अगर गर्भावस्था के दौरान माताएं करें ये काम, तो संतान बन सकती है वीर, यशस्वी और महान

baby in womb- parent and child

गर्भ में पल रहा बच्चा (Child in womb) अपने पोषण या खाने-पीने आदि के लिए अपनी मां पर ही निर्भर होता है. ऐसे में मां की आदतों या विचारों का असर बच्चे पर पड़ने की काफी संभावना होती है. हालांकि ये बात सच ही है, ऐसा नहीं है, क्योंकि अपवाद हर जगह होते हैं, लेकिन फिर भी इतिहास में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिलते हैं, जहां संतान पर अपने माता-पिता के आचरण या कार्यों या विचारों का असर साफ तौर पर देखा गया है.

महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की मां का नाम जयवंता बाई (Jaiwanta Bai) था, जो राणा उदय सिंह (Rana Udai Singh) की सबसे बड़ी रानी थीं. जयवंता बाई भगवान की बहुत बड़ी भक्त थीं. वे अपना ज्यादातर समय भगवान की भक्ति में ही बिताया करती थीं. इसी के साथ, वे एक आदर्श रानी, आदर्श पत्नी और आदर्श मां भी साबित हुईं. कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप जयवंताबाई के गर्भ में थे, तब जयवंताबाई लगातार अच्छे और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करती रहती थीं.

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उस दौरान वे अक्सर रामायण, गीता, वेद आदि का बहुत पाठ किया करती थीं. अच्छे-अच्छे वीर और आदर्श लोगों जैसे- राजा हरिश्चंद्र, भागीरथ, श्रवण कुमार आदि की कहानियां सुना और पढ़ा करती थीं. जयवंता बाई की भक्ति, गुणों और इन सभी कार्यों का असर उनके पुत्र पर साफ तौर पर देखा गया. उनके पुत्र प्रताप बचपन से ही बहुत वीर, साहसी और निडर थे. अपनी वीरता दिखाकर लोगों को आश्चर्यचकित कर देते थे.

प्रताप के जन्म के बाद जयवंता बाई उन्हें एक अच्छा और वीर इंसान बनने की ही शिक्षा देती थीं. प्रताप वीर तो थे ही, साथ ही स्वभाव से भी उतने ही सरल और सहज थे. वे जहां भी जाते थे, सबको अपना बना लेते थे. वे लोगों के दिलों में राज करते थे. देशभक्ति तो उनमें कूट-कूटकर भरी थी. प्रताप के दुश्मन भी उनके पीठ पीछे उनकी तारीफ करते नहीं थकते थे. वे एक आदर्श पुत्र, आदर्श राजा, आदर्श भाई और आदर्श पति भी साबित हुए.

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धीरबाई और उनके पुत्र जगमाल

इसके विपरीत राणा उदय सिंह की छोटी रानी धीरबाई (Dhirbai), जो जगमाल (Jagmal) की मां थीं, अपनी गर्भावस्था के दौरान सारा समय यही सोचती रहती थीं कि, “एक दिन मेरा ही पुत्र राजा बनेगा, चितौड़ पर राज करेगा…” उस दौरान धीरबाई को कई डर सताते रहते थे कि, “कहीं मेरी पुत्री न हो जाए, नहीं तो चितौड़ का राज प्रताप को ही मिल जाएगा… वीर और बड़े पुत्र होने की वजह से कहीं प्रताप को ही राजगद्दी न मिल जाए, पता नहीं राणा जी मेरे पुत्र को राणा बनाएंगे या नहीं…”

धीरबाई के ये डर जयवंताबाई समझ रही थीं, इसलिए वे उन्हें लगातार सलाह देती रहती थीं कि इस समय आपको बजाय ऐसी चिंताएं करने के अच्छी-अच्छी कहानियां पढ़नी चाहिए, क्योंकि इन सब बातों का असर गर्भ में पल रही संतान पर भी पड़ता है. लेकिन धीरबाई को अपनी उन्हीं चिंताओं की वजह से किसी भी अच्छे ग्रंथ या कहानियों में कोई दिलचस्पी नहीं आई. इसका असर उनके पुत्र पर देखने को भी मिला.

जब उनके पुत्र जगमाल का जन्म हुआ, तो धीरबाई ने उन्हें रिश्तों से प्रेम करना नहीं सिखाया, बल्कि यही सिखाने की कोशिश करती रहीं कि ‘तुम्हें कैसे भी चितौड़ का राणा बनकर अपनी मां का सपना पूरा करना है, अपने भाइयों को अपने रास्ते से हटाना है…’ लेकिन फिर इन सबका क्या असर हुआ??

धीरबाई का पुत्र जगमाल न तो राजा के योग्य बन पाया और न ही किसी के दिल में अपनी जगह बना पाया. वह इतना कमजोर साबित हुआ कि खुद अपनी ही रक्षा नहीं कर सकता था. उसे राज सिंहासन मिला, लेकिन वह अपनी योग्यता साबित ही न कर सका. वह भोग विलास में ही डूबा रहता था. अपने बड़े भाई प्रताप को शक की नजरों से देखता रहता था. हर बात में प्रताप को नीचा दिखाना जगमाल के लिए आम बात थी. वह केवल अपने आप को महत्व देता था. आखिरकार लोगों की नजरों से वह पूरी तरह गिर चुका था.

प्रह्लाद की माता कयाधु, अभिमन्यु और उनकी माता सुभद्रा

इस मामले में एक और उदाहरण देखा जा सकता है- प्रह्लाद (Prahlad) की माता कयाधु का, जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं. वे भगवान की ही भक्ति में लीन रहती थीं, जबकि उनके पति हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु समझता था. इसीलिए कयाधु हिरण्यकश्यप से छिपकर भगवान की भक्ति और पूजा आदि किया करती थीं, क्योंकि वे अपने पति के खिलाफ नहीं जा सकती थीं. लेकिन कयाधु की भक्ति का असर उनके पुत्र प्रह्लाद पर किस तरह पड़ा, ये सभी जानते हैं.

गर्भ में पल रही संतान पर अपने माता-पिता की बातों का असर किस तरह आता है, ये उदाहरण महाभारत में भी एक जगह देखने को मिलता है- अभिमन्यु और उनकी माता सुभद्रा का. कहते हैं कि अभिमन्यु ने युद्ध में इस्तेमाल होने वाले चक्रव्यूह रचनाओं की शिक्षा अपनी माता के गर्भ में रहते हुए ही ले ली थी.

इन कुछ उदाहरणों से ये कहा जा सकता है कि कोई भी संतान अपनी मां के गर्भ में रहते हुए ही अपने माता-पिता के विचारों को ग्रहण करना शुरू कर देती है. इसीलिए तो गर्भवती महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा अच्छे ग्रंथ, कहानियां आदि सुनने और पढ़ने की सलाह दी जाती है. अच्छे और सात्विक भोजन ही करने और नशे से बिल्कुल दूर रहने के लिए कहा जाता है, क्योंकि इन सबका असर आने वाली संतान पर देखा जा सकता है.

mother and child

कई बच्चों (Children) के चेहरे उनके माता-पिता से बिल्कुल ऐसे मिलते हैं कि देखते ही कोई भी पहचान सकता है कि यह किसका बेटा या बेटी है. सिर्फ चेहरा ही नहीं, बल्कि बच्चों की कई आदतें, आवाज भी कभी-कभी अपने माता-पिता से ही मिलती है. यह केवल एक संयोग की बात नहीं होती, बल्कि बच्चे को मिली एक विरासत होती है. कई बच्चे अपनी मां पर जाते हैं और कुछ अपने पिता पर. जैसे रावण का पुत्र मेघनाद (Meghnad son of Ravana), जिस पर उसकी माता मंदोदरी से ज्यादा उसके पिता रावण का असर था.

वहीं, कुछ बच्चे न मां पर जाते हैं और न पिता पर, बल्कि परिवार के किसी और ही सदस्य के ऊपर चले जाते हैं. किसी और सदस्य की तरह ही उनकी आदतें होती हैं, हालांकि यह काफी कम ही देखने को मिलता है. ज्यादातर बच्चे अपने माता-पिता के ऊपर ही जाते हैं, या बच्चों में अपने माता-पिता के लक्षण ज्यादा देखने को मिलते हैं. संतान कैसी निकलेगी, इस पर माता-पिता दोनों की ही समान भूमिका होती है.

ये भी बहुत देखने को मिलता है कि कुछ माता-पिता तो बहुत अच्छे होते हैं, लेकिन उनकी संतानें बड़ी खराब निकलती हैं. वहीं, कुछ संतानें अपने माता-पिता के विपरीत बहुत अच्छी और समझदार निकलती हैं. यानि प्रकृति में कुछ भी असंभव नहीं.

हालांकि, ये सब इसलिए होता है क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी भी है. किसी भी व्यक्ति पर उसकी संगति का बहुत असर पड़ता है. माता-पिता को इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि उनकी संतान की संगति किस तरह की है. स्मार्टनेस के नाम पर अपने बच्चों को बचपन से ही फिल्मी हीरो या हीरोइन बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.

बच्चों में शुरू से डालें ये आदतें

छोटे बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं, जिन्हें किसी भी रूप में ढाला जा सकता है. बच्चों को शुरू से ही मोबाइल, फिल्मों आदि की लत लगाने की बजाय उन्हें श्रीराम, श्रीकृष्ण, वीर हनुमान आदि की कहानियां या भारत की महान विभूतियों की अच्छी कहानियां सुनानी चाहिए. ऐसी कहानियों से बच्चों के संस्कार तो अच्छे होते ही हैं, साथ ही उनका बौद्धिक विकास भी होता है. उनके सोचने-समझने और तर्क-वितर्क करने की क्षमता बढ़ती है.

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फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया

बच्चों की जिज्ञासाओं और सवालों पर गौर करना चाहिए, क्योंकि इससे ये जानने में मदद मिलती है कि बच्चे का झुकाव किस ओर बढ़ रहा है. उन्हें रिश्तों की कद्र करना सिखाएं, बड़ों का आदर और छोटों को प्यार करना सिखाएं, इससे बच्चा माता-पिता की भी हमेशा इज्जत करेगा. कहते हैं कि इंसान के खानपान का भी उसके आचरण पर गहरा असर पड़ता है, इसलिए शुरू से ही उन्हें मैगी, पिज्जा आदि के बजाय सात्विक या शाकाहारी खाना खाने की आदत लगानी चाहिए. आप चाहे जितने अमीर हों, लेकिन बच्चों को बचत की सीख जरूर देनी चाहिए.

जो माता-पिता चाहते हैं कि उनका बेटा उनके लिए श्रीराम, श्रवण कुमार बने, या छत्रपति शिवाजी या महाराणा प्रताप जैसा वीर बने, तो उन्हें भी इन सब महान विभूतियों के माता-पिता से ही सीख लेनी पड़ेगी कि ये किस तरह अपनी संतानों को सबके लिए एक अच्छा और वीर इंसान बनने की शिक्षा देते थे. जो माता-पिता अपने बच्चों को दूसरों के लिए धोखेबाज या बेईमान बनाते हैं, एक दिन वे बच्चे अपने माता-पिता के लिए ही बेईमान और धोखेबाज बन जाते हैं.


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