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धर्म और अध्यात्म

राधा जी का रहस्य : श्रीकृष्ण और राधा जी से जुड़े कुछ रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य

पूर्वकाल में राधाजी ने श्रीकृष्ण के लिए शतशङ्ख नामक पर्वत पर एक सहस्र दिव्य युगों तक निराहार रहकर तपस्या की थी. इससे वे अत्यंत कृशकाय हो गई थीं. श्रीकृष्ण ने देखा कि अब राधा जी के शरीर में साँसों का चलना भी बंद हो गया, तब …. […]

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धर्म और अध्यात्म

Radha Krishna Marriage : राधा जी का विवाह किसके साथ हुआ था?

जगत्पति श्रीकृष्ण कंस के भय से रक्षा के बहाने शैशवावस्था में ही गोकुल पहुंचा दिये गये थे. वहाँ श्रीकृष्ण की माता जो यशोदा थीं, उनका सहोदर भाई वैश्य “रायाण’ था. गोलोक में तो वह श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था, पर इस अवतार के समय भूतल पर वह श्रीकृष्ण का मामा लगता था. […]

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धर्म और अध्यात्म

Bhagwat Gita Chapter 17 : भगवद् गीता – सत्रहवाँ अध्याय (श्रद्धात्रयविभाग योग)

मनुष्य जैसा आहार करता है, वैसा ही उसका अन्तःकरण बनता है और अन्तःकरण के अनुरूप ही उसकी श्रद्धा होती है. आहार शुद्ध होगा तो उसके परिणामस्वरूप अन्तःकरण भी शुद्ध होगा. […]

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अपना अध्ययन स्वयं करें, पूरा अध्ययन करें, किसी के बहकावे में आकर मूर्ख न बनें!

श्रीकृष्णनन्दन भगवान प्रद्युम्न ने उसके भावों में परिवर्तन को देखकर कहा- “देवि! आप तो मेरी मां समान हो. आपकी बुद्धि ऐसी उल्टी कैसे हो गयी? मैं देख रहा हूँ कि आप मेरे साथ माता का भाव छोड़कर कामिनी के समान हाव-भाव दिखा रही हो”॥११॥ […]

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Dharm aur Adharm : क्या धर्म ही सारे झगड़ों की जड़ है (धर्म और अधर्म)

कर्ण ने जिसे अपना धर्म माना, उसे श्रीकृष्ण ने धर्म नहीं माना. कर्ण लाख तर्क देता रहा कि दुर्योधन ने तो उसके ऊपर उपकार किया है, अतः उसे अपना मित्रता का धर्म निभाना है. लेकिन वह भूल रहा था कि …. […]

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धर्म और अध्यात्म

Bhagavad Geeta Adhyay 16 : भगवद्गीता – सोलहवाँ अध्याय (दैवासुर सम्पद्विभाग योग)

आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य कहा करते हैं कि जगत्‌ आश्रयरहित, सर्वथा असत्य और बिना ईश्वर के, अपने-आप केवल स्त्री-पुरुष के संयोग से उत्पन्न है, अतएव केवल काम ही इसका कारण है. इसके सिवा और क्या है? […]

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धर्म और अध्यात्म

Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 15 : भगवद्गीता – पन्द्रहवाँ अध्याय (पुरुषोत्तम योग)

अच्छी और बुरी योनियों की प्राप्ति गुणों के संग से होती है एवं समस्त लोक और प्राणियों के शरीर तीनों गुणों के ही परिणाम हैं. अन्य सब योनियों में तो केवल पूर्वकृत कर्मों के फल को भोगने का ही अधिकार है, जबकि मनुष्य योनि में नवीन कर्मों के करने का भी अधिकार है. […]

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धर्म और अध्यात्म

Bhagwan Shri Krishna Gita : सबसे प्रधान अथवा सबसे श्रेष्ठ कौन है?

गंगा जी के समान तीर्थ नहीं है, श्रीविष्‍णु भगवान से बढ़कर देव नहीं है और गायत्री से बढ़कर जपने योग्य मंत्र न हुआ, न होगा.” गायत्री की इस श्रेष्‍ठता के कारण ही भगवान ने उसे अपना स्वरूप बतलाया है. […]

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धर्म और अध्यात्म

Satv Raj Tam Meaning : सत्व, रज, तम के गुण और प्रभाव (सात्विक, राजसिक, तामसिक)

मनुष्य जैसा आहार करता है, वैसा ही उसका अन्तःकरण बनता है और अन्तःकरण के अनुरूप ही उसकी श्रद्धा भी होती है. आहार शुद्ध होगा तो उसके परिणामस्वरूप अन्तःकरण भी शुद्ध होगा. आहार की दृष्टि से भी किसी मनुष्य की पहचान हो सकती है कि वह मनुष्य किस प्रवृत्ति का होगा. […]

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Bhagavad Gita Adhyay 14 : श्रीमद् भगवद्गीता – चौदहवाँ अध्याय (गुणत्रय विभाग योग)

सत्त्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है और रजोगुण से निःसन्देह लोभ तथा तमोगुण से प्रमाद और मोह उत्पन्न होते हैं और अज्ञान भी होता है॥17॥ सत्त्वगुण में स्थित मनुष्य स्वर्ग आदि उच्च लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस मनुष्य मध्य में अर्थात मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद और आलस्य आदि में स्थित तामस मनुष्य अधोगति को अर्थात कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को प्राप्त होते हैं॥18॥ […]