Sharad Purnima Moon Kheer
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) कहा जाता है, क्योंकि इस दिन से शरद ऋतु (सर्दियों) का आगमन होता है. इसी दिन कौमुदी व्रत भी रखा जाता है. शरद पूर्णिमा को लेकर कई मान्यताएं हैं. पहली- इसी रात भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीराधा जी समेत ब्रज की सभी गोपियों के साथ महारास लीला रचाई थी. दूसरी- इस रात चंद्रमा धरती के सबसे निकट होता है, इसलिए इस रात धरती को चंद्रमा की किरणों का पूरा लाभ मिलता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ उदित होता है. तीसरा- इस रात माता लक्ष्मी जी पृथ्वी के भ्रमण को निकलती हैं, इसलिए इस रात लक्ष्मी जी का ध्यान अपनी तरफ खींचने और उन्हें प्रसन्न करने के उपाय भी किए जाते हैं.
भक्ति की शक्ति का पर्व- महारासलीला
शरद पूर्णिमा को ‘रास पूर्णिमा’ (Raas Purnima) भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) ने गोपियों के रूप में आए अपने सभी भक्तों को अपनत्व का एहसास कराने वाली महारास लीला (Maharas Leela) रचाई थी. इस महारास लीला में अलग-अलग रूपों में प्रकट होकर भगवान ने हर एक गोपी को इस बात का एहसास कराया कि “मैं तुम्हारा ही हूं”.
ये सभी गोपियां अपने पूर्वजन्म में सिद्धि ऋषि-मुनि थीं, जिन्होंने जीवनभर कठोर तपस्या करके भगवान श्रीकृष्ण को पाने का वरदान मांगा था. इसी रासलीला में भगवान श्रीकृष्ण ने राधा जी के चरण दबाकर भगवान के लिए भक्तों की नि:स्वार्थ प्रेम का महत्व बताया. इस तरह शरद पूर्णिमा ‘भक्ति की शक्ति’ को समझने का भी पर्व है.
माता लक्ष्मी जी निकलती हैं सैर पर, कृपा पाने के लिए करें ये काम
एक मान्यता यह है कि शरद पूर्णिमा की रात विष्णुप्रिया माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) पृथ्वी की सैर को निकलती हैं. शरद पूर्णिमा को ‘कोजागरी पूर्णिमा’ (इस समय पृथ्वी पर कौन-कौन जाग रहा है) इसीलिए कहा जाता है, क्योंकि इस दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है. इस रात भगवान विष्णु जी (Shri Vishnu) का ध्यान करने से माता लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है. महालक्ष्मी के आगमन का अर्थ है- धन-वैभव, सुख-शांति और आरोग्य-यश की प्राप्ति.
कहते हैं कि इस रात माता लक्ष्मी जी को जो भी व्यक्ति अच्छे कार्य करते हुए या अच्छे विचार रखते हुए मिलता है, उसी को वे अपना आशीर्वाद दे देती हैं. इसीलिए कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की पूरी रात अपने और दूसरों के लिए सिर्फ अच्छा ही अच्छा सोचना चाहिए, अच्छे कार्य ही किए जाने चाहिए, विशेष रूप से भगवान विष्णुजी का ज्यादा से ज्यादा ध्यान और जप किया जाना चाहिए, ताकि माता लक्ष्मी जी का ध्यान अपनी तरफ खींचा जा सके.
चंद्रमा की किरणों से मिलता है आरोग्य का वरदान
प्राचीन काल से ही सूर्य और चंद्रमा (Sun and Moon) को सभी ग्रह-नक्षत्रों में सबसे प्रमुख स्थान दिया गया है. सूर्य और चंद्रमा की पूजा करने से मनोकामनाओं की पूर्ती होती है. चंद्रमा को शांति और शीतलता का प्रतीक माना जाता है. चंद्रमा की किरणों को अमृत के समान माना गया है.
कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणें अमृत की वर्षा करती हैं…और इसीलिए इस रात खाने-पीने की जिन चीजों में चंद्रमा की किरणें पड़ती हैं, वे चीजें अमृत के समान हो जाती हैं, जिन्हें खाने से कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है, इसीलिए शरद पूर्णिमा की रात को चावल की खीर बनाकर उसे रातभर चंद्रमा की किरणों के नीचे रखने का विधान बनाया गया है.
शरद पूर्णिमा की रात आकाश साफ होता है. खानपान पर इसका सकारात्मक असर माना जाता है. खासकर इस चांदनी रात में रखी गई खीर का स्वाद दोगुना हो जाता है. हम सब जानते हैं कि दूध में सबसे ज्यादा पोषक तत्व होते हैं. दूध का लैक्टिक अम्ल चंद्रमा की किरणों से शक्तियों को सोख लेता है. इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों में खीर रखने की परंपरा बनाई गई है.
इस खीर पर चंद्रमा की किरणें पड़ने से ये गुणकारी और औषधि के समान हो जाती है. इस खीर को खाने से कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियां दूर हो जाती हैं. एक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा को औषधियों को बनाने का भी उत्तम दिन माना जाता है, क्योंकि इस दिन बनाई गईं औषधियों का प्रभाव ज्यादा होता है.
ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है शरद पूर्णिमा
शरद पूर्णिमा ऋतु परिवर्तन (Change of seasons) का भी प्रतीक है. इस दिन से वर्षा ऋतु की समाप्ति और शरद ऋतु का आगमन हो जाता है. इस तरह इस पर्व का संबंध हमारी कृषि से भी है. शरद पूर्णिमा से पहले या क्वार के आखिरी दिन वर्षा के 4 महीने समाप्त हो जाते हैं और ठंड के 4 महीने शुरू हो जाते हैं. इस तरह वर्षा को शरद ऋतु से अलग करने के लिए शरद पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है.
शरद पूर्णिमा से पहले आषाढ़, श्रावण और भादों की तीन पूर्णमासी बीत चुकी होती है, जिनमें आकाश ज्यादातर साफ नहीं मिलता. चंद्रमा कभी दिखाई देता है तो कभी नहीं. लेकिन कई महीनों के बाद शरद पूर्णिमा की रात को साफ आकाश में पूरा चंद्रमा देखने का अवसर मिलता है. प्राचीन समय में लोग इस चांदनी का आनंद लेने के लिए खुले मैदान में बैठ जाते थे. कहते हैं कि उस समय पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी इतनी तेज होती थी कि इस रात महिलाएं सुई भी पिरो लिया करती थीं, यानी इस चांदनी रात में बारीक काम भी किए जा सकते हैं.
शरद पूर्णिमा के दिन क्या-क्या किया जाता है-
शरद पूर्णिमा के दिन सुबह-सुबह उठकर स्नान करें. साफ कपड़े पहनें और इसके बाद सूर्य को जल चढ़ाएं. फिर फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत आदि से भगवान की पूजा करें. अगर आपने व्रत रखा है तो सुबह उठते ही सबसे पहले व्रत का संकल्प भी ले लें. शाम के समय घर के मंदिर, छत या बालकनी या घर के द्वार पर दीप जलाएं. रात्रि के समय गाय के दूध से खीर बनाएं और भगवान को उसका प्रसाद लगाएं.
चंद्रमा के निकलने पर उसकी पूजा करें. फिर खीर से भरे बर्तन को चंद्रमा की रोशनी में रख दें. खीर को आप चांदी, या मिट्टी या स्टील के बर्तन में रख सकते हैं. लेकिन ध्यान से- खीर के बर्तन पर कोई जालीदार चीज रखकर उसे जरूर ढंक दें, ताकि कोई कीड़ा उसमें न गिरने पाए और खीर में चंद्रमा की किरणें भी पड़ जाएं. एक प्रहर (3 घंटे) के बाद उस खीर को सभी में प्रसाद के रूप में बांट दें. आप चाहें तो इस खीर को सुबह-सुबह भी बांट सकते हैं.
अगर आप रात्रि जागरण कर रहे हैं तो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी का ज्यादा से ज्यादा ध्यान और जप करें, लेकिन भूलकर भी किसी के लिए या अपने लिए कुछ भी बुरा न सोचें न बुरा बोलें. इस दिन भगवान श्री राधाकृष्ण, श्रीलक्ष्मी-नारायण जी की पूजा-अर्चना करने से बहुत अच्छा फल मिलता है. शरद पूर्णिमा के दिन आप चाहे व्रत रखें या न रखें, लेकिन इस पूरे दिन सात्विक आहार ही लें. हो सके तो इस दिन काले रंग का इस्तेमाल ना करें.
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