तीन-तीन पीढ़ियों की कठिन तपस्या से धरती पर आ सकी थीं मां गंगा, जानिए ‘गंगा दशहरा’ की कथा

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Ganga

Ganga Dharti Par Kaise Aayi

गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) यानी मां गंगा (Ganga) के स्वर्ग से धरती पर आने का दिन. आज जिस गंगा नदी के दर्शन हमें बड़ी सरलता से हो जाते हैं, उन्हें स्वर्ग से धरती पर लाना इतना आसान नहीं था. जब तीन-तीन पीढ़ियों ने अपना पूरा जीवन कठिन तपस्या में लगा दिया, तब कहीं जाकर मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर आगमन हुआ.

गंगा नदी को सिर्फ नदी ही नहीं बल्कि जीवनदायिनी भी कहा जाता है. कहते हैं कि गंगा में लगाई एक डुबकी भी इंसान के भाग्य को बदल सकती है. आज जानते हैं कि आखिर मां गंगा का अवतरण कैसे हुआ (Ganga dharti par kaise aayi) और क्यों सदियों से लोग इनकी पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा का जन्म भगवान ब्रह्मा जी के कमंडल से हुआ था. एक बार, ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु जी के चरणों को आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में इकठ्ठा कर लिया, जिससे मां गंगा का जन्म हुआ. इस तरह गंगा का जन्म विष्णु जी के चरणों से हुआ है और इसीलिए उन्हें ‘विष्णुपदी’ भी कहा जाता है. ये तो थी मां गंगा के जन्म की कहानी, अब जानते हैं कि मां गंगा स्वर्ग से धरती पर कैसे आईं (Ganga dharti par kaise aayi).

तीन पीढ़ियों ने गंगा जी के लिए क्यों की थी कठिन तपस्या

ये तो सभी जानते हैं कि भगवान श्रीराम (Shri Ram) के पूर्वज और इक्ष्वाकु वंश के राजा भागीरथ (Bhagirath) ने ही गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतारा था, जिसके लिए उन्हें कठिन तपस्या करना पड़ी थी, लेकिन उनसे पहले उन्हीं के वंश के राजा सगर, राजा अंशुमान और राजा दिलीप ने गंगा जी को धरती पर लाने के लिए हजारों सालों तक घोर तपस्या की थी, लेकिन अंत में भागीरथ की तपस्या सफल हुई और वह मां गंगा को धरती पर उतारने में सफल हुए.

भगवान राम के ही एक पूर्वज थे राजा सगर (Raja Sagar). राजा सगर को एक दैवीय शक्ति से 60 हजार पुत्रों की प्राप्ति हो गई. एक बार राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया. उनके अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को देवताओं के राजा इंद्र ने चुरा कर पाताल में कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया. उस समय कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे, इसलिए उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला. वहीं, घोड़े की खोज में राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में पहुंच गए, जहां घोड़ा बंधा था.

राजा सगर के पुत्रों को लगा कि उनका घोड़ा कपिल मुनि ने ही चुराया है. ये सोचकर उन सभी ने गुस्से में आकर मुनि पर आक्रमण कर दिया, जिससे कपिलमुनि की आंखें खुल गईं और उन्होंने राजा सगर के पुत्रों को गुस्से से देखा, जिससे सभी 60 हजार पुत्र वहीं जलकर भस्म हो गए. राजा सगर के पौत्र अंशुमान बच गए और फिर उन्‍होंने कपिलमुनि के पास जाकर क्षमा मांगी और अपने चाचाओं की आत्मा की शांति का उपाय पूछा, जिस पर मुनि ने कहा कि अगर पवित्र गंगा का जल उनके चाचाओं पर पड़ेगा तो उनकी आत्मा को शांति मिल जाएगी.

इसके लिए पहले राजा सगर, फिर राजा अंशुमान और फिर राजा अंशुमान के पुत्र दिलीप, इन सभी ने कठिन तपस्या कर मां गंगा को प्रसन्न करने की कोशिश की, लेकिन वे सभी सफल नहीं हुए और अपने प्राण त्याग दिए. तब राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ ने प्रतिज्ञा की कि वे गंगा को धरती पर जरूर लाएंगे.

आखिरकार भागीरथ की तपस्या हुई सफल, मिला वरदान

आखिरकार भागीरथ ने अपनी घोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर ही लिया और उनसे गंगा जी को पृथ्वी पर भेजने का वरदान मांगा. भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने कहा कि ‘हे राजन! तुम गंगा को पृथ्वी पर लाना चाहते हो, लेकिन क्या तुमने पृथ्वी से पूछा कि क्या वह गंगा के भार और वेग को संभाल पाएगी? ब्रह्मा जी ने भागीरथ को बताया कि गंगा की बेहद तेज रफ्तार और उसके भार को सहन करने की शक्ति केवल भगवान शिव में हैं, इसलिए उन्हें इसके लिए भगवान शिव से मदद मांगनी होगी.

फिर क्या था, भागीरथ ने भगवान शिव को भी प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या शुरू कर दी और आखिरकार उन्हें भी प्रसन्न कर लिया. भगवान शिव अपनी जटाओं को फैलाकर खड़े हो गए और तब ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से गंगा को पृथ्वी पर आने के लिए छोड़ दिया. गंगा जी बेहद तेज रफ्तार से धरती पर उतरने लगीं. कहते हैं कि तब गंगा जी को अहंकार आ गया था और उन्होंने सोचा कि ‘भला कौन है, जो मेरे वेग को सहन कर सके’.

भगवान शिव ने जान ली गंगा जी के मन की बात

गंगा जी ने ये तय किया कि वह अपनी पूरी रफ्तार से पृथ्वी पर गिरेंगी और सब कुछ बहा देंगी. लेकिन गंगा जी के मन की ये बात भगवान शिव को पता चल गई और उन्होंने गंगा जी की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया और जटाएं बांध लीं. इससे गंगा जी भगवान शिव की जटाओं से बाहर ही नहीं निकल पाईं. तब भागीरथ की प्रार्थना पर भगवान शिव ने अपनी जटाओं से गंगा की छोटी-छोटी धाराओं को ही बाहर निकलने दिया. शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में मैदान की तरफ मुड़ीं. उन्होंने पाताल लोक में जाकर राजा सगर के सभी पुत्रों को मोक्ष दे दिया और… इस तरह, मां गंगा का धरती पर आगमन हुआ.

कठिन तपस्या की दम पर कुछ भी पाया जा सकता है

भागीरथ ने ये साबित कर दिया कि कठिन तपस्या की दम पर कुछ भी पाया जा सकता है. भागीरथ के कठिन प्रयासों से गंगा इस धरती पर आ सकीं, इसीलिए गंगा को ‘भागीरथी’ भी कहा जाता है. धरती पर गंगा ही एकमात्र ऐसी नदी है जो तीनों लोकों यानी स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल लोक में बहती है, इसलिए गंगा को ‘त्रिपथगा’ यानी ‘तीनों लोकों में बहने वाली नदी’ कहा जाता है. हिमालय से निकलकर गंगा 12 धाराओं में बंट जाती है, जिनमें मंदाकिनी, भागीरथी, धौलीगंगा और अलकनंदा प्रमुख हैं.

जाने-अनजाने होने वाले पापों को धोने का अवसर है ‘गंगा दशहरा’

गंगा नदी की प्रमुख धारा भागीरथी है, जो कुमाऊं में, हिमालय के गोमुख नाम के स्थान पर ‘गंगोत्री हिमनद’ से निकलती है. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, गंगा दशहरा पर मां गंगा की पूजा करने से उनकी असीम कृपा प्राप्त होती है. इंसान जाने-अनजाने न जाने कितने पाप करता है, इन सभी पापों से मुक्ति पाने का सबसे अच्छा अवसर गंगा दशहरा का दिन माना जाता है. कहते हैं कि इस दिन गंगा में डुबकी लगाने से दस पापों से मुक्ति मिल जाती है और इसीलिए इस तिथि को ‘गंगा दशहरा’ कहा जाता है.

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