Bhagwan Shri Krishna Leela
भगवान् श्रीराम मर्यादापुरुषोत्तम हैं, तो श्रीकृष्ण लीलापुरुषोत्तम. जब भगवान विष्णु (Bhagvan Vishnu) ने त्रेतायुग में श्रीराम जी के रूप में इस धरती पर अवतार लिया, तो उन्होंने एक आदर्श मनुष्य का जीवन जिया, जिससे कि समस्त मानवजाति को जीवन जीने की शिक्षा दी जा सके. श्री राम (Shri Ram) ने कभी नहीं कहा कि वे भगवान हैं. उन्होंने हमेशा यही कहा कि वे एक साधारण मनुष्य ही हैं और उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में जो-जो कार्य किए हैं, वे सभी कार्य कोई साधारण मनुष्य भी कर सकता है, यदि वह पूरी तरह से श्रीराम जी का ही अनुसरण करे.
भगवान ने देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों को दिया था वचन
श्रीराम जी ने कभी भी किसी भी परिस्थिति में अपनी माया का प्रत्यक्ष प्रयोग नहीं किया. युद्ध में भी सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल नहीं किया. उस समय न जाने कितने देवी-देवताओं, ऋषि मुनियों और सिद्ध नारियों ने उन्हें किसी न किसी रूप में पाने के लिए कठोर तप किया, किसी ने उनकी माता बनने का वरदान मांगा, तो किसी ने बहन और संतान बनने का, किसी ने प्रेमिका बनने का तो किसी ने पत्नी बनने का.
तब श्री राम ने उन सभी को वचन दिया कि इस जन्म में तो उन्हें सभी मर्यादाओं का पालन करना है, लेकिन जब वह द्वापरयुग के अंत में फिर से इस धरती पर आएंगे, तब सभी की हर इच्छा पूरी करेंगे… और इसीलिए उन्होंने श्री कृष्ण (Shri Krishna) के रूप में 16 कलाओं में जन्म लिया.
अनेक रूपों में रहकर अपने सभी भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं भगवान
श्री कृष्ण के रूप में उन्होंने समय-समय पर ये घोषणा की है कि वे साधारण मनुष्य नहीं, बल्कि भगवान ही हैं और उनका अनुसरण करना किसी के भी लिए संभव ही नहीं, इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में चाहे जितना रस आए, लेकिन वे अनुकरणीय नहीं पर आदरणीय हैं, क्योंकि उनकी हर एक लीला अपने भक्तों और विश्व कल्याण से जुड़ी हुई है. उनके जीवन से जुड़ी हर घटना पूरी मानवजाति को सही मार्ग दिखाती है.
जब देवी-देवताओं को भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बारे में पता चला
जब देवी-देवताओं को पता चला कि भगवान अब श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेने वाले हैं और वे ब्रज में पधारेंगे, तो सभी मिलकर ब्रह्माजी के पास गए और प्रार्थना की कि उन्हें गोपियां, ग्वालबाल, पशु-पक्षी या पेड़-पौधे कुछ भी बनाकर ब्रज भेज दें, ताकि वे सब भी किसी न किसी रूप में भगवान श्री कृष्ण के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त कर सकें. लेकिन ब्रह्मा जी ने ये कहकर मना कर दिया कि सभी स्थान भर चुके हैं.
ब्रह्मा जी ने कहा कि बड़ी संख्या में गोपियां और ग्वालबाल जन्म ले चुके हैं, लाखों गायें बनाई जा चुकी हैं, खूब सुन्दर-सुन्दर पेड़ पौधे, मोर, पशु-पक्षी आदि भी बनाए जा चुके हैं और अब ब्रज में और कुछ भी बनाने के लिए जगह खाली ही नहीं बची. तब सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी से कहा कि वे उन सभी को ब्रज की रेत ही बना दें, ताकि श्री कृष्ण के चरणों से वे सब अपने-आपको पावन कर सकें.
इसीलिए ब्रज की मिट्टी भी इतनी पवित्र मानी जाती है.
भगवान श्री कृष्ण वसुदेव और देवकी के घर जन्म लेते हैं और यशोदा और नन्द बाबा के घर लाड़-प्यार के साथ बड़े होते हैं. जन्म लेते ही दुष्टों और राक्षसों से उनके युद्ध शुरू हो जाते हैं. जन्म लेते ही भक्तों की बेड़ियों को काटने, कैद के बंद दरवाजे खोलने और एक के बाद एक सभी बुराइयों का अंत करना शुरू कर देते हैं. और किसी न किसी बहाने कई देवताओं को श्राप से मुक्ति भी दिलाते हैं.
घर-घर माखन चुराते हैं और गोपियों से कभी डांट खाते हैं तो कभी प्रेम से उनकी गोद में बैठकर माखन.. इस प्रकार हर गोपी को अपनी माता होने का सुख दे देते हैं. ग्वालबालों के साथ खेल-खेल में गेंद ढूंढने के बहाने यमुना को कालिया नाग के विष से और कालियानाग को उसके अहंकार से मुक्त कराते हैं.
गायों की सेवा कर मनुष्य को सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने का सुलभ मार्ग दिखलाते हैं. गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू करवा के एक राजा (इंद्र) का अहंकार दूर करते हैं, साथ ही विश्व को वृक्ष, नदी, पर्वत यानी प्रकृति की रक्षा का महत्व बताते हैं. श्रीराधा जी के चरण दबाकर अपने भक्तों के प्रेम को पूरा मान-सम्मान देते हैं और भगवान के लिए भक्तों के निःस्वार्थ प्रेम का महत्व बताते हैं.
महारासलीला में अलग-अलग रूपों में प्रकट होकर हर एक गोपी को इस बात का एहसास कराते हैं कि “मैं तुम्हारा ही हूं”. ये सभी गोपियां अपने पूर्वजन्म में सिद्ध ऋषिमुनि ही थीं, जिन्होंने जीवनभर कठोर तपस्या कर भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त करने का वरदान मांगा था.
छूटा प्रेम का आंगन, स्वार्थी दुनिया में हुआ प्रवेश, लेकिन विचलित नहीं हुए भगवान
ब्रज के हर एक कण-कण में लिखा है श्रीकृष्ण का नाम, जहां उन्हें चारों तरफ से केवल प्रेम ही प्रेम मिला और इसीलिए भगवान कृष्ण का ब्रज से एक अलग ही नाता है. उन्होंने ब्रज में रहकर अनेक लीलाएं कीं. उसी ब्रज के निःस्वार्थ और प्रेम भरे वातावरण को छोड़कर राजनीति, स्वार्थ और युद्ध के संसार में आ जाते हैं भगवान, लेकिन वे तनिक भी विचलित नहीं होते. अपने भक्तों के कल्याण के लिए सभी तरह के कार्य करते चले चले जाते हैं.
दुष्ट कंस का वधकर अपने माता-पिता की सेवा में लग जाते हैं. जब बात अपने गुरु के सामने जाने की हुई, तो एक आदर्श छात्र के सभी कर्तव्यों को बखूबी निभाते हैं. गुरु दक्षिणा के रूप में आचार्य संदीपन के मृत पुत्र को भी फिर से जीवनदान दे देते हैं.
भक्तों के कल्याण के लिए अनगिनत रूपों में रहते हैं भगवान श्रीकृष्ण
नरकासुर का वध कर 16,100 स्त्रियों को उसके बंधन से मुक्त कराते हैं, साथ ही समाज में उन सभी स्त्रियों को फिर से सम्मान दिलाने और उन सभी की प्रार्थना पर, अपने अलग-अलग रूपों में प्रकट होकर उन सभी से विवाह भी रचाते हैं. गृहस्थ जीवन के सभी कर्तव्यों का पालन करते हैं लेकिन किसी में भी आसक्ति नहीं रखते, इसलिए ‘योगिराज’ भी कहे जाते हैं.
एक बार जब नारद मुनि भगवान के दर्शन करने के लिए धरती पर आए तो वह जहां भी जाते, उन्हें श्री कृष्ण के ही दर्शन होते. वह ब्रज जाते तो वहां भी श्रीकृष्ण और द्वारका जाते वहां भी श्रीकृष्ण. आखिर वे भी भगवान की लीला को समझ नहीं पाते.
अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर माया-मोह को त्यागकर धर्मयुद्ध करने के लिए प्रेरित करते हैं और विश्व को जीवन का सबसे बड़ा रहस्य और सत्य बताते हैं. योगीराज के रूप में गीता के रूप में धर्म की वास्तविक व्याख्या की और पांडवों माध्यम से धर्म की पुनर्स्थापना की. यानी अपने भक्तों के कल्याण के लिए अनगिनत रूपों में रहते हैं और कुछ भी करने को तैयार हैं भगवान श्रीकृष्ण.
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