Rudraksha : भगवान शिव की सबसे प्रिय चीजों में से एक रुद्राक्ष के बारे में जानिए ये महत्वपूर्ण बातें

rudraksha mala
Rudraksha Mala

रुद्राक्ष (Rudraksha) एक बहुत ही पवित्र फल या बीज है, जिसके जन्मदाता भगवान शिव (Bhagwan Shiv) को माना जाता है. मान्यता के अनुसार, रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के जलबिंदुओं या आंसुओं से मानी जाती है. रुद्राक्ष का मतलब ही है- रुद्र (शिव)+अक्ष (रक्त या आंसू). रुद्राक्ष का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है. इसे भगवान शिव का वरदान माना जाता है, जिसे उन्होंने भौतिक दुखों को दूर करने के लिए प्रकट किया है. रुद्राक्ष की माला को सभी मालाओं में श्रेष्ठ माना गया है. पूजा, ध्यान, जप, मंत्र आदि में इस माला का बहुत महत्व है.

कहते हैं कि रुद्राक्ष को विधि-विधान से पहनने या इसकी रोज पूजा करने धन-संपत्ति, मान-सम्मान और आरोग्य की प्राप्ति होती है. धार्मिक ही नहीं, इसका वैज्ञानिक महत्व भी कम नहीं है. कहते हैं कि इसे सही तरीके से पहनने से शरीर और मन को पॉजिटिव एनर्जी मिलती है. प्राचीनकाल से ही सभी ऋषि-मुनि, तपस्वी और देवी-देवता इसे धारण करते हुए आए हैं. भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण आदि भी रुद्राक्ष धारण करते थे… और भगवान शिव तो इसे पहनते ही हैं.

Shiv rudraksha

कैसे हुआ रुद्राक्ष का जन्म?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीनकाल में त्रिपुर नाम का एक भयानक राक्षस हुआ था, जिससे कोई भी देवता नहीं जीत पा रहे थे. तब सभी देवता भगवान शिव की शरण में गए और उनसे मदद मांगी. तब भगवान शिव ने उस राक्षस का वध करने के लिए एक महा अस्त्र की कल्पना की, जिसे प्रकट करने के लिए उन्होंने ध्यान लगाया. वे हजारों सालों तक ध्यान में लीन रहे. ऐसा करके जब भगवान शिवजी बहुत थक गए, तब उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें गिरीं. ये जल की बूंदें जहां-जहां गिरीं, वहीं रुद्राक्ष के पेड़ उत्पन्न हो गए.

रुद्राक्ष का पेड़ और रुद्राक्ष के फल (Rudraksha tree and fruits)

रुद्राक्ष का पेड़- रुद्राक्ष इलियोकार्पस कुल (फैमिली) का पेड़ है, जिसकी अब तक लगभग 300 प्रजातियों का पता चला है, जिनमें से करीब 35 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं. भारत में पाए जाने वाले रुद्राक्ष के पेड़ को ‘इलियोकार्पस गेनिट्रस’ (Elaeocarpus ganitrus), बीड ट्री ऑफ इंडिया (Bead tree of India) या इंडिया ऑयल फ्रूट (India oil fruit) भी कहा जाता है. यही प्रजाति सबसे प्रमुख है. यह हिमालय की तलहटी में गंगा के मैदान से नेपाल, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों, गुआम और हवाई द्वीप में पाया जाता है.

rudraksha tree

रुद्राक्ष के फल- रुद्राक्ष का पेड़ लगभग 18-24 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ते हैं. ये सदाबहार पेड़ हैं जो तेजी से बढ़ते हैं. अंकुरण से तीन से चार साल में रुद्राक्ष के पेड़ों पर फल लगने लगते हैं. ये फल पकने पर नीले या बैंगनी रंग के बेर जैसे दिखाई देते हैं, इसीलिए इन्हें ब्लूबेरी बीड्स (Blueberry Beads) भी कहा जाता है. सूखने पर जब इन फलों का ऊपर का छिलका उतार लिया जाता है, तो इनमें से जो बीज या गुठली निकलती हैं, उन्हें ही रुद्राक्ष कहा जाता है. इन्हें ‘अमृतफल’ के रूप में भी जाना जाता है. हर साल पेड़ों पर लगभग 1,000 से 2,000 फल लगते हैं.

रुद्राक्ष के बीज या रुद्राक्ष- ज्यादातर रुद्राक्ष तीन आकार में मिलते हैं- चने के बराबर, बेर के बराबर और आंवले के बराबर. रुद्राक्ष के बीज अक्सर भूरे रंग के होते हैं, हालांकि ये सफेद, लाल, पीले या काले रंग में भी पाए जा सकते हैं. रुद्राक्ष के बीजों के ऊपर पतली-पतली लंबी धारियां होती हैं. ये धारियां एक से लेकर 14 तक शुभ मानी जाती हैं. इन धारियों से ही पता चलता है कि रुद्राक्ष कितना मुखी है. जैसे- एक मुखी रुद्राक्ष, दो मुखी रुद्राक्ष आदि. रुद्राक्ष 1 से 21 मुख के साथ आता है. एक मुखी रुद्राक्ष सबसे अच्छा माना जाता है और यही सबसे कम मिलता है.

रुद्राक्ष का इस्तेमाल- रुद्राक्ष का ज्यादातर इस्तेमाल भारत और नेपाल में किया जाता है. नेपाल के लोग भी इसे आस्था का प्रतीक मानते हैं. ज्यादातर लोग रुद्राक्ष का इस्तेमाल माला के रूप में ही करते हैं. 108 रुद्राक्ष की माला को सबसे पवित्र माना जाता है. रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल पहनने में और मंत्र-जाप करने में किया जाता है. इसी के साथ, रुद्राक्ष का उपयोग अलग-अलग शारीरिक और मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए भी किया जाता है. आयुर्वेद में रुद्राक्ष को ‘महान औषधि’ कहा गया है.

रुद्राक्ष के लाभ- रुद्राक्ष के फलों में एल्कलॉइड, फ्लेवोनोइड्स, टैनिन, स्टेरॉयड, ट्राइटरपेन, कार्बोहाइड्रेट और कार्डियक ग्लाइकोसाइड जैसे तत्व होते हैं. इसका इस्तेमाल त्वचा रोग, फेफड़ों और हृदय के रोग, किडनी के रोग, अस्थमा, पेट की समस्याएं, दिमाग के रोग, मानसिक रोग, दौरे, मिरगी आदि के इलाज में किया जाता है. इसके अनगिनत फायदों के कारण ही यह कीमती पत्थरों में से एक है.

रुद्राक्ष को पहनने से ही शरीर और मन को कई तरह के फायदे मिलते हैं, जैसे- रुद्राक्ष पहनने से उत्तेजना, हृदय रोग, रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) आदि कंट्रोल में रहते हैं. इसे पहनने से बढ़ती उम्र का प्रभाव कम होता है और दिल की बीमारी और घबराहट, तनाव आदि से राहत मिलती है. शरीर और मन में पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है.

वैज्ञानिकों के अनुसार, रुद्राक्ष में विद्युत चुंबकीय प्रभाव (Electromagnetic Effect) होता है, जिससे इसे पहनने वाले को अलग-अलग फायदे मिलते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रुद्राक्ष धारण करने से बुद्धि, एकाग्रता, आत्मविश्वास और मन की शांति बढ़ती है. लेकिन रुद्राक्ष के फायदे तभी मिलते हैं, जब यह असली हो. असली रुद्राक्ष की कई पहचान होती हैं, जैसे- ये पानी में डूब जाते हैं, इनमें प्राकृतिक रूप से छेद होते हैं और ये रंग नहीं छोड़ते आदि.

रुद्राक्ष को पहनना या धारण करना (Wearing Rudraksha)-

रुद्राक्ष पहनने के फायदे- रुद्राक्ष को सही तरीके से पहनने का बहुत महत्व बताया गया है. यह भगवान शंकर (Bhagwan Shankar) की सबसे प्रिय चीजों में से एक है. इसे धारण करने से सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है. कहते हैं कि जो व्यक्ति पूरे नियमों का ध्यान रखकर पूरी श्रद्धा से रुद्राक्ष को धारण करता है, वह भाग्यशाली बन सकता है, उसके सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यह परेशानियों को दूर करके सफलता, धन-संपत्ति, मान-सम्मान दिलाने में सहायक होता है.

जिन घरों में रोज रुद्राक्ष की पूजा होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है. रुद्राक्ष व्यक्ति के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करता है. यह कठिन बीमारियों से तो रक्षा करता ही है, साथ ही भूत-प्रेत, बुरी शक्तियों या नेगेटिव एनर्जी, जादू-टोना, तंत्र क्रियाओं से बचाने में भी सहायक है.

rudraksha

रुद्राक्ष पहनने के नियम- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रुद्राक्ष (Rudraksha Mala) को धारण करने के नियम होते हैं, जिनका पालन करना बहुत जरूरी माना जाता है, क्योंकि अगर रुद्राक्ष पहनने के साथ नियमों का पालन नहीं किया जाता है, तो रुद्राक्ष गलत असर भी डाल सकते हैं. रुद्राक्ष को शिवलिंग या शिवजी की प्रतिमा से स्पर्श कराके ही धारण करना चाहिए. घुन लगे, या टूटे-फूटे या छीलकर बनाए गए रुद्राक्ष धारण नहीं करने चाहिए. जिस रुद्राक्ष की माला से जप आदि किया जाता है, उसे नहीं पहना जाता है. इसी तरह, इसे अंगूठी में जड़कर नहीं पहना जाता है.

रुद्राक्ष धारण करने के बाद मांस-मदिरा या नशीली चीजों का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए. रुद्राक्ष पहनने वाले व्यक्ति को झूठ बोलने की आदत को छोड़ देना चाहिए. स्नान करते समय और सोते समय रुद्राक्ष की माला को उतार देना चाहिए. रुद्राक्ष बहुत पवित्र होता है, इसलिए इसे कभी अशुद्ध हाथों से नहीं छुआ जाता. हमेशा स्नान करने के बाद ही इसे धारण किया जाता है. लड़कियों के रुद्राक्ष पहनने पर कोई प्रतिबंध नहीं है. बस इसे पहनकर नियमों का पालन जरूर किया जाता है.

रुद्राक्ष धारण करने के बाद सुबह-शाम भगवान शिव का ध्यान और ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए. रुद्राक्ष की माला हमेशा विषम संख्या में ही बनवाई जाती है, जैसे- 108+1… और कभी भी 27 मनकों से कम की रुद्राक्ष माला नहीं बनवाई जाती. इसी के साथ, रुद्राक्ष की माला कभी काले धागे से नहीं बनवाई जाती है.

जिस तरह अलग-अलग उद्देश्यों के लिए अलग-अलग रत्न धारण करते हैं, उसी तरह अपनी-अपनी समस्या, या अपने-अपने स्वभाव या राशि आदि के अनुसार अलग-अलग रुद्राक्ष धारण किया जाता है. पुराणों और धर्मग्रंथों में अलग-अलग मुखी रुद्राक्ष के अलग-अलग रूप बताए गए हैं और उसी के अनुसार उनका महत्व भी अलग-अलग होता है-

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एकमुखी रुद्राक्ष- जिसमें एक आंख या बिंदी हो, उसे एकमुखी रुद्राक्ष कहते हैं. इसे शिवजी का ही रूप माना जाता है.
द्विमुखी या दोमुखी रुद्राक्ष- इसे शिव-शक्ति यानी गौरी-शंकर का रूप माना जाता है.
त्रिमुखी या तीनमुखी रुद्राक्ष- इसे तेजोमय अग्नि का रूप माना गया है. इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप भी बताया गया है.
चतुर्मुखी या चारमुखी रुद्राक्ष- इसे ब्रह्मा का रूप माना गया है.
पंचमुखी रुद्राक्ष- इसे कालाग्नि रुद्र का स्वरूप माना गया है.
षष्टमुखी या छहमुखी रुद्राक्ष- भगवान कार्तिकेय (भगवान शिव के पुत्र) का रूप माना जाता है.
सप्तमुखी या सातमुखी रुद्राक्ष- इसे सप्तऋषियों का स्वरूप माना जाता है. इसे कामदव का रूप भी बताया जाता है.
अष्टमुखी या आठमुखी रुद्राक्ष- यह भगवान गणेश का रूप बताया गया है.
नवमुखी या नौमुखी रुद्राक्ष- यह महाशक्ति या दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना गया है.
दसमुखी रुद्राक्ष- यह भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है.
ग्यारहमुखी रुद्राक्ष- यह भगवान शिव के अवतार रुद्रदेव का प्रतीक माना जाता है.
बारहमुखी रुद्राक्ष- या बारह आदित्यों का प्रतीक माना जाता है.
तेरहमुखी रुद्राक्ष- इसे देवराज इंद्र का प्रतीक माना जाता है.
चौदहमुखी रुद्राक्ष- इसे स्वयं भगवान शिवजी धारण करते हैं, इसलिए इसे शिवजी का प्रतीक माना जाता है.

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