Shri Satyanarayan Puja Vidhi with Mantra
इससे पहले की पूजा – श्री सत्यनारायण पूजा की तैयारी, पवित्रीकरण, स्थापना, आवाहन और संकल्प (Click Here)
श्रीगणेश-अंबिका जी पूजन –
भगवान श्री गणेश जी को स्नान कराएं, वस्त्र और जनेऊ अर्पित करें. गंध, पुष्प, अक्षत अर्पित करें.
• हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर श्रीगणेश जी और अंबिका जी का ध्यान करें-
श्री गणेश जी का ध्यान :
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकम्
नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
श्री अंबिका जी का ध्यान :
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम्॥
श्रीगणेश अंबिकाभ्यां नमः
ध्यानं समर्पयामि।
• श्री गणेश जी की मूर्ति या मूर्ति के रूप में सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ और नमस्कार करें-
ॐ भूभुर्वः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः
गौरीमावाहयामि
स्थापयामि पूजयामि च।
प्रतिष्ठा के लिए –
• आसन या प्रतिष्ठा के लिए निम्नलिखित मंत्र बोलकर गणेश जी या सुपारी पर पुनः अक्षत चढ़ाएँ-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ(गुँ) समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयंतामो(गुँ) प्रतिष्ठ॥ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्ये प्राणाः क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
गणेश अम्बिके! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्। प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः।
• अब हाथ में जल लेकर निम्नलिखित मंत्र बोलकर जल अर्पित करें-
ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् ।
एतानि पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनराचमनीयानि समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः।
(जल चढ़ा दें).
पंचामृत स्नान –
पंचामृत (दूध, दही, शक्कर, घी, शहद के मिश्रण) से स्नान कराएँ –
पंचामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु। शर्करया समायुक्तं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि।
शुद्धोदक स्नानं –
निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शुद्ध जल से स्नान कराएँ-
गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
अब आचमन के लिए जल दें-
शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
वस्त्र और उपवस्त्र –
श्री गणेश-अम्बिका को वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित करें-
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, वस्त्रं समर्पयामि।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि।
आचमन के लिए जल अर्पित करें –
वस्त्र उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि॥
यज्ञोपवीत –
यज्ञोपवीत अर्पित करें और आचमन के लिए जल दें-
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
यज्ञोपवीतान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
नाना परिमल द्रव्य –
अबीर, गुलाल, पुष्प इत्यादि अर्पित करें –
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः
नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि।
धूप –
धूप-बत्ती जलाएँ और निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए धूप दिखाएँ व पुनः हाथ धो लें-
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः
धूपं आघ्रापयामि।
दीप –
एक दीपक जलाएँ और निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए दीप दिखाएँ व हाथ धो लें-
ॐ भूर्भुवः स्व. गणेशाम्बिकाभ्यां नमः
दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य –
यथाशक्ति मालपुए और अन्य मिष्ठान्न अर्पित करें-
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः
नैवेद्यं निवेदयामि॥
इसके बाद जल छोड़ते हुए निम्नलिखित मंत्र बोलें-
ॐ प्राणाय स्वाहा।
ॐ अपानाय स्वाहा।
ॐ समानाय स्वाहा।
ॐ उदानाय स्वाहा।
ॐ व्यानाय स्वाहा।
नैवेद्य निवेदित करें और जल अर्पित करें-
नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
• इसके बाद इलायची, लौंग, सुपारी, तांबूल इत्यादि अर्पित करें –
पूगीफलं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः
मुखवासार्थम् एलालवंग ताम्बूलं समर्पयामि॥
• इसके बाद गणेश-अम्बिका जी की प्रार्थना करें-
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।
नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषताय गौरीसुताय नमो नमस्ते॥
लम्बोदर नमस्तुभ्यं मोदकप्रिय।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।
सर्वेश्वरी सर्वमाता शर्वाणी हरवल्लभा सर्वज्ञा।
सिद्धिदा सिद्धा भव्या भाव्या भयापहा नमो नमस्ते॥
‘अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम्’ कहकर जल छोड़ दें.
षोडशोपचार पूजन-
ॐ श्री गायत्रीदेव्यै नमः।
आवाहयामि, स्थापयामि॥
आसनं समर्पयामि। पाद्यं समर्पयामि।
अर्घ्यं समर्पयामि। आचमनं समर्पयामि।
स्नानं समर्पयामि। वस्त्रं समर्पयामि।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि। गन्धं विलेपयामि।
अक्षतान् समर्पयामि। पुष्पाणि समर्पयामि।
धूपं आघापयामि। दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य निवेदयामि। ताम्बूलपूगीफलानि।
दक्षिणां समर्पयामि।
सर्वभावे अक्षतान् समर्पयामि।
॥ ततो नमस्कारं करोमि॥
ॐ नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये
सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे।
सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते
सहस्रकोटीयुगधारिणे नमः॥
इसके बाद षोडशमातृका पूजन और नवग्रह पूजन किया जाता है-
• इस मंत्र से नवग्रहों का पूजन करें-
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
• इस मंत्र से षोडशमातृका का पूजन करें-
गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः॥
धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिरात्मनः कुलदेवता।
गणेशेनाधिका ह्येता वृद्धो पूज्याश्च षोडशः॥
श्री सत्यनारायण पूजन प्रारंभ (Shri Satyanarayan Puja Vidhi with Mantra at Home) –
ध्यान –
हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर इस मंत्र से श्री सत्यनारायण भगवान का ध्यान करें और अक्षत-पुष्प अर्पित कर दें-
ॐ सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितंच सत्ये।
सत्यस्य सत्यामृत सत्यनेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः॥
ध्यायेत्सत्यं गुणातीतं गुणत्रय समन्वितम् ।
लोकनाथं त्रिलोकेशं कौस्तुभरणं हरिम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
आवाहन –
हाथ में पुष्प लेकर इस मंत्र से श्री सत्यनारायण भगवान का आवाहन करें और पुष्प अर्पित करें-
आगच्छ भगवन्! देव! स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत् पूजां करिष्येऽहं तावत् त्वं संनिधौ भव॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
श्री सत्यनारायणाय आवाहयामि
आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
आसन –
हाथ में पुष्प लेकर इस मंत्र से श्री सत्यनारायण भगवान को आसन दें और पुष्प अर्पित करें-
अनेक रत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्।
भवितं हेममयं दिव्यम् आसनं प्रति गृह्याताम॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, आसनं समर्पयामि।
पाद्य –
इस मंत्र से श्री सत्यनारायण भगवान को पुष्प अर्पित करें-
नारायण नमस्तेऽतुनरकार्णवतारक। पाद्यं गृहाण देवेश मम सौख्यं विवर्धय॥ ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि।
अर्घ्य –
इस मंत्र से अर्घ्यपात्र से चन्दन मिश्रित जल नारायण के हाथों में दें-
गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमर्घ्यं सम्पादितं मया। गृहाण भगवन् नारायण प्रसन्नो वरदो भव॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि।
आचमन –
इस मंत्र से श्री सत्यनारायण भगवान को कर्पूर से सुवासित जल चढ़ाएँ-
कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु शीतलम्। तोयमाचमनीयार्थं गृहाण परमेश्वर॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि।
स्नान –
इस मंत्र से श्री सत्यनारायण भगवान को स्नानीय जल अर्पित करें-
मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागुरू वासितैः। स्नानं कुर्वन्तु देवेशा सलिलैश्च सुगन्धिभिः॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, स्नानीयं जलं समर्पयामि।
‘ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः’ बोलकर आचमन के लिए जल दें-
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।
दुग्ध स्नान –
इस मंत्र से कच्चे दूध से स्नान कराएँ
कामधेनुसमुत्पन्नां सर्वेषां जीवनं परम्। पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, पयः स्नानं समर्पयामि।
इस मंत्र से पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएँ-
पयः स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
दधिस्नान –
इस मंत्र से दधि (दही) से स्नान कराएँ-
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्। दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, दधिस्नानं समर्पयामि।
फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ-
दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
घृत स्नान –
इस मंत्र से घृत स्नान कराएँ-
नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम्। घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, घृतस्नानं समर्पयामि।
फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ-
घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
मधु स्नान –
इस मंत्र से शहद स्नान कराएँ-
पुष्परेणुसमुत्पन्नं सुस्वादु मधुरं मधु। तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, मधुस्नानं समर्पयामि।
फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ-
मधुस्नानन्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
शर्करा स्नान –
इस मंत्र से शर्करा स्नान कराएँ-
इक्षुसारसमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्। मलापहारिकां दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, शर्करास्नानं समर्पयामि।
फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ-
शर्करा स्नानान्ते पुनः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
पंचामृत स्नान –
दूध, दही, घी शक्कर एवं शहद मिलाकर पंचामृत बनाएँ और निम्नलिखित मंत्र से स्नान कराएँ-
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्। पंचामृतं मयाऽऽनीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि।
फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ-
पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
गन्धोदक स्नान –
इस मंत्र से चंदनयुक्त जल से स्नान कराएँ-
मलयाचलसम्भूतं चन्दनेन विमिश्रितम्। इदं गन्धोदकस्नानं कुंकुमाक्त्तं नु गृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, गन्धोदकस्नानं समर्पयामि।
फिर गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएँ-
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्। तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
इसके बाद ‘शुद्धोदकस्नानांते आचमनीयं जलं समर्पयामि’ बोलते हुए आचमन कराएँ।
वस्त्र –
इन मंत्र से वस्त्र अर्पित करें और आचमनीय जल दें-
शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। देहालंकरणं वस्त्रं धृत्वा शांतिं प्रयच्छ मे॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, वस्त्रं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
उपवस्त्र –
इस मंत्र से उपवस्त्र चढ़ाएँ और आचमन के लिए जल दें-
कंचुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम्। गृहाण त्वं मया दत्तं मंगले जगदीश्वर॥
ॐ श्रीसत्यनारायणाय नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
यज्ञोपवीत –
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्। उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि।
इसके बाद ‘यज्ञोपवीतांते आचमनीयं जलं समर्पयामि’ बोलते हुए आचमन कराएँ।
चन्दन –
इस मंत्र से केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें-
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, गन्धं समर्पयामि।
अक्षत –
इस मंत्र से कुमकुम युक्त अक्षत चढ़ाएँ (सात बार धोए हुए बिना टूटे चावल अक्षत कहलाते हैं)-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः। मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्पमाला –
इस मंत्र से पुष्प और पुष्पमालाएँ चढ़ाएँ-
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। मयाऽऽह्तानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि।
दूर्वांकुर –
इस मंत्र से दूर्वांकुर अर्पित करें-
दूर्वांकुरान् सुहरितानमृतान् मंगलप्रदान्। आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण परमेश्वर॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, दूर्वांकुरान् समर्पयामि।
आभूषण –
इस मंत्र से आभूषण समर्पित करें-
वज्रमाणिक्य वैदूर्य मुक्ता विद्रूम मण्डितम्। पुष्परागसमायुक्तं भूषणं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, आभूषणानि समर्पयामि।
नाना परिमलद्रव्य –
इस मंत्र से परिमल द्रव्य चढ़ाएँ-
दिव्यगंधसमायुक्तं नानापरिमलान्वितम्। गंधद्रव्यमिदं भक्त्या दत्तं स्वीकुरु शोभनम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि।
धूप –
इस मंत्र से धूप आघ्रापित करें-
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः गन्ध उत्तमः। आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, धूपमाघ्रापयामि।
दीप –
इस मंत्र से दीपक दिखाकर हाथ धो लें-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया। दीपं गृहाण देवेश! त्रैलोक्यतिमिरापहम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, दीपं दर्शयामि।
नैवेद्य –
इस मंत्र से पंचमिष्ठान्न और सूखे मेवे अर्पित करें-
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च। आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, नैवेद्यं निवेदयामि।
आचमन –
नैवेद्य निवेदित कर पुनः हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें-
नैवेद्यांते ध्यानं आचमनीयं जलं उत्तरापोऽशनं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।
ऋतुफल –
ऋतुफल अर्पित करें और आचमन व उत्तरापोऽशन के लिए जल दें-
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्। तस्मात् फलप्रदादेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, ऋतुफलं निवेदयामि। मध्ये आचमनीयं जलं उत्तरापोऽशनं च समर्पयामि।
ताम्बूल –
लवंग, इलायची और ताम्बूल अर्पित करें-
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्। एलालवंगसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि।
दक्षिणा –
दक्षिणा चढ़ाएँ-
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः। अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः, दक्षिणां समर्पयामि।
• पूजन के बाद श्री सत्यनारायण जी की कथा का पाठ करें या सुनें. कथा पूरी होने पर भगवान जी की आरती करें, प्रदक्षिणा करें, नेवैद्य अर्पित करें. फल, मिठाई, शक्कर का बूरा या जो भी पदार्थ सवाया इकठ्ठा किया हो, उन सभी पदार्थों का भगवान जी को भोग अर्पित करें. भगवान जी का प्रसाद सभी भक्तों में बांट दें.
• अंत में क्षमा याचना अवश्य करें कि “यदि पूजा में जाने-अनजाने जो भी भूल-चूक हो गई हो, उसके लिए कृपया हम सभी को क्षमा करें और अपनी कृपा तथा आशीर्वाद प्रदान करें..”
आरती
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्।
आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भवं॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
आरार्तिक्यं समर्पयामि।
(कर्पूर से आरती कर जल छोड़ें व हाथ धोयें)
प्रदक्षिणा –
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणां पदे पदे॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः।
प्रदक्षिणां समर्पयामि॥
मंत्रपुष्पांजलि –
श्रद्धया सिक्तया भक्त्या हार्दप्रेम्णा समर्पितः।
मंत्रपुष्पांजलिश्चायं कृपया प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
मंत्रपुष्पांजलि समर्पयामि॥
(पुष्प अर्पित करें)
नमस्कार –
हाथ जोड़कर बोलें –
नमः सर्वहितार्थाय जगदाधारहेतवे।
साष्टांगोऽयं प्रणामस्ते प्रयत्नेन मया कृतः॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि॥
(प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें)
क्षमा-याचना –
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्॥
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नमः
क्षमायाचनां समर्पयामि।
(क्षमा याचना करें)
पूजन समर्पण –
हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें –
ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्रीसत्यनारायणाय प्रसीदतुः॥
(जल छोड़ दें और प्रणाम करें)
ॐ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु ।
ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!
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श्री सत्यनारायण व्रत-पूजा का सार और महिमा (shri satyanarayan vrat katha pdf) –
श्री सत्यनारायण जी की कई कथाएं हैं. श्री सत्यनारायण व्रत का वर्णन देवर्षि नारद जी के पूछने पर स्वयं भगवान श्रीहरि ने अपने मुख से किया है.
एक बार योगी नारद जी ने भ्रमण करते हुए मृत्युलोक (पृथ्वीलोक जहां जन्म-मृत्यु का बंधन रहता है) के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते देखा. इससे उनका संत-हृदय द्रवित हो उठा और वे वीणा बजाते और हरि कीर्तन करते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्रीविष्णु जी की शरण में क्षीरसागर पहुंच गए और स्तुति करते हुए बोले-
“हे नाथ! यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो पृथ्वीलोक के प्राणियों की व्यथा (संताप) हरने वाला कोई छोटा सा उपाय बताने की कृपा करें.”
तब भगवान श्रीविष्णु जी ने नारद जी से कहा, “हे नारद! तुमने विश्वकल्याण की भावना से बहुत सुंदर प्रश्न किया है, अत: तुम्हें साधुवाद है. आज मैं तुम्हें ऐसे व्रत के बारे में बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है. यह व्रत महान पुण्यदायक है और मोह के बंधन को काट देने वाला है, वह है श्रीसत्यनारायण व्रत. इस व्रत को विधि-विधान से करने पर मनुष्य पृथ्वीलोक पर सांसारिक सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर सकता है.”
सायंकाल में यह व्रत-पूजन करना और भी अच्छा माना जाता है. श्री सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं. इस व्रत-पूजन को करने से मुनष्य दुखों से मुक्त हो जाता है. इस व्रत में उपवास का भी अपना महत्व है लेकिन उपवास का अर्थ मात्र भोजन न लेना ही नहीं समझना चाहिए. व्रत या उपवास के समय हृदय में यह धारणा होनी चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान हमारे पास ही विराजमान हैं- “हे भगवान आप तो साक्षात सत्यस्वरूप हैं और हम सब आपकी शरण में हैं.”
अत: अंदर और बाहर शुचिता बनाए रखना आवश्यक है और श्रद्धा-विश्वासपूर्वक भगवान का पूजन कर उनकी मंगलमयी कथा को सुनना या पढ़ना चाहिए. सत्य को अपनाने के लिए किसी मुहूर्त शोधन की आवश्यकता नहीं है. कभी भी, किसी भी दिन से यह शुभ कार्य प्रारंभ किया जा सकता है. आवश्यकता है तो केवल व्यक्ति के दृढ़ निश्चय की और उसके परिपालन के लिए संपूर्ण समर्पण और भाव की.
श्री सत्यनारायण जी की कथा बताती है कि व्रत-पूजन करने में सभी का समान अधिकार है. चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, निर्धन हो या धनवान, राजा हो या व्यवसायी, ब्राह्मण हो या अन्य वर्ग. यही स्पष्ट करने के लिए सत्यनारायण जी की कथा में निर्धन ब्राह्मण, गरीब लकड़हारा, धनवान व्यापारी, राजा उल्कामुख, साधु वैश्य, उसकी पत्नी लीलावती, पुत्री कलावती, राजा तुङ्गध्वज और गोपगणों की कथा का समावेश है.
कथासार ग्रहण करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि जिस किसी ने भी सत्य के प्रति श्रद्धा जगाई या सत्य पर विश्वास किया, उन सभी के कार्य सिद्ध हो गये. जैसे लकड़हारा, गरीब ब्राह्मण, उल्कामुख, गोपगणों ने सुना कि यह व्रत सुख, सौभाग्य, संतति, संपत्ति सब कुछ देने वाला है तो यह सुनते ही श्रद्धा, भक्ति और प्रेम के साथ सत्यव्रत का आचरण करने में लग गये और तब वे सभी इस लोक में सुख भोगकर परलोक में मोक्ष (वैकुंठधाम में अपनी जगह बनाने) के अधिकारी हुए.
श्री सत्यनारायण व्रत से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सत्यरूप ब्रह्म जीवात्मा रूप में हमारे अंदर विद्यमान है. हम सब सत्य के ही स्वरूप हैं, लेकिन माया के वश में आकर नष्ट होने वाली वस्तुओं को संग्रह करने की सोचकर इस संसार में ही मग्न हो रहे हैं. इस अज्ञान को दूर करके सत्य को स्वीकार करना और भगवान की भक्ति करना मनुष्य का धर्म है. यही सत्यनारायण व्रत और कथाओं का सार है.
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