Maa Saraswati : वेदों में भगवती सरस्वती की स्तुति, ब्रह्मा जी और माँ सरस्वती की कहानी

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Brahma Saraswati Mantra (Ved)

‘सरस्वती’ का उल्लेख वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, पुराण सभी में है. शास्त्रों में ‘सरस्वती’ का वर्णन कई प्रकार से आता है. लेकिन हम ज्ञान, बुद्धि, वाणी और विवेक इत्यादि की प्राप्ति के लिए जिन भगवती सरस्वती का ध्यान और उपासना करते हैं, उनके बारे में जानकारी मुख्य रूप से वेदों और उपनिषदों में ही है.

सरस्वती रहस्योपनिषद् के अनुसार, ‘ये परम चेतना हैं. सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की रक्षा करती हैं. हम सब प्राणियों या जीवात्माओं में जो आचार और मेधा है, उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं. ये सभी प्रकार के ब्रह्म विद्या-बुद्धि तथा वाक् प्रदाता हैं. संगीत की उत्पत्ति करने के कारण यही संगीत की अधिष्ठात्री देवी भी हैं. इनके स्वरूप और समृद्धि का वैभव अद्भुत है.’

ऋग्वेद के सरस्वती रहस्योपनिषद् में मां सरस्वती जी का स्वरूप और उनकी स्तुति-

जो ब्रह्माजी के मुखरूपी कमलों के वन में विचरने वाली राजहंसी हैं, वे सब ओर से श्वेत कान्तिवाली सरस्वती देवी हमारे मन रूपी मानस में नित्य विहार करें. हे काश्मीरपुर में निवास करने वाली शारदादेवी! तुम्हें नमस्कार है. मैं नित्य तुम्हारी प्रार्थना करता/करती हूँ. मुझे विद्या (ज्ञान) प्रदान करो.

अपने हाथों में अक्षसूत्र, अंकुश, पाश और पुस्तक धारण करने वाली तथा मुक्ताहार से सुशोभित सरस्वती देवी मेरी वाणी में सदा निवास करें. शंख के समान सुन्दर कण्ठ एवं सुन्दर लाल होठों वाली, सब प्रकार के भूषणों से विभूषिता महासरस्वती देवी मेरी जिह्वा के अग्रभाग में सुखपूर्वक विराजमान हों.

जो ब्रह्माजी की प्रियतमा सरस्वती देवी श्रद्धा, धारणा और मेधास्वरूपा हैं, वे भक्तों के जिह्वाग्र में निवास कर शम-दमादि (इंद्रियों को वश में करने वाले) गुणों को प्रदान करती हैं. जिनके केश-पाश चंद्रकला से अलंकृत हैं तथा जो भव-संताप को शमन करने वाली सुधा-नदी के समान हैं, उन सरस्वती रूपा भवानी को मैं नमस्कार करता/करती हूँ.

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बीजमंत्र से युक्त दस ऋचाओं सहित सरस्वती-दशश्लोकी महामंत्र द्वारा भगवती देवी सरस्वती की स्तुति इस प्रकार की गई है (सरस्वती रहस्योपनिषद्, ऋग्वेद)-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती धीनामवित्र्यवतु।

वस्तुतः वेदान्त शास्त्र का अर्थभूत ब्रह्मतत्त्व ही एकमात्र जिनका स्वरूप है और जो नाना प्रकार के नाम रूपों में व्यक्त हो रही हैं, वे सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें. अंगों और उपांगों के सहित चारों वेदों में जिन एक ही शक्ति का स्तुतिगान होता है, जो ब्रह्म की अद्वैतशक्ति हैं, वे सरस्वती देवी हमारी रक्षा करें.

जो वस्तुत: वर्ण, पद, वाक्य तथा इनके अर्थों के रूप में सर्वत्र व्याप्त हैं, जिनका न आदि है न अन्त है, जो अनंत स्वरूप वाली हैं, वे सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें. जो अध्यात्म और अधिदैवरूपा हैं तथा जो देवताओं की सम्यक् ईश्वरी अर्थात् प्रेरणात्मिका शक्ति हैं, जो हमारे भीतर मध्यमा वाणी के रूप में विराजमान हैं, वे सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें.

जो अंतर्यामी रूप से समस्त त्रिलोकी का नियंत्रण करती हैं, जो रुद्र-आदित्य आदि देवताओं के रूप में स्थित हैं, वे सरस्वती देवी हमारी रक्षा करें, जो अन्तर्दृष्टि वाले प्राणियों के लिये नाना प्रकार के रूपों में व्यक्त होकर अनुभूत हो रही हैं, जो सर्वत्र एक मात्र ज्ञप्तिबोध रूप से व्याप्त हैं, वे सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें.

जो नाम-जाति आदि भेदों से अष्टधा विकल्पित हो रही हैं, साथ ही निर्विकल्प स्वरूप में भी व्यक्त हो रही हैं, वे सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें. व्यक्त और अव्यक्त वाणी वाले देव आदि समस्त प्राणी जिनका उच्चारण करते हैं, जो सब अभीष्ट वस्तुओं को दुग्ध के रूप में प्रदान करने वाली कामधेनु हैं, वे सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें.

जिन्हें ब्रह्मविद्या रूप से जानकर योगी सभी बंधनों को नष्ट कर पूर्ण मार्ग के द्वारा परम पद को प्राप्त होते हैं, वे सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें. ब्रह्मज्ञानी लोग इस नाम-रूपात्मक अखिल प्रपंच को जिनमें आविष्टकर पुन: उनका ध्यान करते हैं, वे एकमात्र ब्रह्मस्वरूपा भगवती देवी सरस्वती मेरी रक्षा करें. माताओं में सर्वश्रेष्ठ, नदियों में सर्वश्रेष्ठ तथा देवियों में सर्वश्रेष्ठ हे सरस्वती देवी! धनाभाव के कारण हम अप्रशस्त से हो रहे हैं, माता! हमें प्रशस्ति (धन-समृद्धि) प्रदान करो.

माता सरस्वती के स्वरूप और आसन आदि का संक्षिप्त तात्त्विक विवेचन इस प्रकार है-

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जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोतियों के हार की तरह धवल (श्वेत) वर्ण की हैं, जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जो श्वेत कमल पर विराजमान हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर करने वाली माता सरस्वती हमारी रक्षा करें.

शुक्लवर्ण वाली, संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से अभयदान देने वाली, अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌, ज्ञान-बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती सरस्वती देवी की मैं वंदना करता/करती हूँ.

मां सरस्वती जी के कुछ प्रमुख मंत्र

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥
(रामचरितमानस)

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम्॥

या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

ॐ ह्रीं श्रीं सरस्वत्यै नम:।
(Om Hreem Shreem Saraswatyai Namah)

ॐ ऐं सरस्वत्यै नम:।
(Om Aing Saraswatyai Namah)

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम:।

माता सरस्वती जी की उपासना का महत्व

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मां सरस्वती जी को शारदा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वागेश्वरी, वाणी, भारती, महाश्वेता, ब्राह्मणी, ज्ञानदा, प्रज्ञा, वाग्देवी आदि कई नामों से जाना जाता है. इनकी उपासना-आराधना करने से ज्ञान विद्या कला में चरम उत्कर्ष की प्राप्ति होती है. अध्ययन में शक्ति, स्मृति और एकाग्रता में सुधार होता है. इनकी नित्य उपासना से मस्तिष्क-तंत्र से संबंधित समस्याएं जैसे अनिद्रा, सिरदर्द, तनाव आदि रोगों में भी आराम होता है.

मंदबुद्धि लोगों के लिए भगवती सरस्वती की उपासना हितकर सिद्ध होती है. कल्पना शक्ति की कमी, समय पर उचित निर्णय ले सकने में असमर्थता, विस्मृति, प्रमाद, दीघर्सूत्रता, अरुचि जैसे कारणों से मनुष्य मानसिक दृष्टि से अपंग और असमर्थ बना रहता है. बौद्धिक क्षमता विकसित करने, चित्त की चंचलता और अस्वस्थता दूर करने के लिए गायत्री महाशक्ति के सरस्वती तत्त्व की साधना की विशेष उपयोगिता है.

पुराणों में माता सरस्वती

भगवती सरस्वती देवी का असली स्वरूप वही है, जो वेदों में बताया गया है. वेदों-उपनिषदों के अतिरिक्त सनातन धर्म के अन्य शास्त्रों जैसे पुराणों में ‘सरस्वती’ का उल्लेख कई प्रकार से हुआ है. ऐसा सभी श्लोकों के गड्डबड्ड हो जाने और अर्थ के अनर्थ हो जाने के कारण है, जैसे-

मतान्तर में तीन सरस्वती का वर्णन आता है. एक ब्रह्मा पत्नी सरस्वती (परा विद्या), एक ब्रह्मा पुत्री सरस्वती (अपरा विद्या) और एक विष्णु पत्नी सरस्वती. वहीं, सरस्वती जी के 108 नामों में इन्हें ‘शिवानुजा’ (भगवान शिव की छोटी बहन) कहकर भी संबोधित किया गया है.

(वेदों के अनुसार श्री विष्णु जी की एक ही पत्नी या अर्धांगिनी हैं- महालक्ष्मी जी. नीला, भूदेवी, राधा, रुक्मिणी, सीता, सरस्वती आदि इन्हीं महालक्ष्मी जी के अलग-अलग रूप हैं).

कहीं-कहीं पर ब्रह्मापुत्री सरस्वती को ही विष्णु पत्नी सरस्वती बताया जाता है, तो कहीं-कहीं पर ब्रह्मापुत्री सरस्वती को विष्णु पत्नी सरस्वती से पूरी तरह अलग बताया गया है. हालांकि, तीनों ही देवियां नाम स्वरूप, प्रकृति, शक्ति एवं ब्रह्मज्ञान-विद्या आदि की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं, अतः इन तीनों की आराधना में भी ज्यादा भेद नहीं बताया गया है.

गायत्री माता तीनों शक्तियों- लक्ष्मी, शक्ति और सरस्वती का सम्मिलित रूप हैं. मां दुर्गा या मूलप्रकृति आदिशक्ति देवी हैं. इन्हीं आदिशक्ति देवी से सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी हैं. मां दुर्गा के नौवें स्वरूप सिद्धिदात्री जी की उपासना माता सरस्वती के रूप में भी जाती है.

कहीं-कहीं पर यह भी बताया गया है कि देवी सरस्वती नित्यगोलोक निवासी भगवान श्रीकृष्ण की वंशी के स्वर से प्रकट हुई हैं, तो कहीं पर यह भी बताया गया है कि पृथ्वी पर भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार वंशी बजाने से पहले देवी सरस्वती से ही प्रार्थना की थी.

माता सरस्वती की उत्पत्ति
ब्रह्मा जी और माता सरस्वती

पुराणों में मां सरस्वती जी की उत्पत्ति या प्राकट्य से सम्बंधित भी अनेक कथाएं देखने को मिलती हैं, जिनमें से कुछ कथाएं अधिक प्रचलित हो गई हैं. कुछ कथाओं को खूब तोड़-मरोड़कर प्रचारित कर दिया गया है. हालांकि, वेदों में स्पष्ट बताया गया है कि मां सरस्वती अजन्मा और अनादि हैं. सभी देवियों की उत्पत्ति आदिशक्ति से हुई है. ऐसी शक्तियां किसी महान शक्ति के आवाहन पर प्रकट होती हैं, जिसे सरल शब्दों में ‘उत्पत्ति’ या ‘जन्म’ कह दिया जाता है-

कथा ब्रह्मा जी ने अपने मानसिक संकल्प से सृष्टि की रचना की, पर अपनी रचना या सर्जन से वे संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि कुछ कमी रह गई है जिस वजह से चारों ओर मौन छाया हुआ है.

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तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु जी की स्तुति करके उनसे अपनी इस समस्या का समाधान पूछा. तब श्रीहरि ने उनकी समस्या जानकर मूलप्रकृति आदिशक्ति माता का आवाहन किया, जिससे मूलप्रकृति आदिशक्ति वहां तुरंत ही ज्योति पुंज रूप में प्रकट हो गईं. तब ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने उन आदिशक्ति से इस संकट को दूर करने की प्रार्थना की.

ब्रह्मा जी और विष्णु जी की प्रार्थना पर मूलप्रकृति आदिशक्ति ने उसी क्षण अपने संकल्प से और स्वयं के अंश से श्वेत वर्ण के एक प्रचंड तेज को उत्पन्न किया, जो एक दिव्य नारी स्वरूप में बदल गया. यह देवी श्वेत कमल पर विराजमान थीं और उनके हाथों में वीणा, पुस्तक और माला थी.

मूलप्रकृति आदिशक्ति के अंश से उत्पन्न तेज से प्रकट होने वाली उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हुई. जलधारा में कोलाहल और पवन में सरसराहट व्याप्त हो गई. शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को सभी देवताओं ने ब्रह्म ज्ञान विद्या वाणी संगीत कला की अधिष्ठात्री देवी ‘सरस्वती’ कहा.

तब आदिशक्ति मूलप्रकृति ने ब्रह्मा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुईं ये देवी सरस्वती आपकी अर्धांगिनी शक्ति हैं. जिस प्रकार शिवा शिव की शक्ति हैं, महालक्ष्मी जी विष्णु जी की शक्ति हैं, उसी प्रकार ये सरस्वती देवी आपकी शक्ति हैं. ऐसा कहकर आदिशक्ति अंतर्धान हो गईं. इस प्रकार ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि को आकार दिया तो माता सरस्वती जी ने वाणी, बस यही है ब्रह्मा जी और मां सरस्वती जी का रिश्ता.

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