विज्ञान हो या धर्म, सूर्य (Sun) का महत्व हमेशा से ही सबसे ज्यादा रहा है, क्योंकि सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती. पृथ्वी पर जलवायु, मौसम और पेड़-पौधे या सब कुछ सूर्य से ही है. असीम ऊर्जा का यह भंडार पृथ्वी पर मौजूद सभी तरह के जीवों के स्वास्थ्य और जीवन को प्रभावित करता है. केवल पृथ्वी ही नहीं, पूरे सौरमंडल की ऊर्जा का स्रोत सूर्य ही है. चंद्रमा भी सूर्य की रोशनी से ही प्रकाशित है. इसीलिए हमारे धर्म ग्रंथों में सूर्य की पूजा को इतना महत्व दिया गया है. सूर्य की उपासना से ही जुड़ा महापर्व है मकर संक्रांति (Makar Sankranti).
सेहत की नजर से मकर संक्रांति का महत्व
भारत में प्राचीन समय से जितने भी व्रत-त्योहारों (Vrat-Tyohar) का महत्व बताया गया है, उन सभी का कोई न कोई वैज्ञानिक आधार जरूर है. मकर संक्रांति का त्यौहार लोगों के लिए मिठाइयों की रूप में सेहतमंद चीजें लेकर आता है. मकर संक्रांति के दिन तिल, तेल, उड़द, दाल, गुड़ आदि का सेवन करना अच्छा माना गया है और यही सब चीजें सर्दियों में खाना सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. सर्दियों में ठंड के प्रकोप को कम करने और शरीर को गर्मी देने के लिए इन सभी चीजों का सेवन करना बहुत जरूरी होता है.
सर्दियों में तिल, तेल, उड़द, दाल, गुड़ आदि खाने से शरीर में गर्मी रहती है और त्वचा का रूखापन खत्म होता है. मकर संक्रांति के बहाने लोगों के शरीर में इन सभी चीजों की पूर्ति हो जाती है. वहीं, शरीर में तिल के तेल की मालिश करना शरीर और त्वचा के लिए बहुत अच्छा होता है….और मकर संक्रांति के दिन तिल लगाकर ही स्नान किया जाता है. तिल शरीर को गर्मी देता है और सर्दियों में शरीर को निरोगी भी रखता है. यानी मकर संक्रांति का त्योहार भी कहीं ना कहीं लोगों की सेहत से ही जुड़ा हुआ है.
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व
भारतीय पंचांग की सभी तिथियां चंद्रमा के आधार पर तय की जाती हैं, लेकिन मकर संक्रांति को सूर्य की गति के आधार पर निर्धारित किया जाता है. इसीलिए इस त्योहार का संबंध प्रकृति में बदलाव, मौसम परिवर्तन और कृषि से भी है…और ये तीनों ही जीवन का आधार हैं. मकर संक्रांति का मतलब सूर्य के उत्तरायण होने से है, यानी जब पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की तरफ मुड़ जाता है. तब से उत्तरी गोलार्द्ध में दिन लंबे होते जाते हैं और रातें छोटी. यानी इसी दिन से सूर्य का ताप ठंड के प्रकोप को कम करने लगता है और बसंत का आगमन शुरू होता है.
चूंकि यह त्योहार सूर्य और पृथ्वी की गति से जुड़ा है, इसलिए एक निश्चित समय अंतराल पर इसकी तिथि में भी बदलाव आता रहा है और आता रहेगा. जैसे अब 14 और 15 जनवरी को लेकर असमंजस की स्थिति बनने लगी है…. आगे जाकर यही स्थिति 15 और 16 जनवरी को लेकर बनेगी. ऐसा लीप वर्ष के कारण होता है.
(मालूम हो कि पृथ्वी अपनी धुरी पर साढ़े 23 डिग्री झुकी हुई है… और वह सूर्य का एक चक्कर एक साल में पूरा करती है. इससे पृथ्वी का एक ध्रुव 6 महीने तक सूर्य के सामने रहता है…और तब तक दूसरे ध्रुव पर 6 महीने तक सूर्य का प्रकाश न पहुंच पाने के कारण वहां अंधेरा या रात रहती है. जब पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव सूर्य के सामने आता है, तो उसे दक्षिणायन कहते हैं, वहीं जब उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की तरफ मुड़ता है, तो उत्तरायण).
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
शास्त्रों या धर्म ग्रंथों के अनुसार, पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ गोलाई में जो चक्कर लगाती है, उसे 12 राशियों में बांटा गया है. सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है…और इसी तरह जब सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है, तब इसे मकर संक्रांति कहा जाता है. वर्तमान में यह जनवरी के 14वें या 15वें दिन ही पड़ता है.
शास्त्रों में दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि, यानी नकारात्मकता का प्रतीक… और उत्तरायण को देवताओं का दिन यानी सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. इसी के साथ, यह खरमास (16 दिसंबर से 14 जनवरी- जब विवाह समेत सभी शुभ और मंगल कार्य बंद रहते हैं) की समाप्ति का भी दिन है.
इसीलिए इस दिन स्नान, सूर्य की उपासना, जप तप, दान, व्रत, पूजा आदि का बहुत महत्व है. कहते हैं कि इस दिन किया गया कोई भी पुण्यकार्य सौ गुना अच्छा फल देता है. संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या को स्नान, खासकर गंगा स्नान का विशेष महत्व बताया गया है. मकर संक्रांति के दिन शुभ मुहूर्त में स्नान करने का महत्व बहुत ज्यादा है. देवीपुराण में बताया गया है कि जो व्यक्ति पूरी तरह सक्षम होते हुए भी मकर संक्रांति के दिन स्नान नहीं करते, वे सात जन्मों तक रोगी और निर्धन रहते हैं.
मकर संक्रांति के अलग-अलग नाम
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व या इस दिन की महिमा सभी जानते हैं, इसलिए यह त्योहार पूरे देश में इतने हर्षोल्लास और सभी रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है…और केवल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. देश-विदेश में मकर संक्रांति का त्योहार अलग-अलग नामों और रीति-रिवाजों के साथ पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है.
जैसे- उत्तर प्रदेश और बिहार में यह खिचड़ी (Khichdi) के नाम से जाना जाता है…. और इस दिन खिचड़ी खाने और दान करने का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन उड़द, चावल, तिल, ऊनी वस्त्र, कंबल आदि दान करने का बहुत महत्व है. कुछ जगहों पर महिलाओं की तरफ से कुछ विशेष तरह के नेग देने जैसे नियम-कार्य किए जाते हैं. इनका मुख्य उद्देश्य परिवार के संबंधों को मजबूत बनाना और रिश्तों की मान-मर्यादा बढ़ाना होता है.
वहीं, तमिलनाडु में यह त्योहार पोंगल, गुजरात और उत्तराखंड में उत्तरायण, जम्मू में उत्तरैन… हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में माघी, असम में बिहू, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रांति और बाकी राज्यों में मकर संक्रांति के नाम से ही मनाया जाता है.
मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व
मकर संक्रांति को लेकर अनेक पौराणिक कहानियां और वृत्तांत देखने को मिलते हैं. कहते हैं कि इसी दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि देव से मिलने उनके घर जाया करते थे. शनिदेव मकर राशि के ही स्वामी हैं, इसलिए भी इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति के दिन ही अपनी देह त्याग करने का निर्णय लिया था.
यह भी कहा जाता है कि महाराज भागीरथ जो गंगा (Ganga) को स्वर्ग से धरती पर लेकर आए थे, उन्होंने इसी दिन अपने पूर्वजों के लिए तर्पण किया था और उनके तर्पण को स्वीकार करने के बाद इसी दिन मां गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थीं. इसीलिए मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में एक बड़ा मेला भी लगता है.
कहते हैं कि इसी दिन भगवान विष्णु ने राक्षसों का अंत कर युद्ध की समाप्ति की थी यानी यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है. वहीं, माता यशोदा ने जब भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के लिए व्रत किया था, तब सूर्य देवता मकर राशि में ही प्रवेश कर रहे थे.
मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परम्परा
मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने की भी विशेष परंपरा है….और यह परंपरा भगवान श्रीराम से ही मानी जाती है. कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन भगवान श्रीराम ने अपनी बाल्यावस्था में अपने तीनों भाइयों और बाल हनुमान के साथ पतंग उड़ाई थी. तब उनकी पतंग उड़ते-उड़ते देवलोक यानी इंद्रलोक तक जा पहुंची थी. जैसे ही इस पतंग पर इंद्र के पुत्र जयंत की पत्नी की नजर पड़ी, उन्होंने तुरंत उस पतंग को उठा लिया और सोचने लगीं कि आखिर यह पतंग किसकी हो सकती है, जो उड़ते-उड़ते देवलोक तक आ गई.
तब हनुमान जी पतंग को ढूंढते हुए देवलोक तक आ गए. उन्होंने जयंत की पत्नी को बताया कि यह पतंग भगवान श्रीराम की है…और ये पतंग वापस कर दें. तब जयंत की पत्नी ने अवसर का लाभ उठाते हुए कहा कि “पहले भगवान श्रीराम के दर्शन कराओ, तभी दूंगी पतंग”. ये सुनकर हनुमान जी वापस श्रीराम जी के पास आए और उन्हें सारी बात बताई. तब भगवान राम जी ने कहा कि “चित्रकूट में अवश्य ही दर्शन देंगे”. हनुमान जी ने यही बात जयंत की पत्नी को बता दी. तब उन्होंने हनुमान जी को वह पतंग दे दी. यानी मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है.
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