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धर्म और अध्यात्म

Bhagavad Gita Adhyay 4 : श्रीमद्भगवद्गीता – चौथा अध्याय – श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद (ज्ञान कर्म संन्यास योग)

हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ॥ साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥ […]

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Bhagavad Geeta Adhyay 3 : श्रीमद्भगवद्गीता – तीसरा अध्याय – श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद (कर्मयोग)

“हे जनार्दन! यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर आप मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगाते हैं?॥ मानो आप मिले हुए-से वचनों से मेरी बुद्धि को मोहित कर रहे हैं. इसलिए उस एक बात को निश्चित करके कहिए जिससे मेरा कल्याण हो सके॥” […]

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Pashubali in Yagya : जब युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में दी गई पशुबलि, तब सबके सामने घटी यह घटना

जैसे ही युधिष्ठिर का अश्वमेध यज्ञ पूर्ण हुआ, उसी समय वहां महान आश्चर्य में डालने वाली घटना हुई. जब सबके तृप्त हो जाने पर युधिष्ठिर के महान दान का चारों ओर शोर हो गया और युधिष्ठिर के मस्तक पर फूलों की वर्षा की जाने लगी, उसी समय वहां …. […]

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Bhagwat Geeta Adhyay 2 : श्रीमद्भगवद्गीता – दूसरा अध्याय – श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद (सांख्ययोग)

मैं यह नहीं जानता कि हमारे लिए युद्ध करना और न करना- इन दोनों में से क्या श्रेष्ठ है, अथवा यह भी नहीं जानते कि उन्हें हम जीतेंगे या वे हमें जीतेंगे. और जिन्हें मारकर हम जीना भी नहीं चाहते, वे ही हमारे आत्मीय धृतराष्ट्र-पुत्र हमारे मुकाबले में खड़े हैं …. […]

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Bhagwat Geeta Adhyay 1 : श्रीमद्भगवद्गीता – प्रथम अध्याय – श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद (अर्जुनविषादयोग)

हे कृष्ण! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजनसमुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है॥ हाथ से गांडीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित … […]

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Number of Vedas : आरम्भ में वेदों की संख्या कितनी थी? वेदों के 4 भाग कब और क्यों हुये?

अनेक स्थानों पर यह भी कहा गया है कि वेद पहले एक ही था, और महर्षि वेदव्यासजी ने उसके चार भाग किये थे. महाभारत तथा पुराणों में कई स्थानों पर इस ऐतिहासिक तथ्य का उद्घाटन किया गया है. […]

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धर्म और अध्यात्म

Draupadi in Mahabharat : द्रौपदी द्वारा कर्म और पुरुषार्थ के महत्त्व का वर्णन

कार्य में सिद्धि प्राप्त होगी या असिद्धि, ऐसा संदेह मन में लेकर कर्म ही न किया जाए, तो यह उचित नहीं है, क्योंकि कई कारण एकत्र होने पर ही कर्म में सफलता मिलती है. पुरुषार्थ करने पर भी यदि सिद्धि प्राप्त न हो, तो इस बात को लेकर खिन्न नहीं होना चाहिए, क्योंकि फल की सिद्धि में पुरुषार्थ के सिवा दो और भी कारण होते हैं – […]

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Shri Krishna Leela : शिशुपाल वध

शिशुपाल भरी सभा में श्रीकृष्ण का अपमान करने लगा, और जो भी उसे रोकने का प्रयास करता, वह उसका भी अपमान करने लगता. शिशुपाल, जो अपशब्दों को ही हथियार समझता था, ने बोलना आरम्भ किया- […]

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Bharat in Mahabharat : महाभारत के अनुसार भारतवर्ष का वर्णन व इस पवित्र भूमि का महत्त्व

“राजन्! पांडवों को इस भारतवर्ष के साम्राज्य का लोभ नहीं है. दुर्योधन तथा सुबलपुत्र शकुनि ही इसके लिए बहुत ललचाये हुए हैं. विभिन्न जनपदों के स्वामी भी इस भारतवर्ष के प्रति …. […]

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धर्म और अध्यात्म

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भगवान शिव के माहात्म्य व शिवलिंग पूजन के महत्त्व का वर्णन

शिव सदा स्थिर रहते हैं, इसलिए इनका लिंग-विग्रह भी सदा स्थिर रहता है और इसलिए वे ‘स्थाणु’ कहलाते हैं. भूत, भविष्य और वर्तमान काल में स्थावर और जंगमों के आकार में उनके अनेक …. […]