Tides : ज्वार-भाटा क्या हैं, ये कब और क्यों आते हैं और इनके क्या लाभ हैं?

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‏What is Tidal Waves

समुद्र का जल-स्तर सदा एक सा नहीं रहता. यह नियमित रूप से दिन में दो बार ऊपर उठता है और नीचे उतरता है. समुद्री जलस्तर के ऊपर उठने को ‘ज्वार’ और नीचे उतरने को ‘भाटा’ कहते हैं (Tides are the rhythmic rise and fall of the water in the ocean).

समुद्र तटों पर 24 घंटे में दो बार समुद्र का जल किनारे पर आगे बढ़ता है और फिर वापस लौट जाता है. ऐसा सूर्य और चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण होता है. महासागरीय जल के एक निश्चित किनारे से आगे बढ़ने को ‘ज्वार’ और निश्चित किनारे से जल के पीछे हटने/जाने को ‘भाटा’ कहते हैं.

ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का कारण चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति है. चंद्रमा और सूर्य दोनों अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति से पृथ्वी को प्रभावित करते हैं. दोनों अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति द्वारा पृथ्वी को अपनी ओर खींचते हैं, लेकिन इसका प्रभाव स्थल की अपेक्षा जल पर पड़ता है.

चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति सूर्य की तुलना में पृथ्वी पर अधिक प्रभावशाली है क्योंकि सूर्य की अपेक्षा चंद्रमा, पृथ्वी के ज्यादा निकट है. इसलिए जब पृथ्वी का सागरीय भाग चंद्रमा के सामने पड़ता है, तो उसमें ज्वारीय उभार उत्पन्न हो जाता है.

सूर्य का आकार चंद्रमा के आकार से 3 अरब गुना अधिक है लेकिन सूर्य, पृथ्वी से चंद्रमा की अपेक्षा 300 गुना अधिक दूरी पर स्थित है; इसलिए चंद्रमा का ज्वार उत्पन्न करने वाला बल, सूर्य के बल से 2.17 गुना अधिक है.

ज्वार-भाटा के प्रकार (Types of Tides)

ज्वार सदा एक ही ऊंचाई तक नहीं उठते. पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की अपेक्षित स्थिति के अनुसार इनकी ऊंचाई घटती-बढ़ती रहती है. इस आधार पर ज्वार-भाटा दो प्रकार के होते हैं-

उच्च अथवा वृहत ज्वार-भाटा- पूर्णिमा और अमावस्या के दिन सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं. ऐसी स्थिति में पृथ्वी पर चंद्रमा और सूर्य के सम्मिलित गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़ता है. परिणामस्वरूप इन दोनों दिनों में उच्चतम ज्वार का निर्माण होता है. जिसे उच्च ज्वार (Spring Tide) कहते हैं.

निम्न अथवा लघु ज्वार-भाटा- शुक्र और कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी के दिन सूर्य और चंद्रमा, पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाने वाली दिशाओं में स्थित होते हैं. सूर्य और चंद्रमा में गुरुत्वाकर्षण एक-दूसरे के विरुद्ध काम करते हैं. परिणामस्वरूप कम ऊंचाई वाले ज्वार का निर्माण होता है, जिसे निम्न ज्वार (Neap Tide) कहते हैं.

ज्वार-भाटा के समय में अंतर (Tide Time Difference)

पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटों में एक चक्कर पूरा कर लेती है, अतः प्रत्येक देशांतर पर 12 घंटे बाद एक ज्वार और 12 घंटे बाद एक भाटा आना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं. ज्वार 12 घंटे 26 मिनट की अवधि के बाद आता है.

मान लीजिए कि किसी स्थान पर आज सुबह 10:00 बजे ज्वार आया है, तो दूसरा ज्वार रात्रि में 10:26 पर उठेगा और तीसरा ज्वार अगले दिन सुबह 10:52 पर उठेगा.

ज्वार-भाटा के देरी से आने का कारण है- पृथ्वी की दैनिक गति और चंद्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा करना. चंद्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा 29 दिन में पूरा कर लेता है, यानी चंद्रमा पृथ्वी का 29वां भाग हर रोज आगे बढ़ जाता है, इसलिए पृथ्वी के प्रत्येक स्थान को दोबारा चंद्रमा के ठीक सामने आने के लिए 24 घंटे से कुछ अधिक का समय लगता है. अधिक समय की यह अवधि इस प्रकार मालूम की जा सकती है-

समय में देरी = 24 घंटे X 60 मिनट/29
= 49 मिनट 39 सेकंड

वास्तव में पृथ्वी के इस कार्य में एक मिनट व 36 सेकेंड का समय और लगता है, क्योंकि इन 49 मिनट तथा 39 सेकंड में चंद्रमा कुछ और पूरब की ओर खिसक जाता है. इस प्रकार ज्वार का काल 52 मिनट पीछे खिसक जाता है. यही कारण है कि ज्वार 12 घंटे 26 मिनट के अंतराल पर आता है, क्योंकि ज्वार प्रतिदिन दो बार आते हैं.

आमतौर पर ज्वार प्रतिदिन दो बार आते हैं, लेकिन इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथहैंपटन (Southampton) में ज्वार प्रतिदिन 4 बार आते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ज्वार 2 बार इंग्लिश चैनल से होकर और दो बार उत्तरी सागर से होकर अलग-अलग अंतराल पर वहां पहुंचते हैं.

ज्वार-भाटा से बहुत लाभ होते हैं, जैसे-

• नदमुखों पर स्थित बंदरगाहों तक आमतौर पर जहाज नहीं पहुंच सकते, लेकिन ज्वार के आने से जल की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है कि जहाज बंदरगाह तक सुगमता से पहुंच जाते हैं और माल उतारने और चढ़ाने के बाद भाटे के साथ गहरे सागर में वापस आ जाते हैं. ज्वार-भाटा के कारण हुगली और टेम्स नदियों पर क्रमशः कोलकाता और लंदन महत्वपूर्ण बंदरगाह बन गए हैं.

• मछली पकड़ने वाले नाविक ज्वार के साथ खुले समुद्र में मछली पकड़ने जाते हैं और भाटे के साथ सुरक्षित तट पर लौट आते हैं.

• ज्वार भाटा की वापसी लहर समुद्री तट पर बसे नगरों की सारी गंदगी समुद्र में बहाकर ले जाती है. इसी के साथ, ज्वार भाटा की लहर वापस जाते समय कई समुद्री वस्तुएं जैसे शंख, घोंघे आदि किनारे पर छोड़ देते हैं.

• ज्वार भाटा के कारण समुद्री जल गतिशील रहता है जिससे वह जल साफ रहता है और सर्दियों में जमता नहीं. इंग्लैंड के बंदरगाहों का शीत ऋतु में न जमने का एक महत्वपूर्ण कारण ज्वार-भाटा भी है.

• ज्वार के समय ऊपर चढ़े हुए जल को बांध बनाकर भाटे के साथ ऊंचाई से गिराकर विद्युत उत्पन्न की जाती है, जैसे फ्रांस और जापान में ज्वारीय विद्युत का प्रयोग किया जाता है.

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