किसी छोटी व्हेल की ही तरह दिखने वाली डॉल्फिन (Dolphin) पृथ्वी के कुछ सबसे ज्यादा बुद्धिमान जीवों में से एक मानी जाती है. उनके दोस्ताना व्यवहार और हमेशा खुश रहने की आदत ने उन्हें मानवों के बीच काफी लोकप्रिय बना दिया है. ये अपने सामने मौजूद इंसानों की नकल उतारने की कोशिश करती हैं. पानी में खुशी से उछलती-कूदती डॉल्फिन सबको बहुत प्यारी लगती हैं. गंगा नदी में पायी जाने वाली डॉल्फिन (Ganga Dolphin) को भारत सरकार ने भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव (National Aquatic Animal of India) घोषित किया हुआ है.
डॉल्फिन कहां पाई जाती हैं?
डॉल्फिन या सूंस जलीय स्तनधारी प्राणी (Aquatic Mammals) हैं, जो परवर्डर ओडोंटोसेटी के अंतर्गत आते हैं, जिसमें पोर्पोइज और दांतेदार व्हेल जैसे स्पर्म व्हेल शामिल हैं. 40 दर्ज प्रजातियों के साथ डॉल्फिन सब जगह पाई जाती हैं. यानी डॉल्फिन दुनियाभर के महासागरों में पाई जाती हैं, लेकिन ज्यादातर गर्म उष्णकटिबंधीय पानी में रहना पसंद करती हैं. इनकी कुछ सदस्य प्रजाति नदियों और खारे पानी में भी पाई जाती हैं. सबसे प्रसिद्ध नदी डॉल्फिन गंगा नदी डॉल्फिन है.
डॉल्फिन का आकार और वजन
डॉल्फिन का आकार 1.2 मी (4 फीट) और 400 किग्रा (माउई डॉल्फिन) से लेकर 9.5 मी (30 फीट) 10 टन (ऑर्का या किलर व्हेल) तक हो सकता है. दूसरे शब्दों में, डॉल्फिन सभी आकारों में पाई जाती हैं. छोटी माउ डॉल्फिन की लंबाई 2 मीटर से ज्यादा नहीं होती है और इसका वजन 50 किलोग्राम तक होता है. सबसे बड़ी डॉल्फिन ओर्का है, जिसे किलर व्हेल के रूप में भी जाना जाता है, और इसकी लंबाई 30 फीट से भी ज्यादा होती है और इनका वजन 10,000 किलोग्राम होता है.
डॉल्फिन की कुछ खास विशेषताएं
डॉल्फिन मांसाहारी होती हैं और छोटी मछलियों और विद्रूपों को खाती हैं. डॉल्फिन की त्वचा के नीचे वसा (ब्लबर) की एक पतली परत होती है, जो किसी इंसुलेटर (विद्युतरोधी) के रूप में कार्य करती है. डॉल्फिन के पास सुनने और सूंघने की अच्छी क्षमता होती है. गंगा डॉल्फिन नेत्रहीन होती हैं, लेकिन सुनने की अच्छी क्षमता उन्हें जीवित रखने में मदद करती है.
डॉल्फिन के पास वसा से भरा एक विशेष अंग होता है जिसे ‘मेलन’ के रूप में जाना जाता है. यह अंग ध्वनि की पहचान करने में सहायता करने वाले ‘ध्वनिक लेंस’ के रूप में कार्य करता है. यह अंग जानवरों को इकोलोकेशन का इस्तेमाल करने में मदद करता है, जो इसे प्रभावी रूप से नेविगेट करने और शिकार करने में मदद करता है.
नर डॉल्फिन को ‘बैल’, मादा ‘गाय’ और युवा डॉल्फिन या डॉल्फिन के बच्चे को ‘बछड़ा’ कहा जाता है. जब ये पैदा होती हैं तो चॉकलेट ब्राउन होती हैं और धीरे-धीरे रंग बदलकर ग्रे हो जाती हैं.
डॉल्फिन प्रजातियों के वैज्ञानिक नाम
(Scientific Names of Dolphin Species)
सामान्य बॉटलनोज डॉल्फिन – टर्सिओप्स ट्रंकैटस
किलर व्हेल/ओर्का – ओरसिनस ओर्का
अमेजन रिवर डॉल्फिन – इनिया जियोफ्रेंसिस
चीनी नदी डॉल्फिन/ यांग्त्जी नदी डॉल्फिन/बाईजी – लिपोट्स वेक्सिलिफ़र
लंबे पंखों वाली पायलट व्हेल – ग्लोबिसफला मेला
फाल्स किलर व्हेल – स्यूडोर्का क्रैसिडेंस
इंडो-पैसिफिक बॉटलनोज डॉल्फिन – टर्सिओप्स एडंकस
गंगा नदी डॉल्फिन – प्लैटनिस्टा गैंगेटिका
गंगा डॉल्फिन (Ganges Dolphin)
भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों में से एक गंगा डॉल्फिन को शुशक, साइड स्विमिंग डॉल्फिन, ब्लाइंड डॉल्फिन और ‘सुसु’ (Susu) भी कहा जाता है. ये डॉल्फिन केवल मीठे या ताजे जल में रह सकती हैं. ये भारत, नेपाल और बांग्लादेश की गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु नदी प्रणालियों में रहती हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि 19वीं शताब्दी के दौरान दिल्ली की यमुना नदी में भी डॉल्फिन पाई जाती थीं, लेकिन अत्यधिक शिकार और प्रदूषण ने इस तथ्य को खो ही दिया.
आधिकारिक तौर पर गंगा डॉल्फिन की खोज साल 1801 में की गई थी. एक अनुमान के मुताबिक, गंगा डॉल्फिन की वैश्विक आबादी का करीब 80 प्रतिशत भारतीय उपमहाद्वीप में हैं. WWF-India के अनुसार, गंगा डॉल्फिन की आबादी 1800 से कम है. गंगा नदी डॉल्फिन का जीवनकाल लगभग 26 वर्ष माना जाता है.
गंगा डॉल्फिन को ‘लुप्तप्राय’ का दर्जा
संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN रेड लिस्ट ने गंगा डॉल्फिन को ‘लुप्तप्राय’ का दर्जा दिया है. गंगा नदी डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय पशु घोषित करने का कारण इसे विलुप्त होने से बचाना है. गंगा डॉल्फिन के व्यापार पर प्रतिबंधित है. साथ ही, गंगा डॉल्फिन को गंगा नदी के स्वास्थ्य के प्रतिबिम्ब के रूप में देखा जाता है. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत गंगा डॉल्फिन का शिकार करना दंडनीय अपराध है. यह घोषणा 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) की पहली बैठक में की गई थी.
इसी के साथ, गंगा नदी असम की राजधानी गुवाहाटी का आधिकारिक पशु (Official Animal) भी है. बिहार में विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य (Sanctuary Vikramshila) नाम का एक गंगा डॉल्फिन अभयारण्य है. बिहार के स्थानीय लोग गंगा डॉल्फिन को ‘सोंस’ कहते हैं. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga) की तरफ से हर साल 5 अक्टूबर को गंगा डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाया जाता है.
गंगा डॉल्फिन का शिकार
लोगों की तरह गंगा डॉल्फिन भी नदी के उन क्षेत्रों में रहना ज्यादा पसंद करती हैं, जहां बड़ी मात्रा में मछलियां पाई जाती हों, साथ ही पानी का प्रवाह भी धीमा हो. मछली पकड़ने के जाल में गलती से डॉल्फिन भी फंस जाती हैं, जिससे गंगा डॉल्फिन की मृत्यु हो जाती है. इसे बायकैच (Bycatch) कहा जाता है.
इसी के साथ, इनका शिकार मुख्य रूप से तेल के लिए किया जाता है, जिसका इस्तेमाल अन्य मछलियों को पकड़ने के लिए चारे के रूप में किया जाता है. गंगा डॉल्फिन की आबादी कम होने का एक और बहुत बड़ा कारण औद्योगिक कृषि, नदियों पर बांधों के निर्माण, मानव प्रदूषण, मछली पकड़ने की गतिविधियों में वृद्धि और पोत यातायात (Shipping Traffic) है.
गंगा डॉल्फिन नेत्रहीन क्यों होती हैं?
गंगा डॉल्फिन नेत्रहीन होती हैं, यानी ये देख नहीं सकती हैं. ये इकोलोकेशन (प्रतिध्वनि निर्धारण) और सूंघने की अपार क्षमताओं से अपना शिकार और भोजन तलाशती हैं. ये पराश्रव्य ध्वनियों (Ultrasonic Sounds) का उत्सर्जन करके शिकार करती हैं, जो मछलियों और अन्य शिकार से टकराकर वापस लौटती है और उन्हें अपने दिमाग में एक इमेज को ‘देखने’ में सक्षम बनाती हैं.
विशेषज्ञों के मुताबिक, गंगा डॉल्फिन हमेशा से अंधी नहीं थीं. गंगा डॉल्फिन के नेत्रहीन होने का कारण है- 125 से अधिक वर्षों के प्रदूषण ने गंदे और प्रदूषित पानी में ही इनका विकास या इवोल्यूशन (Evolution). जबकि विकासवादी जीव विज्ञान (Evolutionary Biology) में यह कहा गया है कि गंगा की डॉल्फिन लगभग 20 मिलियन वर्षों से ‘अंधी’ हैं.
गंगा डॉल्फिन की आंखें तो होती हैं, लेकिन उनमें लेंस नहीं होते हैं. ये केवल विसरित प्रकाश (Diffuse Light) की दिशा को महसूस कर सकती हैं. गंगा डॉल्फिन एक स्तनपायी होने के कारण पानी में सांस नहीं ले सकती. यह सांस लेने के लिए हर 30-40 सेकंड में पानी की ऊपरी सतह पर आती है.
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