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धर्म और अध्यात्म

Bhagavad Gita Adhyay 8 : श्रीमद्भगवद्गीता – आठवां अध्याय (अक्षर ब्रह्म योग)

“अर्जुन! यह मनुष्य अंतकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है, उस-उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है॥6॥ इसलिए अर्जुन! तुम सब समय में …” […]

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Bhagavad Geeta Adhyay 7 : श्रीमद्भगवद्गीता – सातवां अध्याय (ज्ञान-विज्ञान योग)

जन्म-जन्मान्तर में किये हुए कर्मों से संस्कारों का संचय होता है और उस संस्कार समूह से जो प्रकृति बनती है, उसे स्वभाव कहा जाता है. प्रत्येक जीव का स्वभाव अलग-अलग होता है. उस स्वभाव के अनुसार जो अन्तःकरण में भिन्न-भिन्न देवताओं का पूजन करने की भिन्न-भिन्न इच्छा उत्पन्न होती है, उसी को उससे प्रेरित होना कहते हैं. […]

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Vyadha Gita Mahabharata : जब एक स्त्री और एक शूद्र ने दी ब्राह्मण को शिक्षा

तब कौशिक ब्राह्मण बोले- “तो क्‍या ब्राह्मण बड़े नहीं हैं? गृहस्थ धर्म में रहकर भी तुम ब्राह्मणों का अपमान करती हो? अरे देवी! स्‍वर्गलोक के स्‍वामी भी ब्राह्मणों के आगे सिर झुकाते हैं, फिर मनुष्‍यों की तो बात ही क्‍या है… […]

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Bhagavad Gita Adhyay 6 : श्रीमद्भगवद्गीता – छठा अध्याय (आत्मसंयम योग)

मनुष्‍य को कभी भी यह नहीं समझना चाहिये कि मेरी प्रारब्‍ध बुरा है, इसलिये मेरी उन्‍नति होगी ही नहीं. मनुष्‍य का उत्‍थान-पतन उसी के हाथ में है. मनुष्‍य अपने स्‍वभाव और कर्मों में जितना ही अधिक सुधार कर लेता है, वह उतना ही उन्‍नत होता है. […]

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क्या शैवों को मांस खाना वर्जित है? मांस-मदिरा के सेवन को लेकर भगवान शिव ने क्या कहा है?

जिसमें मांस और मद्य न हो, जो सड़ा हुआ या पसीजा न हो, बासी न हो, अधिक कड़वा, अधिक खट्टा और अधिक नमकीन न हो, जिससे उत्तम गंध आती हो, जिसमें कीड़े या केश न पड़े हों, जो निर्मल हो, ढका हुआ हो और देखने में भी शुद्ध हो, जिसका ….. […]

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Bhagwat Geeta Adhyay 5 : श्रीमद्भगवद्गीता – पांचवा अध्याय (सांख्ययोग एवं कर्मयोग का निर्णय)

हे श्रीकृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की प्रशंसा करते हैं। इसलिए इन दोनों में से जो एक मेरे लिए भलीभाँति निश्चित कल्याणकारक साधन हो, उसको कहिए॥ […]

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Bhagavad Gita Adhyay 4 : श्रीमद्भगवद्गीता – चौथा अध्याय – श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद (ज्ञान कर्म संन्यास योग)

हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ॥ साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥ […]

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Bhagavad Geeta Adhyay 3 : श्रीमद्भगवद्गीता – तीसरा अध्याय – श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद (कर्मयोग)

“हे जनार्दन! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर आप मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं?॥ मानो आप मिले हुए-से वचनों से मेरी बुद्धि को मोहित कर रहे हैं. इसलिए उस एक बात को निश्चित करके कहिए जिससे मेरा कल्याण हो सके॥” […]

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Bhagwat Geeta Adhyay 2 : श्रीमद्भगवद्गीता – दूसरा अध्याय – श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद (सांख्ययोग)

मैं यह नहीं जानता कि हमारे लिए युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से क्या श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या वे हमें जीतेंगे. और जिन्हें मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र-पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं …. […]

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Tirth Yatra : तीर्थ यात्रा क्यों जरूरी है? किसे मिलता है तीर्थों का फल?

“पुष्कर जाना कठिन है, पुष्कर में तप करना अत्यंत कठिन है, और पुष्कर में दान देने का सुयोग तो और भी कठिन है, और उसमें निवास का सौभाग्य तो अत्यंत ही कठिन है….” […]