Importance of Trees Essay
वृक्षों को देवता कहा जाता है. देवता अर्थात जो निरंतर प्रदान करें. वृक्ष हमें हर प्रकार से सदा लाभ पहुंचाते रहते हैं और उनमें दैवीय गुणों का वास रहा है, इसीलिए उन्हें देव की उपाधि प्रदान की गई है. ऋग्वेद में कहा गया है कि ऊष्मा, ऊर्जा तथा मेघ से वृक्ष फलित होते हैं तथा अपने पास की समस्त वस्तुओं को मनुष्य तथा पर्यावरण के लिए समर्पित कर देते हैं. ऋग्वेद कहता है कि (७|४|५) औषधियों, वृक्ष तथा भूमि में अपने अंदर की शक्तियों का अनंत भंडार भरा पड़ा है जो कभी समाप्त नहीं होने वाला होता है.
वृक्षों को पृथ्वी का वसन एवं आवरण कहा जाता है. वृक्ष एवं वन धरती के सौंदर्य को सौ गुना बढ़ा देते हैं. हरियाली एवं हरीतिमा से युक्त शस्यश्यामला धरा इन्हीं के सौंदर्य से अभिमंडित होती है. वैदिक ऋषियों ने वृक्षों को शत-शत अभिवादन एवं नमन किया है. ऋषि कहते हैं कि वृक्षों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है. ये हमारे एवं पर्यावरण के लिए अहम कारक हैं.
यजुर्वेद (१६|१६|२०) में ऋषि वृक्षों के प्रति अत्यंत आदरभाव दर्शाते हुए कहते हैं कि अन्नपति, खाद्य, बीज, जंगल, वृक्ष, औषधि तथा गुल्म सभी के प्रति अनंत श्रद्धा एवं सम्मान की भावना होनी चाहिए. वृक्षों के प्रति ऐसा आदर होना ही चाहिए क्योंकि ये हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं. इनसे हमें प्राणवायु प्राप्त होती है.
शास्त्रों में वृक्षों की महिमा –
वृक्ष लगाना तीर्थ, व्रत-उपवास से कम नहीं, वहीं बिना उचित कारण के वृक्षों को काटना बहुत बड़ा पाप है, क्योंकि शास्त्रों में इन्हें जीव की संज्ञा दी है.
वृक्ष लगाने वाले मनुष्य की इस लोक में कीर्ति बनी रहती है और मृत्यु के बाद उसे उत्तम शुभ फल की प्राप्ति होती है. संसार में उसका नाम होता है, परलोक में पितर उसका सम्मान करते हैं तथा देवलोक में चले जाने पर भी यहाँ उसका नाम नष्ट नहीं होता है. नाग, किन्नर, देवता, गन्धर्व, मनुष्य और ऋषियों के समुदाय- ये सभी वृक्षों का आश्रय लेते हैं. फूलों और फलों से युक्त वृक्ष इस जगत में मनुष्यों को तृप्त करते हैं. जो वृक्ष का दान करता है, उसको वे वृक्ष पुत्र की भाँति परलोक में तार देते हैं. इसलिये अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले पुरुषों को सदा ही उचित है कि वह अपने खुदवाये हुए तलाब के किनारे अच्छे वृक्ष लगायें और उनका पुत्रों के समान पालन करें. (महाभारत अनुशासन पर्व अष्टपंचाशत्तम)
जो लोग एक पीपल, एक नीम, एक बरगद, दस फूल वाले वृक्ष, दो अनार, दो संतरे और पांच आम के पेड़ लगाते हैं, वे कभी नरक में नहीं जाते. (वराह पुराण १२|२|३९)
आँवला समस्त संसार के सभी फलों में सबसे पवित्र है. आवंले के पेड़ लगाना आवश्यक है. इसे लगाने से स्त्री-पुरुष इस संसार में जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा पा जाते हैं. (पद्म पुराण सृष्टि खंड २६|२)
जहां भी आंवले के पेड़ होते हैं वहां से दरिद्रता दूर हो जाती है. आँवले के वृक्ष से सभी देवता संतुष्ट होते हैं, उसमें निवास करते हैं. (पद्म पुराण सृष्टि खंड २६|१५)
पीपल तथा खेजड़ी (शमी) वृक्ष की पूजा करने से बांझ स्त्री को भी संतान की प्राप्ति होती है. (अथर्ववेद पं. ६१२|११)
दसकुपसमा वापी दसवापीसमो ह्रदः।
दशह्रदसमः पुत्रो दश पुत्रसमो द्रुमः।
दस कूप निर्माण करवाने का पुण्य एक वापी के बनवाने से प्राप्त होता है तथा दस बांवड़ियाँ बनवाने का पुण्य एक तालाब बनवाने से और एक पुत्र का जन्म दस तालाबों के तुल्य तथा एक वृक्ष दस पुत्रों के तुल्य है. (मत्स्य पुराण १५४|५१२)
कूपस्तडागमुद्यानं मण्डपं च प्रपा तथा।
जलदानमन्नदानमश्वत्थारोपणं तथा।
पुत्रश्चेति च संतानं सप्त वेदविदो विदुः।
कुआँ, तालाब, बगीचा, आराम-भवन, प्याऊ, जल और अन्नदान तथा पीपल के वृक्ष का लगाना– ये सात संतान कहलाती हैं. (स्कन्द पुराण)
अश्वस्थवृक्षमारोप्य प्रतिष्ठां च करोति यः।
स याति तपसो लोकं वर्षाणामयुतं परम्।
पीपल के वृक्ष को लगाने वाला हजारों वर्ष तक तपोलोक में निवास करता है. (ब्रह्मवैवर्त पुराण). स्कन्द पुराण में कहा गया है कि पीपल के वृक्ष के लगाने वाला सर्वदेव पूजन के पुण्य का अधिकारी होता है.
जो मनुष्य फूलों की वाटिका लगाते हैं, उन्हें ले जाने हेतु पुष्पविमान आता है. साधु-संतों के लिए मकान बनवाने वाले मनुष्यों को विश्राम के लिए सुंदर भवन प्राप्त होते हैं. (शिव पुराण उमा संहिता ११|७)
वृक्ष पृथ्वी के लिए एक उत्कृष्ट संपत्ति हैं. ये स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. जीवों के समुदायों के लिए कई प्रकार के वनों सहित आवश्यक आवास प्रदान करते हैं. पेड़ मिट्टी को स्थिर करते हैं, बारिश के पानी को तेजी से बहने से रोकते हैं, मरुस्थलीकरण को रोकने में मदद करते हैं, जलवायु नियंत्रण में भूमिका निभाते हैं और जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं.
वृक्ष वायु को शुद्ध करके वातावरण को कम प्रदूषित बनाने में मदद करते हैं और सांस लेने के लिए प्राणवायु प्रदान करते हैं. जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण से निपटने के लिए पेड़ लगाना सबसे अच्छा तरीका है. नासा के मुताबिक, ‘वृक्ष हमारी हवा को ठंडा और नम करते हैं और इसे ऑक्सीजन से भर देते हैं और हमारे कार्बन बजट को संतुलित करने में मदद करते हैं.’
वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार, 22 पेड़ों से प्राप्त ऑक्सीजन इतनी अधिक होती है कि एक व्यक्ति जीवन भर उससे सांस ले सकता है. यदि एक एकड़ में पेड़ लगाए जायें तो इतने क्षेत्रों के पेड़ों से जो ऑक्सीजन मिलती है, उससे 18 लोगों की आवश्यकता पूरी हो सकती है. पेड़-पौधे कार्बन मोनोऑक्साइड तथा अन्य विषाक्त गैसों को अवशोषित कर वायु प्रदूषण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और कई प्रकार के कष्टों से हमारी रक्षा करते हैं.
वैज्ञानिकों के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि घरों में वायु प्रदूषण का कारण है फार्मेल्डिहाइड, अमोनिया और बेंजीन. इन गैसों से घर का वातावरण बोझिल और प्रदूषित हो जाता है. वृक्ष धुआं तथा धूल सोखने का भी कार्य करते हैं. इस संदर्भ में पीपल 4.15%, अशोक 4.56%, आम 4.5%, कदंब 4.57%, वट 3.59%, इमली 2.8%, बेर एवं छोटी इलायची 1.44% गैस और धुआं सोखने की क्षमता रखते हैं. पाम वृक्ष को वायुशोधक वृक्षों में गिना जाता है. नदी किनारे स्थित वृक्ष बाढ़ के जल को सोख लेते हैं. इससे सामान्य बाढ़ की स्थिति नियंत्रित रहती है.
नीम का पेड़- नीम के पेड़ को जीवनप्रदायक वृक्ष कहते हैं. दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा पर्व पर इस पेड़ की पूजा भी की जाती है. नीम का पेड़ वायुशोधक (Air Purifier) एवं कीटनाशक माना जाता है. यह पेड़ भूमि में नमी बनाए रखता है जिससे जमीन में जल का स्तर नियंत्रित रहता है. इसके विपरीत यूकेलिप्टस धरती से पानी की भारी मात्रा अवशोषित कर लेता है और वहां की जमीन को शुष्क कर देता है.
अकाल की स्थिति में नीम के पेड़ का रोपण इसलिए कराया जाता है जिससे वहां की जमीन उपजाऊ एवं नमी से युक्त रहे. इस पेड़ का अन्य महत्व भी है. आयुर्वेद एवं घरेलू उपचार में इसके विभिन्न अंगों का प्रयोग किया जाता है. नीम को एंटीहेल्मिन्थिक, एंटीफंगस, एंटीबायोटिक, एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल एवं सेडेटिव माना जाता है. इतने सारे गुणों के कारण इसकी उपयोगिता श्रेष्ठ मानी जाती है.
पीपल का वृक्ष- पीपल का महत्व अत्यधिक है. अपने देश में इसे भगवान श्रीहरि का प्रतीक माना जाता है. इसे देव वृक्ष कहा जाता है क्योंकि इसका बहुआयामी महत्व है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने इसे “वृक्षाणां अश्वत्थोहम्” कहा है, अर्थात वृक्षों में मैं अश्वत्थ अथवा पीपल हूं. पीपल का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व इतना है कि उसे शब्दों में बता पाना कठिन है.
पीपल का पेड़ सर्वाधिक मात्रा में ऑक्सीजन का उत्सर्जन करता है और यहां तक कि रात्रि में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन अति न्यून मात्रा में करता है. विज्ञान में इस प्रक्रिया को क्रासलेसियन एसिड मेटाबॉलिज्म के नाम से जाना जाता है. एक प्रयोग से पता चलता है कि ओजोन परत के विनाश को बचाने के लिए पीपल के पेड़ों को लगाना एक कारगर समाधान हो सकता है. पीपल पेड़ के आसपास का वातावरण अत्यंत शुद्ध, सात्विक और स्वच्छ रहता है.
तुलसी का पौधा- तुलसी शुद्ध वायु प्रदान करती है तथा हानिकारक कृमि और कीटों को नष्ट करती है. दिन-प्रतिदिन के प्रदूषण से निजात दिलाती है. तुलसी को धार्मिक पेड़ के रूप में मान्यता प्राप्त है. जहां तुलसी होती है उसे तीर्थ कहते हैं.
तुलसीकाननं चौव गृहे यस्यावतिष्ठते।
तद्गृहं तीर्थभूतं हि नायांन्ति यमकिंकराः।
जहां तुलसी वन है, वहां भगवान विष्णु समीप ही हैं. लक्ष्मीजी और अन्य सभी देवता भी वहां भगवान विष्णु के साथ ही हैं.
(पद्म पुराण सृष्टि खंड 26|38)
छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे।
फलान्यपि परार्थाय वृक्षाः सत्पुरुषा इव।
अर्थात- विश्व की अद्वितीय सृष्टि के परिचायक ये वृक्ष फल आने पर झुकने से मानव को विनीत रहने की शिक्षा देते हैं. इस प्रकार यदि हम वृक्षों से विनीत एवं विनम्र रहने की शिक्षा ग्रहण कर सकें, तो यह वृक्षों के लिए आदर एवं सम्मान का भाव होगा. इन्हीं सभी विशेषताओं के कारण वेदों में वृक्षों को ‘वनयम्’ अर्थात वनों का रक्षक कहा गया है. उपनिषदों का कथन है कि एक वृक्ष को काटने से पूर्व इसके बदले 10 वृक्षों का रोपण अवश्य करना चाहिए. इस सिद्धांत के क्रियान्वयन से मानव एवं वृक्षों के बीच मधुर संबंध स्थापित किया जा सकता है और जिसमें पर्यावरण का संवर्द्धन एवं संरक्षण भी सन्निहित है.
वृक्षों द्वारा मौसम तथा जलवायु की जानकारी
नासा के मुताबिक, किसी पेड़ के अंदर के छल्लों की विशेषताएं वैज्ञानिकों को बता सकती हैं कि पेड़ कितना पुराना है और उस पेड़ के जीवन के प्रत्येक वर्ष के दौरान मौसम की स्थिति कैसी थी. बहुत पुराने पेड़ इस बात का सुराग दे सकते हैं कि माप दर्ज किए जाने से बहुत पहले किसी क्षेत्र की जलवायु कैसी थी. हल्के रंग के छल्ले उस लकड़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो वसंत और गर्मियों की शुरुआत में उगती थी, जबकि गहरे रंग के छल्ले उस लकड़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो गर्मियों के अंत और पतझड़ में उगती थी. एक हल्का वलय और एक गहरा वलय पेड़ के जीवन के एक वर्ष के बराबर होता है.
चूँकि पेड़ स्थानीय जलवायु परिस्थितियों, जैसे बारिश और तापमान, के प्रति संवेदनशील होते हैं, वे वैज्ञानिकों को अतीत में उस क्षेत्र की स्थानीय जलवायु के बारे में कुछ जानकारी देते हैं. उदाहरण के लिए, पेड़ के छल्ले आमतौर पर गर्म, गीले वर्षों में चौड़े हो जाते हैं और ठंडे और शुष्क वर्षों में वे पतले हो जाते हैं. यदि पेड़ ने सूखे जैसी तनावपूर्ण स्थितियों का अनुभव किया है, तो उन वर्षों में पेड़ शायद ही बढ़ पाया होगा.
Written by : Nancy Garg
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