Kulthi ke Fayde aur Nuksan
आजकल बहुत से लोगों को किडनी में स्टोन (Stone in kidney) की समस्या रहती है, जिसके लिए ऑपरेशन वगैरह करवाना पड़ता है. लेकिन पहले के लोगों में यह समस्या नहीं होती थी, जिसका कारण था कुलथी या कुलत्थ (Kulthi or Horse gram). कुलथी एक प्रकार की दाल है और सब दालों में सबसे हल्की मानी जाती है. इसमें काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है. यह खाने में भी बड़ी स्वादिष्ट होती है. लेकिन आज शहरों में इसका प्रयोग कम हो गया है.
कुलथी के पौधे (Horse gram plant)- भारत में इसकी खेती लगभग सब जगह की जाती है. कुलथी छोटा नागपुर और उड़ीसा क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रमुख फसल है. राजस्थान में अन्य दालों की अपेक्षा कुलथी का सेवन ज्यादा किया जाता है. कुलथी के पौधे देखने में उड़द के पौधे के समान होते हैं. इनकी फलियां दो इंच लंबी, कुछ टेढ़ी, चपटी और रोयेंदार होती हैं. फलियों में पीलापन लिए हुए या भूरे रंग के चार से छह दाने होते हैं. ये दाने काले या सफेद रंग के भी हो सकते हैं.
कुल्थी तीन प्रकार की होती है- लाल, सफेद और काली. तीनों में काली किस्म ज्यादा अच्छी मानी जाती है. कुलथी का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है. इसके बीज दुधारू पशुओं को खिलाने के काम भी आते हैं. दक्षिण भारत में इसके अंकुरित दाने और कई स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते हैं.
कुलथी के गुण और फायदे
(Properties and benefits of horse gram)
♦ लोग कुलथी की दाल और तरकारी बनाकर खाते हैं. स्वास्थ्य की नजर से यह सुपाच्य (Gestible) है और बीमार व्यक्ति भी इसे खा सकते हैं, क्योंकि यह काफी हल्की होती है. यह जठराग्नि को प्रदीप्त करती है. कुलथी का पानी भी सेहत के लिए काफी अच्छा है.
♦ कुलथी में प्रचुर मात्रा में पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं. इसमें विटामिन A, B, फॉस्फोरस, कार्बोहाइड्रेट और आयरन अच्छी मात्रा में होते हैं. आयुर्वेद के अनुसार कुलथी मधुर, मूत्रल, प्लीहावृद्धि को दूर करने वाली, क्षुधावर्धक, चक्षुविकारनाशक और स्त्रियों के मासिक धर्म को शुद्ध करने वाली है. अतिसार, पेट में होने वाली पथरी और महिलाओं में होने वाले प्रदर रोग में भी कुल्थी का सेवन फायदेमंद है.
♦ कुलथी का प्रयोग सांस संबंधी समस्या खांसी, कफ, वायु, मोटापा, पथरी, मूत्राशय में दर्द, हिचकी, वीर्यदोष, आंखों का फूलना, जुकाम, मेद, अर्श, गुल्म, कब्ज, उदर-रोग या पेट संबंधी समस्या, दिल की बीमारी, ज्वर, सिरदर्द और कृमि की समस्या में औषधि के रूप में किया जाता है. कुलथी मूत्रल, सूजन को कम करने वाली, बलकारक होती है. वात संबंधी रोगों में भी कुलथी का प्रयोग फायदेमंद होता है.
♦ अगर वायुरोग के कारण पेशाब रुक-रुककर आती हो, या किडनी में पथरी हो, तो कुलथी की चाय बनाकर उसमें मूत्रल औषधि मिलाकर देने से अच्छा आराम होता है.
♦ कुलथी के पत्तों को पीसकर उसका रस निकालकर उसमें जरा सा कत्था मिलाकर पीने से अतिसार मिटता है.
♦ कुलथी के दानों को उबालकर उसका साग बनाकर खाने से उदार रोग मिटता है. सेंकी हुई कुलथी का आटा शरीर पर मलने से पसीना बंद होता है.
♦ कुलथी को रातभर पानी में भिगोकर रखिये. सुबह इसे अच्छी तरह मसलकर, कपड़े से छानकर, दो-चार महीनों तक पीने से पथरी मिटती है.
विधि- किसी कांच या स्टील के बर्तन में, 250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुलथी डालकर ढककर रातभर भीगने दें. सुबह इस पानी को अच्छी तरह मिलाकर (मसलकर और छानकर) लें. फिर उतना ही नया पानी उसी बर्तन में और डाल दें, जिसे दोपहर में पी लें.
दोपहर में कुलथी का पानी पीने के बाद फिर से उतना ही नया पानी शाम को पीने के लिए डाल दें. इस प्रकार रात में भिगोई गई कुलथी का पानी अगले दिन तीन बार सुबह, दोपहर, शाम को पीने के बाद कुलथी के उन दानों को फेंक दें और अगले दिन यही प्रक्रिया अपनाएं. महीने भर इस तरह पानी पीने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी धीरे-धीरे गलकर निकल जाती है.
नोट (सावधानी)- शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को यह प्रक्रिया नहीं अपनानी चाहिए, साथ ही कोई भी प्रयोग करने से पहले किसी सही चिकित्सक की सलाह जरूर ली जानी चाहिए. केवल इंटरनेट पर पढ़कर अपना इलाज नहीं करना चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति की शारीरिक विशेषताएं अलग-अलग होती हैं.
कुलथी के प्रयोग में सावधानी या साइड इफेक्ट
कुलथी पित्तकारक है. कुलथी का सेवन उच्चरक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) के मरीजों, गर्भवती स्त्रियों, ज्यादा एसिडिटी होने वाले लोगों, अर्श या पाइल्स, व्रण या अल्सर, फुफ्फुसीय या लंग्स संबंधी रोगों और क्षयरोगों (Tuberculosis) में नहीं करना चाहिए. औषधि के रूप में इसका प्रयोग करने से पहले एक बार चिकित्सीय सलाह जरूर ली जानी चाहिए.
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