Banana Benefits and Side Effects
केला का कदली (Banana or Kela) प्रकृति का बनाया हुआ स्वादिष्ट और पैक्ड हलवा है. भारत सहित पूरे विश्व में लोग केला बड़े ही चाव से खाते हैं. दूध और केला अनेक लोगों का पसंदीदा आहार है. यह व्रत-उपवास में बहुत ताकत देता है और दिनभर भूख का एहसास नहीं होने देता. केले के बहुत सारे उपयोग हैं. स्वाद के साथ-साथ केला औषधीय गुणों से भरपूर है. कई बीमारियों में केले का उपयोग औषधि की तरह किया जाता है.
ज्यादातर तो केले को ऐसे ही फल की तरह खाया जाता है, तो बहुत जगहों पर केले या उसके फूल की सब्जी भी बनाई जाती है, तो कई स्थानों पर (विशेष रूप से दक्षिण और पश्चिम भारत में) केले के पत्तों पर भोजन किया जाता है, जो कि सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है. दक्षिण भारत में तो लगभग हर घर के बाड़े में केले के पौधे होते हैं. केले के वृक्ष को पवित्र मानकर उसकी पूजा भी की जाती है. आज हम केले अलग-अलग प्रयोग और उसके फायदों पर चर्चा करेंगे-
केले की फसल
केला सभी मौसम में उपलब्ध हो सकता है. केले की सबसे अच्छी किस्में भारत में ही होती हैं और केले के उत्पादन में भारत का दुनिया में प्रमुख स्थान भी है. भारत में केले सर्वत्र होते हैं. केले का मूल वतन भारत और दक्षिण एशिया के प्रदेश हैं, जहां हजारों सालों से केले का उत्पादन हो रहा है.
नरम जमीन में केले का पौधा खूब-फलता-फूलता है. केले के पौधे की ऊंचाई 8 से 12 फीट होती है. इसके पत्ते चिकने और 9-10 फीट लंबे होते हैं. इसके पौधे की शाखाएं नहीं होतीं. तने से सीधे ही पत्ते निकलते हैं. पौधे के मूल में अंकुर फूटते हैं और दूसरे नए पौधे होते हैं. इन छोटे-छोटे पौधों को उखाड़कर बारिश के मौसम में दूसरी जगह गाड़ दिया जाता है और इस प्रकार केले की बोआई होती है.
केले का पौधा जब बड़ा होता है तब उसके बीच से एक डंडा फूट निकलता है. इसके अग्रभाग में लाल रंग के सुंदर फूल आते हैं. ये फूल ही बाद में केले के रूप में बदल जाते हैं. केले के एक गुच्छे में 50 से लेकर 300-400 तक केले हो सकते हैं. केले को लगाने का मौसम जलवायु के अनुसार बदलता रहता है. जलवायु का परिणाम केले के बढ़ने पर, फल लगने पर और तैयार होने के लिए लगने वाली कालावधि पर निर्भर करता है.
केले की किस्में
केले की मुख्य किस्में हैं- माणिक्य कदली, मर्त्य कदली, अमृत कदली, चंपा कदली आदि (भावप्रकाश-निघण्टु के अनुसार). जंगल में अपने आप उगने वाली एक किस्म ‘वन कदली’ भी होती है. असम, बंगाल और महाराष्ट्र में केले की अनेक किस्में पाई जाती हैं. केवल असम में ही केले की 15 से भी ज्यादा किस्में हैं. केले की अन्य किस्में हैं- लोटन, चंपाचीनी, रामकला केले, इलायची केले, तिकोन, मोटीछाल वाले केले आदि. इलायची केलों की साइज छोटी होती है लेकिन खूब मीठे होते हैं.
इनके अलावा, रंगों के अनुसार भी केले कई प्रकार के होते हैं, जैसे- पीली छाल वाले, हरी छाल वाले और लाल छाल वाले केले. सुनहरे और पीले रंग के केले पतले छिलके वाले होते हैं. हरे छिलके वाले केले पकने के बाद भी हरे ही रहते हैं. इन केलों की साइज बड़ी होती है और खाने में खूब स्वादिष्ट होते हैं. लाल केले कद में बड़े लेकिन फीके होते हैं. मोटे छिलके वाले तिकोन केले खाने के काम नहीं आते, लेकिन इन्हें उबालकर इनका साग बनाया जाता है.
पके और कच्चे दोनों प्रकार के केलों का उपयोग किया जाता है. पके केलों को छिलका निकालकर सीधे ही खाया जाता है, जबकि कच्चे खेलों का साग, चिप्स या अन्य पकवान बनाए जाते हैं. केले के फूलों का साग भी बनता है. मैसूर और मद्रास में साग के अलावा कच्चे केले से भाकरी भी बनाई जाती है. इसके अलावा केले से पकौड़े, रायता आदि चीजें भी बनती हैं.
केले के गुण
भारत में एक प्रसिद्ध कहावत है कि “गर्मियों में केला यदि सुबह खाया जाए तो उसकी कीमत तांबे जितनी होती है, दोपहर में खाया जाए तो चांदी जितनी और शाम को खाने पर उसकी कीमत सोने के बराबर है.”
केले की मिठास उसमें मौजूद ग्लूकोज तत्व के कारण होती है. ग्लूकोज कुदरती चीनी है. यह स्वाद में मिठास के साथ स्नायुयों को पोषण और शक्ति देता है.
क्रमशः
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