Unemployment/Employment in India : अगर रामानुजन आज होते तो क्या उन्हें नौकरी मिलती?

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Srinivasa_Ramanujan

Analysis of Unemployment/Employment problem in India through the story of Ramanujan and MBA Chaiwala

22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) था, जो भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन (Great Mathematician Srinivasa Ramanujan) की याद में मनाया जाता है. आज रामानुजन जी के बारे में हर कोई जानना चाहता है. यहां तक जानना चाहता है कि वो कैसे दिखते थे, कैसे कपड़े पहनते थे, उनका रहन-सहन कैसा था… जबकि इन्हीं रामानुजन को अपने समय में एक छोटी सी नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी थीं… हर जगह से अपमानित कर के निकाल दिया गया था उन्हें.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (Dr. APJ Abdul Kalam) ने श्री रामानुजन पर लिखी अपनी एक किताब में लिखा है कि “उस समय रामानुजन का आत्मविश्वास पूरी तरह टूट चुका था और उनकी हंसी भी गायब हो चुकी थी…” सोचिए, ये उस असाधारण व्यक्ति का हाल है, जिसकी कल्पना अनंत तक जाती थी.

चलो तब तो भारत में अंग्रेजों का शासन चल रहा था. भारत परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा था, चारों तरफ भयंकर गरीबी छाई हुई थी, लेकिन आजादी के बाद से आजतक भी इस सिस्टम में कोई खास बदलाव आया है क्या?

अगर रामानुजन आज होते तो क्या उन्हें नौकरी मिलती?

क्या आज उन्हें कोई भी प्रतियोगी परीक्षा में बैठने का अवसर मिलता? क्या उनका Resume देखकर कोई भी अच्छी कंपनी उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाती? रामानुजन के पास कोई डिग्री नहीं थी, किसी काम का कोई एक्सपीरियंस नहीं था. इंटरमीडिएट में भी फेल हो चुके थे, क्योंकि गणित (Maths) के प्रति बेहद प्रेम, लगन और मेहनत उन्हें कोई और विषय पढ़ने का समय ही नहीं देता था.

वे हर जगह जाकर केवल अपनी नोटबुक दिखा दिया करते थे, जो आज भी बड़े-बड़े विद्वानों की समझ से बाहर है. इस बीच, जब उन्होंने अपनी रिसर्च को लंदन के प्रो. GH हार्डी के पास पहुंचाया, तब वे जरूर समझ गए कि रामानुजन एक असाधारण और दुर्लभ व्यक्ति हैं.

पढ़ें – ‘संख्या के जादूगर’ रामानुजन कैसे खोजते थे गणित की समस्याओं का हल?

प्रो. हार्डी ने उन्हें प्रसिद्धि पाने का मौका दिया. उनकी योग्यता का पूरा-पूरा लाभ उठाया. रामानुजन उनके साथ करीब पांच साल लंदन में ही रहे. लेकिन इतने सालों में हार्डी ने एक बार भी ये जानने की कोशिश नहीं की कि रामानुजन किन भयंकर परेशानियों या किस बड़ी बीमारी का सामना कर रहे हैं. उनकी परेशानियों को दूर करने या उनकी बीमारी का इलाज करवाने की कोशिश तक नहीं की, वे केवल इतना चाहते थे कि रामानुजन हमेशा उनके साथ काम करते रहें (श्री रामानुजन के जीवन परिचय के अनुसार).

रामानुजन अपने परिवार के साथ जीना चाहते थे, लेकिन भारत वापस आकर वे बीमारी से नहीं जीत सके और एक साल के अंदर ही मात्र 32 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई. लेकिन अपने इतने से जीवन में ही श्री रामानुजन ने दुनिया को वो दे दिया, जिसका ऋण चुकाना नामुमकिन है. आज डिग्रीधारी, एक्सपीरियंसधारी बड़े-बड़े वैज्ञानिक उनके फार्मूलों पर अपना सिर पटकने में लगे हुए हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि दुनिया की ही नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की सबसे बड़ी पहेलियों को सुलझाने के लिए रामानुजन के फार्मूलों की ही जरूरत है.

डॉ. कलाम ने लिखा है कि “रामानुजन साधारण व्यक्तियों में नहीं आते. उनकी असाधारण प्रतिभा ने ही उन्हें ब्रिटिश शासन की कठिन परिस्थितियों में भी कामयाब बनाया. ये उनकी प्रतिभा ही थी जिसने हार्डी जैसे रूखी प्रकृति के व्यक्ति के हृदय को भी पिघला दिया था”. दुख केवल इस बात का है कि जीते-जी उन्हें वह सब नहीं मिल सका, जिसके वो अधिकारी थे…

अब बात करते हैं आज के समय की…

प्रफुल्ल बिलौरे (Prafulla Bilaure), जो एक अच्छे संस्थान से MBA करना चाहते थे, लेकिन CAT का एक टेस्ट बार-बार उन्हें अयोग्य साबित कर देता. कुछ दिनों तक वे खुद को एक कमरे में बंद कर के रोते रहे और फिर उन्होंने एक डिलीवरी ब्वॉय की नौकरी की.

फिर वह सड़क किनारे चाय (Tea) की एक टपरी खोलकर बैठ गए. लोगों ने ‘चायवाला-चायवाला’ कहकर खूब मजाक उड़ाया, ताने मारे और नीचा भी दिखाया तो उन्होंने अपनी टपरी का नाम ही ‘MBA चायवाला’ (MBA Chaiwala) रख लिया. ये तो ‘लोगों द्वारा अपने ऊपर फेंके गए पत्थरों की सीढ़ियां बनाकर चढ़ने’ वाली बात हो गई. आज देशभर में उनकी फ्रेंचाइजी हैं, उन्होंने साबित कर दिया कि उन्हें किसी मैनेजमेंट कोर्स की जरूरत ही नहीं थी.

पढ़ें – जानिए ‘MBA चायवाला’ प्रफुल्ल बिलौरे की सफलता की कहानी

आज हर कोई ‘MBA चायवाला’ से मिलना चाहता है, उनसे हाथ मिलाना चाहता है, उनके साथ सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर डालना चाहता है. लेकिन जब एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने चाय-पकौड़े बेचने की तुलना रोजगार से क्या कर दी थी, लोगों ने उनका खूब मजाक बनाया था, विपक्ष ने तो जमकर निशाना साधा था. बहुत से पढ़े-लिखे लोगों को पीएम मोदी की ये बात बिल्कुल पसंद नहीं आई थी और काफी नाराजगी जताई थी.

MBA Chaiwala

ये नहीं है योग्यता की परिभाषा…

ऐसी बहुत सी कहानियां आपको सुनने को मिल जाएंगी कि जिसकी मेहनत या योग्यता को किसी ने नहीं परखा, उसने एक दिन इतिहास रच दिया. ऐसे बहुत से युवा मिल जाएंगे जिन्होंने पढ़ाई तो जमकर की है, लेकिन हालात के चलते शुरुआत किसी बहुत छोटे काम से की और फिर उसे ही मुकाम तक ले जाकर दूसरों के लिए मिसाल बन गए हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ लोगों की तरफ से योग्यता का टैग न दिया जाना अयोग्यता को साबित नहीं करता.

ये जरूरी नहीं कि जिन्हें अच्छे अवसर नहीं मिले हैं, वे अयोग्य ही हैं, या जिन्हें अच्छे अवसर मिल गए हैं, वे योग्य ही हैं. अगर ऐसा ही होता, तो देश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी न होतीं, पद का दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ बड़े-बड़े कानून नहीं बनाने पड़ते. अगर आपको लगता है कि आप सच में योग्य हैं, या आपने सच में बहुत मेहनत की है, लेकिन उस हिसाब से आपको वो अवसर नहीं मिला, जो आपको मिलना चाहिए था, तो इसका मतलब ये भी हो सकता है कि प्रकृति आपसे कुछ अलग करवाना चाहती है, बस उसका इशारा भर समझने की जरूरत है.

हम सब केवल वर्तमान देखते हैं लेकिन…

ब्रिटिशकाल से पिछली सरकारों तक लोगों के दिमाग में केवल यही भरने की कोशिश की गई कि नौकरी (Job) ही सब कुछ है. जब तक आपके नाम के साथ कोई सरकारी पद या किसी बड़ी कंपनी के नाम का टैग न चिपका हो, तब तक आप सफल लोगों की कैटेगरी में नहीं आते…. और इसीलिए अपने किसी छोटे से काम की बड़ी शुरुआत करने वालों का हौसला तोड़ने की कोशिश बहुत की जाती है.

इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी की कुछ बातों का मतलब समझना आज के युवाओं के लिए बहुत जरूरी हो गया है कि ‘हम किसी भी काम को छोटा या बड़ा समझना बंद कर दें…एक ही चीज पर निर्भरता को खत्म कर दें, लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं, ये सोचना कम कर दें, अपने हंसने-रोने की बागडोर दूसरों के हाथों में न दें. दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर दें. खुद को ‘बेरोजगार (Unemployment)’ कहकर अपनी मेहनत और काबिलियत का मजाक कभी मत बनाइए’.

हम सब केवल वर्तमान देखते हैं लेकिन पीएम मोदी दूर की सोचते हैं. वे समझाना चाहते हैं कि किसी एक चीज पर ही निर्भर हो जाना कितना खतरनाक साबित हो सकता है. उन्होंने “गुलामी” की ऐसी ही बेड़ियों को तोड़कर “आत्मनिर्भर” बनने का जो नारा दिया है, वह बहुत सोच-समझकर ही दिया है.

करें खुद को मजबूत बनाने की कोशिश

अगर आप कभी असफल हों तो इससे निराश होने की बजाय असफलता के कारणों को तलाशने पर ध्यान दें. आखिर आप निराश या दुखी होकर भी क्या हासिल कर लेंगे, बल्कि सही तरीके से और सही दिशा में प्रयास करते जाने पर कभी भी आपकी किस्मत पलट सकती है. नौकरी मिले तो मेहनत से काम करें, न मिले तो कुछ भी करें, लेकिन रुकें नहीं.

अच्छी और ज्ञानवर्धक किताबों को अपना साथी बना लें, क्योंकि ये जीवन में एक बड़ा बदलाव लाने में बहुत मददगार साबित होती हैं. अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को भी समझें. अपनी कमजोरियों को पहचानकर उन्हें दूर करने का हर संभव प्रयास करें. इससे खुद को मजबूत बनाने में और मदद मिलेगी.

(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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