Glacier meaning in hindi : पृथ्वी का जल से ढका भाग जलमंडल (Hydrosphere) कहलाता है. जलमंडल के तहत महासागर, सागर, ग्लेशियर (Glacier), भूमिगत जल, झील, नदी, तालाब आदि शामिल हैं. पृथ्वी के लगभग 71 प्रतिशत भाग पर जलमंडल का विस्तार है, यानी पृथ्वी के लगभग 71 प्रतिशत भाग पर पानी ही पानी है. पृथ्वी पर जल की ये जितनी भी मात्रा है, उसका करीब 97 प्रतिशत भाग महासागरों के रूप में ही है, लेकिन ये पानी हमारे पीने लायक नहीं.
पृथ्वी के लगभग 2.7 प्रतिशत भाग पर ही हिमनद, नदी, तालाब, झील और भूमिगत जल आदि हैं… और केवल यही पानी हमारे पीने लायक है. आज इनमें से हम हिमनद यानी ग्लेशियर (Glaciers) के बारे में जानते हैं, जो पृथ्वी पर स्वच्छ जल (Fresh water) के सबसे बड़े स्टॉक हैं. हमारे भारत में गंगा जैसी हिमालय से निकलने वाली इतनी बड़ी नदियों के स्रोत (Source) ये ग्लेशियर ही हैं.
ग्लेशियर क्या हैं और ये कैसे बनते हैं? (Glacier meaning)
क्रिस्टलीय बर्फ, चट्टान और जल से बने क्षेत्र, जहां साल के ज्यादातर समय बर्फ ही जमी रहती है, को हिमनद या ग्लेशियर कहते हैं. आसान शब्दों में कहें तो ग्लेशियर ‘बर्फ की नदी’ (River of Ice) हैं. सालों तक एक ही जगह बर्फ के इकठ्ठा होने और उसके जमते रहने से ग्लेशियर (बर्फ के बड़े आकार) बन जाते हैं. अपने-अपने आकार और वजन के अनुसार ये बहुत धीरे-धीरे ढलानों की तरफ खिसकते रहते हैं, या आगे बढ़ते या बहते रहते हैं. ग्लेशियर नीचे आकर पिघलते हैं और पिघलने पर स्वच्छ जल देते हैं, जिन्हें आमतौर पर हम नदी (River) कहते हैं.
ग्लेशियर कहां बनते हैं- ग्लेशियर उन जगहों पर बनते हैं जहां हिमपात (Snowfall) की मात्रा, बर्फ के पिघलने की मात्रा से ज्यादा होती है. यानी जिन स्थानों पर स्नोफॉल ज्यादा होता है, या बर्फ ज्यादा मात्रा में गिरती है, लेकिन बर्फ के पिघलने की स्पीड बहुत कम होती है (जैसे बहुत ठंडे इलाकों में), वहां लगातार बर्फ के जमा होते रहने से ग्लेशियर्स बन जाते हैं.
इस तरह, ग्लेशियर बनने के लिए जरूरी है कि सर्दियों के मौसम में हिमपात के दौरान बर्फ की बड़ी मात्रा इकट्ठी होनी चाहिए. वहीं, सर्दियों के अलावा बाकी बचे साल में भी तापमान इतना ज्यादा नहीं होना चाहिए कि सर्दियों के दौरान जमा हुई पूरी बर्फ पिघल जाए. (ग्लोबल वार्मिंग के चलते धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है, जो ग्लेशियरों के लिए यानी हम सबके लिए बहुत बड़ा खतरा है).
मुख्य रूप से ग्लेशियर दो तरह के होते हैं- पहला अल्पाइन ग्लेशियर और दूसरा आइस शीट्स (हिम चादर या बर्फ की चादर). आइस शीट्स को ‘महाद्वीप ग्लेशियर’ भी कहते हैं. लगभग 99 प्रतिशत ग्लेशियर आइस शीट्स के रूप में ही होते हैं. वहीं, जो ग्लेशियर पहाड़ों पर होते हैं, वे अल्पाइन ग्लेशियर या पर्वतीय हिमनद कहलाते हैं.
हिमपात क्या है, ग्लेशियर किससे बनते हैं- ग्लेशियर उस प्राकृतिक बर्फ (Natural snow) से बनते हैं, जो धरती पर हिमपात (Snowfall) के समय हिम (Snow) के रूप में गिरती है. हिम पानी का वह ठोस रूप है, जो बादलों से हिमपात के रूप में बरसती है. ये रवेदार या नरम होती है (जब तक इन्हें दबाया न जाए यानी जब तक इन पर कोई बाहरी दबाव न लगे). इन हिम कणों का आकार भी अलग-अलग होता है.
हिमपात के रूप में धरती पर गिरने वाली ये हिम बहुत हल्की होती है, क्योंकि यह पानी और हवा का मिश्रण होती है. जब यही हिम एक के ऊपर एक गिरते हुए एक जगह पर जमती चली जाती है, तो दबाव के कारण ठोस और सघन (Dense) होकर बर्फ बन जाती है. बर्फ में हवा की मात्रा कम होती है और फिर ये रवेदार या नरम नहीं रह जाती. यही सघन बर्फ ग्लेशियर बन जाती है.
बर्फ के इस तरह जमने की प्रक्रिया को फर्निफिकेशन (Fernification) कहा जाता है. आमतौर पर जब बर्फ की परत काफी मोटी हो जाती है, यानी जब जमते-जमते लगभग 50 मीटर की हो जाती है, तब फर्निफिकेशन की प्रक्रिया शुरू होती है. इससे ग्लेशियर धीरे-धीरे बहने के साथ ही एक हिमनदी या बर्फ की नदी का रूप धारण कर लेते हैं. अलग-अलग तरह के ग्लेशियरों के बहने की स्पीड अलग-अलग होती है. ग्लेशियरों के बीच में मौजूद बर्फ, उसके तल (Bottom) में मौजूद बर्फ की तुलना में तेजी से बहती है.
हमारे हिमालय के ग्लेशियर (Himalayan Glacier)
हिमालय के हिमनद या ग्लेशियर (Himalayan Glaciers), यानी जो ग्लेशियर हिमालय पर्वतमाला (Himalayan Ranges) पर मौजूद हैं. गंगा जैसी सालभर बहने वाली हिमालयी नदियां (Himalayan Rivers) इन्हीं ग्लेशियरों से तो निकलती हैं. हिमालय के ग्लेशियर लगभग 40,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर फैले हैं और इनकी संख्या 10,000 से ज्यादा है, जो लगभग 12,000 घन किलोमीटर ताजे पानी का स्टॉक रखते हैं.
एक अनुमान के मुताबिक, पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों (अंटार्कटिका और आर्कटिक) के बाद सबसे ज्यादा बर्फ हिमालय पर ही पाई जाती है. हिमालय में ज्यादातर ग्लेशियर सर्क ग्लेशियर (परिभाषा आगे देखिए) हैं. हिमालय के मुख्य ग्लेशियरों में गंगोत्री और यमुनोत्री (उत्तराखंड) और खुंबू ग्लेशियर (माउंट एवरेस्ट क्षेत्र), लंगटांग ग्लेशियर (लैंगटांग क्षेत्र) और जेमू (सिक्किम) शामिल हैं.
भारत का सबसे बड़ा ग्लेशियर (India Largest Glacier)
भारत का सबसे बड़ा ग्लेशियर सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier) है, जो कि हिमालय की पूर्वी काराकोरम पर्वतश्रेणी (Karakoram Range) में भारत-पाक नियंत्रण रेखा (LoC) के पास स्थित है. इसकी लंबाई लगभग 76 किलोमीटर है. यह काराकोरम के पांच बड़े ग्लेशियरों में सबसे बड़ा और ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है.
सियाचिन ग्लेशियर की समुद्रतल से ऊंचाई इसके स्रोत इंदिरा कॉल पर करीब 5,753 मीटर और अंतिम छोर पर लगभग 3,620 मीटर है. सियाचिन पर साल 1984 से भारत का ही नियंत्रण रहा है. सियाचिन के आलावा हिमालय के अन्य महत्वपूर्ण ग्लेशियर सासाइनी, बियाफो, हिस्पर, बातुरा, खुर्दोपिन, रूपल, रिमो, गंगोत्री आदि हैं.
पृथ्वी पर ग्लेशियर और उनकी जरूरत या उपयोगिता (Glacier on Earth)
♦ पृथ्वी पर जितना भी स्वच्छ जल या मीठा पानी या पीने लायक पानी मौजूद है, उसका लगभग तीन-चौथाई भाग ग्लेशियरों के रूप में ही है. यानी हिमनद या ग्लेशियर पृथ्वी पर जल का दूसरा सबसे बड़ा (महासागरों के बाद) और साफ पानी का सबसे बड़ा भंडार हैं.
♦ दुनिया के कुल भौगोलिक क्षेत्र (Geographical Area) के लगभग 10 प्रतिशत भाग पर ग्लेशियर मौजूद हैं. पृथ्वी के लगभग 91 प्रतिशत ग्लेशियर अंटार्कटिका में और 8 प्रतिशत ग्लेशियर ग्रीनलैंड में हैं.
♦ महत्वपूर्ण नदियों का स्रोत हैं ग्लेशियर- हिमालय पर्वत के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक गंगोत्री हिमनद (Gangotri Glacier), गंगा नदी का स्रोत है. गंगा नदी भारत और बांग्लादेश में स्वच्छ जल और इलेक्ट्रिसिटी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है.
नोट- गंगा (Ganga) उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में माना दर्रे के पास लगभग 3,900 मीटर ऊंचे गोमुख के निकट गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है. यहां गंगा को ‘भागीरथी’ कहा जाता है. यानी भागीरथी ही गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है).
♦ पर्वतीय वातावरण (mountainous environments) में जल में रहने वाले कई प्राणियों को जीवित रहने के लिए ठंडे पानी की जरूरत होती है, जो कि उन्हें ग्लेशियरों से मिलता है. इनमें से कुछ जीव-जंतु तो ग्लेशियरों से मिलने वाले ठंडे पानी के बिना जीवित ही नहीं रह सकते हैं.
ग्लेशियर का टूटना या फटना- धरती के अंदर हलचल होने की वजह से जब इसके नीचे तेज गतिविधि होती है, तब ग्लेशियर टूट जाते हैं. इसी के साथ, ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर की बर्फ पिघलकर बड़े-बड़े बर्फ के टुकड़ों के रूप में टूटने लगती है. इस प्रक्रिया को ग्लेशियर का टूटना या फटना कहते हैं. ग्लेशियरों के टूटने से भयंकर तबाही और बाढ़ आ सकती है और आसपास के इलाकों में जानमाल का काफी नुकसान होता है.
ग्लेशियर कितने तरह के होते हैं (Types of Glaciers)-
ग्लेशियरों को आकार और ताप (Size and Temperature) के आधार पर अलग-अलग भागों में बांटा जा सकता है-
(1) आकार के आधार पर ग्लेशियरों के प्रकार-
♦ आइस कैप (Ice Cap Glacier)- जैसा कि नाम से ही पता चलता है, आइस कैप किसी गुंबद के आकार का ग्लेशियर होता है, जो किसी भी दिशा में बह सकता है, जैसे- कैनेडियन आर्कटिक में स्थित एलेस्मेरे द्वीप पर आइस कैप ग्लेशियर. पृथ्वी पर आइस कैप ग्लेशियर कितनी मात्रा में मौजूद हैं, इसकी किसी को ठीक-ठीक जानकारी नहीं है. लेकिन इतना अंदाजा जरूर है कि अगर सभी आइस कैप ग्लेशियर पिघल गए, तो दुनियाभर में समुद्र का जलस्तर (Sea Level) लगभग 70 मीटर तक बढ़ जाएगा, जिससे तटीय इलाकों में बाढ़ के हालात बन जाएंगे.
♦ अल्पाइन ग्लेशियर या घाटी हिमनद (Valley Glaciers)- वैली ग्लेशियर को ही पर्वतीय हिमनद या अल्पाइन ग्लेशियर (Alpine Glaciers) भी कहा जाता है, क्योंकि ये पर्वतों पर बनते हैं और घाटियों से होकर नीचे की तरफ धीरे-धीरे बहते हैं. ये ग्लेशियर ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर सभी महाद्वीपों के ऊंचे पर्वतों पर पाए जाते हैं, जैसे- स्विटजरलैंड में गॉर्नर ग्लेशियर और तंजानिया में फर्टवांग्लर ग्लेशियर (ये ग्लेशियर न्यूजीलैंड में भी पाए जाते हैं).
♦ हिम चादर या आइस शीट्स (Ice sheet Glaciers)- हिम चादरें या आइस शीट्स जैसे-जैसे फैलती हैं, वे अपने चारों तरफ बर्फ की मोटी परत या चादर से घाटियां, मैदान और यहां तक कि पर्वतों तक को ढक लेती हैं. घाटी या पर्वतीय ग्लेशियर तो केवल ढलानों की तरफ बहते हैं, जबकि आइस शीट्स ग्लेशियर गुंबदाकार होने के साथ ही सभी दिशाओं में बहते हैं, क्योंकि ये ग्लेशियर केवल पर्वतीय इलाकों तक ही सीमित नहीं होते हैं.
बड़ी हिम चादरों या आइस शीट्स को महाद्वीपीय हिमनद (continental glaciers) कहा जाता है. लगभग 99 प्रतिशत ग्लेशियर आइस शीट्स के रूप में ही होते हैं. ज्यादातर महाद्वीपीय ग्लेशियर अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड द्वीप में फैले हुए हैं.
♦ सर्क हिमनद (Cirque Glaciers)- जब किसी पर्वतीय भाग में ग्लेशियर्स पिघलते हैं, तो वहां आरामदायक बैठने की कुर्सी या कटोरे के जैसा आकार बन जाता है, जिसे सर्क ग्लेशियर कहा जाता है. ये ग्लेशियर छोटे और चौड़े होते हैं.
(2) तापमान के आधार पर ग्लेशियरों के प्रकार-
♦ ध्रुवीय हिमनद (Polar Glacier)- वे ग्लेशियर, जिनके पूरे भाग का तापमान सालभर गलनांक बिंदु (melting point) से नीचे होता है.
♦ समशीतोष्ण हिमनद (Temperate Glacier)- वे ग्लेशियर, जिनका तापमान गलनांक बिंदु के आसपास होता है, यानी यहां बर्फ और पानी दोनों मौजूद होते हैं. ये ग्लेशियर उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, एशिया और न्यूजीलैंड में पाए जाते हैं. अंटार्कटिक और ग्रीनलैंड के दक्षिणी भाग के ग्लेशियरों में कुछ समशीतोष्ण ग्लेशियर भी मौजूद हैं.
बहुत जरूरी है ग्लेशियरों को बचाना
हम अक्सर सुनते आए हैं कि ग्लेशियरों को बचाना बहुत जरूरी है. गंगोत्री और हिमालय के अन्य ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं, यानी पिघल रहे हैं या उनका आकार कम होता जा रहा है. ऐसा दुनिया के लगभग सभी ग्लेशियरों के साथ हो रहा है और इसका मुख्य कारण है धरती का लगातार बढ़ता तापमान यानी ग्लोबल वार्मिंग. ये एक बहुत बड़ी चिंता का विषय बन चुका है. आगे चलकर इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल सकते हैं.
जैसे- समुद्र का जल स्तर बढ़ जाएगा जिससे तटों पर बसे इलाके डूब जाएंगे या उन में बाढ़ के हालात बन जाएंगे. हमारी महत्वपूर्ण नदियां सूखने लगेंगी. गर्मियों में पानी की मात्रा इतनी कम हो जाएगी कि उसे सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए भी पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं बच पाएगा. इसी के साथ ग्लेशियरों के पिघलने या सिकुड़ने से दुनियाभर की जलवायु पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि ग्लेशियर अपने आसपास की जलवायु और निचली जलधाराओं के तापमान पर बहुत असर डालते हैं.
उत्तराखंड के चमोली का हादसा
फरवरी 2021 में उत्तराखंड के चमोली जिले में जोशीमठ के पास बन रहे दो पावर प्रोजेक्ट्स में एक बड़ी जनहानि के साथ हुए हादसे ने सभी का ध्यान उत्तराखंड के ग्लेशियरों में हो रहे पर्यावरण के नुकसान की तरफ खींचा, जहां ग्लेशियर फटने से धौली गंगा नदी में अचानक जलस्तर बढ़ गया था, जिससे तेज बहाव के कारण काफी लोग लापता हो गए थे, कई पुल टूट गए थे और कई गांवों से संपर्क भी टूट गया था. यह हादसा बताता है कि पर्वतों, नदियों और ठंडे ऊंचे इलाकों में ग्लेशियर्स का आपसी संबंध कितना नाजुक होता है.
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