Saptarishi Taramandal : सप्तर्षि किसे कहते हैं, वर्तमान में सप्तर्षियों में कौन-कौन शामिल हैं?

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Saptarishi Taramandal (सप्तर्षि)

What is Saptarishi Mandal

सप्तर्षि या सप्तऋषि (Saptarshi) जैसा कि नाम से ही विदित है सात ऋषि. सप्तर्षियों का प्रादुर्भाव श्री ब्रह्मा जी के मानस संकल्प से हुआ है, अतः सप्तर्षि को ब्रह्माजी का मानस पुत्र कहा जाता है, जो सृष्टि के निर्माण एवं विकास में योगदान देते हैं. ब्रह्माजी के बाद इन्हें भी द्वितीय विधाता की उपाधि से अलंकृत किया जाता है.

ये सप्तर्षि एक रूप में ‘नक्षत्रलोक’ में सप्तऋषि मंडल में स्थित रहते हैं और दूसरे रूप में तीनों लोकों में विशेष रूप से ‘भूलोक’ में स्थित रहकर लोगों को धर्माचरण व सदाचार की शिक्षा देते हैं. ये अपनी तपस्या, साधना, योग से ज्ञान अथवा जिस प्रकार से भी हो, विश्व का कल्याण करते हैं. हर मन्वंतर में सप्तर्षि बदलते रहते हैं. मत्स्य (भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार) सप्तर्षि और मनु को महाप्रलय से बचाते हैं.

काल गणना और मनु

अब तक प्राप्त जानकारी के आधार पर, एक मन्वंतर ७१ चतुर्यग का होता है. प्रत्येक चतुर्युग की आयु ४३,२०,००० वर्ष है, जिसमें से कलियुग की आयु ४,३२,००० वर्षों की है. द्वापर की आयु कलियुग से दोगुनी, त्रेतायुग की आयु कलियुग से तिगुनी और सतयुग की आयु कलियुग की चौगुनी होती है. ब्रह्माजी के प्रत्येक कल्प में १४ मन्वंतर में १००८ युग बीत जाते हैं. साधारणतः हम १००० युगों का एक कल्प भी कह देते हैं. वर्तमान कल्प श्वेतवाराह कल्प के वैवस्वत मन्वंतर का २८वें चतुर्यग का कलियुग है. इससे पहले ६ मन्वंतर बीत चुके हैं.

Shri Brahma ji ki puja

हर मन्वंतर में भिन्न-भिन्न सप्तर्षि होते हैं. हर मन्वंतर में मनु भी बदल जाते हैं. प्रत्येक मन्वंतर में एक प्रथम पुरुष होता है, जिसे मनु कहते हैं. एक मनु का कार्यकाल १ मन्वंतर होता है. साधारणतः हम मनु को एक ही समझ लेते हैं एवं श्रीराम के पूर्वज मनु और ब्रह्माजी के दायें भाग से उत्पन्न मनु को एक ही मान लेते हैं, जबकि साहित्यिक ग्रंथों के अनुसार, प्रत्येक मन्वंतर एक विशेष मनु द्वारा शासित होता है, जिन्हें ब्रह्माजी द्वारा सृजित किया जाता है (जैसे वर्तमान सातवें मन्वंतर में वैवस्वत मनु का शासन है). इनके साथ ही एक नये इंद्र और सप्तर्षि भी नियुक्त किये जाते हैं.

वर्तमान मनु सूर्य व संज्ञा (विश्वकर्मा जी की पुत्री) के पुत्र हैं, जिनका नाम विवस्वान है. उन्हीं के नाम पर इसे वैवस्वत मन्वंतर कहते हैं. इनके पुत्र का नाम इक्ष्वाकु था (जिनके वंश में भगवान् श्रीराम ने अवतार लिया). विवस्वान की पत्नी का नाम श्रद्धा था. इसी कारण यह मन्वंतर श्राद्धदेव या वैवस्वत मन्वंतर कहलाता है. वर्तमान के सप्तर्षि में कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि एवं भरद्वाज की गणना की जाती है.

सप्तर्षि (Saptarshi)

‘सप्तर्षि’ शब्द का उल्लेख ऋग्वेद, शुक्ल यजुर्वेद, कृष्ण यजुर्वेद और अथर्ववेद की संहिताओं के अनेक मंत्रों में है. सप्तर्षियों के नामों का उल्लेख ब्राह्मण ग्रन्थों और उपनिषदों में प्राप्त होता है. सप्त ऋषियों की सबसे प्रारंभिक औपचारिक सूची जैमिनीय ब्राह्मण २.२१८-२२१ में दी गई है- अगस्त्य, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ, और विश्वामित्र. इसके बाद बृहदारण्यक उपनिषद २.२.६ में थोड़ी अलग सूची दी गई है-अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, कश्यप, वशिष्ठ और विश्वामित्र.

इसी प्रकार, गोपथ ब्राह्मण १.२.८ में वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, गौतम, भारद्वाज, गुंगु, अगस्त्य और कश्यप हैं. कृष्ण यजुर्वेद संध्या वंदना मंत्र में- अंगिरस, अत्रि, भृगु, गौतम, कश्यप, कुत्सा, वशिष्ठ. महाभारत के अनुसार- मरीचि, अत्रि, पुलह, पुलत्स्य, क्रतु, वशिष्ठ, कश्यप. बृहत्संहिता के अनुसार- मरीचि, वशिष्ठ, अंगिरस, अभि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु.

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पौराणिक तथ्यों के अनुसार, ब्रह्माजी द्वारा पृथ्वी आदि महाभूतों तथा अन्य तत्त्वों की उत्पत्ति एवं उनके स्थान का निर्धारण किया गया. ब्रह्माजी द्वारा प्रथम दस मानस-पुत्रों (ऋषियों)- नारद, भृगु, वसिष्ठ, प्रचेता, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरस (अंगिरा) और मरीचि का सृजन हुआ. इनमें से नारद, भृगु एवं प्रचेता को छोड़कर शेष ऋषि सप्तर्षि कहलाये. आकाश में सप्तर्षि तारामंडल में तारों का जो समूह है, वह भी इन्हीं सप्तर्षियों के नाम पर है.

इनमें मरीचि मन से, अत्रि नयन से, कान से पुलस्त्य, मुख से अंगिरा/अंगिरस, प्राणवायु से वशिष्ठ, हाथ से कृतु, नाभि से पुलह हुए. अपने शरीर को दो भागों में विभक्तकर स्वयम्भुव मनु एवं शतरूपा का निर्माण. इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई. मनु की सन्तान होने के कारण ही हम ‘मानव’ या ‘मनुष्य’ कहलाए. स्वयम्भुव मनु को ‘आदि’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘प्रारम्भ’.

पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती है. विष्णु पुराण के अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार हैं-

वशिष्ठकाश्यपोऽत्रिर्जमदग्निस्सगौतमः।
विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्॥

अर्थात् सातवें मन्वंतर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज. इसके अलावा अन्य पुराणों के अनुसार सप्तर्षियों की नामावली इस प्रकार है- क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरस, वसिष्ठ और मरीचि. वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है वे इस प्रकार है- वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव व शौनक.

विज्ञान में सप्तर्षि

सप्तऋषि तारामंडल का नाम अंग्रेजी में बिग डिपर (Big Dipper) रखा गया है. यह उत्तरी गोलार्ध में दिखाई देने वाले सात तारों का एक समूह है. यह उरसा मेजर (Ursa Major) नाम के एक बड़े नक्षत्र का हिस्सा है और एक बड़े प्रश्नचिन्ह या किसी बड़ी पतंग की तरह दिखाई देता है. सप्तर्षि तारामंडल में कई आकाशगंगाओं के होने का भी पता लगाया गया है. सप्तर्षि तारामंडल ध्रुव तारे (Pole Star) के चारों ओर 24 घंटे में एक चक्कर पूरा करता है. इस तारामंडल के दो तारे ध्रुव तारे की ओर संकेत करते हुए प्रतीत होते हैं.

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एक रोचक तथ्य देखिए- सप्तर्षि तारामंडल में महर्षि वशिष्ठ कहलाने वाले तारे के निकट एक कम प्रकाश वाली तारिका दिखाई देती है, जिसे अरुंधति कहा जाता है, महर्षि वशिष्ठ की पत्नी अरुंधति, सप्तर्षि तारामंडल में अपने पति के साथ युगों-युगों से विराजमान हैं. इनके बीच की दूरी कभी कम नहीं हुई. वशिष्ठ और अरुंधति दो युग्म तारे हैं, जो एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं. ठीक वैसे ही, जैसे एक आदर्श गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी दोनों एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं. अर्थात एक-दूसरे की सुनते हैं, मानते हैं. और इसीलिए तो फेरों के समय बारी-बारी से दोनों आगे चलते हैं. जिस विषय में जो सही रास्ता दिखा सकता है वही दिखाए. हमारी भारतीय परम्परा में नवविवाहित जोड़े को वशिष्ठ और अरुंधति की तरह साथ-साथ युगों-युगों तक चमकने का आशीर्वाद दिया जाता है.

विज्ञान ने इन दो युग्म तारे का नाम ‘मिजार डबल’ (Mizar and Alcor) रखा है. NASA के अनुसार, “बिग डिपर तारामंडल में स्थित मिजार एक द्विआधारी तारा (Binary Star) है और दोनों तारे एक पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण बल से बंधे हुए हैं. ये दोनों तारे एक-दूसरे के इतने करीब हैं कि इन्हें अलग-अलग तारों के रूप में सीधे तौर पर नहीं देखा जा सकता है.” तो आप देख सकते हैं कि केवल नाम और शब्द अलग-अलग हैं, लेकिन तथ्य वही हैं.

Written By : Pushkar Singh (Intersted in research related to Hindu philosophy, history and biology)

Edited By : Niharika


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