दैनिक जीवन में भगवान की पूजा-उपासना कैसे करनी चाहिए, जानिए ध्यान रखने योग्य बातें

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Roj me Bhagwan ki Puja Kaise Kare

“कौन कहता है कि भगवान नजर नहीं आते, एक वही तो नजर आते हैं जब कुछ और नजर नहीं आता…”

इस दौड़ती-भागती जिंदगी में सब कुछ अनिश्चित है. कुछ भी निश्चित नहीं है. हमारे हर प्रकार के क्रियाकलापों का असर हमारे जीवन पर दिखता अवश्य है. जीवन में एक भाग को मजबूत करने के लिए हम सब भगवान की शरण में जाते हैं, क्योंकि वही एक जगह है, जहां जाकर जीवन में निश्चिन्तता मिलती है, जहां जाकर इस दौड़ती-भागती जिंदगी में मन को आराम मिलता है.

भगवान की शरण में जाने के लिए, भगवान से जुड़ने के लिए तमाम तरीके से भगवान की पूजा-आराधना या उपासना की जाती है. भगवान की पूजा-उपासना करना भगवान से जुड़ने का एक माध्यम है. भगवान तक अपनी आवाज पहुंचाने का एक साधन है. भगवान की मूर्तियां या चित्र हमें उस अदृश्य शक्ति से जोड़ने का एक माध्यम या साधन बनते हैं. आज हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि दैनिक जीवन में भगवान की पूजा-उपासना कैसे करनी चाहिए और कैसे पूजा उपासना को सफल किया जा सकता है, या दैनिक जीवन में भगवान की पूजा-उपासना के दौरान किन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए.

एक बात और कही जाती है कि पूजा-आराधना के दौरान मन के भाव का महत्व सबसे ज्यादा होता है. प्रेम और भक्ति सभी नियमों और विधियों से ऊपर होती है. जो व्यक्ति पूरे सच्चे मन से केवल भगवान की भक्ति ही करता है, निःस्वार्थ रूप से केवल उनसे प्रेम ही करता है, हर परिस्थिति में लेन-देन की बजाय उन्हें केवल प्रेम देना ही जानता है, ऐसे भक्त के लिए कोई नियम या विधि मायने नहीं रखती. एक सच्चे भक्त का प्रेम अपने भगवान् के प्रति किसी डर या लालच की वजह से नहीं होता. यह तो केवल प्रेम होता है.

जो व्यक्ति केवल भगवान के प्रति अपने प्रेम के कारण उनकी पूजा-आराधना या उपासना करता है, और बदले में भी केवल भगवान या उनकी भक्ति ही चाहता है, जिसके मन में किसी के लिए बेवजह कोई दुर्भावना नहीं होती है, ऐसे भक्त से किसी पूजा-उपासना के दौरान विधि से संबंधित कोई गलती हो भी जाती है तो वह अपराध नहीं माना जाता और उसके लिए उसे तुरंत क्षमा भी कर दिया जाता है. भक्ति का सबसे अच्छा उदाहरण हैं हनुमान जी.

लेकिन जो व्यक्ति अपनी किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए भगवान को प्रसन्न करना चाहता है, या अपनी किसी मनोकामना को पूरा करने के लिए या कुछ मांगने के लिए भगवान की कोई पूजा-आराधना या मंत्र जाप करता है, तो ऐसे व्यक्ति के लिए पूजा की सभी विधियों और नियमों का ध्यान रखना जरूरी होता है. हालांकि, कोई भी पूजा-आराधना के दौरान विधियों या नियमों का ध्यान सभी को रखना चाहिए.

देखें- मंत्र साधना कैसे करें

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आज हम यहां भगवान की दैनिक पूजा-उपासना या साधना के दौरान ध्यान में रखी जाने वाली बातों पर चर्चा करेंगे. वैसे तो अलग-अलग पूजा या साधना की अलग-अलग विधि होती है, लेकिन दैनिक जीवन में हम जो भगवान की पूजा करते हैं, उसकी एक सर्वमान्य विधि है, जिसकी चर्चा आज हम यहां करेंगे-

पूजा की तैयारी

♦ भगवान की पूजा-उपासना अगर ब्रह्ममुहूर्त में, या सूर्योदय से पहले या सूर्योदय के दौरान की जाए तो बहुत ही अच्छा होता है. इस समय उपासक भगवान से खुद को ठीक से कनेक्ट कर पाता है.

♦ कोई भी काम करने से पहले उसकी तैयारी करना बहुत जरूरी होता है. पूजा की तैयारी करने के लिए सुबह-सुबह उठकर पूजा स्थान की साफ-सफाई करनी चाहिए. कोशिश करें कि पूजा स्थान पर गंदगी वगैरह न हो. इस दौरान भगवान पर चढ़ाए गए फूलों और अगरबत्ती या धूपबत्ती की राख को इधर-उधर या कूड़ेदान में नहीं फेंकना चाहिए, क्योंकि इनके अंदर एक पॉजिटिव एनर्जी होती है.

♦ भगवान पर चढ़ाए गए फूलों के सूख जाने पर और अगरबत्ती या धूपबत्ती की राख को किसी पौधे के गमले या बगीचे की मिट्टी में डाल देना चाहिए, या यह किसी पेड़ की जड़ में डाल दें आदि.

♦ पूजा करने से पहले स्नान करना बेहद जरूरी है. पूजा के दौरान तन और मन का स्वच्छ रहना बहुत जरूरी होता है. अगर हमारा तन स्वच्छ होता है, साथ ही हम साफ-सुथरे कपड़े पहनते हैं, तो पूजा के दौरान मन को एकाग्र करने में बहुत सहायता मिलती है. फिर भी जो लोग किसी बीमारी या स्वास्थ्य समस्याओं के चलते बिल्कुल नहीं नहा सकते, तो उन्हें पूजा के लिए हाथ-पैर और सिर को धो लेना चाहिए.

♦ पूजा-उपासना भोजन करने के पहले की जाए, तो बहुत अच्छा होता है. लेकिन अगर स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है, या दवाई वगैरह खानी है, तो उसके लिए थोड़ा खाकर और दवाई खाकर, शरीर को स्वच्छ करके आसानी से पूजा के लिए बैठा जा सकता है.

♦ भगवान की दैनिक पूजा एक स्वच्छ आसन पर बैठकर करनी चाहिए. इस दौरान एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि पूजा के लिए जो आसन और जपने की माला का इस्तेमाल किया जाता है, वह पर्सनल होते हैं. यानी दूसरे के आसन और माला का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए.

♦ पूजा के समय एक और सबसे महत्वपूर्ण बात होती है कि किसी भी पूजा-उपासना या मंत्र-साधना आदि के समय रीढ़ की हड्डी यानी पीठ सीधी होनी चाहिए.

♦ इसके बाद भगवान को स्नान कराना, वस्त्र पहनाना, टीका या तिलक लगाना आदि कार्य किए जाते हैं. इन सबके बाद एक दीपक जलाएं. आमतौर पर घर में दैनिक पूजा के दौरान एकमुखी दीपक जलाया जाता है. हालांकि, पंचमुखी दीपक से आरती करना और भी अच्छा माना जाता है. सुगंध के लिए धूपबत्ती भी जलाई जाती है.

♦ एक बात का ध्यान रखें कि बांस की बनी अगरबत्ती का इस्तेमाल न करें. यदि अगरबत्ती लकड़ी आदि की बनी हो, तो वह जलाई जा सकती है, लेकिन बांस की बनी अगरबत्ती बिल्कुल न जलाएं, धूपबत्ती ही जलाएं.

भगवान से प्रार्थना

♦ इसके बाद भगवान से प्रार्थना करें कि आपकी पूजा सफल हो. दरअसल भगवान की पूजा भगवान की इच्छा के बिना नहीं की जा सकती है, इसलिए पूजा करने का अवसर मिलने के लिए भगवान का धन्यवाद जरूर करना चाहिए, साथ ही प्रार्थना करनी चाहिए कि आपकी पूजा-आराधना सफल हो और जिस मनोकामना की पूर्ति के लिए आप पूजा कर रहे हैं, वह मनोकामना पूरी हो.

♦ हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि “हे भगवान! मैं मन, वचन, कर्म से आपकी पूजा करना चाहता/चाहती हूं. मेरे ऊपर कृपा कीजिए, ताकि मैं अच्छे से आपकी पूजा-उपासना कर सकूं और आपकी कृपा पा सकूं.” ऐसी प्रार्थना किसी भी तरह की पूजा या किसी भी देवी-देवता की पूजा से पहले करनी चाहिए.

♦ किसी भी पूजा की शुरुआत में सबसे पहले भगवान श्री गणेश जी का स्मरण करने का विधान है. भगवान श्री गणेश ने अपने माता-पिता भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करके प्रथम देवता का पद प्राप्त किया है (गणेश जी की इस बात पर भी ध्यान दीजिये कि वे हमें क्या सिखाना चाहते हैं), इसलिए किसी भी अच्छे कार्य की शुरुआत भगवान श्री गणेश जी का ध्यान करके ही की जाती है.

नोट- अगर आपका कोई गुरु है तो देवी-देवता से भी पहले गुरु का स्मरण करना चाहिए, क्योंकि गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा माना गया है और गुरु के मार्गदर्शन के बिना कोई कार्य नहीं किया जा सकता है. आपका गुरु कोई भी हो सकता है- आपके माता-पिता, आपके भाई-बहन, या आपका मित्र, या आपकी टीचर, या कोई भी देवी-देवता.

♦ अगर आप कोई मंत्र-साधना करने जा रहे हैं, तो सबसे पहले गुरु मंत्र का जप किया जाता है, लेकिन अगर आपका कोई गुरु नहीं है, तो आप किसी देवी-देवता को ही अपना गुरु मानकर सबसे पहले उनका स्मरण कर सकते हैं, जैसे गायत्री माता या भगवान् शिव.

♦ मंत्र जप करने के बाद कम से कम 15 मिनट तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए, क्योंकि जब हम मंत्रों का जप करते हैं, तो हमारे शरीर में एक पॉजिटिव एनर्जी उत्पन्न हो जाती है. मंत्र-जप करने के तुरंत बाद जल का स्पर्श करने से वह पॉजिटिव एनर्जी जल में ट्रांसफर हो जाती है. इसलिए मंत्र जप करने के तुरंत बाद जल का स्पर्श नहीं किया जाता है.

♦ पूजा के सबसे अंत में भगवान की आरती की जाती है. आरती का मतलब ही होता है पूजा का समापन. यानी आरती करने के बाद पूजा समाप्त हो जाती है.

आरती करने के नियम और महत्व
(Bhagwan ki Aarti karne ke Niyam)

♦ घर में सुबह-सुबह घंटे, शंख, आरती की आवाज होना बहुत अच्छा माना जाता है. इससे घर में पॉजिटिविटी बढ़ती है. भगवान की आरती करने के महत्व की चर्चा स्कंद पुराण में मिलती है. स्कंद पुराण में बताया गया है कि भगवान की आरती करना क्यों महत्वपूर्ण है. कोई भी पूजा-पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान आदि के अंत में देवी-देवताओं की आरती की जाती है.

♦ आरती की प्रक्रिया में एक थाली में ज्योति और कुछ विशेष वस्तुएं रखकर भगवान के सामने घुमाई जाती है. उस ज्योति के माध्यम से भगवान से ऊर्जा ग्रहण की जाती है. आरती की थाली में अलग-अलग वस्तुओं के रखने का अलग-अलग महत्व होता है.

♦ सबसे ज्यादा महत्व होता है आरती के साथ गाई जाने वाली स्तुति का. आरती के समय स्तुति जितने सच्चे भाव से गाई जाती है, आरती उतनी ही प्रभावशाली हो जाती है.

♦ आरती किसी पूजा-प्रार्थना या मंत्र-जप की समाप्ति पर ही की जाती है. बिना पूजा-उपासना, या बिना मंत्र-जप, या बिना प्रार्थना या भजन कीर्तन के सीधे भगवान की आरती नहीं की जाती है.

♦ आरती की थाली गोल और शुद्ध होनी चाहिए. आरती की थाली में कपूर या घी के दीपक से ज्योति जलाई जाती है. ज्योति के साथ आरती की थाली में कुमकुम या रोली और पूजा के फूल जरूर होने चाहिए.

♦ आरती की थाल को भगवान के सामने इस तरह घुमाना चाहिए कि ‘‘ की आकृति बन जाए. आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और पूरे शरीर पर 7 बार घुमाना चाहिए.

♦ आरती के बाद थाल में रखे हुए फूल आरती लेने वाले व्यक्ति को देना चाहिए, साथ ही उसे कुमकुम या रोली का टीका या तिलक भी लगाना चाहिए. आरती की थाली में आरती लेने के बाद दक्षिणा नहीं डालनी चाहिए. दक्षिणा दानपात्र में डालनी चाहिए.

♦ आरती ग्रहण करते समय सिर ढका हुआ होना चाहिए. दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर आंखों पर और सिर पर लगाना चाहिए. आरती लेने के बाद कम से कम 5 मिनट तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए.

♦ अगर घर में तुलसी का पौधा है, तो रोजाना पूजा के दौरान तुलसी के पौधे को नमस्कार करना चाहिए. घर में रोज तुलसी के पौधे की पूजा होना और शाम को उसमें एक दीपक का रखा जाना बहुत अच्छा होता है.

♦ पूजा-उपासना सुबह और शाम दोनों समय की जाए तो बहुत ही अच्छा होता है. वैसे तो 3 वेला में पूजा करनी चाहिए, लेकिन दैनिक जीवन में समय की कमी के चलते दो बार ही पूजा-उपासना की जा सकती है- सुबह और शाम को. संध्या पूजन का बड़ा ही महत्व होता है.

संध्या पूजन का महत्व और नियम
(Sandhya Puja Vidhi)

♦ वैसे तो भगवान की पूजा-आराधना करने का कोई निश्चित समय नहीं होता. किसी भी समय उनका स्मरण और उनकी उपासना की जा सकती है, लेकिन दो समय ऐसे होते हैं, जिस समय उपासक भगवान से खुद को बहुत अच्छी तरह कनेक्ट कर पाता है. ये दो समय हैं- सुबह और शाम.

♦ सुबह के साथ-साथ दिनभर के बाद संध्या पूजन करने से शुभ फलों की प्राप्ति की जा सकती है. कुछ विशेष प्रयोग या विशेष पूजा केवल संध्या पूजा में ही फलदाई होते हैं. शाम के समय पूजा करने से कई उपलब्धियां प्राप्त की जा सकती हैं. रोज शाम को गायत्री मंत्र का जप करना बेहद अच्छा माना जाता है.

♦ संध्या पूजन के कुछ विशेष महत्व बताए गए हैं, जैसे जो लोग रोज संध्या पूजन करते हैं उन्हें धन की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है. उन लोगों को महालक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है. नियमित रूप से संध्या पूजा करने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होती है.

♦ शनिदेव और हनुमान जी की पूजा संध्या के समय विशेष प्रभावशाली होती है. शनि पीड़ा से मुक्ति के लिए भी संध्या पूजन जरूर करना चाहिए. इसी के साथ, कर्ज से मुक्ति, किसी रोग से मुक्ति और शत्रुओं से मुक्ति के लिए संध्या पूजा का विशेष महत्व बताया गया है.

♦ शाम की पूजा सूर्यास्त के समय की जाती है. इसे संध्या पूजन कहते हैं, जब सूर्य अस्त हो रहा होता है और रात की शुरुआत हो रही होती है.

♦ अगर संध्या पूजन स्नान करके किया जाए तो और भी अच्छा होता है, नहीं तो हाथ-पैर और सिर को अच्छी से धोकर पूजा के लिए बैठा जा सकता है.

♦ संध्या पूजा के दौरान दीपक जरूर जलाना चाहिए. इस दौरान घी या तिल के तेल का दीपक जलाना अच्छा होता है.

♦ दीपक जलाने के बाद सबसे पहले गायत्री मंत्र का जप किया जाना चाहिए. इसके बाद जो भी मंत्र आप जपना चाहते हैं, उस मंत्र का जप करें.

♦ संध्या पूजन के समय शंख बजाना और पूरे घर में धूपबत्ती या आरती की ज्योति घुमाना बहुत अच्छा होता है.

♦ घर में संध्या पूजन के दौरान घर के जितने सदस्य शामिल हों, उतना ही अच्छा होता है. संध्या पूजन में आरती जरूर करें और घर के सभी सदस्यों को आरती देने की कोशिश करें.

♦ संध्या पूजा के बाद घर में बना भोजन भगवान को भी अर्पित करना अच्छा होता है, लेकिन अगर प्याज-लहसुन का खाना बना है, तो उसे भगवान को अर्पित न करें.

♦ पूजा-उपासना जितनी गोपनीय होती है, उतना अच्छा होता है. दरअसल, पूजा-उपासना या मंत्र जाप हमारे और भगवान जी के बीच की कड़ी को जोड़ते हैं. इस कड़ी के बीच में कोई न आ पाए, इसके लिए अपनी पूजा-उपासना आदि को गोपनीय रखना अच्छा होता है. जैसे- माता पार्वती हर किसी से छिपाकर भगवान शिव की पूजा आराधना करती रहती हैं.

नोट- यह लेख एक प्रसिद्ध ज्योतिष पंडित की सलाह पर आधारित है.

देखें- रोज बोले जाने वाले प्रमुख और चमत्कारी मंत्र


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