Vat Savitri Vrat Katha Puja: जानिए वट सावित्री व्रत पूजा विधि और कथा, सावित्री-सत्यवान की कहानी

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वट सावित्री व्रत पूजा विधि और कथा

Vat Savitri Vrat Katha & Puja Vidhi: भारतीय परंपरा में स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए तमाम तरह के व्रत रखती हैं, जैसे हरतालिका तीज, करवाचौथ, वट सावित्री व्रत, गणगौर व्रत, महालक्ष्मी व्रत आदि. वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) सौभाग्य प्राप्ति के लिए एक बड़ा व्रत माना जाता है. यह सौभाग्य और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है. यह जेष्ठ कृष्ण अमावस्या को मनाया जाता है. वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का विशेष महत्व होता है. सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है.

इस व्रत के साथ सत्यवान और सावित्री जी (Satyavan and Savitri) की कथा जुड़ी हुई है, जिसमें सावित्री जी ने अपनी तपस्या, संकल्प और श्रद्धा से यमराज से सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे. महिलाएं अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए इस दिन इस व्रत को करने का संकल्प लेती हैं. इस व्रत को करने से सुखद और संपन्न दांपत्य जीवन का वरदान मिलता है. इसी के साथ, वट सावित्री का व्रत पूरे परिवार को एक सूत्र में बांधे भी रखता है.

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बरगद के पेड़ की ही पूजा क्यों की जाती है

वट वृक्ष या बरगद (Vat tree or Banyan tree) को एक देव वृक्ष माना जाता है. पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश और स्वयं सावित्री भी वटवृक्ष में रहते हैं. कहा जाता है कि प्रलय के अंत में भगवान श्रीकृष्ण इसी वृक्ष के पत्ते पर प्रकट होते हैं. इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है. बरगद और पीपल के नीचे स्थापित किसी देवी-देवता की मूर्ति की उपासना का प्रभाव बहुत बढ़ जाता है.

गोस्वामी तुलसीदास जी ने वटवृक्ष को तीर्थराज का छत्र कहा है. यह वृक्ष न केवल अत्यंत पवित्र है. बल्कि बहुत ज्यादा दीर्घायु भी है. यानी बहुत लंबे समय तक जिंदा रहता रहता है. लंबी आयु, शक्ति, विशालता और धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए ही इस वृक्ष की पूजा की जाती है, साथ ही पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए भी इस वृक्ष को इतना महत्व दिया गया है, क्योंकि बरगद का पेड़ सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों में शामिल है.

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वट सावित्री की पूजा कैसे की जाती है

वट सावित्री की पूजा की विधि अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग है-

(1) सुबह-सुबह स्नान करके निर्जल रहकर इस पूजा का संकल्प लें. सत्यवान और सावित्री जी का ध्यान करते हुए वट वृक्ष की जड़ में जल डालें, फूल-धूप और मिठाई से पूजा करें. इसके बाद कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते जाएं. सूत को तने में लपेटते जाएं और कम से कम 7 बार परिक्रमा करें. इसके बाद हाथ में भीगे चने लेकर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनें और सुनाएं. फिर भीगे चने, कुछ धन और वस्त्र अपनी सास को देकर उनका आशीर्वाद लें. वट वृक्ष की कोंपल खाकर या नींबू पानी पीकर उपवास समाप्त करें.

(2) सुबह-सुबह स्नान करके निर्जल रहकर इस पूजा का संकल्प लें. पूजा स्थल पर रंगोली बनाकर अपनी पूजा की सामग्री वहां रखें. अपने पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी-नारायण और शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करें. सबसे पहले गणेश जी और माता गौरी की पूजा करें. इसके बाद बरगद के वृक्ष की पूजा करें.

पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल और धूप का प्रयोग करें. कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते जाएं. सूत को तने में लपेटते जाएं और कम से कम 7 बार परिक्रमा करें. इसके बाद हाथ में भीगे चने लेकर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनें और सुनाएं. भिगोया हुआ चना, वस्त्र और कुछ धन अपनी सास को देकर उनका आशीर्वाद लें.

वट सावित्री व्रत वाले दिन कुछ विशेष प्रयोग

(1) वट सावित्री व्रत वाले दिन किसी भी पार्क में या सार्वजनिक स्थान पर एक बरगद का पौधा लगाना बहुत अच्छा माना जाता है. इससे पारिवारिक और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है.

(2) इस दिन किसी निर्धन सौभाग्यवती महिला को सुहाग की सामग्री दान करना बहुत अच्छा माना जाता है. (कहा जाता है कि लाल सिंदूर उसी सौभाग्यवती स्त्री को दान करना चाहिए, जिसके साथ अच्छे संबंध हों).

(3) बरगद की छोटी सी जड़ को पीले कपड़े में लपेटकर अपने पास रखें.

सावित्री और सत्यवान की कथा


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