Stubble Burning : पराली जलाना क्या है? पराली जलाने से होने वाले नुकसान

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पराली जलाना क्या है? पराली जलाने से होने वाले नुकसान

What is Stubble Burning

अगली फसल बोने के लिए, पुरानी फसल के अवशेषों को खेत से हटाने के लिए उन्हें जलाना या उनमें आग लगाने को पराली जलाना कहते हैं. पराली दहन (Stubble Burning) अक्टूबर के आसपास शुरू होता है और नवंबर में अपने चरम पर होता है, जब दक्षिण-पश्चिम मानसून (Southwest Monsoon) वापस लौट रहा होता है.

पंजाब और हरियाणा में, किसान चावल की फसल के बाद बचे डंठल (चावल की भूसी) को जला देते हैं ताकि खेत को गेहूं जैसी अगली रबी (सर्दियों) की फसल के लिए तैयार किया जा सके. इन क्षेत्रों में, यह अक्टूबर के आसपास शुरू होता है, उसी समय जब दक्षिण-पश्चिम मानसून वापस जाता है.

भारत के पंजाब राज्य में दो फसलें उगाई जाती हैं- एक मई से सितंबर तक और दूसरी नवंबर से अप्रैल तक. कई किसान मई में चावल और नवंबर में गेहूँ बोते हैं. गेहूँ की फसल के लिए अपने खेतों को जल्दी से तैयार करने के लिए, कई किसान चावल की कटाई के बाद बचे हुए पौधों के अवशेषों को जला देते हैं. इसे धान की पराली जलाना कहते हैं.

पहले, किसान पराली का उपयोग जानवरों को चारा देने या घरों को गर्म रखने और यहां तक ​​कि खाना पकाने के लिए घास के रूप में भी करते थे. लेकिन पराली के ये उपयोग अब पुराने हो चुके हैं. कटाई के बाद बड़ी मात्रा में चावल के अवशेष बचे रहने का एक कारण कृषि का बढ़ता आधुनिकीकरण और मशीनीकरण है.

यंत्रीकृत कटाई से चावल के दाने निकल जाते हैं और खेत में बड़ी मात्रा में अवशेष बच जाते हैं. पराली को खेत में छोड़ने से दीमक और अन्य कीड़ों को निमंत्रण मिलता है, जो अगली फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं. मैन्युअल कटाई से भारी श्रम और अधिक समय लगता है, जिस कारण किसान पराली जलाने के विकल्प का चुनाव करते हैं. धान के भूसे के अवशेषों को खेत से साफ करने के लिए पराली जलाना एक त्वरित (quick), सस्ता और आसान तरीका है.

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 188 के तहत पराली जलाना एक अपराध है. इसके अतिरिक्त, इसे वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत एक अपराध के रूप में अधिसूचित किया गया था. प्रतिबंधित होने के बावजूद, भारत में यह प्रथा जारी है, जहां किसान अपने खेतों से पराली हटाने के लिए व्यवहार्य विकल्पों की कमी का हवाला देते हैं.

पराली जलाने से होने वाले नुकसान

पराली दहन से वायुमंडल में कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), मीथेन (CH4), कैंसरकारक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) जैसे जहरीले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं (Stubble burning emits toxic pollutants). ये प्रदूषक आसपास के वातावरण में फैल जाते हैं और स्मॉग की मोटी परत बनाकर वायु की गुणवत्ता (Air Quality) और लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं.

एक अध्ययन के मुताबिक, फसल अवशेष जलाने से लगभग 149 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड, 9 मिलियन टन से अधिक कार्बन मोनोऑक्साइड, 0.25 मिलियन टन सल्फर ऑक्साइड (SOx), 0.07 मिलियन टन ब्लैक कार्बन और 1.28 मिलियन टन पार्टिकुलेट मैटर (PM) निकलता है. जैसा कि स्पष्ट है, यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse Gas Emissions) में बहुत योगदान देता है.

विशेष रूप से, पंजाब और हरियाणा में पराली जलाना दिल्ली सहित देश के अन्य हिस्सों में सर्दियों की धुंध का कारण बनता है, जहां सतह के निकट पार्टिकुलेट मैटर का लगभग 40% पराली जलाने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

पराली जलाने से सूक्ष्म कण निकलते हैं, एक वायु प्रदूषक जो हवा में स्तर ऊंचा होने पर लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा है. ये महीन कण फेफड़ों के अंदर फंस जाते हैं, जो फेफड़ों के कैंसर का खतरा 36% तक बढ़ा सकते हैं. उच्च प्रदूषण स्तर के कारण दिल्ली के निवासियों की जीवन प्रत्याशा में लगभग 6.4 वर्ष की कमी आई है.

मिट्टी की उर्वरता- पराली जलाने से मिट्टी की उर्वरता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यह मिट्टी के पोषक तत्वों को नष्ट कर देता है जिससे मिट्टी कम उपजाऊ हो जाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जलाने के दौरान उत्पन्न गर्मी बैक्टीरिया और फंगल आबादी को मार देती है जो उपजाऊ मिट्टी के लिए महत्वपूर्ण हैं. मिट्टी की ऊपरी परतों की घुलनशीलता क्षमता भी कम हो गई है.

पराली जलाने से ‘दुश्मन’ कीटों में भी वृद्धि हो जाती है, क्योंकि जलाने के दौरान हवा में मौजूद कई सूक्ष्मजीव मर जाते हैं. ‘मित्र’ कीटों के नष्ट होने से ‘शत्रु’ कीटों का प्रकोप बढ़ गया है जिसके फलस्वरूप फसलों की रोग-प्रवणता में वृद्धि हुई है (इन जीवों के नष्ट होने से कीटों में वृद्धि होती है, जिससे फसलों में बीमारियाँ बढ़ती हैं).

पराली जलाने का एक और दुष्परिणाम ‘धन’ की हानि है.

पराली को गाय के गोबर और कुछ प्राकृतिक एंजाइमों के साथ मिलाकर हाई क्वालिटी की जैविक खाद (Organic Manure) तैयार की जा सकती है. पराली जलाने से हर साल बड़ी मात्रा में नाइट्रोजन, पोटेशियम, सल्फर, फॉस्फोरस के साथ-साथ कार्बनिक कार्बन भी नष्ट हो जाता है. जबकि इनका इस्तेमाल जैविक खाद बनाने में किया जाना चाहिए. इससे रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता और उपयोग में भी कमी आएगी. इसी के साथ, पराली का उपयोग बिजली उत्पादन में भी किया जा सकता है.

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