बसंत (Basant Ritu) यानी जब प्रकृति में परिवर्तन की धाराएं बहने लगती हैं और जब परिवर्तन का महत्व साफ दिखाई देने लगता है, जब सालभर हरियाली की प्रतिमूर्ति बने यूं ही खड़े पेड़ जब अपनी भीनी-भीनी सुगंध के साथ प्रकृति के सभी घटकों को अपनी तरफ आकर्षित करने लगते हैं, केवल पत्तियों से भरी लताएं जब रंग-बिरंगे फूलों के गुच्छों से लद जाती हैं और धरती दुल्हन की तरह सज जाती है, जब चारों तरफ प्रकृति का एक मोहक नजारा अनुभव होने लगता है…
बसंत यानी जब कहीं पर प्रकृति के मुस्कुराने का अनुभव होने लगता है, क्योंकि यही वह समय होता है जब किसी भी मौसम का प्रकोप नहीं होता, जब हर किसी के मन में कुछ नया करने का उत्साह भरने लगता है, मन अचानक ही प्रसन्न और प्रफुल्लित होने लगता है, तन-मन में एक नई आशा या उमंगे हिलोरें लेने लगती हैं, जीवन में कुछ नया करने के संकल्प का भाव उत्पन्न होने लगता है…. और चारों तरफ मुस्कुराते हुए फूलों के रूप में नवजीवन का संदेश मिलने का एहसास होने लगता है.
बसंत पंचमी का त्योहार- बसंत पंचमी (Basant Panchami) भारतीय संस्कृति में बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्योहार है. इसमें हमारी परंपरा ही नहीं, बल्कि भौगौलिक परिवर्तन, सामाजिक कार्य और आध्यात्मिक पक्ष सभी शामिल हैं. भारतीय पंचांग के अनुसार, बसंत पंचमी का पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. यह दिन विद्या और ज्ञान की देवी मां सरस्वती (Maa Saraswati) के जन्म दिवस के रूप में आता है.
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सालभर में पड़ने वाले मौसम या ऋतुओं- बसंत, गर्मी, वर्षा, सर्दी, हेमंत, शिशिर में बसंत को ही ऋतुराज यानी ऋतुओं का राजा कहा गया है. बसंत पंचमी ऋतु परिवर्तन या मौसम में बदलाव का भी दिन है, क्योंकि बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु का आगमन माना गया है. इसी दिन से प्राकृतिक सौंदर्य में निखार आना शुरू हो जाता है, पेड़ों पर नई कोपलें या पत्तियां और कलियां खिलना शुरू हो जाती हैं और पूरी प्रकृति एक नई ऊर्जा से भर उठती है.
माता सरस्वती का जन्म
माता सरस्वती (Mata Saraswati) आदि शक्ति यानी अजन्मा हैं, जिनका न आदि है और न अंत. ऐसी शक्तियां केवल किसी महान शक्ति के आवाहन पर प्रकट होती हैं, जिसे सरल भाषा में ‘जन्म’ कह दिया जाता है. माता सरस्वती जी के जन्म या उनके प्रकट होने को लेकर जिस कथा की चर्चा सबसे ज्यादा की जाती है, वह इस प्रकार है-
कहते हैं कि जब परमपिता ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद मनुष्य की रचना की, तब उन्होंने यह अनुभव किया कि केवल मनुष्य की रचना मात्र से ही सृष्टि को गति नहीं दी जा सकती. ब्रह्मा जी को लगा कि कुछ ऐसी कमी है, जिसके कारण चारों ओर मौन ही मौन छाया हुआ है, इसलिए वे केवल सृष्टि की रचना कर संतुष्ट नहीं थे.
तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की अनुमति लेकर अपने कमंडल से पूरी सृष्टि पर जल का छिड़काव किया. ब्रह्मा जी के कमंडल से निकले जल से सब जगह कंपन होने लगा. तब वृक्षों के बीच से एक अद्भुत और दैवीय शक्ति प्रकट हुई. यह शक्ति मां सरस्वती ही थीं, जिनके दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी और दो हाथों में वीणा. वह श्वेत कमल पर विराजमान थीं और हंस उनका वाहन था. उनकी मुस्कुराहट से चारों तरफ रंग-बिरंगे सुगंधित फूल खिल उठे और एक दिव्य नजारा प्रकट होने लगा.
तब ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया. देवी ने जैसे ही वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई, जलधारा में कोलाहल और पवन में सरसराहट होने लगी. प्रकृति के चेहरे पर मुस्कराहट छाने लगी… तब ब्रह्मा जी ने उन्हें वाणी की देवी सरस्वती कहा. संगीत की उत्पत्ति के कारण ये संगीत की देवी भी हैं. उस दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी, इसलिए बसंत पंचमी का दिन माता सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
मां सरस्वती की महिमा
भगवती सरस्वती विद्या, शिक्षा और संगीत की अधिष्ठात्री देवी हैं और विद्या को ही सभी धनों में श्रेष्ठ माना गया है. इस धरती पर उपस्थित सभी वाणी और संगीत देवी सरस्वती की ही कृपा से हैं. भगवान ने भी जब-जब धरती पर जन्म लिया, उन्होंने माता सरस्वती की ही उपासना करके विद्या ग्रहण करने का कार्य शुरू किया. आज भी जिन विद्यालयों में छात्र-छात्राओं की शिक्षा पर पूरा ध्यान दिया जाता है, वहां सुबह-सुबह सबसे पहले माता सरस्वती-वंदना या उन्हीं की आराधना करवाई जाती है और उसके बाद ही शिक्षा का कार्य शुरू होता है.
मां सरस्वती केवल ज्ञान ही नहीं देतीं, बल्कि अच्छी वाणी, कला में निपुणता, तेज बुद्धि और शांति भी देती हैं. बुद्धि और ज्ञान के बिना धन-संपत्ति और शारीरिक शक्ति या बल भी व्यर्थ है. बुद्धि और विवेक के बिना कोई भी दूसरी ताकत ज्यादा देर तक पास में नहीं टिक सकती. बुद्धिबल से कितनी ही बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है, इसीलिए दीपावली पर माता लक्ष्मी जी के साथ मां सरस्वती जी की भी आराधना की जाती है.
माता सरस्वती जिस पर प्रसन्न हो जाती हैं, उसे कभी कोई पराजित नहीं कर सकता. मां सरस्वती की शरण में जाने वाला व्यक्ति हर जगह अपनी ओजपूर्ण वाणी से हर किसी को अपने वश में कर सकता है. हर एक व्यक्ति के लिए माता सरस्वती की नियमित रूप से उपासना करना अत्यंत आवश्यक है. मां सरस्वती की उपासना से व्यक्ति विद्यासंपन्न, धनवान और मधुरभाषी हो जाता है. माता सरस्वती की कृपा से सभी कार्य आसान हो जाते हैं और कुछ भी पाना कठिन या दुर्लभ नहीं रह जाता.
बसंत पंचमी और मां सरस्वती की पूजा (Basant Panchami Puja)
माता सरस्वती विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं, इसलिए कला, शिक्षा और संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोग मां सरस्वती की उपासना और उनके पूजन के बाद ही किसी नए काम की शुरुवात करते हैं. विद्यार्थियों के लिए तो बसंत पंचमी का त्यौहार बहुत महत्वपूर्ण होता है. लोग सुस्ती, आलस्य और अज्ञानता से छुटकारा पाने और ज्ञान प्राप्ति की कामना से मां सरस्वती की उपासना करते हैं. इस दिन मां सरस्वती से ज्ञान, बुद्धि, विद्या और कला का वरदान मांगा जाता है. आज के दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं. कई स्कूलों में इस दिन सुबह के समय मां सरस्वती की पूजा की जाती है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, बसंत पंचमी का दिन शुभ या अच्छे कार्यों के लिए उपयुक्त समय माना जाता है. यह एक सिद्ध और श्रेष्ठ मुहूर्त होता है. कुछ राज्यों में इसी दिन छोटे-छोटे बच्चों को पहला अक्षर लिखना सिखाया जाता है, क्योंकि यह दिन विद्या आरंभ करने के लिए बहुत शुभ माना जाता है, इसीलिए कई माता-पिता इसी दिन अपने बच्चों को मां सरस्वती के आशीर्वाद के साथ विद्यारम्भ कराते हैं. जो नन्हें बच्चे केवल अपनी मां का दूध पीते हैं, लेकिन अब आप उन्हें अन्न खिलाना शुरू करना चाहते हैं, तो इसके लिए यानी बच्चों के अन्नाप्राशन संस्कार के लिए बसंत पंचमी का दिन बहुत अच्छा माना जाता है.
बसंत पंचमी की पूजा विधि (Maa Saraswati Puja Vidhi)
सबसे पहले सुबह जल्दी सोकर उठें और सूर्यदेव को प्रणाम करें. स्नान आदि करके पीले वस्त्र पहनें. मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र के सामने कलश स्थापित करें. प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी की पूजा करके मां सरस्वती का पूजन शुरू करें. इसके लिए मां को आचमन और स्नान कराएं. फिर माता का श्रृंगार करें और उन्हें श्वेत वस्त्र पहनाएं, पीले या सफेद फूल और माला अर्पित करें. माता को खीर, या दूध से बनी मिठाईयों या पीले मीठे चावल का प्रसाद लगाएं और आरती करें. नवग्रह की विधिवत पूजा करें.
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा के साथ-साथ उनके मंत्रों का जाप और सरस्वती चालीसा पढ़ना बहुत अच्छा होता है. अपनी सुविधानुसार इन मंत्रों का जाप 11, 21 या 108 बार किया जा सकता है. कुछ क्षेत्रों में माता की पूजा कर उनकी प्रतिमा को विसर्जित भी किया जाता है. घर में रखे वाद्य यंत्रों, किताबों और कलम की भी पूजा करें और इन सबके लिए माता का हृदय से धन्यवाद दें.
प्रकृति से जोड़ें अपना नाता- बसंत प्रकृति और मानव के बीच एक नए संबंध की रचना करता है, जिसमें मानव जीवन विकास की नई कहानी जन्म लेने लगती है. वैज्ञानिक तथ्यों से भी यह साबित होता है कि बसंत में पादप और प्राणियों का विकास अपने चरम पर होता है. बसंत में नई भावनाएं और संवेदनशीलता अपने आप बनने लगती हैं.
आत्मीयता के विकास के साथ-साथ कल्पनात्मकता की रचना भी होने लगती है. भावों में नए स्वर उभरने लगते हैं और जीवन में एक दिव्य संगीत का अनुभव होने लगता है. इस सुंदर समय का अनुभव उन्हें और भी ज्यादा होता है जो प्रकृति के समीप रहते हैं जिनका प्रकृति से गहरा नाता यह जुड़ा होता है भी प्रकृति में होने वाले परिवर्तन को करीब से महसूस करते हैं.
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