Best Healthy Eating Cooking
हमारे शरीर के लिए जितना जरूरी सही समय पर सही खानपान (Right food) है, उतना ही जरूरी ये भी है कि हमारा भोजन सही बर्तनों (Right Utensils) में बनाया जाए. पुराने समय में लोग बहुत कम ही बीमार पड़ते थे, जबकि उस समय न तो विदेशों के पढ़े इतने टैलेंटेड डॉक्टर होते थे और न ही स्वस्थ रहने के लिए कोई आधुनिक सुविधाएं होती थीं. आज की तुलना में उस समय लोगों के ऊपर शारीरिक मेहनत भी बहुत ज्यादा होती थी.
पहले के लोग भोजन तैयार करने के लिए भी काफी मेहनत करते थे, सूखी लकड़ियां इकट्ठा कर लाना, पानी भरकर लाना, फिर मिट्टी के बर्तनों में भोजन को देर तक पका-पकाकर मिट्टी के बर्तनों में या पत्तलों में भोजन करना आदि. इतना सब कुछ करते हुए भी वे आज की तुलना में ज्यादा स्वस्थ और ऊर्जावान भी रह लेते थे.
फिर ‘विज्ञान’ ने की तरक्की…
वहीं, जैसे-जैसे ‘विज्ञान’ ने प्रगति की, नई नई टेक्नोलॉजी आईं, स्वस्थ रहने और समय बचाने के साधन बढ़ते चले गए, वैसे ही बीमारियां भी बढ़ती चली गईं. आज ज्यादातर लोगों को कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है. एक बीमारी का इलाज दूसरी बीमारी का कारण बन जाती है. आजकल के कुछ लोगों का न जाने कितना समय डॉक्टरों के साथ ही बीत जाता है.
पुराने समय की रसोई में रखे हुए मिट्टी के बर्तनों की जगह एल्युमिनियम, नॉन स्टिक, इलेक्ट्रिक इंडक्शन, गैस चूल्हा और ओवन आदि ने ले ली है, जिनमें खाना बड़ी जल्दी बनता है. खाने का टेस्ट बढ़ाने के लिए खूब मिर्च-मसालों का भी इस्तेमाल होता है. बिजी लाइफ में रेडीमेड सब्जियां, फास्ट फूड आदि का खूब चलन हो गया है. पुराने समय की सभी स्वास्थ्यवर्धक चीजें किचन से गायब हो गई हैं. सच ये है कि आराम और सुविधाओं के लिए आज हम लोगों ने अपने स्वास्थ्य से पूरी तरह समझौता कर लिया है. फिर हम सोचते हैं कि हम तो घर पर ही बना खाना खाते हैं, फिर भी हम स्वस्थ क्यों नहीं हैं…
आज हम आपको खाना बनाने और खाने के कुछ सात्विक (Satvik) नियम बताने जा रहे हैं, जिन्हें अपनाकर हम काफी हद तक बीमारियों से दूर रह सकते हैं. साथ ही हम आपको ये भी बताएंगे कि किस बर्तन में बना भोजन कितना फायदेमंद या नुकसानदेह होता है-
चीजों को नेचुरल रूप में ही लेने की करें कोशिश
प्रकृति (Nature) बहुत समझदार है. उसने हम इंसानों को सभी चीजें बहुत सोच-समझकर दी हैं. स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि प्रकृति ने हमें जो भी चीज जिस रूप में दी है, उसका फायदा उसी रूप में लिया जाए. क्या आप जानते हैं कि पुराने समय में जब, मिक्सर, जूसर आदि चीजें नहीं थीं, तब लोग सब्जी आदि की ग्रेवी बनाने के लिए या तो पत्थरों के सिलबट्टे का इस्तेमाल करते थे, या सब्जी बनाने के लिए चीजों को उसमें साबुत ही डाल लिया करते थे.
जैसे- पिसी हल्दी की जगह कच्ची हल्दी के छोटे-छोटे टुकड़े कर सब्जी में डाल दिए जाते थे. खाना बनाते समय तेल का इस्तेमाल करने की बजाय राई या नारियल की गिरी या साबुत जैतून का इस्तेमाल किया जाता था.
इस तरह से भोजन बनाने से कई फायदे मिलते हैं, जैसे- मिर्च-मसालों, तेल आदि में की जाने वाली आजकल की मिलावट से बचे रहेंगे. चीजों के सभी पौष्टिक तत्व हमें मिल जाते हैं. खाने की चीजों का स्वाद बरकरार रहता है, जिससे भोजन तो स्वास्थ्यवर्धक रहता ही है, साथ ही भोजन और भी स्वादिष्ट बनता है. खाने में सेंधा नमक या काला नमक का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इसी तरह, रोज खाने वाला आटा मोटा और चोकरयुक्त होना चाहिए.
बंद बर्तनों का करें कम इस्तेमाल
सही भोजन पकाने का एक नियम ये भी होता है कि भोजन बनाते समय खाने को सूर्य की रोशनी या बाहर की हवा मिलती रहे. उसे बहुत कसके बंद करके नहीं बनाया जाना चाहिए, जैसा कि प्रेशर कुकर (Pressure cooker) में होता है. आजकल घरों में भोजन जल्दी तैयार करने के लिए प्रेशर कुकर का बहुत इस्तेमाल किया जाता है. प्रेशर कुकर में बने खाने में प्रेशर और भाप (स्टीम) का इस्तेमाल होता है, आंच का कोई रोल नहीं होता. इसीलिए प्रेशर कुकर में बना खाना कढ़ाही में बने खाने की तुलना में पचने में ज्यादा भारी होता है, जो पेट में गैस की समस्या को बढ़ाता है.
दाल या चावल को खुले बर्तन में उबालकर बनाने से उनसे सफेद झाग निकाल दिया जाता है. इस झाग को ‘अधन’ कहते हैं. इसमें यूरिक एसिड बढ़ाने वाले तत्व होते हैं, जो शरीर में जमा होकर जोड़ों में दर्द का कारण बनते हैं. इसीलिए प्रेशर कुकर में बना खाना काफी नुकसानदेह होता है, क्योंकि उसमें से ये हानिकारक तत्व बाहर नहीं आ पाते.
सिलबट्टे पर या ओखली में पीसें चटनी या मसाले
मिर्च-मसालों को मिक्सर में पीसने की बजाय अगर पत्थरों या लोहे के बने सिलबट्टों (Sil batta) या ओखलियों में कूट-कूटकर पीसा जाए, तो उनका नेचुरल टेस्ट बना रहता है, उनके पौष्टिक तत्व बरकरार रहते हैं और उनसे खुशबू भी अच्छी आती है. वहीं, सिलबट्टे पर पिसी हुई चटनी का स्वाद भी कुछ अलग ही आता है, साथ ही यह काफी फायदेमंद भी होती है. इसी के साथ, शरीर की भी काफी कसरत हो जाती है.
बड़ी देर से कटी सब्जियों का न करें इस्तेमाल
सब्जियों, फलों या सलाद (Salad or Vegetables) को काटकर उसे तुरंत खा लेना चाहिए. उसे देर तक खुला नहीं रखा जाना चाहिए. खासतौर पर काफी देर से कटी रखी हुई प्याज (Onion) तो बिल्कुल भी न खाएं, क्योंकि कटी हुई प्याज 15-20 मिनट के बाद आसपास के सभी बैक्टीरिया को अपनी तरफ खींचने लगती है. होटलों या ढाबों में कभी भी कटी हुई प्याज न लें. इसी के साथ, सब्जियों और फलों को अच्छी तरह धोकर और छीलकर इस्तेमाल करें.
रंगी-पुती हुईं सब्जियों, फलों और दालों आदि से सावधान रहें. बाजार से ज्यादा चमकदार खाने की चीजें न लें, क्योंकि इनमें केमिकल हो सकता है. बाजार से सब्जियों, फलों को लेकर उन्हें कुछ देर के लिए साफ पानी में डाल दे, इससे उनमें लगा केमिकल काफी हद तक उतर जाता है. फ्रिज में हर चीज को ढककर ही रखें, साथ ही फ्रिज से निकाली गई सब्जियों, फलों को धोकर ही इस्तेमाल करें.
फ्रिज और ओवेन के खाने का बहुत कम करें इस्तेमाल
ओवेन (Oven) में भोजन पकाने या उसमें खाना गर्म करने से बचें, क्योंकि ये दिमागी या सिर की बीमारियों की वजह बनता है. वहीं, भोजन पकाने के लिए इलेक्ट्रिक इंडक्शन चूल्हे (Electric Induction) का भी कम से कम इस्तेमाल करें. इसी के साथ, फ्रिज (Fridge) में स्टोर करके रखा हुआ खाना काफी नुकसानदेह होता है. कोशिश करें कि भोजन तैयार करने के बाद उसे चार-पांच घंटों में ही खाकर खत्म कर लें. लेकिन अगर फ्रिज का ही खाना खाना है, तो फ्रिज से खाने को निकालकर गर्म कर लें फिर खाएं, लेकिन फ्रिज से खाने को निकालकर तुरंत गर्म न करें, क्योंकि ऐसा करना कई तरह की बड़ी बीमारियों की वजह बन सकता है. फ्रिज में खाने को कभी भी खुला न रखें, हमेशा बंद करके ही रखें.
कौन से बर्तनों में बनाया जाना चाहिए खाना
हम जिस चीज के बने बर्तनों में खाना बनाते हैं, या खाना खाते हैं, उसके तत्व हमारे खाने में और हमारे पेट में चले जाते हैं. इसीलिए ये बहुत जरूरी है कि खाना बनाने वाले और खाने वाले बर्तनों का चुनाव सही हो. जैसे- अगर हो सके तो एल्युमिनियम और नॉनस्टिक के बर्तनों को तो अपने किचन से बिल्कुल ही बाहर निकाल दें. इनकी जगह लोहे, स्टेनलेस स्टील और कांसे के बने बर्तनों का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन लोहे के बर्तनों में खाना बनाने से पहले उन्हें अच्छी तरह साफ कर पोंछ लें, ताकि उनमें जंग न लगी रह जाए. बाकी आप पीतल और तांबे के बर्तनों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल खाना पकाने में ज्यादा नहीं किया जाना चाहिए, खासकर तांबे का.
भोजन बनाने के लिए सबसे अच्छे होते हैं मिट्टी के बर्तन. मिट्टी के बर्तनों (Clay pots) में भोजन देर में जरूर पकता है, लेकिन यह बड़ी देर तक हमारे शरीर को हेल्दी और स्वस्थ भी रखता है. मिट्टी के बने बर्तनों में भोजन बनाने से शरीर को कई तरह के फायदे मिलते हैं. एक तो इस खाने में सूर्य की रोशनी और बाहर की हवा भी मिल जाती है. खाने के हानिकारक तत्व बाहर निकल जाते हैं और खाने के पोषक तत्व बने रहते हैं.
इसी के साथ, मिट्टी के बर्तनों में खाना बहुत स्वादिष्ट भी बनता है और इसकी खुशबू भी बहुत अच्छी आती है. प्रेशर कुकर की बजाय मिट्टी की हांडी में दाल-सब्जी या चावल पकाना बहुत फायदेमंद होता है. मिट्टी के बर्तनों में बना खाना खाने से कब्ज और गैस की समस्या नहीं होती है.
प्लास्टिक-थर्माकोल से रहें बिल्कुल दूर
प्लास्टिक और थर्माकोल (Plastic-thermocol) से तो बिल्कुल दूर रहें, क्योंकि ये कैंसर जैसी भयानक बीमारी का कारण बनते हैं. अगर आपके ऑफिस में प्लास्टिक या थर्माकोल के कप में चाय या कॉफी दी जाती है, तो अपने बैग में एक स्टील का कप या छोटा सा गिलास अपने साथ ले जाएं और चाय या कॉफी उसी में डलवाकर पीयें. इसके बाद उसे साफ करके फिर अपने बैग में रख लें. इसी के साथ, अखबार या किताबों के पन्नों में लिपटी हुईं चीजों को खाने से बचें, क्योंकि इनकी स्याही कई भयानक बीमारियों की वजह बनती है.
खाना खाने के लिए पत्तलों का इस्तेमाल
भोजन के लिए अगर हो सके तो आप घर पर साफ पत्तलों (Pattal plates) का इस्तेमाल कर सकते हैं. जैसे- केले के पत्तल, पलाश के पत्तल या पीपल के पत्तलों का इस्तेमाल किया जा सकता है. आयुर्वेद (Ayurveda) में पत्तलों पर भोजन करना स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद माना गया है. पीपल, केला और अमलतास जैसे पत्तों से बने बर्तनों में खाना खाने से उन पेड़ों के औषधीय गुण हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं. जब गरमागरम भोजन इन पत्तों पर परोसा जाता है, तो भोजन का स्वाद और पौष्टिकता, दोनों ही बढ़ जाते हैं. इसी के साथ, भोजन जमीन पर पालथी मारकर ही किया जाना चाहिए.
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