वरुण (Neptune) : सूर्य से सबसे दूर है यह ग्रह, बिना देखे ही केवल Maths से कर ली गई थी खोज

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Neptune Planet in Hindi

Neptune Planet in Hindi

अंतरिक्ष (Space) में कुछ भी स्थिर नहीं है. हमारे सौरमंडल (Solar system) में सूर्य के 8 ग्रह उसके चक्कर लगाते रहते हैं और आठों ग्रहों के उपग्रह अपने-अपने ग्रहों की परिक्रमा करते रहते हैं. इन आठों ग्रहों में चार ग्रह छोटे-छोटे हैं तो चार ग्रह बड़े-बड़े. बुध सबसे छोटा ग्रह है, तो बृहस्पति सबसे बड़ा. शुक्र ग्रह सबसे गर्म है तो अरुण ग्रह (Uranus) सबसे ठंडा. इन सभी ग्रहों में बुध सूर्य के सबसे नजदीक है और वरुण ग्रह सूर्य से सबसे दूर…

बात करते हैं इसी वरुण ग्रह (Neptune or Varun) की, जो काफी कुछ अपने सबसे पास वाले ग्रह अरुण से मिलता-जुलता है, शायद इसीलिए दोनों ग्रहों का नाम भी बिल्कुल जुड़वां भाइयों की तरह ही रखा गया है. वरुण का नाम समुद्र के देवता के नाम पर रखा गया है. वरुण ग्रह देखने में हरे रंग या गहरे नीले रंग का नजर आता है, इसलिए इसे ‘हरा ग्रह’ भी कहा जाता है.

वरुण ग्रह से जुड़े मुख्य पॉइंट्स-

वरुण की सूर्य से दूरी- वरुण ग्रह सूर्य (Sun) से लगभग 4.50 अरब किलोमीटर दूर है (जबकि पृथ्वी सूर्य से करीब 15 करोड़ किलोमीटर दूर है), यानी यह पृथ्वी के मुकाबले सूर्य से लगभग तीस गुना ज्यादा दूर है, जिससे यह सूर्य की एक परिक्रमा 164.79 सालों या लगभग 165 सालों में लगा पाता है. पृथ्वी से इतना दूर होने की वजह से यह ग्रह दूरबीनों से भी बड़ी मुश्किल से ही दिखाई देता है.

बेहद ठंडा ग्रह- सूर्य से इतना दूर होने पर वरुण ग्रह का वातावरण बेहद ठंडा है. यह ग्रह सूर्य के प्रकाश का केवल 40 प्रतिशत ही प्राप्त कर पाता है. यहां का तापमान -218 डिग्री सेल्सियस या 55 केल्विन तक गिर सकता है.

वहीं, वरुण के केंद्र का तापमान लगभग 5,100 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है. सूर्य से सबसे दूर होने के बाद भी यह अपने पड़ोसी ग्रह अरुण से कम ही ठंडा है. अरुण ग्रह का न्यूनतम तापमान 49 केल्विन (-224 डिग्री सेल्सियस) देखा गया है.

पृथ्वी से चार गुना बड़ा है वरुण- व्यास के आधार पर वरुण ग्रह सौरमंडल का चौथा बड़ा और द्रव्यमान (Mass) के आधार पर तीसरा बड़ा ग्रह है. वरुण का द्रव्यमान पृथ्वी से 17 गुना ज्यादा है और अपने पड़ोसी ग्रह अरुण ग्रह से थोड़ा ज्यादा है. वरुण का आकार अरुण से थोड़ा छोटा है. वरुण की भूमध्यरेखीय त्रिज्या की लंबाई 24,764 किलोमीटर है, यानी पृथ्वी से लगभग चार गुना.

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28.32 डिग्री झुका हुआ है वरुण- वरुण अपने अक्ष या धुरी (Axis) पर 28.32 डिग्री झुका हुआ है, यानी इसका अपने अक्ष पर झुकाव करीब-करीब पृथ्वी के झुकाव (साढ़े 23 डिग्री) और मंगल (25 डिग्री) के समान है. इसी वजह से वरुण ग्रह पर मौसमी बदलाव भी लगभग पृथ्वी के समान हैं.

वरुण अपनी धुरी पर एक चक्कर 16.11 घंटे में पूरा करता है (ग्रहों की घूर्णन गति यानी अपनी धुरी पर घूमने की रफ्तार का समय ध्रुवों और भूमध्य रेखा पर अलग-अलग होता है).

वरुण के उपग्रह- वरुण के अब तक 14 प्राकृतिक उपग्रहों (Natural satellites) का पता चला है, यानी 14 उपग्रह वरुण की परिक्रमा करते रहते हैं. इसका सबसे बड़ा उपग्रह ट्राइटन (Triton) है. साल 1989 में ट्राइटन सौरमंडल का खोजा गया सबसे ठंडा पिंड था, जिसका अनुमानित तापमान 38 केल्विन या -235 डिग्री सेल्सियस था. (वरुण के पांच नए छोटे उपग्रहों की खोज साल 2004 और 2005 में की गई थी, जिनके व्यास 38 और 61 किलोमीटर के हैं).

बिना देखे ही खोज लिया गया था वरुण-

वरुण ऐसा पहला ग्रह है, जिसके होने की भविष्यवाणी उसे बिना कभी देखे ही केवल गणित (Maths) के आधार पर कर ली गई थी. दरअसल, एक बार अध्ययन के दौरान अरुण ग्रह (यूरेनस) की परिक्रमा में कुछ अजीब गड़बड़ी का पता चला. इस गड़बड़ी का एक ही मतलब निकल रहा था, कि कोई एक अज्ञात पड़ोसी ग्रह अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravitational Force) का असर अरुण पर डाल रहा है. काफी अनुमान लगाने और खोजबीन करने के बाद 23 सितंबर 1846 को पहली बार दूरबीन से वरुण (नेप्च्यून) को देखा गया. वरुण की खोज के लिए जाने वाला पहला यान वॉयेजर-2 है.

solar system

वरुण पर भी अरुण की तरह बर्फ की है काफी मात्रा

बृहस्पति, शनि और अरुण की ही तरह वरुण भी एक गैसीय ग्रह है. बृहस्पति और शनि के मुकाबले अरुण और वरुण के वातावरण में बर्फ बहुत ज्यादा है. ये ग्रह मुख्य रूप से अलग-अलग तरह की बर्फ से मिलकर बने हैं, जैसे- पानी, अमोनिया और मीथेन. यानी पानी की बर्फ के आलावा इन दोनों ग्रहों में जमी हुई अमोनिया और मीथेन गैसों की बर्फ भी है, इसीलिए खगोलशास्त्रियों ने इन दोनों ग्रहों को ‘बर्फीले गैस दानव’ का भी नाम दिया है.

नोट- सूर्य से दूर ग्रहों- बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण को गैसीय ग्रह (Gaseous Planets) माना जाता है, क्योंकि ये चारों ग्रह मुख्य रूप से अलग-अलग गैसों से मिलकर बने हैं. जबकि बाकी के चारों ग्रह मुख्य रूप से पत्थर और धातुओं से मिलकर बने हैं. गैसीय ग्रह आकार में बड़े हैं, इन ग्रहों के चारों तरफ वलय या रिंग (Rings) पाए जाते हैं और इनके प्राकृतिक उपग्रहों की संख्या भी ज्यादा है. इन चारों ग्रहों को ‘गैस दानव’ भी कहा जाता है.

वरुण के चारों तरफ भी कुछ छितरे-से उपग्रही छल्ले पाए जाते हैं. ये छल्ले सिलिकेट या कार्बन से बनी चीजों के साथ-साथ बर्फ के कण हो सकते हैं, जो कुछ लाल रंग के दिखाई देते हैं.

वरुण की आंतरिक संरचना और वातावरण

वरुण पर चलने वाली हवाओं की गति बहुत तेज और शक्तिशाली है. माना जाता है कि वरुण पर तूफानी हवाएं सौरमंडल के किसी भी ग्रह से ज्यादा तेज चलती हैं और इनकी रफ्तार 2,100 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है.

वरुण की आंतरिक संरचना काफी हद तक अरुण के जैसी है. वरुण का कोर (Core) शायद लोहे, निकल और सिलिकेट से बना है.

बृहस्पति और शनि की तरह, वरुण का वातावरण मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम से बना है. यहां का वातावरण हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन गैस से युक्त है.

वरुण के वातावरण में 80 प्रतिशत हाइड्रोजन और 19 प्रतिशत हीलियम है और कुछ मात्रा में मीथेन भी मौजूद है. वरुण के चारों तरफ ठंडे मीथेन के बादल छाए रहते हैं. वरुण का हल्का नीला रंग उसके ऊपरी वातावरण में मौजूद मीथेन गैस (Methane Gas) की वजह से है.

क्विपर बेल्ट (Kuiper Belt)-

वरुण ग्रह की कक्षा के पास सूर्य के चारों तरफ बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़ों से बना एक घेरा है, जो सूर्य की परिक्रमा करता रहता है. ये घेरा मंगल और बृहस्पति के बीच में अरबों की संख्या में पाए जाने वाले छोटे-छोटे एस्टेरॉयड्स या क्षुद्रग्रहों (Asteroids) के घेरे की ही तरह है.

आपको मालूम होगा कि मंगल और बृहस्पति के बीच में अरबों की संख्या में छोटे-छोटे एस्टेरॉयड्स या क्षुद्रग्रह मौजूद हैं, जो ग्रहों के साथ ही सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं. ये एस्टेरॉयड्स कुछ और नहीं बल्कि पत्थरों और बर्फ के छोटे-बड़े टुकड़े हैं.

वैज्ञानिकों का मानना है कि जब हमारे सौरमंडल का निर्माण हो रहा था, ग्रह और उपग्रह बन रहे थे, तो उनके बनते समय गैस और धूल के कुछ बादल या टुकड़े बच गए थे. ये बचे टुकड़े ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण बल से बंधे हुए हैं और इसीलिए ये अंतरिक्ष में तैरते हुए ग्रहों के साथ ही सूर्य के चक्कर काटते रहते हैं. इन्हें हम धूमकेतु या पुच्छल तारे भी कहते हैं, लेकिन असल में ये तारे नहीं होते, केवल पत्थरों और चट्टानों के टुकड़े हैं.


प्लूटो से क्यों छीना गया ग्रह का दर्जा?

Pluto planet

आप जानते ही होंगे कि साल 2006 से पहले हमारे सौरमंडल में ग्रहों की संख्या 9 थी, लेकिन 2006 में यम यानी प्लूटो (Pluto) को ग्रहों की कैटेगरी से हटा दिया गया, जिसके बाद सौरमंडल में ग्रहों की संख्या 8 हो गई. प्लूटो को साल 1930 में 9वां ग्रह माना गया था. आकार में प्लूटो बुध से भी छोटा है. यह सूर्य से सबसे दूर का ग्रह था, इसलिए यह सूर्य की एक परिक्रमा लगभग 248 सालों में पूरी कर पाता है.

दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (International Astronomical Union-IAU) ने साल 2006 में ग्रहों की नई परिभाषा दी, जिसके अनुसार ग्रह उन्हें कहते हैं-
-जो सूर्य के चारों तरफ परिक्रमा करते हैं,
-जिनका आकार लगभग गोल ही होता है,
-जिनका अपना गुरुत्वाकर्षण बल होता है,
-जिनके आसपास का क्षेत्र साफ-सुथरा हो यानी उनके आसपास अन्य खगोलीय पिंडों की भीड़-भाड़ ना हो.

इनमें से कुछ गुण प्लूटो में नहीं पाए गए, साथ ही प्लूटो सूर्य की परिक्रमा करते हुए कभी-कभी वरुण के रास्ते में भी आ जाता है. इससे वैज्ञानिकों को ये शक हो गया था कि कहीं यह वरुण का ही तो भागा हुआ कोई उपग्रह नहीं है. हालांकि बाद में पता चला कि ऐसा भी नहीं है, लेकिन इसके कई गुण ग्रहों से मैच नहीं होते, इसलिए प्लूटो से ग्रह का दर्जा छीन लिया गया और उसे एक ‘बौने ग्रह (Dwarf Planet)’ का नाम दे दिया गया.

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About Sonam Agarwal 237 Articles
LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

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