Delhi Purana Qila ASI Facts
इतिहास कहता है कि दिल्ली का पुराना किला (Purana Qila, Delhi) मुगल शासक हुमायूं द्वारा बनवाया गया था. यह बात उस समय की है जब भारत में मुगल शासन की स्थापना हुये मात्र 7 वर्ष ही हुए थे. वर्ष 1530 में बाबर की मृत्यु के बाद जब उसकी सत्ता उसके बेटे हुमायूं को सौंपी गई, तब हुमायूं अपनी तख्तपोशी के लिए एक नया किला चाहता था और इस कार्य में कुछ समय लगा. फिर वर्ष 1533 में दिल्ली में एक नए किले का निर्माण शुरू हुआ, जिसे हुमायूं ने एक बहुत ही खास नाम दिया था- ‘दीनपनाह’ यानी ‘धर्म की शरणस्थली’.
और इस प्रकार वर्ष 1533 में आज का ‘पुराना किला’ बनना शुरू हुआ और मात्र एक वर्ष के अंदर ही किले की दीवारें, बुर्ज, प्राचीर, द्वार आदि का निर्माण पूरा हो गया. वर्ष 1540 में शेरशाह सूरी ने इस किले पर कब्जा कर लिया और इसके बाद इस किले में कुछ और बदलाव किए गए. ऐसा भी कहा जाता है कि हुमायूँ की मृत्यु इसी किले की सीढ़ियों से गिरकर हो गई थी. ये वे बातें हैं जो हमें इतिहास में आज तक पढ़ाई जाती रही हैं.
लेकिन इतिहास केवल वह नहीं होता जो दिखता है या जो पढ़ाया जाता है. इतिहास वह भी होता है जिसे सैकड़ों या हजारों वर्ष पहले जमीन में दफन किया जा चुका होता है. दरअसल, इंसान अक्सर सतह के ऊपर बनाए गए ढांचे को ही इतिहास मान बैठता है क्योंकि वही उसे दिखता है, और जो दिखता है वही बिकता है. इतिहास इसी सतह के नीचे दफन हो जाता है. हमारे देश के लोग अपनी प्राचीन शैलियाँ, प्रतीक, अभिलेख, कला, प्राचीन मंदिर सब भूल गए जो सल्तनत, मुगलों और अंग्रेजों से सैकड़ों-हजारों वर्ष पुराने हैं.
पुराना किला पर ASI की ताजा रिपोर्ट
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इस किले में जिन निर्धारित स्थानों पर खुदाई और सर्वेक्षण का कार्य इस समय चल रहा है, उसमें यह पता चला है कि दिल्ली के पुराने किले का प्राचीन अस्तित्व महाभारत काल के समय का हो सकता है. ASI को इस किले में की जा रही खुदाई में ऐसे अवशेष और विशेष प्रकार के मिट्टी के बर्तन मिले हैं, जो 1100 से 800 ईसा पूर्व के हो सकते हैं.
इसके अतिरिक्त, इस खुदाई में हिंदू देवी देवताओं की हजारों वर्ष पुरानी मूर्तियां मिली हैं, जिनमें भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति, देवी गजलक्ष्मी की मूर्ति शामिल है. भगवान विष्णु जी की मूर्ति के भी अवशेष मिले हैं. यह सब पुराने किले के नीचे मिल रहा है. ASI का यह भी कहना है कि इस खुदाई में उसे अलग-अलग काल के सिक्के और राजमुद्राओं के भी अवशेष मिले हैं. साइट पर 136 से अधिक सिक्के, 35 मुहरें और सीलिंग तथा अन्य ताँबे की कलाकृतियों की खोज की गई. यह निष्कर्ष व्यापार गतिविधियों के केंद्र के रूप में साइट के महत्त्व को इंगित करते हैं.
केंद्रीय टूरिज्म मंत्री जी किशन रेड्डी पुराना किला में खुदाई वाली जगहों का जायजा लेने के लिए पहुंचे. उन्होंने बताया कि खुदाई के दौरान बैकुंठ विष्णु, गजलक्ष्मी, गणेश जी की मूर्ति, राजमुद्रा, अलग-अलग समय के सिक्के, आदमी और जानवरों की हड्डियां मिली हैं. इस प्रकार यह सर्वेक्षण और खुदाई इस बात की ओर इशारा करते हैं कि जिस पुराने किले को मुगलकालीन किला कहा जाता है, असल में उसकी सच्चाई कुछ और ही है.
पुराने किले की खुदाई इससे पहले वर्ष 2013-14 में हुई थी. इसके बाद 2017-18 में की गई थी और इसके बाद अब तीसरे दौर की खुदाई शुरू की गई है. तीसरे दौर की यह खुदाई जनवरी 2023 में शुरू की गई थी. 150 दिनों की कड़ी मेहनत के बाद इस किले में महाभारत काल के पुख्ता प्रमाण मिलने लगे हैं.
ASI ने क्यों किया यह सर्वेक्षण?
इतिहासकारों का कहना है कि दिल्ली का यह पुराना किला पहले ‘पांडव किला’ या ‘पुराण किला’ था. ASI इसी से संबंधित तथ्य जुटाने में लगा हुआ है. ASI को इस सर्वेक्षण को कराने की आवश्यकता इसलिए पड़ी, क्योंकि कई शिलालेखों और ग्रंथों में इसी स्थान पर पांडवों के किले के होने का उल्लेख मिलता है.
शिलालेखों और ग्रंथों के मुताबिक, जिस क्षेत्र में यह पुराना किला आज मौजूद है, वहां पहले ‘इंद्रप्रस्थ’ नाम का नगर हुआ करता था, जिसे मौजूदा दिल्ली का प्राचीन रूप कहा जाता है, यह तो हम सब पहले से ही जानते हैं. यह पुराना किला तब ‘पुराण किला’ या ‘पांडवों का किला’ नाम से विख्यात था. लेकिन मुगलों ने इस पांडव किले को पुराने किले का नाम दे दिया.
इसी पुराना किला से कुछ ही मीटर की दूरी पर ‘कुंती देवी का मंदिर’ भी मौजूद है. यहां कुंती माता भगवान शिव और मां दुर्गा जी की नियमित पूजा करती थीं, इसलिए इस मंदिर का नाम कुंती देवी का मंदिर रख दिया गया. मंदिर में पूजा-अर्चना करने और मंदिर का ध्यान रखने वाली महिला ने बताया कि यह पांडव कालीन मंदिर है और महिला के कई पूर्वज इस मंदिर में पूजा-पाठ करते रहे हैं. मंदिर के अंदर भगवान श्रीगणेश, हनुमानजी, शिवजी, सीताराम जी का मंदिर भी मौजूद है.
पुराना किला करीब 300 एकड़ में फैला हुआ है. इस किले में चारों दिशाओं में 4 दरवाजे हैं, लेकिन एंट्री केवल पश्चिम के दरवाजे से होती है. पुराना किला यमुना नदी के किनारे बसा है, हालांकि अब यमुना नदी यहां से काफी दूर हो चुकी है. महाभारत में दर्ज प्रमाणों के आधार पर पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ भी यमुना नदी के किनारे ही बसी हुई थी.
महाभारत पर पुरातात्विक साक्ष्य
महाभारत से सम्बंधित सभी ऐतिहासिक सन्दर्भ पुरातात्विक साक्ष्यों से भी मेल खाते हैं. पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्य मिलकर घटक्रमों को जोड़ते हैं. जैसे-
महाभारत में पाण्डु वंश के राजा निक्षशु के युग में भीषण बाढ़ आने का उल्लेख मिलता है, जिसके बाद उन्होंने हस्तिनापुर का त्याग कर कौशाम्बी को अपनी राजधानी बना लिया था. पुरातात्विक साक्ष्य महाभारत में उल्लेखित इस कथन की पूर्ण पुष्टि करते हैं कि हस्तिनापुर भारी बाढ़ के बाद उजड़ी और उसी दौर में कौशाम्बी बसाई गई.
जिस सभ्यता ने हस्तिनापुर को खाली किया, वही सभ्यता कौशाम्बी में आकर बसी. यहां से घोड़ों के कंकाल, हारपून, नुकीली तलवारें, बरछी और मानवीय आकृतियां भी मिली हैं. ये सब एक योद्धा सभ्यता की ओर इशारा करते हैं. इतना ही नहीं, यहां से अलग-अलग तरह के पासे भी मिले हैं, जो उस समय के लोगों के चौसड़ के प्रति प्रेम को दर्शाते हैं.
यहाँ से प्राप्त मृदभांडों के आधार पर इस सभ्यता को ‘चित्रित धूसर मृदभांड वाली सभ्यता’ (Painted Grey Ware Culture) भी कहा गया. इस कालखंड की तिथि 1100-800 बीसी ई. के बीच निर्धारित की गई है. हाल ही में सनौली उत्खनन में जिस प्रकार के रथ, धनुष और उन्नत तलवारें सामने आईं, वे एक महान और सबल योद्धा समुदाय की ओर इशारा करते हैं. यह स्थल महाभारत युगीन शासकों की परिधि है.
(4 June 2023)
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