Ram Sita Marriage Age
बहुत सी कैलकुलेशन के आधार पर वाल्मीकि रामायण की रचना आज से लगभग 9 लाख साल पहले या उसके आसपास हुई थी. निश्चय ही मूल वाल्मीकि रामायण का उपलब्ध होना असंभव सा ही है. आज हमारे सामने जो वाल्मीकि रामायण उपलब्ध है, उसके अनुसार कुछ लोग यह प्रचार करते हैं कि श्रीराम और सीता जी का बाल विवाह हुआ था. ऐसा क्यों?
क्योंकि उपलब्ध वाल्मीकि रामायण में सीता हरण-के प्रसंग में एक श्लोक के हिंदी अर्थ में सीता जी रावण को बता रही हैं कि “विवाह के बाद मैं 12 वर्षों तक अयोध्या में रहीं. वन गमन के समय मेरी आयु 18 वर्ष और मेरे पति श्रीराम की आयु 25 वर्ष थी.”
अब यदि इस प्रसंग के इन श्लोकों और उनके उपलब्ध हिंदी अर्थों को सत्य माना जाए, या इन श्लोकों के शब्द-मात्राओं को पूरा माना जाए, तो विवाह के समय श्रीराम की उम्र निकलती है 12 वर्ष और सीता जी की उम्र निकलती है मात्र 6 वर्ष. यानी विवाह के समय दोनों बच्चे ही हैं.
बस, पूरी वाल्मीकि रामायण में यही एक श्लोक है, जिसका हिंदी अनुवाद श्रीराम और सीता जी के विवाह को बाल-विवाह साबित करता है. और इसी हिंदी अनुवाद के आधार पर आज बहुत से यूट्यूब वीडियोज और कई आर्टिकल्स में यह जोर-शोर से प्रचारित किया जा चुका है कि उस समय भी बाल विवाह का प्रचलन था. लेकिन यदि हम इसी वाल्मीकि रामायण के अन्य श्लोकों को देखें तो इस तथ्य का पूरी तरह खंडन हो जाता है. जैसे-
♦ वाल्मीकि रामायण में बालकाण्ड के सर्ग-18 के श्लोक-28 में लिखा हुआ है, “लक्ष्मण बाल्यावस्था से ही श्रीराम के प्रति अत्यंत अनुराग (प्रेम) रखते थे. वे अपने बड़े भाई श्रीराम का सदा ही प्रिय करते थे और शरीर से उनकी सेवा में जुटे रहते थे.”
इस श्लोक से स्पष्ट हो रहा है कि भाईयों की बाल्यावस्था बीत चुकी है. और यह श्लोक वहां का है, जब श्रीराम-लक्ष्मण जी विश्वामित्र के आश्रम में भी नहीं गए थे.
♦ अयोध्याकाण्ड में जब माता कैकेयी राजा दशरथ से अपने दो वर मांगती हैं, तब सर्ग 12-श्लोक 84 में राजा दशरथ जी कह रहे हैं कि, “हाय! अब तक तो श्रीराम वेदों का अध्ययन करने, ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करने और अनेकों गुरुजनों की सेवा में संलग्न रहने के कारण दुबले होते चले आए हैं. और अब जब इनके लिए सुखभोग का समय आया है, तब ये वन में जाकर महान कष्ट में पड़ेंगे.”
तो यदि सच में श्रीराम और सीता जी विवाह के बाद 12 वर्षों तक सुखपूर्वक अयोध्या में ही रहे होते, तो फिर राजा दशरथ यह न कहते कि ‘मेरा बेटा अब तक तो वेदों का अध्ययन और ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करता रहा, और जब उसके सुख भोगने का समय आया, तो वह वन को जा रहा है.’
♦ अयोध्याकाण्ड के सर्ग 20-श्लोक 45 में माता कौशल्या श्रीराम की आयु 27 वर्ष बता रही हैं. साथ ही इसी श्लोक से यह भी पता चलता है कि 10 वर्ष की उम्र में तो श्रीराम का उपनयन संस्कार ही हुआ था, जिसके बाद ही उनकी शिक्षा-दीक्षा शुरू हुई. और जब शिक्षा-दीक्षा ग्रहण कर वापस अयोध्या आए, तब वे विश्वामित्र जी के साथ उनके आश्रम को गए.
तो इससे भी सिद्ध होता है कि वनगमन के समय श्रीराम 25 वर्ष के नहीं थे. और जब 10 वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार ही हुआ तो फिर 12 वर्ष की उम्र में विवाह कैसे?
उपनयन संस्कार प्राचीन भारत में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले कुल 16 संस्कार में से एक है, जिसमें बालक यज्ञोपवीत धारण करता है और इसके बाद वह शिक्षा और वेदों को पढ़ने का अधिकार प्राप्त करता है. इस संस्कार को मनुष्य का दूसरा जन्म माना जाता है (द्विज). अलग अलग वर्णों के लिए इस संस्कार की आयु अलग-अलग है.
♦ बालकाण्ड में, जब महर्षि विश्वामित्र राजा दशरथ से श्रीराम को मांगने के लिए आते हैं, तब वहां राजा दशरथ श्रीराम की आयु 15 वर्ष बताते हैं. इसके बाद, श्रीराम बहुत समय तक महर्षि विश्वामित्र जी के आश्रम में रहे, जहां गुरु विश्वामित्र द्वारा श्रीराम को अनेक प्रकार की विद्याएं देना, अनेकों अस्त्र-शस्त्र देना और उनके प्रयोग का ज्ञान देना, ताड़का वध, राक्षसों का वध, अहिल्या उद्धार… आदि घटनाएं होती हैं.
दरअसल, श्रीराम-सीता जी और लक्ष्मण जी विवाह के बाद एक-दो वर्षों तक ही अयोध्या में रहे, लेकिन आज के अनुवादों में दो वर्षों को बारह वर्ष बना दिया गया.
♦ यदि विवाह के समय सीता जी की ही उम्र मात्र 6 वर्ष रही होगी, तो क्या उनकी छोटी बहनों का विवाह उनकी माताओं की गोद में बिठाकर करवाया गया होगा??
लेकिन इसी वाल्मीकि रामायण के अनुसार ऐसा भी प्रतीत नहीं होता, क्योंकि जब विश्वामित्र राजा जनक से उनके छोटे भाई कुशध्वज की दोनों बेटियों- मांडवी और श्रुतिकीर्ति का हाथ भरत और शत्रुघ्न के लिए मांगते हैं, तब विश्वामित्र कहते हैं कि-
“कुशध्वज की दोनों पुत्रियां सुंदर और गुणवती हैं और भरत और शत्रुघ्न की धर्मपत्नी बनने के योग्य हैं”.
निश्चय ही ऐसी बात 3-4 साल की छोटी-छोटी बच्चियों के लिए तो नहीं की जा सकती.
♦ वहीं, विवाह के समय जब श्रीराम शिव धनुष को भंग कर देते हैं, और उनका विवाह माता सीता के साथ तय हो जाता है, तब राजा जनक माता सीता की तुलना एक देवकन्या से करते हैं, न कि एक छोटी बच्ची से. देवकन्या यानी स्वर्ग में रहने वाली युवती. इसी के साथ, बालकाण्ड के ही 77वें सर्ग में माता सीता की तुलना देवांगना (देवताओं की पत्नियों) से करते हुए उन्हें साक्षात मूर्तिमती लक्ष्मी बताया गया है.
♦ इसी के साथ, इसी वाल्मीकि रामायण में सीता-स्वयंवर के समय का एक और हिंदी अर्थ देखिए, जहां राजा जनक विश्वामित्र जी से पूछते हैं कि, “देवताओं के समान पराक्रमी और सुंदर आयुध धारण करने वाले ये दोनों राजकुमार (श्रीराम और लक्ष्मण) कौन हैं, जो सिंह और सांड के समान जान पड़ते हैं, प्रफुल्ल कमल दल के समान सुशोभित हैं, और अपने मनोहर रूप से अश्विनी कुमारों को भी लज्जित कर रहे हैं.”
यहाँ भी यही स्पष्ट हो रहा है कि विवाह के समय श्रीराम बड़े हो चुके हैं, क्योंकि कोई भी व्यक्ति बच्चों के शरीर की तुलना तो ‘सिंह और सांड़’ से करेगा नहीं. और श्रीराम और लक्ष्मण जी की तुलना जिन अश्विनी कुमारों से की गई है, वे अश्विनी कुमार 25 वर्ष के दो सुंदर युवा कुमार हैं.
♦ अब यदि इसी पर हम संस्कृत के सूत्रों की नजर से भी विचार करें तो वाल्मीकि रामायण के अनुसार, 60 हजार वर्ष की आयु में राजा दशरथ पिता बनते हैं और श्रीराम जी 11 हजार वर्ष तक शासन करते हैं. संस्कृत ग्रंथों में मनुष्यों की आयु गणना देवों की आयु के अनुपात में की जाती थी. देव गणित आयु धनात्मकता और ऋणात्मकता लेकर चलती है. अतः इतना समझिए कि आज की आयु के अनुसार विवाह के समय श्रीराम लगभग 25 से 27 वर्ष के और सीता जी लगभग 21 से 24 वर्ष की रही होंगी.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उस समय 25 वर्ष की आयु तक तो सभी पुरुषों के विद्याध्ययन और ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का नियम था. उसी के बाद वह गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करता था. इसी प्रकार स्त्रियों को भी सभी प्रकार की उच्च शिक्षा दी जाती थी. यह बात वाल्मीकि रामायण से ही पता चलती है कि माता कैकेयी राजा दशरथ के साथ युद्ध में जाती थीं और उनकी सारथी भी बनती थीं. इसी प्रकार राजा जनक की सभा में महर्षि याज्ञवल्क्य के साथ ब्रह्मवादिनी गार्गी का शास्त्रार्थ.
तो इसका मतलब कि श्रीराम और सीता जी के विवाह को बाल-विवाह साबित करने के लिए जानबूझकर सीता-हरण के प्रसंग में अच्छी-खासी छेड़छाड़ की गई है, या उनके उपलब्ध हिंदी अर्थ सही नहीं हैं, या श्लोकों के शब्द-मात्रा पूरे नहीं है, या हम देव गणित आयु की गणना के सूत्रों को नहीं समझ पा रहे हैं, जिनसे भ्रम पैदा होता है.
खैर, आज की उपलब्ध वाल्मीकि रामायण में बहुत सारे श्लोकों के अनुवादों में इसी प्रकार की भिन्नता देखने को मिलती है. जैसे-
♦ एक स्थान पर एक श्लोक के हिंदी अर्थ में लिखा है कि, “वह स्थान तपस्या से सिद्ध अग्नि और ब्रह्मा जी के समान तेजस्वी महात्माओं से भरा रहता था. उनमें से कोई जल पीकर तो कोई साधना में लीन रहकर हवा खाकर ही रहता था (यानी वे सब इस प्रकार व्रत रखते थे). कितने ही महात्मा केवल फल-कंद-मूल या सूखे पत्ते खाकर ही रहते थे. मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखने वाले बहुत से महात्मा जप-होम में लगे रहते थे”.
लेकिन इसके तुरंत ऊपर वाले श्लोक के हिंदी अर्थ में लिखा है कि, “वह स्थान तपस्या से सिद्ध तेजस्वी महात्माओं और मृगों से भरा रहता था और वे सभी महात्मा उन मृगों को खाते थे.”
साफ पता चल रहा है कि ऊपर वाला श्लोक या ऐसा विचित्र सा हिंदी अर्थ बाद में जबरन ठूंस दिया गया है.
प्राचीन प्रतियों और आधुनिक संस्करणों में अंतर
सनातन ग्रंथों की प्राचीन प्रतियों और उनके आधुनिक संस्करणों में बड़े अंतर देखने को मिलते हैं. वर्तमान प्रकाशित पुराण ब्रिटिश शासनकाल में सम्पादित किए गए हैं, जिस कारण कई शब्दों और वाक्यों में अंतर देखने को मिलता है. उदाहरण के लिए-
मत्स्य पुराण की प्राचीन प्रति में ‘पञ्चाशतुद्रम’ के स्थान पर ‘पंचशतोत्तरं’ शब्द पाया गया है. अब देखने में तो कोई विशेष अंतर नहीं जान पड़ता, और इस मामूली अंतर पर कोई ध्यान भी नहीं देता, पर गणना करने पर एक बड़ा अंतर आ जाता है.
मत्स्यपुराण के जिस श्लोक में मौर्यवंश का राज्यकाल 316 वर्ष दिया गया था. उसकी छपी हुई प्रति में अक्षर बदलकर उसे इस प्रकार कर दिया गया जिससे उसका अर्थ 137 वर्ष हो गया. लेकिन कलिंग-नरेश खारवेल के हाथीगुम्फा-अभिलेख में मौर्यवंश के संदर्भ में ‘165वें वर्ष’ का स्पष्ट उल्लेख होने से की गयी इस गड़बड़ी का पर्दाफाश हो जाता है.
भारतीय ग्रन्थों के मूल पाठों में कहीं अक्षरों में, कहीं शब्दों में और कहीं-कहीं वाक्यावली में ऐसे ही बहुत से परिवर्तन देखने को मिलते हैं. यही नहीं, इसके साथ-साथ कहीं-कहीं प्रक्षिप्त अंश भी मिलते हैं. ऐसी और भी अनेक गड़बड़ियों का विवरण सुप्रसिद्ध इतिहासकार पं. कोटा वेंकटचलम् ने अपनी पुस्तकों- ‘The Plot in Indian Chronology’ (1953) और ‘Chronology of Kashmir History Reconstructed’ (1955) में दिया है.
आप स्वयं ही समझ सकते हैं कि श्रीराम और सीता जी के विवाह को बाल विवाह साबित करने के लिए किस प्रकार की गड़बड़ की गई होगी.
♦ दरअसल, हम सबकी एक बहुत बड़ी कमी यह रहती है कि हम रामायण या रामचरितमानस जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों में से श्रेष्ठ ढूंढने की बजाय उनके किसी अध्याय में कमी निकालकर लड़ने या कुतर्क करने बैठ जाते हैं, जिससे हम इन ग्रंथों की अच्छी और सार्थक बातों को ग्रहण ही नहीं कर पाते और न ही इनके संदेशों को समझ पाते हैं.
हमें समझना चाहिए कि हजारों-लाखों साल पुराने ग्रंथों में समय के साथ प्रक्षिप्तों या क्षेपकों या अस्पष्ट अनुवादों का होना लाजिमी है. लेकिन चूंकि कुछ लोगों का मुद्दा ये क्षेपक ही रहते हैं, और ये लोग अपने साथ-साथ दूसरों को भी भ्रमित करते रहते हैं, अतः इन क्षेपकों पर स्पष्टीकरण देना कभी-कभी बहुत आवश्यक हो जाता है.
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