पहुंचाता है. इसलिए सामान्य लकड़ी की अगरबत्ती, नहीं तो धूपबत्ती ही जलाना चाहिए.
जानिए –
दैनिक जीवन में भगवान की पूजा-उपासना करते समय किस बातों का रखना चाहिए ध्यान
मंत्र-साधना करने के नियम और फायदे
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