मां सरस्वती : जिनकी कृपा से बड़े से बड़ा मूर्ख भी बन जाता है विद्वान, जानिए उनकी महिमा और मंत्र

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माँ सरस्वती जी की महिमा, पूजा और मंत्र

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‘वीणावादिनी’ और ‘भारती’ जैसे नामों से विख्यात भगवती मां सरस्वती (Maa Saraswati) ज्ञान और विद्या की देवी हैं. ये तीन मुख्य आदि शक्तियों या त्रिदेवियों में से एक शक्ति हैं. इनकी आराधना से कोई भी व्यक्ति परम ज्ञान प्राप्त कर सकता है. विद्या आरंभ से पहले मां सरस्वती की ही पूजा-आराधना की जाती है, क्योंकि इन्हीं की कृपा से कोई भी व्यक्ति विद्या ग्रहण करने में सक्षम हो पाता है. मां सरस्वती की उपासना से बड़े से बड़ा मूर्ख भी विद्वान बन सकता है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के पहले श्लोक में सर्वप्रथम मां सरस्वती जी की ही वंदना की है.

विद्यारम्भ से पहले माता सरस्वती जी की उपासना

भगवती सरस्वती विद्या और शिक्षा की अधिष्ठात्री देवी हैं और विद्या को ही सभी धनों में श्रेष्ठ माना गया है. मां सरस्वती केवल ज्ञान ही नहीं देतीं, बल्कि अच्छी वाणी, कला में निपुणता, तेज बुद्धि और शांति भी देती हैं. बुद्धि और ज्ञान के बिना धन-संपत्ति भी व्यर्थ है, वह ज्यादा देर तक पास में नहीं टिक सकता. बुद्धिबल से कितनी ही बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है, इसीलिए दीपावली पर माता लक्ष्मी जी के साथ सरस्वती जी की भी आराधना की जाती है.

संगीत की उत्पत्ति भी इन्हीं से हुई है, इसलिए संगीत की भी अधिष्ठात्री देवी यही हैं. इस धरती पर उपस्थित सभी वाणी और संगीत देवी सरस्वती की ही कृपा से हैं. आज भी जिन विद्यालयों में छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया जाता है, वहां सुबह-सुबह सबसे पहले माता सरस्वती-वंदना या उन्हीं की आराधना करवाई जाती है और उसके बाद ही शिक्षा का कार्य शुरू होता है.

मंत्र-

या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

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भगवान ने भी जब-जब धरती पर अवतार लिया, उन्होंने मां सरस्वती की ही उपासना करके विद्या ग्रहण करने का कार्य शुरू किया. जब भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार मुरली बजाना शुरू किया था, तब उन्होंने मां सरस्वती से ही प्रार्थना की थी, कि वे उनकी मुरली में संगीत के स्वर भर दें. तब माता ने भगवान श्रीकृष्ण की सहायता की थी. इसी के साथ, माता सरस्वती ने अनेकों बार देवताओं और इस धरती की रक्षा के लिए भगवान की सहायता की है.

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रावण सहित सभी राक्षसों का अंत करने के लिए भगवान श्रीराम का वनवास में जाना जरूरी था, तब मां सरस्वती ने ही देवताओं की प्रार्थना पर मंथरा और माता कैकेयी की बुद्धि फेरी थी, जिससे भगवान का कार्य आसान हुआ. इसी तरह, जब रावण का छोटा भाई कुम्भकर्ण, जो तपस्या करके ब्रह्मा जी से इंद्रासन मांगने वाला था, तब माता सरस्वती ने ही उसके मुंह से ‘इंद्रासन’ की जगह ‘निंद्रासन’ कहलवा दिया. इससे पूरे विश्व की कुंभकरण से रक्षा हुई.

केवल ज्ञान ही नहीं देतीं माता सरस्वती…

मां सरस्वती जिस पर प्रसन्न हो जाती हैं, उसे कभी कोई पराजित नहीं कर सकता. मां सरस्वती की शरण में जाने वाला व्यक्ति हर जगह अपनी ओजपूर्ण वाणी से हर किसी को अपने वश में कर सकता है. हर एक व्यक्ति के लिए माता सरस्वती की नियमित रूप से उपासना करना अत्यंत आवश्यक है. मां सरस्वती की उपासना से व्यक्ति विद्यासंपन्न, धनवान और मधुरभाषी हो जाता है. सभी कार्य आसान हो जाते हैं और कुछ भी पाना कठिन या दुर्लभ नहीं रह जाता.

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मां सरस्वती जी की आरती

मां सरस्वती जी की पूजा और मंत्र-

जो लोग चाहते हैं कि उनकी वाणी प्रभावशाली और सशक्त हो जाए कि वे जब किसी के भी सामने बोलें, तो सामने वाला उनसे प्रभावित हो जाए, या जो लोग बुद्धि, ज्ञान, विद्या और कला का वरदान प्राप्त करना चाहते हैं, ऐसे लोगों को रोज श्वेत कमल पर विराजमान मां सरस्वती की उपासना करनी चाहिए. रोज सुबह सरस्वती वंदना जरूर करना चाहिए (या कुन्देन्दु तुषार हार धवला..).

हर महीने की पंचमी तिथि को मां सरस्वती की पूजा जरूर की जाती है. मां सरस्वती जी की पूजा सफेद या पीले वस्त्र पहनकर करना चाहिए. इन्हें पीले या सफेद फूल चढ़ाए जाते हैं. मां सरस्वती जी के मंत्रों का जप स्फटिक की माला से करना चाहिए. मां सरस्वती जी की पूजा-आराधना करने वालों को मांसाहार का त्याग कर देना चाहिए, क्योंकि मां सरस्वती प्रकृति का भी स्वरूप हैं.

मां सरस्वती का मंत्र- ज्ञान और विद्या प्राप्ति का सबसे बड़ा मंत्र है-
(1) ‘ऐं’
(2) ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः

रोज सुबह मां सरस्वती जी के चित्र या मूर्ति के सामने बैठकर ‘ऐं’ मंत्र का 108 बार जप करने से वाणी प्रभावशाली बनती है, एकाग्रता बढ़ती है और ज्ञान, विद्या और कला का वरदान मिलता है. इस मंत्र का जप इस प्रकार किया जाता है, जिससे वीणा की ध्वनि का आभास हो (मंत्रों के जप में शब्दों के उच्चारण, मात्राओं, लय-ताल आदि का पूरा ध्यान रखना चाहिए). 


मां सरस्वती का भव्य स्वरूप और उनका वर्णन

सरस्वती संस्कृत के दो शब्दों ‘सर’ और ‘स्व’ से मिलकर बना है. ‘सर’ का अर्थ होता है- तत्व, गुण, सार, वहीं ‘स्व’ का अर्थ है- स्वयं या आत्म, यानी जो हमारे स्वयं के वास्तविक तत्व गुण या सत्य को जानने में मदद करें, वही सरस्वती हैं. माता सरस्वती के बहुत नाम है- इरा, वाणी, वागीश्वरी, वाग्देवी, ज्ञानदा, प्रज्ञा, ब्रह्माणी, भारती, सनातनी, महाश्वेता, कलादेवी, कादंबरी, गिरा, मेधाविनी, वागीशा, वीणावादिनी, शारदा, हंसगामिनी आदि.

माता सरस्वती का स्वरूप अद्भुत, अत्यंत सुखदायी और कल्याणकारी है. इनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है, जो यह सिखाती है कि परिस्थिति चाहे जैसी हो, हमें अपनी उम्मीद, मुस्कान और विनम्रता कभी नहीं छोड़नी चाहिए. माता के एक मुख और चार हाथ हैं. माता की चारों भुजाएं चारों दिशाओं और उनमें फैले ज्ञान और शक्ति को दर्शाती हैं. इनके चारों हाथों में वीणा, वेदग्रंथ और स्फटिक की माला है.

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माता सरस्वती के हाथों में वीणा

माता सरस्वती के दोनों हाथों में वीणा, भाव संचार और कलात्मकता का प्रतीक है. यानी जीवन का संगीत-वाद्य उन्हीं के हाथों में है. वीणा और उसके तार जीवन में प्रेम और उसके रहस्य को दर्शाते हैं. जिस तरह वीणा के तारों में संगीत की अनगिनत धुनें छिपी हुई हैं, उसी तरह मनुष्य के अंदर भी अनेक संभावनाएं छिपी हैं. जब तक तारों को छेड़ा न जाए, तब तक संगीत पैदा नहीं होता. उसी तरह जब तक मनुष्य को ज्ञान उपलब्ध नहीं होता, तब तक उसका जीवन नीरस, दुखी और अधूरा रहता है.

जिस तरह वीणा के तारों में सामंजस्य होने से ही मधुर संगीत निकलता है, उसी तरह अगर मनुष्य अपने जीवन में मन और बुद्धि के बीच तालमेल बिठा ले, तो वह महासुख को प्राप्त कर सकता है और जीवन के संगीत का आनंद ले सकता है. माता के हाथों में वीणा हमें यह भी सिखाता है कि जीवन दुखी और उदास होने का नाम नहीं है, बल्कि जीवन एक संगीत है, एक सौंदर्य है, जिसे पाने के लिए हमें प्रयास करते रहना चाहिए और अपने अंदर छिपी संभावनाओं को प्रकट होने का अवसर देना चाहिए.

माता के हाथों में पुस्तक और माला

पुस्तक से सही ज्ञान, परख और सही निर्णय लेने की शक्ति और माला से भगवान और अपने कर्म के प्रति निष्ठा और सात्विकता का बोध होता है. पुस्तक यह बताती है कि बिना ज्ञान या आत्मज्ञान के जीवन व्यर्थ है. ज्ञान ही वह शक्ति है, जो हमें अपने असली उद्देश्य का अनुभव कराता है. वहीं, माला के माध्यम से माता अपनी संतानों या भक्तों को बताती हैं कि हमारे कर्म हमेशा पवित्र होने चाहिए. माला ध्यान और जप का भी प्रतीक है. यह जीवन में आध्यात्मिकता के महत्व को समझने पर जोर देती है.

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माला से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि चाहे अकेले भी खड़ा होना पड़े, लेकिन हम सही मार्ग पर ही चलें, लेकिन यह भी ध्यान रखना है कि इस कारण हम दूसरों से अलग ना हो जाएं, क्योंकि जैसे माला तमाम मोतियों से जुड़कर एक बनती है, वैसे ही हमें भी सबके साथ जुड़कर रहना है, लेकिन कोई भी मोती एक-दूसरे के ऊपर नहीं आता, सब अलग-अलग होते हैं. इसी तरह हमें भी किसी के भी गलत प्रभाव में नहीं आना है, सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते जाना है और वह भी जीवन के संगीत के साथ.

माता सरस्वती का वाहन हंस

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माता का वाहन हंस है, जो सौंदर्य और स्वच्छता का प्रतीक है. हंस का रंग सफेद है, अतः वह शांति और पवित्रता का भी प्रतीक माना जाता है. हंस ही है जो दूध और पानी को अलग-अलग करने की क्षमता रखता है. यह अद्भुत क्षमता ज्ञान, पवित्रता और एकाग्रता से ही आ सकती है. ज्ञान ही हमें सही-गलत की पहचान करना सिखाता है, शुद्ध-अशुद्ध में अंतर करना सिखाता है, इस तरह हंस ज्ञान और विवेक से संपन्न होता है और इसीलिए माता सरस्वती ने उसे अपने वाहन के रूप में चुना है.

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हंस अपना ज्यादातर समय स्वच्छ जल या किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे ही बिताता है. इस तरह हंस बताता है कि हमें ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने मन को शांत और पवित्र करना जरूरी है. जिस व्यक्ति का मन शांत और पवित्र होता है, उस पर माता सरस्वती कृपा जरूर करती हैं. तब वह व्यक्ति सभी निर्णय अपनी बुद्धि और विवेक से लेता है और हंस के समान परम पद को प्राप्त करता है.

माता सरस्वती का आसन श्वेत कमल

माता सफेद या श्वेत कमल पर भी विराजमान होती हैं, जो सादगी, स्वच्छता, सौंदर्य, शुद्धता, समृद्धि, दिव्यता और पूर्णता का प्रतीक है. कमल कीचड़ में खिलता है, लेकिन उससे पूरी तरह अछूता रहता है. इसी तरह हम चाहें जिस भी परिस्थिति में रहें, लेकिन उन्हें अपने ऊपर हावी ना होने दें. कमल कीचड़ में खिलकर भी बहुत सुंदर लगता है, यानी मुस्कुराता रहता है. उसी तरह हमें भी विषम परिस्थितियों में कभी हताश या निराश नहीं होना चाहिए.

White Lotus

माता सरस्वती के वस्त्रों का रंग भी श्वेत है, जो सभी रंगों में सबसे हल्का और आंखों को सुकून देने वाला होता है. यह रंग शांति, उमंग, उत्सव, ताजगी और कोमलता का भी प्रतीक है. इसी के साथ, माता सरस्वती के कई चित्रों में उनके साथ मोर को भी दर्शाया जाता है. मोर भी सौंदर्य और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है. इसी के साथ वह विद्या और ज्ञान का भी प्रतीक है.

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माता सरस्वती जी का जन्म

वेदों के अनुसार, माता सरस्वती आदि शक्ति हैं. ये अजन्मा हैं. इनका न आदि है और न अंत. ऐसी शक्तियां केवल किसी महान शक्ति के आवाहन पर प्रकट होती हैं, जिसे सरल भाषा में ‘जन्म’ कह दिया जाता है. माता सरस्वती जी के जन्म या उनके प्रकट होने को लेकर पुराणों में कई कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन उनके जन्म को लेकर जिस कथा की चर्चा सबसे ज्यादा की जाती है, वह इस प्रकार है-

कहते हैं कि जब परमपिता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद मनुष्य की रचना की, तब उन्होंने यह अनुभव किया कि केवल मनुष्य की रचना मात्र से ही सृष्टि को गति नहीं दी जा सकती. ब्रह्मा जी को लगा कि कुछ ऐसी कमी है, जिसके कारण चारों ओर मौन ही मौन छाया हुआ है, इसलिए वे केवल सृष्टि की रचना कर संतुष्ट नहीं थे.

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निश्चित सी बात है कि जब तक वाणी न हो, शब्द न हों, विचारों की अभिव्यक्ति न हो, तब तक ज्ञान का प्रसार भी नहीं हो सकता, तब तक इस सृष्टि को गति भी नहीं दी जा सकती. वह जैसी है, वैसी ही होकर रह जाएगी और ऐसे ही खत्म हो जाएगी.

तब ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु जी ने मिलकर मूलप्रकृति आदिशक्ति की उपासना की. आदिशक्ति ने अपने तेज और अपने अंश से एक ज्योति पुंज को प्रकट किया, जो एक अद्भुत देवी स्वरूप में बदल गया. यह देवी मां सरस्वती ही थीं, जिनके दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी और दो हाथों में वीणा.

ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया. देवी ने जैसे ही वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई, जलधारा में कोलाहल और पवन में सरसराहट होने लगी. तब देवताओं ने उन्हें वाणी की देवी ‘माता सरस्वती’ कहा. संगीत की उत्पत्ति के कारण ये संगीत की देवी भी हैं.

इस प्रकार ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि को आकार दिया और मां सरस्वती जी ने वाणी. जैसे शिवा शिव की शक्ति हैं, लक्ष्मी जी विष्णु जी की शक्ति हैं, उसी प्रकार माँ सरस्वती जी सदैव से ही ब्रह्मा जी की शक्ति हैं. सभी देवियों की उत्पत्ति मूलप्रकृति आदिशक्ति से हुई है.

हर चित्र में ब्रह्मा जी को बुजुर्ग दिखा दिया जाता है, जबकि ऐसा है नहीं. दरअसल, सृष्टि की रचना का कार्यभार उनके ऊपर है. बस, इसीलिए उन्हें हम ‘परमपिता’ बुलाते हैं. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि ब्रह्मा जी बुजुर्ग हैं. दैवीय शक्तियां समय से परे होती हैं. ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना अपनी ओजशक्ति या मानसिक संकल्प विधि से करते हैं.

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