Shri Satyanarayan Vrat Puja (1) : श्री सत्यनारायण पूजा विधि (मंत्र सहित)

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Shri Satyanarayan Vrat Puja Vidhi Mantra

भगवान श्री सत्यनारायण (Shri Satyanarayan) श्री विष्णु जी के ही रूप हैं. नारायण ही सत्य हैं- “हे भगवन! आप तो साक्षात सत्यस्वरूप हैं और हम सब आपकी शरण में हैं.” सत्यनारायण भगवान की व्रत-पूजा सब जगह प्रचलित है. कुछ लोग अपनी कोई मन्नत पूरी होने पर, या कोई शुभ-कार्य के आरंभ करने से पहले या गृह-प्रवेश के अवसर पर या किसी भी शुभ मुहूर्त में (पूर्णिमा या संक्रांति के दिन) यह व्रत-पूजा करते ही रहते हैं.

जो व्यक्ति सत्यनारायण जी की पूजा का संकल्प लेते हैं, उन्हें दिन भर व्रत रखना चाहिए. पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाएं और उस पर पूजा की चौकी रखें. इस चौकी के चारों तरफ केले के पत्ते लगाएं. इस चौकी पर श्री सत्यनारायण जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.

पूजा करते समय सबसे पहले भगवान श्री गणेश जी की पूजा करें और इसके बाद इन्द्रादि, दशदिक्पाल और फिर क्रमशः पंच लोकपाल, श्रीराम-सीता और लक्ष्मण और श्रीराधा-कृष्ण की पूजा करें. इनकी पूजा के बाद ठाकुर जी और भगवान श्री सत्यनारायण जी की पूजा करें. इसके बाद माता लक्ष्मी और अंत में भगवान शिव जी और ब्रह्मा जी की पूजा करें.

पूजा में केले के पत्ते और फल के अलावा पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मौली, रोली, कुमकुम और दूर्वा की भी आवश्यकता होती है, जिनसे भगवान जी की पूजा की जाती है. सत्यनारायण जी की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्र और मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है. यह पंचामृत भगवान जी को काफी पसंद है. सत्यनारायण भगवान जी को प्रसाद के तौर पर फल-मिठाई के अलावा आटे की पंजीरी का भी प्रसाद लगाया जाता है.

पूजन शुरू करने से पहले पूजन की सभी सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा स्थल पर रख लें-

(1) पूजा की तैयारी –

श्री सत्यनारायण व्रत-पूजनकर्ता स्नान करके कोरे या धुले हुए वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें. इसके लिए पूजा स्थान में शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाएँ.

पूजा स्थान पर रंगोली बनाने के बाद उस रंगोली पर चौकी को रख दें. चौकी को चारों तरफ से केले के पत्तों और खम्भों से सजाएं, यानी इस चौकी के चारों तरफ केले के पत्ते लगाएं.. उस चौकी पर कोरा लाल वस्त्र बिछाएं और फिर श्री सत्यनारायण भगवान के चित्र को उस चौकी पर स्थापित करें.

अगर भगवान श्री गणेश और अम्बिका जी की मूर्ति नहीं है, तो दो सुपारियों को धोकर, उनमें अलग-अलग मौली बांधकर, कुमकुम रोली लगाकर, पहली सुपारी गणेश जी के भाव से चौकी पर स्थापित करें, और उसके दाहिनी ओर दूसरी सुपारी अम्बिका के भाव से स्थापित करें.

श्री सत्यनारायण के दायीं तरफ शंख रखें, और फिर उसी तरफ चावलों पर साफ जल से भरा कलश रखें.

कलश स्थापना-

कलश के कंठ पर मौली बाँध दें और कलश पर कुमकुम या रोली से स्वस्तिक बना दें. अब कलश में शुद्ध जल और गंगाजल कलश के कंठ तक भर दें. फिर कलश में साबुत सुपारी, हल्दी की गांठ, दूर्वा, पुष्प, इत्र, पंचरत्न और कुछ सिक्के डाल दें. कलश में आम के पांच पत्ते रख दें और उस पर नारियल भी रख दें. नारियल में कुमकुम रोली लगाकर मौली बाँध दें.

फिर चौकी के बायीं ओर एक दीपक रखें.

जहां आपने चौकी रखी है, उसके आगे की तरफ नवग्रह मंडल बनाएं. पूजन के समय इनमें नवग्रहों का पूजन किया जाएगा. इसके लिए एक सफेद कपड़ा लें. उस पर नौ जगह चावल की ढेरी रख दें. और उसके साथ ही गेहूँ की सोलह ढेरी रखें और षोडशमातृका मंडल तैयार करें, पूजन के समय इनमें षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाएगा.

प्रसाद के लिए-

प्रसाद के लिए पंचामृत, गेहूं के आटे को सेंककर तैयार की गई पंजीरी या शक्कर का बूरा, फल, नारियल इन सबको सवाया मात्रा में इकठ्ठा कर लें, या यथाशक्ति इकठ्ठा कर लें. ये सभी पदार्थ भगवान के चित्र के आगे रख दें.

प्रसाद में पंचामृत बनाएं. साथ ही गेंहू के आटे से बनी पंजीरी और फल (केला आदि) भी रखें. पंचामृत और प्रसाद में तुलसी की पत्तियां मिलाएं. इसके बाद आप पूजा शुरू कर सकते हैं.

पूजा शुरू करने से पहले भगवान गणेश जी का नाम लें, उनकी आराधना करें. इसके बाद इंद्रादि दशदिक्पाल और अन्य देवी-देवताओं का आवाहन करें और फिर इसके बाद श्री सत्यनारायण जी की पूजा शुरू करें.


(2) पूजन-

सबसे पहले श्री गणेश जी और अम्बिका जी का, और फिर श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन किया जाता है, और उसके बाद सत्यनारायण व्रत कथा को कहा या सुना जाता है.

पवित्रीकरण-
बाएँ हाथ में पूजा के जलपात्र से जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढक लें और फिर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर और पूजन सामग्री पर जल छिड़कें (पवित्रता की भावना करें, इस मंत्र को पढ़ते हुए और जल को छिड़ककर आप अपने-आपको और पूजन सामग्री को पवित्र कर लें)-

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं सबाह्याभ्यंतरः शुचिः॥
ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु।

आसन का पवित्रीकरण-
निम्नलिखित मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें (इस मंत्र को पढ़ते हुए और जल को छिड़ककर अपने आसन को पवित्र कर लें)-

ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्‌॥

ग्रंथि बंधन –
यदि यजमान अपनी पत्नी के साथ बैठ रहे हों तो निम्नलिखित मंत्र के पाठ से ग्रंथि बंधन या गठजोड़ा करें-

ॐ यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्य(गुं) शतानीकाय सुमनस्यमानाः।
तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम्‌॥

आचमन –
इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें और तीन बार कहें-
1. ॐ केशवाय नमः स्वाहा।
2. ॐ नारायणाय नमः स्वाहा।
3. ॐ माधवाय नमः स्वाहा।

इसके बाद यह मंत्र बोलकर हाथ धो लें-
ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि।

इसके बाद यजमान और बाकी उपस्थित लोगों के मस्तक पर चंदन या रोली लगाएं-

रक्षासूत्रम –
फिर पुरुषों और अविवाहित कन्याओं के दाएं हाथ में और महिलाओं के बाएं हाथ में कलावा या मौली बाँध दें. जिस हाथ में कलावा बांधे, उसकी मुट्ठी बंधी हो और दूसरा हाथ सिर पर हो.


कलश पूजन –
जल, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से कलश और कलश में वरुण देव का पूजन करें, और कलश में देवताओं का आवाहन करें. कलश को फूलमाला, फल, मिठाई, इत्र अर्पित करें और धूप-दीप दिखाते हुए निम्नलिखित मंत्र पढ़ें.

ॐ कलशस्य मुखे विष्णु: कंठे रुद्र: समाश्रित:।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:॥
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुंधरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथवर्ण:॥
अंगैच्श सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:।

अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा।
आयान्तु देवपूजार्थम् दुरितक्षयकारकाः॥
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धुकावेरी जलेऽस्मिन संनिधिम् कुरु॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।
आयान्तु मम शान्त्यर्थम् दुरितक्षयकारकाः॥

इस मंत्र के साथ कलश में वरुण देवता का पूजन करें.

ॐ अपांपतये वरुणाय नमः।

दीपक पूजन –
दीपक में अग्नि देव का पूजन करें. दीपक प्रज्वलित करें और हाथ धोकर दीपक का पुष्प और कुमकुम से पूजन करें और प्रणाम करें.

भो दीप देवरुपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविन्घकृत।
यावत्कर्मसमाप्तिः स्यात तावत्वं सुस्थिर भवः॥


स्वस्तिवाचन

स्वस्तिवाचन मंत्र – निम्नलिखित मंगल मंत्र बोलें-

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा:
शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वं शान्ति:
शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु।
शन्नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः॥
सुशांतिर्भवतु।

“हे परमेश्वर! आप इस धरती पर जो भी रचना करते हैं; उन स्थानों, जीवों, पशुओं से हमें भय रहित कीजिये. किसी स्थान से हमें कोई भी भय न हो. सब दिशाओं में जो आपकी प्रजा और पशु हैं, उनसे भी हमें भयरहित कीजिये, तथा उन सबको भी हमसे सुख हो और उनको भी हमसे भय न हो. ॐ शांति शांति शांति, सब जनों को शांति प्राप्त हो.”

स्वस्ति वाचन के बाद सभी दशों दिशाओं में अभिमंत्रित जल या पूजा में प्रयुक्त जल के छींटे लगाएं.
(जिस प्रकार स्वस्तिक सभी प्रकार के वास्तु दोष समाप्त कर देता है, वैसे ही स्वस्ति वाचन से सभी प्रकार के पूजन दोष समाप्त हो जाते हैं).


देव आवाहन –

सभी उपस्थित जनों से निवेदन करें कि वे सब पूजा में शामिल हों. सभी जन भावनापूर्वक आवाहन, ध्यान और नमस्कार करते रहें-

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुःसाक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:॥

ॐ श्री गुरुवे नमः।
आवाहयामि स्थापयामि ध्यायामि।
ततो नमस्कारं करोमि।

ॐ श्री गायत्र्यै नमः।
आवाहयामि स्थापयामि ध्यायामि।
ततो नमस्कारं करोमि।

श्रीगणेश (विघ्नविनाशक प्रथम पूजन) –

ॐ अभीप्सितार्थ सिद्धयर्थं पूजित्यो य: सुरासुरै:।
सर्व विघ्न हरस्तस्मै गणाधिपतये नम:॥

गौरी (श्रृद्धा, निर्विकारिता, पवित्रता की प्रतीक मातृशक्ति)-

सर्वमंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

आवाहयामि स्थापयामि ध्यायामि।
ततो नमस्कारं करोमि।

श्रीहरि –
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये॥

सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम्।
येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनो हरिः॥

सप्तदेव (सात महाशक्तियों का युग्म)-

विनायकं गुरुं भानुं, ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान्।
सरस्वतीं प्रणौम्यादौ शान्तिकार्यार्थसिद्धये॥

पुण्डरीकाक्ष –
मङ्गलम् भगवान विष्णुः मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः मङ्गलाय तनो हरिः॥

श्री ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता, निर्माण की क्षमता के आदिस्रोत)-

त्वं वै चतुर्मुखो ब्रह्मा सत्यलोकपितामहः।
आगच्छमण्डले चास्मिन् मम सर्वार्थसिद्धये॥

श्रीविष्णु –
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनं योगिभिध्यार्नगम्यम्
वंदे विष्णुम् भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

शिवजी –
वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनाम्पतिम्।
वन्दे सूर्यशशाङ्कवह्निनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम्॥

त्रयम्बक –
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

दुर्गा जी –
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽ‌र्द्रचित्ता॥

मां सरस्वती –
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥

मां लक्ष्मी –
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह॥

मां काली –
कालिकां तु कलातीतां कल्याणहृदयां शिवाम्।
कल्याणजननीं नित्यं कल्याणीं पूजयाम्यहम्॥

गंगा जी –
विष्णुपादाब्जसम्भूते गङ्गे त्रिपथगामिनि।
धर्मद्रवेति विख्याते पापं मे हर जाह्नवि॥

तीर्थ –
पुष्करादीनि तीर्थानि गङ्गाद्याः सरितस्तथा।
आगच्छन्तु पवित्राणि पूजाकाले सदा मम॥

नवग्रह –
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः
सर्वेग्रहाः शान्तिकराः भवन्तु॥

षोडशमातृका (अंतरिक्ष में विद्यमान 16 कल्याणकारी शक्तियों का युग्म)-

गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः॥
धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिरात्मनः कुलदेवता।
गणेशेनाधिका ह्येता वृद्धो पूज्याश्च षोडशः॥

सप्तमातृका (माता की तरह संरक्षण देने वाली सात महाशक्तियां)-

कीर्तिर्लक्ष्मीर्धृतिर्मेधा सिद्धि: प्रज्ञा सरस्वती।
मांगल्येषु प्रपूज्याश्च सप्तैता दिव्यमातर:॥

वास्तुदेव –
नागपृष्ठसमारूढ़ं शूलहस्तं महाबलम्।
पातालनायकं देवं वास्तुदेवं नमाम्यहम्॥

क्षेत्रपाल –
क्षेत्रपालात्रमस्यामि सर्वारिष्टनिवारकान्।
अस्य यागस्य सिद्धयर्थं पूजयाराधितान् मया॥

अब सभी जन हाथ जोड़कर इन मंत्रों के साथ सभी देवी-देवताओं को प्रणाम करें-

ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।
ॐ उमा महेश्वराभ्यां नमः।
ॐ वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
ॐ मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः।
ॐ इष्टदेवताभ्यो नमः।
ॐ कुलदेवताभ्यो नमः।
ॐ ग्रामदेवताभ्यो नमः।
ॐ स्थानदेवताभ्यो नमः।
ॐ वास्तुदेवताभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्योदेवेभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणोभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्यस्तीर्थेभ्यो नमः।
ॐ एतत्कर्म – प्रधान नमः।
ॐ पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु।
ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमः।


संकल्प –

अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत और द्रव्य (कुछ पैसे) लेकर श्री सत्यनारायण भगवान के पूजन का संकल्प करें (संकल्प करने से पहले हाथों में जल, फूल और चावल लें. संकल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं, उस वर्ष, उस वार, तिथि, उस जगह और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोलें).

संकल्प (हिंदी में) –

“ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, मैं ___, विक्रम सम्वत ___ को, कार्तिक मास (या जिस माह में पूजन कर रहे हैं, उस माह का हिंदी नाम) की पूर्णिमा तिथि को, __ वार के दिन, __ नक्षत्र में, शुभ पुण्य तिथि में, भारत देश के, __ राज्य के, __ शहर में, कायिक, वाचिक, मानसिक ज्ञात अज्ञात समस्त पापों से छुटकारा पाने के लिए, श्रुति स्मृति पुराणों के फल को प्राप्त करने के लिए, आरोग्य, ऐश्वर्य, दीर्घायु, विपुल धन-धान्य, समृद्धि, पुत्र-पौत्रों की अभिवृद्धि के लिए, व्यापार में उत्तरोत्तर लाभ के लिए, अपने परिवार सहित श्री सत्यनारायण जी, गणेश – अम्बिका जी आदि का पूजन कर रही/रहा हूँ।”

अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर (या किसी पात्र में) छोड़ दें.

आगे की पूजा – श्री गणेश-अम्बिका का पूजन और श्री सत्यनारायण पूजन प्रारंभ (Click Here)


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