Kya Ram Bhagwan Hain : क्या राम भगवान हैं?

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भगवान श्रीराम

Kya Ram Bhagwan Hain

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कण्डेय काटजू का कहना है कि “वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में लिखी गई मूल रामायण में राम भगवान नहीं हैं, केवल एक राजकुमार हैं (और बाद में एक राजा), लेकिन तुलसीदास की रामचरितमानस में वे भगवान बन जाते हैं.” कुछ इसी प्रकार का बयान बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी दे चुके हैं.

वहीं, कुछ लोग यह भी कहते हैं कि तुलसीदास जी ने श्रीराम का बहुत महिमामंडन कर दिया है. जबकि यदि आप संस्कृत ग्रंथों को पढ़ने की थोड़ी भी समझ रखते हैं, साथ ही आप वाल्मीकि रामायण को ध्यान से पढ़ें, तो आपको पता चलेगा कि श्रीराम की महिमा का वर्णन तुलसीदास जी से अधिक तो वाल्मीकि जी ने किया है. तुलसीदास जी ने श्रीराम का कोई अतिरिक्त महिमामंडन नहीं किया है, बल्कि श्रीराम के प्रति अपनी भक्ति को भी प्रकट किया है. अब देखते हैं वाल्मीकि रामायण से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-

(1) वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के प्रथम सर्ग में ही वाल्मीकि जी और नारद जी की बातचीत से यह स्पष्ट है कि श्रीराम वाल्मीकि जी के समय पृथ्वी पर उपस्थित थे और वाल्मीकि जी रामायण के रूप में श्रीराम की ही कथा लिखने जा रहे थे. इस कथा की रचना उन्होंने काव्य के रूप में की ताकि इसे गाया भी जा सके.

वाल्मीकि जी नारद जी से पूछते हैं-
“हे मुनि! इस समय इस संसार में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, उपकार मानने वाला, सत्यवक्ता और दृढ़प्रतिज्ञ कौन है? सदाचार से युक्त, समस्त प्राणियों का हितसाधक, विद्वान, सामर्थ्यशाली और एकमात्र प्रियदर्शन सुन्दर पुरुष कौन है. मन पर अधिकार रखने वाला, क्रोध को जीतने वाला, कान्तिवान तथा किसी की भी निंदा न करने वाला कौन है? इस समय ऐसा कौन है जो युद्ध में कुपित हो जाये तो देवता भी उससे डरते हैं?”

और तब नारद जी वाल्मीकि जी को इक्ष्वाकु वंश के राजा श्रीराम के बारे में बताते हैं. इसके बाद ब्रह्मा जी वाल्मीकि जी को रामकथा की रचना करने का आदेश देते हैं.

(2) बालकाण्ड के सर्ग १६ में ब्रह्मा जी सहित सभी देवताओं द्वारा भगवान विष्णु जी से पृथ्वी पर अवतार लेने तथा रावण के अत्याचारों से मुक्त करने की प्रार्थना का वर्णन है.

सब देवता रावण के बारे में बताते हुए अविनाशी भगवान् विष्णु से बोले- “प्रभु! आप मनुष्य का रूप धारण करके युद्ध में रावण का वध कर दीजिये.”

इसके बाद बालकाण्ड के सर्ग १७ में ब्रह्मा जी सब देवताओं को यह आदेश देते हैं कि ‘भगवान् विष्णु मनुष्य रूप में पृथ्वी पर जन्म ले चुके हैं, अतः अब तुम सब भी उनकी सेवा के लिए अपने-अपने अंश से वानर के रूप में पराक्रमी पुत्रों को उत्पन्न करो.’

(3) अयोध्याकाण्ड के प्रथम सर्ग में वाल्मीकि जी बताते हैं कि “राजा दशरथ जी को अपने चारों पुत्र समान रूप से प्रिय थे, लेकिन श्रीराम से उनका विशेष प्रेम था, क्योंकि श्रीराम साक्षात् सनातन विष्णु थे और परम प्रचंड रावण के वध की अभिलाषा रखने वाले देवताओं की प्रार्थना पर मनुष्यलोक में अवतीर्ण हुए थे” (राजा दशरथ ने उन्हें अपने पुत्र रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था).

(4) बालकाण्ड के सर्ग ७६- श्लोक १७ में परशुराम जी श्रीराम से कहते हैं कि-
“वीर! आपने जो इस धनुष को चढ़ा दिया, इससे मुझे निश्चित रूप से ज्ञात हो गया कि आप मधु दैत्य को मारने वाले अविनाशी देवेश्वर विष्णु हैं. हे काकुत्स्थकुलभूषण! आपके सामने मेरी जो असमर्थता प्रकट हुई, यह मेरे लिए लज्जाजनक नहीं है, क्योंकि आप त्रिलोकीनाथ श्रीहरि ने मुझे पराजित किया है.”

इसके बाद श्रीराम ने परशुराम का पूजन किया, वहीं परशुराम श्रीराम की परिक्रमा करके अपने स्थान को चले गए.

(5) अरण्यकाण्ड के सर्ग ५ में देवराज इंद्र ने ऋषि शरभङ्ग के आश्रम में देवताओं से कहा-
“श्रीरामचन्द्रजी यहाँ आ रहे हैं. इससे पहले कि वे मुझसे बात करें, तुम सब मुझे यहाँ से दूसरे स्थान पर ले चलो, इस समय श्रीराम से मेरी भेंट नहीं होनी चाहिए. जब ये रावण पर विजय पाकर अपना कर्तव्य पूर्ण करके कृतार्थ हो जायेंगे, तब मैं शीघ्र आकर इनके दर्शन करूंगा.”

(6) अरण्यकाण्ड के सर्ग १२ में महर्षि अगस्त्य जी को जैसे ही इस बात की सूचना मिलती है कि श्रीराम-सीता जी और लक्ष्मण जी उनसे मिलने के लिए उनके आश्रम में आये हैं, वे बोले- “सौभाग्य की बात है, आज चिरकाल के बाद श्रीरामचंद्रजी स्वयं ही मुझसे मिलने आ गए.”

श्रीराम आश्रम में प्रवेश करते हैं, वहीं महर्षि अगस्त्य भी उनके स्वागत-सत्कार के लिए अपने शिष्यों सहित अपनी यज्ञशाला से बाहर निकलते हैं. श्रीराम ने महर्षि अगस्त्य को देखते ही लक्ष्मण जी से उनके तप की प्रशंसा की और दौड़कर उनके चरण पकड़ लिए.

वाल्मीकी जी लिखते हैं कि “जिनमें योगियों का मन रमण करता है एवं जो भक्तों को आनंद प्रदान करने वाले हैं, वे श्रीराम उस समय सीताजी और लक्ष्मण जी के साथ महर्षि के चरणों में प्रणाम करके हाथ जोड़कर खड़े हैं. महर्षि ने दोनों भाईयों को उठाकर बड़े प्रेम से उन्हें हृदय से लगा लिया और आसन, जल देकर उनका आतिथ्य सत्कार किया.” महर्षि अगस्त्य ने अपने सभी श्रेष्ठ आयुध श्रीराम और लक्ष्मणजी को सौंप दिए थे.

(7) अरण्यकाण्ड के सर्ग ७४ में माता शबरी श्रीराम से कहती हैं-
“रघुनन्दन! आज आपका दर्शन मिलने से ही मुझे अपनी तपस्या में सिद्धि प्राप्त हुई है. आज मेरा जन्म सफल हुआ और मेरे गुरुजनों की उत्तम पूजा भी सार्थक हो गई. श्रीराम! आप देवेश्वर का यहाँ सत्कार हुआ, इससे मेरी तपस्या सफल हो गई और अब मुझे आपके दिव्य धाम की प्राप्ति भी होगी. आपकी सौम्य दृष्टि पड़ने से मैं परम पवित्र हो गईं. आपके प्रसाद से ही अब मैं अक्षय लोकों में जाऊंगी. मेरे गुरुजनों ने जाते समय मुझसे कहा था कि तुम्हारे इस परमपवित्र आश्रम पर श्रीरामचन्द्रजी पधारेंगे. तुम उनका यथावत सत्कार करना. उनका दर्शन करके तुम श्रेष्ठ और अक्षय लोकों में जाओगी.”

(8) युद्धकाण्ड के सर्ग ११७ में वाल्मीकि जी ने श्रीराम के वास्तविक स्वरूप का पूरा भेद खोल दिया है.

(9) युद्धकाण्ड के १११वें सर्ग में मंदोदरी रावण से कहती हैं-

“निश्चय ही श्रीरामचन्द्रजी महान्‌ योगी एवं सनातन परमात्मा हैं. इनका आदि, मध्य और अन्त नहीं है. ये महान से भी महान्‌, अज्ञानान्धकार से परे तथा सबको धारण करने वाले परमेश्वर हैं, जो अपने हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करते हैं, जिनके वक्षःस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न है. भगवती लक्ष्मी जिनका कभी साथ नहीं छोडतीं, जिन्हें परास्त करना सर्वथा असम्भव है तथा जो नित्य स्थिर एवं सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर हैं.”

(10) युद्धकाण्ड के १२८वें सर्ग में वाल्मीकि जी लिखते हैं-

“जो नित्य इस सम्पूर्ण रामायण का श्रवण एवं पाठ करता है, उस पर सनातन विष्णुस्वरूप भगवान्‌ श्रीराम सदा प्रसन्न रहते हैं.”

(11) श्रीराम का पराक्रम और शक्ति देखकर उस समय के कुछ राक्षस उनके वास्तविक स्वरूप को जान गए थे और उन्होंने रावण को भी समझाने का प्रयास किया था. अरण्यकाण्ड के सर्ग ३१ में अकम्पन ने रावण से श्रीराम की शक्ति का वर्णन करते हुए कहा-

“हे लंकेश्वर! जिनका नाम राम है, वे संसार में समस्त धनुर्धरों में श्रेष्ठ एवं अत्यंत तेजस्वी हैं. श्रीराम के छोड़े हुए बाण पांच मुख वाले सर्प बनकर राक्षसों को खा जाते हैं. भय से कातर हुए राक्षस जिस-जिस मार्ग से भागते थे, वहां-वहां वे श्रीराम को ही अपने सामने खड़ा देखते थे. श्रीराम ने अकेले ही आपके जनस्थान का विनाश कर दिया है. महायशस्वी श्रीराम यदि कुपित हो जाएँ, तो उन्हें अपने पराक्रम द्वारा कोई काबू में नहीं कर सकता. वे अपने बाणों से भरी हुई नदी के वेग को भी पलट सकते हैं, समस्त आकाशमण्डल को पीड़ा पहुंचा सकते हैं. भगवान् राम समुद्र में डूबती हुई पृथ्वी को ऊपर उठा सकते हैं, महासागर की सीमा का भेदन करके समस्त लोकों को उसके जल से आप्लावित कर सकते हैं. श्रीराम अपने बाणों से समुद्र के वेग और वायु को भी नष्ट कर सकते हैं. वे अपने पराक्रम से सम्पूर्ण लोकों का संहार करके पुनः नए सिरे से सृष्टि करने में समर्थ हैं.”

(12) अरण्यकाण्ड में मारीच रावण से कहता है-
“लंकेश्वर! जिसे आप एक राज्य का साधारण सा राजकुमार समझ रहे हैं, उन राम की महिमा आप नहीं जानते. श्रीराम धर्म के मूर्तिमान स्वरूप हैं, संपूर्ण जगत के स्वामी हैं. मैंने उनमें कभी किसी प्रकार का दोष नहीं देखा या सुना है, अतः उनके विषय में आपको ऐसी उल्टी बातें कभी नहीं कहनी चाहिए. जनकनंदिनी सीता जिनकी धर्मपत्नी हैं, उन राम का तेज अप्रमेय है. सीताजी अपने ही पातिव्रत्य के तेज से सुरक्षित हैं. आपमें इतनी शक्ति नहीं कि आप उन्हीं सीताजी का हरण कर सकें. राक्षसराज! जिस दिन श्रीराम की दृष्टि आप पर पड़ गई, उसी दिन आप अपने जीवन का अंत समझ लेना.”

ऐसे अनगिनत तथ्य हैं वाल्मीकि रामायण में.

जब कुछ लोग ‘राम’ नाम का जप करते हुए कबीरदास से यह कहते हैं कि-

“जगत में तो बहुत सारे राम हैं, तुम कौन से राम का जप करते हो?
एक राम दशरथ का बेटा
एक राम घट-घट में लेटा
एक राम का सकल पसारा
और एक राम सबही से न्यारा
इनमें से कौन सा राम तुम्हारा?”

इस पर कबीरदास उन लोगों से पूछते हैं-

“एक पिता तुम्हारी दादी का बेटा
एक पिता तुम्हारी बुआ का भाई
एक पिता तुम्हारी मां का पति
और एक पिता तुम्हारी नानी का जमाई
तो बताओ तुम्हारे कितने पिता हैं मेरे भाई?”

कबीरदास का ऐसा उत्तर सुनकर वे सब लोग हक्के-बक्के रह गए. और तब कबीरदास ने समझाते हुए कहा कि “तुम सब ‘एक राम’ की ही बात कर रहे हो-

वही राम दशरथ का बेटा
वही राम घट-घट में लेटा
वही राम का सकल पसारा
और वही राम सबही से न्यारा.”

अर्थात जब वही राम सब जीवों के भीतर विराजमान होते हैं, तो सबके घट में लेटे हुए सर्वव्यापक राम हैं. जब वही राम सृष्टि की रचना करते हैं तो यह सब पसारा उन्हीं का है, लेकिन सृष्टि की रचना करने के बाद भी वे इस सृष्टि में फंसते नहीं हैं, इसलिए वही राम सभी से न्यारे हैं. लेकिन भक्तों के लिए उचित समय आने पर वही निराकार राम साकार रूप लेकर इस सृष्टि में ‘दशरथ’ के घर आ जाते हैं. अतः इन चारों राम में कोई भेद नहीं है.


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