भगवान गणेश का हर रूप है मंगलकारी, जल्दी प्रसन्न होकर सभी विघ्न-बाधाओं को कर देते हैं दूर

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भगवान श्री गणेश जी

Ganesh Shiv Parvati

भगवान श्री गणेशजी (Shri Ganeshji) की पूजा के बिना कोई भी पूजा पूरी नहीं मानी जाती. इन्हें विघ्नहर्ता कहा जाता है, जो अपने भक्तों के सारे विघ्नों या संकटों को दूर करते हैं. सभी नए, शुभ या मंगल कार्यों की शुरुआत गणेश जी की पूजा-आराधना से ही होती है, इसीलिए इन्हें प्रथम पूज्य कहा जाता है. भगवान गणेशजी बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं, इसलिए विद्या आरंभ करने से पहले मां सरस्वती जी के साथ उनका भी ध्यान किया जाता है. जैसे तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की पहली चौपाई में मां सरस्वती और गणेश जी की ही वंदना की है.

श्री गणेशजी अपने उपासकों पर जल्द प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और इनका एक नाम ‘मंगलमूर्ति’ है. गणेशजी की पूजा-आराधना की विधि भी सरल है और वे श्रद्धा से की गई थोड़ी सी ही पूजा से प्रसन्न हो जाते हैं.

भगवान गणेश जी का स्वरूप

भगवान श्री गणेशजी का स्वरूप अत्यंत ही मनोहर और मंगलकारी है. वे एकदंत हैं, उनकी चार भुजाएं हैं, जो चारों दिशाओं में उनकी व्यापकता का प्रतीक हैं. वो अपने चारों हाथों में पाश, अंकुश, मोदकपात्र और वरमुद्रा धारण करते हैं. वे लंबोदर हैं क्योंकि पूरा ब्रह्मांड उनके उदर में समाया हुआ है. हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें ‘गजानन’ कहते हैं. उनके कान बड़े हैं जो अधिक ग्राह्यशक्ति (ज्यादा से ज्यादा ग्रहण करने की शक्ति) का प्रतीक हैं, वहीं उनकी आंखें छोटी और पैनी हैं जो सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि (पैनी या बारीक नजर) की सूचक हैं. उनकी सूंड महाबुद्धित्व (तेज बुद्धि) का प्रतीक है.

भगवान गणेश जी का वाहन मूषक (चूहा) है. चूहे को सबसे ज्यादा परेशान करने वाला प्राणी माना जाता है. वह किसी भी दरार से निकल जाता है और किसी भी रुकावट के बीच से अपना रास्ता बना लेता है. चूहे को जीवन की समस्याओं का प्रतीक माना जाता है और इन सभी समस्याओं को गणेश जी दूर करते हैं. मूषक की सवारी कर गणेशजी इन सभी समस्याओं पर अंकुश लगाते हैं, इसीलिए गणेशजी की पूजा-आराधना से सभी काम बिना किसी रुकावट के पूरे हो जाते हैं.

गणेश जी सभी गणों के स्वामी हैं, इसलिए उनका नाम ‘गणेश’ और एक नाम ‘गणपति’ भी है. वे रक्त चंदन धारण करते हैं और उन्हें मोदक, लड्डू, लाल पुष्प, दुर्वा (दूब) और शमी-पत्र विशेष प्रिय हैं. श्री गणेशजी को प्रणव यानी ॐ भी कहा जाता है. गणपति महाराज की कृपा से जीवन में खुशहाली आती है और व्यक्ति को तरह-तरह की विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिलती है.

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कैसे हुआ था भगवान गणेश जी का जन्म

भगवान गणेशजी आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग-अलग अवतार लिए हैं. वे भगवान शिवजी और माता पार्वती के दूसरे पुत्र हैं. गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय हुआ था. माता पार्वती ने भगवान गणेशजी को जन्म न देते हुए उनके शरीर की रचना की थी. पार्वती जी ने पुत्र प्राप्ति के लिए ‘पुण्यक’ नाम का व्रत रखा था और इसी व्रत से पार्वती जी को भगवान गणेश जी पुत्र के रूप में प्राप्त हुए.

भगवान गणेश के जन्म के दौरान क्या-क्या हुआ, इसे लेकर अलग-अलग कथाएं कही जाती हैं, जिनमें से कुछ कथाएं कुछ ज्यादा ही प्रचलित कर दी गईं. एक प्रचलित कथा के अनुसार, माता पार्वती ने कठोर तपस्या करके अपने शरीर के मैल से श्री गणेश जी की रचना की थी. भगवान गणेश जी इससे पहले भी थे, लेकिन प्रकट अवस्था में नहीं थे. माता पार्वती ने उनका आवाहन कर उन्हें अपने पुत्र के रूप में प्रकट किया है. गणेश जी का जन्म लेना शिव परिवार की एक लीला मात्र है.

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में स्वयं ही लिखा है-
मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेउ संभु भवानि।
कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि॥

गणेश जी के बड़े भाई भगवान श्री कार्तिकेय जी हैं और बहन अशोकसुंदरी जी हैं. श्री गणेश जी की दो पत्नियां हैं, जिनका नाम रिद्धि और सिद्धि है और इनसे भगवान गणेशजी के दो पुत्र हैं, जिनका नाम शुभ और लाभ है. गणेशजी की पुत्री का नाम माता संतोषी है.

कहते हैं कि भगवान गणेश जी के 12 नाम लेने से मनोकामना पूरी होती है. ये नाम हैं-

सुमुख (सुंदर मुख वाले), एकदंत (एक दांत वाले), कपिल (जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण के आभा का प्रसार होता है), गजानन (हाथी के मुख वाले), गजकर्ण (हाथी के कान वाले), भालचंद्र (मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले), गणाध्यक्ष (गणों के स्वामी), लंबोदर (लंबे उदर वाले), विकट (सर्वश्रेष्ठ), विघ्नविनाशक (विघ्नों और संकटों का नाश करने वाले), विनायक (विशिष्ट नायक), धूम्रकेतु (धुंए के से वर्ण की ध्वजा वाले).

भगवान गणेश जी को क्यों कहते हैं बुद्धि और ज्ञान का देवता?

एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों- गणेश जी और कार्तिकेय जी को ब्रह्मांड के 3 चक्कर लगाकर वापस आने की आज्ञा दी. उन्होंने दोनों पुत्रों से कहा कि ‘जो भी इस चुनौती को पहले पूरा करेगा, उसे ज्ञान के फल से सम्मानित किया जाएगा.’ कार्तिकेय जी अपना वाहन मोर लेकर उड़ चले, जबकि गणेश जी ने अपने माता-पिता के चारों ओर 3 परिक्रमा की और कहा कि उनके लिए तो पूरा ब्रह्मांड उनके माता-पिता के चरणों में ही है.

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उनके इस उत्तर से भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गणेश जी को ज्ञान का फल प्रदान किया. तब से भगवान गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं. भगवान गणेश जी ने ऐसी लीला कर संसार को ये बताने की कोशिश की है कि एक बच्चे का सारा संसार उसके माता-पिता ही हैं. जो भी संतान अपने माता-पिता का आदर करती है, उन्हें हमेशा प्रसन्न रखती है, उससे देवता भी प्रसन्न रहते हैं और उसका यश चारों तरफ फैलता ही जाता है.

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किसी व्यक्ति के पास चाहे जितनी धन-संपदा हो, लेकिन अगर उसके पास बुद्धि और ज्ञान नहीं है, तो उसके पास धन टिक नहीं पाता, एक समय वह अपनी सारी संपत्ति खो बैठता है. इसीलिए माता लक्ष्मी जी के साथ उनके मानस पुत्र भगवान गणेश जी का भी पूजन किया जाता है. गणेश जी अपने भक्तों को हमेशा सही मार्ग दिखाते हैं और उनके जीवन में आने वाली रुकावटों को दूर करते हैं.

भगवान गणेश जी को चंद्रमा पर क्यों आया था क्रोध?

भगवान अपने भक्तों को अहंकार से दूर रखने के लिए तरह-तरह की लीलाएं करते रहते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भाद्रपद महीने के चौथे दिन (चतुर्थी) को भगवान गणेश जी अपने वाहन मूषक के साथ अपने घर लौट रहे थे. रास्ते में चंद्रदेव गणेश जी पर हंसने लगे और उनके पेट और उनके वाहन मूषक पर टिप्पणी करने लगे. चंद्रदेव को सबक सिखाने के लिए भगवान गणेश जी ने उन्हें श्राप दिया कि कोई भी प्रकाश उन पर कभी नहीं पड़ेगा. इस श्राप से चंद्रमा पर किसी भी तरह का प्रकाश पड़ना बंद हो गया, जिससे वह आकाश में दिखना ही बंद हो गया.

इस पर चंद्रदेव और अन्य देवताओं ने भगवान गणेश जी से क्षमा मांगी. लेकिन एक बार श्राप दे देने के बाद इसे पूरी तरह वापस नहीं लिया जा सकता है, केवल कम किया जा सकता है, इसलिए भगवान गणेश जी ने अपने श्राप को कम करते हुए कहा कि जो भी इस दिन (चतुर्थी) चंद्रमा को देखेगा, वह मिथ्या दोष का भागीदार हो जाएगा, यानी उस व्यक्ति को अपने जीवन में किसी न किसी झूठे आरोप का सामना करना पड़ेगा. इसीलिए चतुर्थी को चंद्रमा को खाली आंखों से नहीं देखा जाता है.

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गणेश जी के 8 रूपों में सबसे मंगलकारी रूप- सिद्धिविनायक

भगवान गणेश जी ने कई रूपों में अवतार लिया है, लेकिन उनके 8 अवतार सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं, जिन्हें ‘अष्टविनायक‘ कहा जाता है. उनके 8 रूपों में भी ‘सिद्धिविनायक’ को सबसे मंगलकारी माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के निर्माण के पहले सिद्धटेक नाम के पर्वत पर भगवान विष्णु ने भगवान गणेश जी की उपासना की थी. तब इसी पर्वत पर प्रकट होने के कारण गणेश जी का नाम ‘सिद्धिविनायक’ पड़ा. गणेश जी की उपासना के बाद ही ब्रह्माजी सृष्टि की रचना बिना किसी रुकावट के कर सके.

सिद्धिविनायक का स्वरूप चतुर्भुजी है और इनके साथ उनकी पत्नियां रिद्धि और सिद्धि भी विराजमान हैं. सिद्धिविनायक के ऊपर के हाथों में कमल और अंकुश और नीचे के हाथों में मोतियों की माला और मोदक से भरा पात्र है. कहते हैं कि केवल सिद्धिविनायक की उपासना से ही सभी तरह के संकट और बाधाएं दूर हो जाती हैं और घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है.

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