Pushpak Viman in Ramayan : पुष्पक विमान की बताई गई हैं ये अद्भुत विशेषताएं

pushpak viman in ramayan, रामायण में पुष्पक विमान
रामायण में पुष्पक विमान

Pushpak Viman in Ramayan

रामायण में विमानों का वर्णन कई जगहों पर किया गया है, हालांकि अयोध्या में किसी विमान के होने का उल्लेख नहीं आता है. रामायण में मुख्य रूप से विमानों के होने का उल्लेख देवताओं के पास या लंका में ही किया गया है. रावण का वध करके श्रीराम और उनकी सेना पुष्पक विमान पर बैठकर अयोध्या वापस आई थी, और उसके बाद श्रीराम ने वह विमान कुबेर के पास भेज दिया था.

वाल्मीकि रामायण में पुष्पक विमान का सर्वप्रथम उल्लेख तब आता है, जब हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका जाकर वहां की हर एक चीज का निरीक्षण कर रहे होते हैं. उस दौरान वे लंका में अद्भुत पुष्पक विमान को भी देखते हैं और बहुत आश्चर्यचकित होते हैं. यह विमान इतना अद्भुत था कि हनुमान जी का ध्यान बार-बार उसकी ओर आकर्षित होता है. निश्चय ही हनुमान जी पृथ्वी पर पहली बार ऐसे किसी अद्भुत विमान को देख रहे थे.

पहली बात तो यह है कि पुष्पक विमान कोई साधारण विमान नहीं था. उस विमान का निर्माण आजकल की तरह कल-पुर्जे जोड़कर नहीं, बल्कि ‘मानसिक संकल्प’ की पद्धति से किया गया था, जिसका जिक्र वाल्मीकि रामायण में कई बार किया गया है. रामायण में साफ बताया गया है कि उस विमान में जो विशेषताएं थीं, वे देवताओं के अन्य विमानों में भी नहीं थीं. पुष्पक विमान का निर्माण स्वयं विश्वकर्मा जी ने किया था और रावण ने निराहार रहकर कठोर तप करके, अपने चित्त को एकाग्र करके उस विमान पर अपना अधिकार प्राप्त किया था.

इसीलिए विमानों का उल्लेख तो रामायण के बाद द्वापरयुग में भी मिलता है, लेकिन पुष्पक विमान जैसे विमान का उल्लेख रामायण के बाद कहीं और नहीं मिलता है. मान लीजिये कि आज वेदों या अलग-अलग वैमानिक शास्त्रों को समझकर प्राचीन टेक्नोलॉजी से विमानों का निर्माण करने में सफलता प्राप्त कर भी ली जाए, तो भी पुष्पक विमान जैसे विमान का निर्माण नहीं किया जा सकता है.

तो आइये जानते हैं कि पुष्पक विमान की क्या विशेषताएं थीं-

“उस दिव्य विमान को बहुत ही सुंदर तरीके से बनाया और सजाया गया था. देवताओं के उत्तम विमानों में सबसे ज्यादा महत्व पुष्पक विमान का ही था. उस विमान की रचना अनेक प्रकार की विशिष्ट-निर्माण कलाओं से की गई थी. जब वह ऊपर उठकर आकाशमार्ग में उड़ता था, तब सौरमंडल के ही किसी चिन्ह की तरह दिखाई देता था.”

“पुष्पक विमान स्वर्ण के समान चमकता हुआ दिखाई देता था. वह अनेक प्रकार के सुंदर फूलों और रत्नों से सजा हुआ था. उस विमान पर श्वेत भवन बने हुए थे. उस पर सुन्दर पोखरों और सरोवरों का भी निर्माण किया गया था” (जैसे आज किसी क्रूज शिप पर अनेकों कमरे और स्विमिंग पूल बनाए जाते हैं).

“पुष्पक विमान में हर एक चीज बहुत ही मेहनत से बनाई गई थी. उस विमान में नीलम, चांदी और मूंगों से पक्षियों और सुन्दर घोड़ों की प्रतिमाओं का भी निर्माण किया गया था. यानी पुष्पक विमान में कोई जानवर-पक्षी नहीं जुते हुए थे, केवल उनकी सुंदर प्रतिमाएं बनाई गई थीं. विमान में देवी लक्ष्मी जी की भी प्रतिमा स्थापित थी और लक्ष्मी जी की प्रतिमा का अभिषेक करते हुए दो हाथी भी बनाए गए थे.”

आगे लिखा है कि पुष्पक विमान को देखकर हनुमान जी बहुत विस्मित होते हैं. फिर सीता जी के न मिलने पर वे अत्यंत दुखी हो जाते हैं और इधर-उधर देखने लगते हैं. इसके बाद हनुमान जी उस पुष्पक विमान की तरफ एक बार फिर देखते हैं. यानी अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण वह विमान हनुमान जी का ध्यान बार-बार अपनी ओर खींच रहा था.

pushpak viman in ramayan, रामायण में पुष्पक विमान

युगों के अनुसार विज्ञान में अंतर (Difference in Science)

सतयुग और त्रेतायुग मे मंत्र+तंत्र+यंत्र शक्तियों पर काम होता था. जैसे रावण का पुत्र मेघनाद मंत्र और तंत्र, दोनों ही साधना में निपुण था. लोग मंत्रों की शक्तियों को अच्छी तरह पहचानते थे और ज्यादातर उसी पर काम करते थे. मंत्र एक खोज होते हैं.

जैसे पुष्पक विमान उसी व्‍यक्‍ति से संचालित होता था, जिसने उस विमान संचालन से संबंधित मंत्र सिद्ध किया हो. इसीलिए उसे संचालित करने वाला अपने मन में जैसे ही संकल्प करता था, वह विमान वहां पहुँच जाता था.

द्वापर में मंत्र शक्ति कमजोर हो जाती है और तंत्र+यंत्र शक्ति बढ़ जाती है, जैसे शाल्व का विमान. वह विमान पुष्पक विमान की तरह अद्भुत नहीं था और न ही उसमें ऐसी विशेष क्षमताएं थीं.

कलयुग में मंत्र शक्ति समाप्त हो जाती है और तंत्र और यंत्र शक्ति प्रभावी हो जाती है. धीरे-धीरे तंत्र शक्ति का भी लोप हो जाता है और केवल यंत्र शक्ति रह जाती है. आज हम मंत्र-तंत्र की विद्याओं और क्षमताओं को खो चुके हैं और केवल आर्टिफिशियल टेक्नोलॉजी पर काम करते हैं. इसलिए अब चारों और यंत्र शक्ति का ही बोलबाला है.

मन की शक्तियां

स्वामी विवेकानंद ने ‘मानसिक संकल्प‘ की पद्धति के कई चमत्कारों को अपनी आंखों से देखा था, जिनका पूरा जिक्र उन्होंने ‘मन की शक्तियां और जीवन गठन की साधनाएं’ नामक पुस्तक में किया है. इस विज्ञान को उन्होंने ‘राजयोग’ का नाम दिया. उनका कहना था कि ये शक्तियां बेहद कठिन हैं लेकिन प्रकृति ने किसी व्यक्ति विशेष को ऐसी शक्तियां देकर नहीं भेजा है. क्रमपूर्वक अध्ययन और अभ्यास से इन्हें कोई भी हासिल कर सकता है. असाधारण शक्तियां हर किसी के मन में हैं. यह मन सृष्टि में अखंड रूप से मौजूद मन का अंश है यानी हर मन एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है. यह विज्ञान वेदों में है, जिसे समझना आज किसी भी सामान्य मनुष्य के वश की बात नहीं.

वैमानिक शास्त्रों को क्यों नहीं समझ पा रहे लोग?

प्राचीन भारत में वैमानिक शास्त्र और ऐसी विद्याओं की जानकारी देने वाले कई ग्रंथ लिखे गए हैं, लेकिन उन्हें समझना बिल्कुल भी आसान नहीं है. इसके कई कारण हैं- पहला तो यही कि वैदिक संस्कृत अब हमारे लिए एक एलियन लैंग्वेज बन चुकी है. दूसरी बात कि बहुत सारा ज्ञान नष्ट हो चुका है. आधे-अधूरे ज्ञान के साथ किसी भी विषय को ठीक से समझना किसी के भी लिए आसान नहीं. और तीसरा कि ऐसे ग्रंथों के श्लोकों की क्रिप्टोग्राफी भी की गई है. यानी इन ग्रंथों के श्लोक लिखे ही इस प्रकार से गए हैं, जिससे उन्हें समझना आसान ही न हो.

मतलब यदि आप इन श्लोकों का अर्थ संस्कृत के साधारण नियमों या शब्दार्थों से लगाएंगे, तो आप इतने भ्रमित हो जायेंगे कि आप सोचेंगे – ‘What is this?’

जैसे वैमानिक शास्त्र में 32 रहस्यों (Systems) की जानकारी आवश्यक बतायी गयी है. उन रहस्यों को जान लेने के बाद ही यह विद्या कुछ समझ आ सकती है.

समरांगणसूत्रधार के लेखक राजा भोज ने लिखा है कि इस वैमानिकी विद्या को खुलकर इसलिए नहीं लिखा गया है, क्योंकि यदि यह विद्या गलत लोगों के हाथों में पड़ गई, तो नुकसान ही अधिक होगा (राजा भोज द्वारा रचित ग्रन्थ जिसके ‘यन्त्रविधान’ नामक 31वें अध्याय में भी विमानविद्या से जुड़े कुछ श्लोक हैं. ऋग्वेद के चौथे मंडल के 36वें सूक्त में भी विमानों का वर्णन हुआ है).

निश्चित सी बात है कि सनातन ग्रंथों के अर्थ का अनर्थ कर उनमें हर समय अश्लीलता-मांसाहार-हिंसा खोजने का शौक रखने वाले लोग इन श्लोकों को कभी समझ ही नहीं सकते, और इस प्रकार ऐसी विद्याएं ऐसे कुपात्रों के हाथों में जाने से बच जाती हैं.


भारत के प्राचीन ज्ञान से सम्बंधित आज हमारी स्थिति उस बच्चे की तरह बनी हुई है, जिसे गणित का कोई फार्मूला बता दिया जाए, तो वह फार्मूला उसे तब तक समझ नहीं आएगा या वह उस फार्मूले का इस्तेमाल तब तक नहीं कर पाएगा, जब तक वह अपने ज्ञान को बढ़ा नहीं लेता.

और यदि मान लीजिये कि हम उन श्लोकों और रहस्यों को समझने में कामयाब भी हो जाएं तो भी उस पद्धति से विमानों का निर्माण कठिन ही होगा, क्योंकि जो संसाधन उनमें बताए गए हैं, वे संसाधन या तो आज उपलब्ध नहीं हैं, या फिलहाल उनकी जानकारी किसी को नहीं है, क्योंकि आधुनिक विज्ञान की खोज अभी अधूरी है.

समझ न पाने के कारण ही 1974 में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु का रिसर्च पेपर ‘क्रिटिकल स्टडी ऑफ द वर्क वैमानिक शास्त्र’ वैमानिक शास्त्र की टेक्नोलॉजी को मात्र एक कल्पना घोषित कर देता है. हालांकि एक खास वर्ग के लोगों को छोड़कर, कोई भी इंस्टीट्यूट या वैज्ञानिक इस रिसर्च पेपर को सीरियसली नहीं लेता है, क्योंकि यह रिसर्च पेपर केवल वर्तमान ज्ञान पर आधारित है, और वर्तमान ज्ञान ही विज्ञान नहीं होता. इसे एक ताजा उदाहरण से समझिये-

वर्तमान ज्ञान के आधार पर अब तक यही माना जाता था अंतरिक्ष में कोई ध्वनि या साउंड नहीं है, क्योंकि अंतरिक्ष का ज्यादातर स्थान अनिवार्य रूप से एक निर्वात है, जो ध्वनि तरंगों के प्रसार के लिए कोई माध्यम नहीं देता है. लेकिन हाल ही में पर्सियस गैलेक्सी क्लस्टर के सेंटर में मौजूद ब्लैक होल और मेसियर 87 ब्लैक होल के सोनिफिकेशन से इस तथ्य का खंडन हो गया है.

Read Also : सनातन धर्म से जुड़े सवाल-जवाब

Read Also : कैसा था शाल्व का विमान, जिससे किया गया था द्वारका पर आक्रमण

Read Also : ‘संख्या के जादूगर’ श्रीनिवास रामानुजन कैसे खोजते थे गणित की समस्याओं का हल

Read Also : द्वैत, अद्वैत, विशिष्‍टाद्वैत और द्वैताद्वैत क्या हैं? निर्गुण और सगुण क्या है?



Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved

All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.



About Niharika 255 Articles
Interested in Research, Reading & Writing... Contact me at niharika.agarwal77771@gmail.com

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*