Ram Mandir Ayodhya Tourism
भगवान श्रीराम (Shri Ram) की नगरी अयोध्या या अवधपुरी (Ayodhya or Awadhpuri) को कौन नहीं जानता. यही वह पवित्र और पुण्यभूमि है, जहां भगवान श्रीहरि के एक पूर्णावतार भगवान श्रीराम जी का जन्म हुआ और जहां उन्होंने महालक्ष्मी स्वरूपा मां सीता जी के साथ हजारों वर्षों तक शासन किया.
और इसीलिए अयोध्या का नाम विश्व के सात सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों (सप्तपुरी) में सबसे पहले आता है. अब दीपावली और रामनवमी जैसे त्योहारों पर अयोध्या का एक अलग ही नजारा होता है. हर एक व्यक्ति को अपने जीवन में एक न एक बार अयोध्या में आने और भगवान श्रीराम के दर्शनों का सौभाग्य जरूर प्राप्त करना चाहिए.
जानिए- राजा दशरथ के समय कैसी थी अयोध्या
सरयू नदी (Sarayu River) के दाहिने किनारे पर स्थित अयोध्या कभी प्राचीन कौशल साम्राज्य (Kosala Empire) की राजधानी थी. सदियों से यह सूर्यवंश (Suryavansh) के वंशजों की राजधानी रही है. भगवान श्रीराम से पहले यहां इक्ष्वाकु, पृथु, मान्धाता, हरिश्चंद्र, सगर, भागीरथ, रघु, दिलीप, दशरथ जैसे राजा वीर-प्रतापी राजाओं का शासन रहा है.
ऐसे ही राजाओं के कारण इस नगर का नाम अयोध्या पड़ा, जिसका अर्थ है ‘अजेय’ या ‘जिसे युद्ध में जीता न जा सके’. अयोध्या पुरातन काल के अवशेषों से भरी हुई है. प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण और श्री रामचरितमानस अयोध्या के ऐश्वर्य को प्रदर्शित करते हैं.
विदेशी आक्रांताओं ने अयोध्या में कई बार भगवान श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को नुकसान पहुंचाया, तोड़ा, लूटपाट की और कब्जा करने का प्रयास किया, जैसे- बौद्धों ने यहां अपने मठ-स्तूप बनवाए, फिर मुस्लिम आक्रांताओं ने जबर्दस्त तोड़फोड़ और लूटपाट की, मस्जिदें बनवाईं, उसके बाद डेढ़ शताब्दी तक लुटेरे अंग्रेजों की गुलामी, और फिर स्वतंत्रता के नाम पर तथाकथित से.क्यु.ल.रिज्म का बंधन… लेकिन इन सबके बाद भी अयोध्या का अस्तित्व इसके मूलरूप में ही सुरक्षित है. आज भी पूरा संसार इस सच को जानता है कि अयोध्या भगवान श्रीराम की ही जन्मभूमि और कर्मभूमि है.
अयोध्या इस विश्वास का प्रतीक है कि अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो, पर वह छंटता जरूर है. इसलिए व्यक्तिगत या सामाजिक किसी भी स्तर पर यदि आत्मविश्वास डगमगाए, यदि कोई मुद्दा सुलझता हुआ न दिखाई दे रहा हो तो अयोध्या जी को प्रणाम कीजिये और विश्वास रखिये कि विजय सदा धर्म की होगी. इसे कोई नहीं रोक सकता…
श्रीराम जन्मभूमि मामला- श्रीराम मंदिर मामले में 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने 38 मिनट में 1045 पन्नों का यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया. इस फैसले में अहम सबूत बने- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट, 1510-11 के बीच गुरु नानक देव जी की अयोध्या यात्रा और भक्तों की हमेशा से आस्था और विश्वास.
यह विवाद साल 1528 से शुरू हुआ था. सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुनकर लोगों ने कहा कि, “त्रेतायुग में तो भगवान राम 14 सालों में ही वनवास से अयोध्या वापस लौट आए थे, लेकिन कलियुग में उन्हें अयोध्या लौटने में 451 साल लग गए”. 5 अगस्त 2020 को, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए श्री राम मंदिर की औपचारिक आधारशिला रखी, जहां करोड़ों भक्तों की आस्था का प्रतीक एक भव्य मंदिर तैयार किया जा रहा है. विश्व की प्राचीनतम पवित्र नगरी अयोध्या जी की इस भव्यता का मूल्य सब नहीं समझ सकते, इसे वे ही महसूस कर सकेंगे जो लोहे की जालियों के बीच फटी हुई तिरपाल में बैठे रामलला को देख कर रोये होंगे.
आज की अयोध्या के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल-
हनुमान गढ़ी, अयोध्या (Hanuman Garhi Ayodhya)- हनुमान गढ़ी, प्रत्येक कोने पर गोलाकार गढ़ों वाला एक विशाल चार-पक्षीय किला है, जिसमें हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित है. हनुमान गढ़ी को दुनिया के सभी हनुमान मंदिरों का मुख्यालय भी कहा जाता है. लोगों का विश्वास है कि जब-जब अयोध्या की मूल संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की गई, तब-तब इसी मंदिर से हनुमान जी किसी न किसी रूप में आकर नगर की रक्षा करते हैं.
हनुमान गढ़ी का निर्माण एक किले की आकृति में हुआ है. दर्शनों के लिए मंदिर की 76 सीढ़ियाँ चढ़ कर जाना होता है. मंदिर में हनुमान जी की एक स्वर्ण प्रतिमा स्थापित है. मुख्य मंदिर में मां अंजनी की मूर्ति है, जिसकी गोद में बाल हनुमान विराजमान हैं. यह अयोध्या के सबसे सम्मानित स्थानों में से एक माना जाता है. रोजाना हजारों श्रद्धालु हनुमान जी के पूजन के लिए हनुमान गढ़ी के दर्शन करने के लिए आते हैं. यह एक रिवाज है कि अयोध्या में राम मंदिर जाने वाले भक्तों को पहले हनुमान गढ़ी के दर्शन करना चाहिए.
कनक भवन (Kanaka Bhavan)- कनक भवन एक मंदिर है. रामायण काल में यह पूरा भवन महारानी कैकेयी का था और पूरी तरह सोने का बना हुआ था. माता कैकेयी ने सीता जी की मुखदिखाई पर अत्यंत प्रसन्न होकर यह अपना पूरा भवन सीता जी को उपहार में दिया था. यहां सीता-राम जी के साथ उनके तीनों भाई-बहनों की सुंदर प्रतिमाएं स्थापित हैं. वर्तमान मंदिर का निर्माण टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश) की रानी वृषभानु कुंवरि ने 1891 में करवाया था. मंदिर में सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 8 बजे से 11.30 बजे तक और शाम 4.30 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन किए जा सकते हैं.
रामकोट (Ramkot)- रामकोट अयोध्या में पूजा का मुख्य स्थान है. यह एक ऊंचे भूभाग पर स्थित है और मंदिरों से परिपूर्ण है. यह अयोध्या के प्रमुख आकर्षणों में से एक है. चैत्र मास में (मार्च-अप्रैल) में यहां श्री रामनवमी का पर्व बहुत ही वैभव और धूमधाम से मनाया जाता है. इस समय न केवल पूरे देश बल्कि दुनियाभर से तीर्थयात्री यहाँ इकठ्ठा होते हैं.
नागेश्वरनाथ मंदिर (Nageshwarnath Temple)- नागेश्वरनाथ के मंदिर की स्थापना भगवान श्रीराम के बड़े पुत्र कुश ने की थी. कहा जाता है कि सरयू में स्नान करते समय कुश का बाजूबंद पानी में खो गया था. इसे एक नागकन्या द्वारा पुनः प्राप्त किया गया था, जिसे कुश से प्रेम हो गया था. चूंकि वह कन्या भगवान शिव की बड़ी भक्त थी, इसलिए कुश ने उसकी इच्छा पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था. यहां स्थापित शिवलिंग की स्थापना का समय अज्ञात है. मंदिर के वर्तमान भवन का निर्माण 1750 ईस्वी में किया गया था. यहां शिवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.
तुलसी स्मारक भवन (Tulsi Smarak Bhavan)- तुलसी स्मारक भवन महान संत कवि गोस्वामी तुलसी दास जी को समर्पित है. यहां नियमित प्रार्थना सभाएं, भक्तिमय सम्मेलन और धार्मिक प्रवचन आयोजित किए जाते हैं. इस परिसर में अयोध्या शोध संस्थान भी स्थित है जिसमें गोस्वामी तुलसी दास जी द्वारा रचित रचनाओं का संकलन है. तुलसी स्मारक सभागार में रोजाना 6:00 बजे से लेकर 9:00 बजे तक रामलीला का मंचन किया जाता है जो एक प्रमुख आकर्षण है.
त्रेता के ठाकुर (Treta Ke Thakur)- यह ‘काले राम के मंदिर’ के नाम से भी प्रसिद्ध है. यहां स्थापित मूर्तियां काले पत्थर से निर्मित हैं. कहा जाता है कि ये मूर्तियां राजा विक्रमादित्य के युग की हैं. यही वह सुंदर स्थान है, जहां भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया था. वर्तमान मंदिर का निर्माण कुल्लू (हिमाचल प्रदेश) के राजा ने लगभग तीन शताब्दी पूर्व करवाया था. बाद में इंदौर (मध्य प्रदेश) की महारानी अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) ने इसका जीर्णोद्वार करवाया.
मणि पर्वत (Mani Parvat Ayodhya)- जब हनुमान जी लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर जा रहे थे, तब जैसे ही वे अयोध्या के ऊपर के आकाश से निकले, तभी श्रीराम के भाई भरत ने देखा कि कोई विशालकाय जीव हाथों में पर्वत उठाए अयोध्या के ऊपर से जा रहा है तो उन्होंने हनुमान जी को शत्रु समझकर उन पर बाण चला दिया. हनुमान जी ‘श्रीराम’ कहते हुए, पर्वत को संभालते हुए धरती पर गिर पड़े.
तब भरत जी को एहसास हुआ कि उन्होंने किसी शत्रु पर नहीं, बल्कि किसी रामभक्त पर बाण चला दिया है. वे तुरंत हनुमान जी के पास गए और हनुमान जी को श्रीराम की शपथ दी. यह सुनते ही हनुमान जी फिर से उठ खड़े हुए. फिर भरत ने उनसे क्षमा मांगकर अपना परिचय दिया. हनुमान जी के गिरने के साथ ही पर्वत का कुछ हिस्सा टूटकर वहीं गिर पड़ा था. उससे निर्मित पहाड़ी जो लगभग 65 फीट ऊंची है, मणि पर्वत के नाम से जाती जाती है.
छोटी देवकाली मंदिर (Choti Devkali Temple)- नया घाट के निकट स्थित इस मंदिर का उल्लेख रामायण के साथ-साथ कई ग्रंथों में मिलता है. कहा जाता है कि श्रीराम से विवाह के बाद माता सीता अयोध्या में देवी गिरिजा (मां पार्वती जी) की मूर्ति के साथ आई थीं. तब राजा दशरथ ने एक सुंदर मंदिर का निर्माण करवाके उस मूर्ति को मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया था. सीता जी यहां नियम से पूजा करती थीं. वर्तमान में इस मंदिर को छोटी देवकाली मंदिर कहा जाता है.
राम की पैड़ी (Ram ki Paidi Ayodhya)- सरयू नदी के किनारे घाटों की एक श्रृंखला स्थापित की गई है. यहां हरे-भरे बगीचे भी हैं जो मंदिरों से घिरे हैं. नदी का किनारा पूर्णिमा की रात को एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है. इस घाट पर श्रद्धालु पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं. सरयू नदी घाट पर जल की निरंतर आपूर्ति करती है और इसका अनुरक्षण सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया जाता है.
सरयू नदी (Saryu River)- हिमालय से निकलकर उत्तरी भारत के गंगा मैदान में बहने वाली सरयू नदी उत्तर प्रदेश के प्रमुख जलमार्गों में से एक है. यह एक वैदिक कालीन नदी है, जिसका उल्लेख वेदों और रामायण सहित कई प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है. सरयू का शाब्दिक अर्थ है- ‘जो प्रवाहित हो रहा है’. सरयू नदी को उत्तराखंड में इसके ऊपरी हिस्से में काली नदी के नाम से जाना जाता है. यहां हजारों श्रद्धालु सालभर इस नदी में आस्था की डुबकी लगाने के लिए आते हैं.
सूरज कुंड (Suraj Kund Ayodhya)- यह दर्शन नगर में चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग पर अयोध्या से 4 किमी की दूरी पर स्थित है. सूरज कुंड एक बहुत बड़ा तालाब है जो चारों ओर से घाटों से घिरा है तथा आगंतुकों हेतु अति सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है. ऐसा विश्वास किया जाता है कि अयोध्या के सूर्यवंशी शासकों ने भगवान सूर्य के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने हेतु इस कुंड का निर्माण करवाया था.
कुंड तथा घाट (Ayodhya Kund and Ghat)- यहां के प्रसिद्ध घाट और कुंड हैं- राजघाट, रामघाट, जानकी घाट, सीता कुंड, लक्ष्मण घाट, तुलसी घाट, स्वर्गद्वार घाट, विद्या कुंड, विभीषण कुंड, दंत धवन कुंड आदि. अन्य आकर्षक स्थानों में अमोवन मंदिर, दशरथ महल, श्री राम जानकी बिड़ला मंदिर, जानकी महल, लक्ष्मण किला, लव-कुश मंदिर, मत्ताज्ञानदाजी मंदिर, राज गद्दी और वाल्मीकि रामायण भवन प्रमुख हैं.
गुप्तार घाट (Guptar Ghat Ayodhya)- सरयू नदी के किनारे स्थित यह वह स्थान है जहां भगवान श्रीराम ने जल समाधि लेकर अपने वैकुंठ लोक के लिए प्रस्थान किया था. यहां राम जानकी मंदिर, पुराना चरण पादुका मंदिर, नरसिंह मंदिर और हनुमान मंदिर के दर्शनों के लिए श्रृद्धालु आते रहते हैं.
अयोध्या कैसे पहुंचें (How to reach Ayodhya)- अयोध्या लखनऊ से लगभग 134 किमी और फैजाबाद से सिर्फ 6 किमी दूर है. लखनऊ, इलाहाबाद या वाराणसी के हवाई मार्गों से अयोध्या तक आसानी से पहुंचा जा सकता है. अयोध्या सड़क मार्ग से आसपास के कई शहरों और कस्बों से जुड़ा हुआ है.
अयोध्या के प्रमुख होटल्स
(Hotels in Ayodhya)
अयोध्या में ठहरने के लिए हर बजट में बहुत सी धर्मशालाएं और होटल्स उपलब्ध हैं. यहां बहुत से आश्रम भी हैं. कुछ प्रमुख होटल्स के नाम हैं-
राही टूरिस्ट बंगला (उत्तर प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम), राही यात्री निवास (उत्तर प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम), होटल रामप्रस्थ, श्रीराम होटल, राम धाम गेस्ट हाउस, राम अनुग्रह विश्राम सदन, बिड़ला धर्मशाला, गुजरात भवन धर्मशाला, जैन धर्मशाला, जानकी महल ट्रस्ट धर्मशाला, पंडित बंशीधर धर्मशाला, रामचरितमानस ट्रस्ट धर्मशाला, दामोदर धर्मशाला, श्याम सुंदर धर्मशाला.
अयोध्या में खाने-पीने की कोई कमी नहीं है. यहां के बहुत से मंदिरों में अक्सर भंडारे चलते रहते हैं, जहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में श्रृद्धालुओं को भोजन कराया जाता है. इसी के साथ, यहां हर बजट में रेस्टोरेंट्स, दुकानें, ढाबा और स्ट्रीट फूड उपलब्ध हैं.
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