Ramayan in World : दुनियाभर में हैं कितनी रामायण और कहां-कहां मिल चुके हैं श्रीराम के निशान

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Ramayan

Shri Ram Ramayan in World

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम (Bhagwan Shri Ram) का जीवन हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है. वे अपने जीवन में लोकमानस और लोकजीवन के इतने निकट रहे हैं कि आज लाखों वर्षों बाद भी लोग अपने जीवन के हर पड़ाव पर उन्हीं से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं.

आदर्श, करुणा, दया, त्याग, शौर्य और साहस… इन सभी गुणों का एक प्रतिबिम्ब है- श्रीराम. उनका सम्पूर्ण जीवन जनमानस के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत करता है और हर पल हमें कोई न कोई नई सीख देता है और हमारा मार्गदर्शन करता है.

श्रीराम ही हमें सिखाते हैं कि भाई-भाई विपत्ति बांटने के लिए होते हैं, न कि संपत्ति का बंटवारा करने के लिए.

श्रीराम ही हमें बताते हैं कि जो संतान अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करती, स्वयं भगवान भी उनकी पूजा को स्वीकार नहीं करते.

श्रीराम ही हमें सिखाते हैं कि आप चाहें राजा हों या वनवासी, अधर्म का नाश करने और धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहो.

श्रीराम ही हमें सिखाते हैं कि मानव जीवन में संघर्ष तो करना ही पड़ता है, लेकिन इन संघर्षों और कठिनाइयों के बीच भी कैसे प्रसन्न रहा जा सकता है और सत्य और आत्मविश्वास के बल पर कैसे कम साधनों से भी एक बड़ी आतताई शक्ति को हराया जा सकता है.

श्रीराम ही हमें जातिगत भेदभाव से दूर रहना सिखाते हैं-

कह रघुपति सुनु भामिनि बाता।
मानउँ एक भगति कर नाता॥
जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई।
धन बल परिजन गुन चतुराई॥
भगति हीन नर सोहइ कैसा।
बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥

भारत पर कब्जा करने के विदेशी सपने और कपट की राजनीति हमें जितनी जातियों में बाँट देती है, श्रीराम हम सबको फिर पास-पास ले आते हैं, फिर से हम सबको एक कर देते हैं. रामायण समानता की बात करती है. यह सभी के अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों की भी बात करती है.

रामसेतु, यह विश्वास दिलाने का प्रतीक कि “चिंता मत करो मेरी प्रिया, मैं हूँ… मैं आ रहा हूँ, मैं ले जाऊंगा तुम्हे तीनों लोकों की विजेता शक्तियों को परास्त करके…” दो प्रेम भरे हृदय के मध्य लहराते महासागर के किनारों को मिलाने का नाम रामसेतु है.

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‘घृणा को कम करती है रामायण’- अमेरिका के अलग-अलग समुदायों में बढ़ते घृणा-अपराध के बीच न्यूयार्क के मेयर इरिक एडम्स ने लोगों से प्रभु श्रीराम, सीता जी और दीपावली को आत्मसात करने का आह्वान किया था. एरिक एडम्स ने लोगों से अनुरोध किया कि “हृदय में राम-सीता को धारण कर घृणा-अपराध को दूर करने में मदद मिल सकती है.”

• और यह वाली न्यूज तो आप लोगों को भी जरूर याद होगी कि कोरोना महामारी के समय जब भारत ने ब्राजील को वैक्सीन भेजकर मदद की थी, तब ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो ने हनुमान जी द्वारा संजीवन पर्वत ले जाते हुए वाली तस्वीर ट्वीट कर भारत का आभार जताया था.

• वहीं, जून 2020 में भारत और चीन के बीच सीमा पर हुई झड़प पर वैश्विक स्तर पर प्रतिक्रिया देखने को मिली थी, और उस दौरान ताइवान ने खुश होकर एक तस्वीर ट्वीट किया था, जिसमें भगवान श्रीराम को ड्रैगन पर वार करते हुए दिखाया गया था. ताइवान न्यूज ने लिखा था “भारत के राम ने चीन के ड्रैगन को मारा.”

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ईराक सहित कई देशों में मिल चुके हैं श्रीराम के निशान (Shri Ram footprints in other countries)

बहुत सारे देशों में श्रीराम और रामायण से जुड़े बहुत से निशान और प्रमाण मिल चुके हैं. जापान, कम्बोडिया, मलेशिया, थाईलैंड, ईराक, इंडोनेशिया, बर्मा, पाकिस्तान, भूटान, बाली, जावा, सुमात्रा आदि अनेक देशों में तो पुरातन भित्ति चित्रों, मंदिरों और संग्रहालयों में रामकथा मौजूद है. कम्बोडिया के अंकोरवाट मंदिर में तो रामायण के सभी प्रसंगों (‘भगवान विष्णु जी से प्रार्थना’ से लेकर ‘श्रीराम-सीता के राज्याभिषेक’ तक) के भित्ति चित्र मिले हैं.

लाओस, कंपूचिया एवं थाईलैंड के राजभवनों और बौद्ध विहारों की भित्तियों पर रामकथा चित्रावली को आज भी देखा जा सकता है. अब हाल ही में ईराक की दरबंद-ई-बेलुला चट्टानों में श्रीराम और हनुमान जी के चित्र मिले हैं, जो लगभग 6000 से 1900 वर्ष के बीच के बताए जा रहे हैं (स्रोत – टाइम्स ऑफ इण्डिया). अभी इस पर और रिसर्च की जा रही है.

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Ramayana in Cambodia and Iraq

मंगोलिया (Mongolia) के लोगों को रामकथा की काफी अच्छी जानकारी है. वहां के लामाओं के निवास स्थल से वानर-पूजा की अनेक पुस्तकें और प्रतिमाएं भी मिली हैं. मंगोलिया में रामकथा से जुड़े काष्ठचित्र और पांडुलिपियां भी उपलब्ध हुई हैं. दम्दिन सुरेन ने मंगोलियाई भाषा में लिखी चार रामकथाओं की खोज की है, जिनमें ‘राजा जीवक की कथा’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है जिसकी पांडुलिपि लेलिनगार्द में सुरक्षित है.

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शिलालेखों और भित्तिचित्रों से पता चलता है कि श्रीराम के काल में संपूर्ण भारत सहित सीरिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार (बर्मा), इराक, ईरान, अफगानिस्तान, लाओस, थाईलैंड, कंबोडिया, श्रीलंका, मालदीव, मलेशिया, वियतनाम, सुमात्रा, जावा, इंडोनेशिया, बाली, इटली, फिलीपींस, मॉरीशस आदि जगहों पर राम पताका ही फहराई जाती थी. हिंदेशिया का नाम बिगड़कर इंडोनेशिया हो गया. इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप का नामकरण सुमित्रा के नाम पर हुआ था. मलेशिया में मूलत: रावण के नाना माल्यवान का आधिपत्य था.

Statue of Hanuman ji found in Honduras, South America, दक्षिण अमेरिका के होंडुरास में प्राप्त हनुमान जी की प्रतिमा
दक्षिण अमेरिका के होंडुरास में प्राप्त हनुमान जी की प्रतिमा

विश्व में रामायण और रामचरितमानस

श्रीराम के जीवन में हर एक चीज, हर एक आदर्श का संतुलन है. और यही कारण है कि सदियों से श्रीराम का आदर्श जीवन केवल हिन्दुओं और भारतीयों को ही नहीं, पूरे विश्व को आकर्षित करता रहा है. भारतवर्ष की तो पावन धरती के रज-रज में राम बसे हुए हैं, वहीं विदेशों में भी श्रीराम के दीवानों और भक्तों की संख्या कम नहीं है.

और यही कारण है कि वाल्मीकि रामायण हो या रामचरितमानस, रामानंद सागर का सीरियल रामायण हो या रामायण एनिमेशन मूवी… सभी का विश्व की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है.

सभी प्रकार की रामायणों का आधार वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास जी की रामचरितमानस ही है, और केवल यही दोनों रामायण प्रमाणिक हैं. वाल्मीकि जी श्रीराम के समय उपस्थित थे और तुलसीदास जी ने शिवजी के आदेश पर इसे आम जनमानस की भाषा में लिखकर आधुनिक लोगों को इसके संदेशों को समझने में मदद की. बाकी अन्य लेखकों और कवियों को जैसा-जितना जो समझ आया, उस हिसाब से अलग-अलग देशों में रामायण की रचना और अनुवाद किया.

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नेपाल और श्रीलंका से तो हमारा रिश्ता श्रीराम के समय से ही है, पर आज हम आपको कुछ और देशों के बारे में भी बताते हैं, जहां आम जनमानस के बीच रामायण और रामचरितमानस बेहद लोकप्रिय है और लोगों का मार्गदर्शन करती रहती है. आज भारत के अलावा कई और देशों में अलग-अलग भाषाओं में रामकथा का आयोजन पारम्परिक तरीके से किया जाता है.

रामचरितमानस का अंग्रेजी अनुवाद (Translation of Ramcharitmanas)

विश्व में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरितमानस है. विश्व में सबसे अधिक गायी जाने वाली पंक्तियां भी उन्हीं की लिखी “हनुमान चालीसा” की हैं. तुलसीदास जी और उनकी रचना राष्ट्र की सीमाओं को पार कर जापान सहित अनेक देशों के सिलेबस का हिस्सा हैं. सबसे अधिक शोधकार्य उन पर हुए हैं.

फ्रेडरिक सालमन ग्राउच (Frederic Salmon Growse) वह पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने पहली बार रामचरितमानस का अंग्रेजी में अनुवाद किया था, जिसका पहला संस्करण 1983 में प्रकाशित हुआ था. रेव हिल ने भी रामचरितमानस का अनुवाद बड़े असरकारी तरीके से किया था. वहीं, रामचरितमानस का पहली बार अंग्रेजी पद्य में अनुवाद जी एटाकिन्स (G. Atkinson) ने किया था.

रूस में रामायण (Ramayana in Russia)

रूस में रामचरितमानस काफी लोकप्रिय है. वहां इसे लोकप्रियता दिलाने का श्रेय रूसी विद्वान प्रोफेसर वारन्निकोव (Viktor Barannikov) को जाता है, जिन्होंने रूसी भाषा में रामचरितमानस का पद्यानुवाद किया, जो 1948 में प्रकाशित हुआ था. इस अनुवाद के लिए उन्हें सोवियत संघ के सर्वोच्च पुरस्कार ‘ऑर्डर ऑफ लेनिन’ से सम्मानित भी किया गया था. वहीं, रूसी विद्वान लियो टॉलस्टाय ने अपने बहुत से उद्धरणों में श्रीराम के आदर्शों की कई झलकियां प्रस्तुत की हैं.

फ्रांस में रामायण (Ramayana in France)

फ्रांस में रामकथा बड़ी लोकप्रिय है. फ्रांसीसी भाषा के विख्यात फ्रेंच मनीषी गार्सा द तासी ने सुंदरकांड का अनुवाद किया था. फ्रांस के प्रख्यात लेखक इयोलित फोस ने भी वाल्मीकि रामायण का फ्रांसीसी भाषा में अनुवाद किया था.

1903 में फ्रांसीसी लेखक रसेल ने रामचरितमानस से प्रभावित होकर वाल्मीकि रामायण का फिर से नए रूप में अनुवाद किया था. 1950 में फ्रांस की लेखिका शास्तोल वादवेलि ने रामचरितमानस के अलग-अलग काण्डों का अनुवाद किया था. इसी के साथ, डेलीलिए ने 1809 में रामकथा और डोनोविली ने फ्रेंच भाषा में संक्षिप्त रामकथा लिखी थी.

चीन में रामायण (Ramayana in China)

विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक चीनी भाषा में भी रामायण का अनुवाद हो चुका है. चीन के विद्वान काड.सड.ही. ने वाल्मीकि रामायण का अनुवाद किया था. चीन के लोग हनुमान जी के चरित्र से विशेष रूप से प्रभावित थे. 16वीं सदी में हनुमान जी को केंद्रीय चरित्र बनाकर वहां उपन्यास भी लिखा जा चुका है. चीनी रामायण को ‘अनामकं जातकम्’ और ‘दशरथ कथानम्’ नाम से जाना जाता है. ‘अनामकं जातकम्’ की कथा वाल्मीकि रामायण पर आधारित है.

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अन्य देशों में रामायण (Ramayana in other countries)

भगवान श्रीराम का प्रभाव भारत में ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व में है. तुर्किस्तान की ‘खेतानी रामायण’, इंडोनेशिया की प्राचीनतम रामायण ‘ककविन, बाद में जावा की ‘सेक्रेड राम’ रचना भी बेहद लोकप्रिय हुईं. इनके अलावा थाईलैंड में ‘राम कियेन’, लाओस में ‘राम जातक’, मलेशिया में ‘हिकायत सेरी राम’, खमेर में ‘सकेंति’, आदि भी रामकथा की महत्वपूर्ण और लोकप्रिय रचनाएं हैं. ये अब भी वहां पर नाटक के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं.

हॉलैंड के ए रोजरियस ने डच ईस्ट इंडिया कंपनी के पादरी की हैसियत से 1681 में ‘दि ओपन दोरे’ नाम से रामकथा का प्रकाशन किया था. एक अन्य लेखक बल डे पुस की रचना ‘आव गोर्ड सेप डर ओस्ट’ में रावण चरित्र से श्रीराम के विजय तक की कथा कही गई है.

इतालवी मनीषी डॉ. एल.पी. टेसीटेरी ने भी रामकथा पर कई शोध किए हैं. पुर्तगाल के डॉ. कालेण्ड ने रामचरितमानस पर तीन पुर्तगाली पुस्तकों का प्रकाशन किया था, वहीं 18वीं शदी में जर्मनी में ‘चीनने वाला’ नाम से रामकथा लिखी गई.

जापान के एक लोकप्रिय कथा संग्रह ‘होबुत्सुशू’ में संक्षिप्त रामकथा संकलित है. म्यांमार में 1800 ई. के करीब ‘रामायागन’ की रचना की गई थी. म्यांमार को पहले ‘ब्रह्मादेश’ कहा जाता था. रामकथा पर आधारित बर्मा (म्यांमार) की प्राचीनतम गद्यकृति ‘रामवत्थु’ है.

लाओस (Laos) में रामकथा पर आधारित कई रचनाएं हैं जिनमें मुख्य रूप से फ्रलक-फ्रलाम (रामजातक), ख्वाय थोरफी, पोम्मचक (ब्रह्मचक्र) और ‘लंका नाई’ के नाम उल्लेखनीय हैं. कंपूचिया की रामायण को वहां के लोग ‘रिआमकेर’ के नाम से जानते हैं, लेकिन साहित्य जगत में यह ‘रामकेर्ति’ के नाम से प्रसिद्ध है.

तिब्बत में रामकथा को ‘किंरस-पुंस-पा’ कहा जाता है. वहां के लोग प्राचीनकाल से वाल्मीकि रामायण की मुख्य कथा से अच्छी तरह परिचित थे. तुन-हुआंग नामक स्थान से तिब्बती रामायण की 6 प्रतियां प्राप्त हुई हैं.

पूरे इंडोनेशिया और मलेशिया में पहले हिन्दू ही रहते थे. यहां हुई खुदाई में निकली कई चीजों में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं. इंडोनेशिया में जगह-जगह रामलीलाएं आयोजित की जाती हैं. इंडोनेशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक अयुंग नदी के तट ने रामकथा को समेट रखा है. अयुंग नदी के प्राकृतिक पथरीली तट पर सम्पूर्ण रामकथा गढ़ी हुई है. यह रामकथा यहाँ लगभग 400 ईस्वी से मौजूद है जो भगवान श्रीराम के जन्म, सीताजी से विवाह, वनवास, सीता-हरण, से लेकर राम-रावण युद्ध व अग्निपरीक्षा जैसे चक्रों को दर्शाती है. ये आकृतियां भले ही अति प्राचीनकाल में निर्मित हों, लेकिन इनकी चमक आज भी उतनी ही अद्भुत है. सैलानियों के लिए यह स्थान रोमांचक तो है ही, साथ ही यह उन्हें सनातन इतिहास से भी परिचित करवाता है.

रामकथा पर आधारित इंडोनेशिया के जावा की सबसे प्राचीन कृति ‘रामायण काकावीन’ है. फिलिपींस की तरह इंडोनेशिया में भी रामकथा को तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है. डॉ. जॉन आर. फ्रुकैसिस्को द्वारा फिलिपींस की भाषा में संकलित ‘मसलादिया लाबन’ नाम से एक विकृत रामकथा की खोज की थी.

खैर, देश-विदेश में आज रामायण को चाहे कितना ही तोड़-मरोड़कर पेश किया जाए या भारत में श्रीराम के नाम पर चाहे जितनी राजनीति की जाए… पर इन सबसे पता तो यही चलता है कि किसी न रूप में पूरी दुनिया में राज तो श्रीराम का ही है. किसी न किसी रूप में श्रीराम दुनिया के कण-कण में बसे हुए हैं.

श्रीलंका में रामायण (Ramayan in Sri Lanka)

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Shri Ram Ramayan in Sri Lanka

श्रीलंका से तो हमारा रिश्ता श्रीराम के समय से ही है. आप श्रीलंका जायेंगे तो आपको वहां रामायण से जुड़े बहुत से मंदिर और स्थान देखने को मिलेंगे. उनमें से प्रमुख हैं- Seetha Amman Temple, Nuwara Eliya, Munneswaram temple, Chilaw, Trincomalee, Kandy, Ramboda, Ella, Colombo, Hasalaka, Kothmale, Jaffna.

श्रीलंका के संस्कृत कवि कुमारदास ने ‘जानकी हरण’ नाम ने काव्यशास्त्र लिखा था, जिसमें उन्होंने ‘सीता हरण’ की घटना को बहुत ही मार्मिक, करुण और अद्भुत रूप से प्रस्तुत किया था. इससे पहले 700 ईसा पूर्व श्रीलंका में श्रीराम के जीवन से जुड़ी ‘मलेराज की कथा’ सिंहली भाषा में जन-जन में प्रचलित रही.

नेपाल (Ramayana in Nepal) में जानकी मंदिर के अलावा श्रीराम और सीता जी से जुड़े कई दर्शनीय स्थान हैं, जहाँ त्योहारों पर विशेष उत्सवों का आयोजन किया जाता है.

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रामायण सीरियल (Ramayan Serial)

रामानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण सीरियल एक बहुत ही सफल भारतीय टीवी सीरीज है. इस सीरियल का निर्माण, लेखन और निर्देशन रामानंद सागर ने ही किया था. 78 एपिसोड के इस धारावाहिक का मूल प्रसारण दूरदर्शन पर 25 जनवरी 1987 से 31 जुलाई 1988 तक रविवार के दिन सुबह 9:30 बजे किया गया था. यह रामायण मुख्यतः वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास जी के रामचरितमानस पर आधारित है.

जब 1987 में इस रामायण सीरियल का प्रसारण पहली बार किया गया था, तब देश में लॉकडाउन जैसा ही माहौल हो जाता था. जिस समय यह सीरियल दूरदर्शन पर चलता था उस समय ऐसा लगता था मानो देश में कर्फ्यू लगा हो. उस समय यह सीरियल हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सभी देखते थे और सबके बीच में यह इतना अधिक लोकप्रिय हुआ था कि इस सीरियल का दुनियाभर की कई भाषाओं में प्रसारण हो चुका है.

रामायण एनिमेशन मूवी (Ramayan animation movie)

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‘Ramayana the Legends of Prince Ram’ के नाम से बनी यह एनीमेशन मूवी शायद आपने भी जरूर देखी होगी. यह मूवी भी दुनियाभर में बेहद लोकप्रिय रही है. भारत और जापान के लिए यह मूवी बहुत स्पेशल है. यह मूवी 1992 में रिलीज की गई थी, जिसे भारतीय एनिमेटर राममोहन और जापानी फिल्म डायरेक्टर यूगो साको और उनकी टीम ने मिलकर बनाया था. यह मूवी वाल्मीकि रामायण पर आधारित है.

दरअसल, 1983 में युगो साको उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद के पास डॉ. बीबी लाल के साथ “रामायण अवशेष” नाम की एक डॉक्यूमेंट्री पर काम कर रहे थे. उसी दौरान उन्हें रामायण को करीब से जानने का मौका मिला. उन्हें रामायण की कथा इतनी ज्यादा पसंद आई थी कि उन्होंने इस विषय पर गहराई से शोध किया और रामायण के करीब 10 से भी ज्यादा संस्करण पढ़ डाले.

रामायण पढ़ने के बाद वह इसकी एनीमेशन बनाना चाहते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि कोई भी एक्टर भगवान श्रीराम के भावों को अच्छी तरह कैप्चर और एक्सप्रेस नहीं कर सकता. फिल्म बनाने की तैयारी तो उन्होंने 1983 से ही शुरू कर दी थी. फिल्म का प्रमुख एनीमेशन 1990 में 450 कलाकारों के साथ शुरू हुआ था. चूंकि तत्कालीन भारतीय सरकार इस मूवी को बनाने और भारत में इसकी रिलीजिंग के पक्ष में ही नहीं थी, तो यूगो साको ने सभी कलाकारों को जापान बुलाकर यह मूवी बनाई. और उस समय यह मूवी लगभग पूरी दुनिया में रिलीज हुई थी, सिवाय भारत के.

इस फिल्म को बनाने में उस समय लगभग 13 मिलियन डॉलर का खर्च हुआ था. ओरिजनल मूवी अंग्रेजी में थी, जिसे हिंदी में डबिंग दी- अरुण गोविल, शत्रुघ्न सिन्हा, अमरीश पुरी और नम्रता साहनी जैसे कलाकारों ने. इस मूवी के गाने कविता कृष्णमूर्ति और उदित नारायण जैसे पॉपुलर सिंगर्स ने गाये हैं. इस मूवी के गाने बेहद लोकप्रिय हुए हैं और सभी गाने या भजन एक से बढ़कर एक हैं-

पंचवटी मनभावन उपवन…
सुमिरन करले मनवा…
श्री रघुवर की वानर सेना…
जननी मैं राम दूत हनुमान…

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