How Clouds are Formed
आप सुबह धूप में गीला तौलिया लटकाते हैं और शाम को देखते हैं तो वह सूखा होता है. इसी प्रकार आप एक कटोरे में पानी भरकर उसे धूप में रख देते हैं, और कुछ घंटों बाद देखते हैं कि कटोरे में पानी कम बचा है, ऐसा क्यों होता है? गायब पानी कहां गया?
गायब पानी वाष्पित हो गया. इसका मतलब है कि तौलिये या कटोरे में मौजूद तरल पानी का कुछ हिस्सा एक अदृश्य गैस, जिसे जलवाष्प (Water Vapor) कहा जाता है, में बदल गया और पृथ्वी के वायुमंडल (Atmosphere) में चला गया. यही बात लगातार महासागरों, झीलों, नदियों, दलदलों, स्विमिंग पूलों आदि के साथ हो रही है और इस प्रकार हर जगह पानी हवा के संपर्क में है.
गर्मी के कारण महासागरों, नदियों जैसे स्थानों से पानी की कुछ मात्रा एक अदृश्य गैस में बदल जाती है जिसे जलवाष्प कहा जाता है. इस प्रक्रिया को वाष्पीकरण (Evaporation) कहते हैं और यह बादलों के बनने की शुरुआत है.
बादल कैसे बनते हैं और वर्षा कैसे होती है, इसे समझने के लिए कुछ मुख्य बातों को देखना होगा-
♦ वाष्पीकरण (Evaporation)- यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तापमान या दबाव में वृद्धि के कारण कोई पदार्थ तरल अवस्था से गैसीय अवस्था में बदल जाता है. यह जल चक्र की एक मूलभूत प्रक्रिया है (It is a fundamental process of the water cycle), या
वाष्पीकरण वह क्रिया है जिसके द्वारा जल द्रव से गैसीय अवस्था में बदल जाता है. वाष्पीकरण का मुख्य कारण है- ताप (Heat). जिस तापमान पर जल वाष्पीकृत होना शुरू होता है, उसे वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा कहा जाता है.
♦ हवा में कितनी जलवाष्प हो सकती है?
हवा में मौजूद जलवाष्प को आर्द्रता या नमी (Humidity) कहते हैं. हवा की गति जितनी तीव्र होगी, वाष्पीकरण उतना ही तीव्र होगा. हवा एक निश्चित मात्रा में ही जलवाष्प ग्रहण कर सकती है, जो किसी दिए गए क्षेत्र में हवा के तापमान और वजन या वायुमंडलीय दबाव पर निर्भर करता है. तापमान या वायुमंडलीय दबाव जितना अधिक होगा, हवा उतनी ही अधिक जलवाष्प ग्रहण कर सकेगी. जब हवा की एक निश्चित मात्रा में सभी जलवाष्प मौजूद होते हैं, तो इसे ‘संतृप्त’ (Saturated) कहा जाता है.
दूसरे शब्दों में, हवा द्वारा जलवाष्प को ग्रहण करने की क्षमता तापमान (Temperature) पर निर्भर होती है. हवा के तापमान के बदलने के साथ ही आर्द्रता को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती या घटती है. यदि तापमान में वृद्धि होती है तो हवा में जल को अवशोषित करने और धारण (Absorb and hold water) करने की क्षमता भी बढ़ जाती है.
एक निश्चित तापमान पर जलवाष्प से पूरी तरह पूरित हवा को ‘संतृप्त’ (पूर्णतः, तृप्त) कहा जाता है. इसका मतलब यह है कि हवा इस स्थिति में दिए गए तापमान पर और आर्द्रता को ग्रहण करने में सक्षम नहीं है. इस प्रकार, बादल में बूंदों की मात्रा वायुमंडलीय तापमान और दबाव पर निर्भर करती है.
♦ संघनन (Condensation)- संघनन वाष्पीकरण के विपरीत होता है, यानी जब कोई पदार्थ गैसीय अवस्था से तरल अवस्था में बदल जाता है. दूसरे शब्दों में, जलवाष्प का जल के रूप में बदलना संघनन कहलाता है, या पानी का गैस से तरल में बदलने की प्रक्रिया को ‘संघनन’ (Condensation) कहा जाता है, और जब गैस सीधे ठोस में बदल जाती है, तो इसे ‘जमाव’ (Deposition) कहा जाता है. इन दो प्रक्रियाओं से बादल बनते हैं.
वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा वाष्पीकरण तथा संघनन के कारण क्रमशः घटती और बढ़ती रहती है.
♦ संघनन कैसे होता है- संघनन हवा में तैरते छोटे कणों की मदद से होता है, जैसे धूल, समुद्री स्प्रे से नमक के क्रिस्टल, बैक्टीरिया या यहां तक कि ज्वालामुखी से निकलने वाली राख. हवा में तैरते ये सभी कण जलवाष्प को पानी की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल में बदलने के लिए सतह प्रदान करते हैं. पानी की छोटी-छोटी बूंदें कणों पर संघनित हो जाती हैं. ऐसी बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल का एक बड़ा संचय (A Large Accumulation) ही एक बादल है.
♦ संघनन के बाद क्या होता है-
संघनन के बाद वायुमंडल की जलवाष्प या आर्द्रता निम्नलिखित में से एक रूप में बदल जाती है-
• ओस
• तुषार
• कोहरा
• बादल
ओस (Dew)- रात के समय पौधों, पत्तियों आदि पर बनने वाली पानी की छोटी-छोटी बूँदें या ओस या शबनम.
जब आर्द्रता धरातल के ऊपर हवा में मौजूद संघनन केंद्रों (यानी हवा में मौजूद छोटे-छोटे कणों) पर संघनित न होकर, धरातल पर ही मौजूद ठोस वस्तुओं जैसे पत्थर, घास और पौधों की पत्तियों की ठंडी सतहों आदि पर पानी की बूंदों के रूप में जमा हो जाती है, तब इसे ‘ओस’ कहा जाता है. साफ आकाश, शांत हवा, ठंडी और लंबी रातें और उच्च सापेक्ष आर्द्रता ओस के बनने के लिए सबसे उपयुक्त दशाएं हैं.
तुषार (Frost)- हिमांक से नीचे के तापमान वाला मौसम जिसमें (विशेषकर रात के समय) जमीन पर बर्फ की हल्की परत जम जाती है, जिसे ‘पाला’ भी कहा जाता है.
तुषार ठंडी सतह पर तब बनते हैं, जब तापमान के जमाव बिंदु से नीचे (जीरो डिग्री सेल्सियस) तक चले जाने पर संघनन होता है. ऐसे में अतिरिक्त नमी पानी की बूंदों के बजाए छोटे-छोटे बर्फ के रवों के रूप में जमा हो जाती है (आपने देखा होगा कि जब तापमान 0 डिग्री सेल्सियस या हिम बिंदु से भी नीचे चला जाता है, तब जमीन और अन्य सतहों पर बर्फ की एक पतली परत बन जाती है, विशेषकर रात में). उजले तुषार के बनने की सबसे उपयुक्त दशाएं, ओस के बनने की दशाओं के ही समान हैं, केवल हवा का तापमान जमाव बिंदु पर उससे नीचे होना चाहिए.
कोहरा और कुहासा (Fog and Mist)- कोहरे के अस्तित्व में आने की प्रक्रिया बादलों जैसी ही होती है. ये वे बादल होते हैं जो भूमि के निकट बनते हैं.
जब बहुत अधिक मात्रा में जलवाष्प से भरी हुई वायु एकत्रित होकर अचानक नीचे की ओर गिरती है, तब छोटे-छोटे धूल के कणों के ऊपर ही संघनन की प्रक्रिया होती है. इसलिए कोहरा एक प्रकार से बादल ही है, जिसका आधार सतह पर या सतह के बहुत नजदीक होता है. कोहरा और कुहासा के कारण दृश्यता (Visibility) कम से शून्य तक हो जाती है.
कुहासा और कोहरे में अंतर-
कुहासे की तुलना में कोहरे का घनत्व अधिक होता है. अतः कुहासे की तुलना में कोहरे में दृश्यता कम होती है. कुहासे की तुलना में कोहरे की अवधि अधिक लंबी होती है.कोहरे की तुलना में कुहासे में नमी ज्यादा होती है. कुहासा पहाड़ों पर अधिक पाया जाता है क्योंकि ऊपर उठती हुई गर्म हवा ढाल पर ठंडी सतह के संपर्क में आती है. कुहासे की तुलना में कोहरे अधिक शुष्क (drier) होते हैं और जहां गर्म हवा की धारा ठंडी हवा के संपर्क में आती है, वहां ये प्रबल होते हैं. कोहरे छोटे बादल होते हैं, जिसमें धूलकण, धुयें के कण और नमक के कण होते हैं. इन कणों के चारों ओर संघनन की क्रिया होती है.
बादल (Cloud)- संघनन का शाब्दिक अर्थ है- घना या गाढ़ा करना या जमाना. जब आकाश में जल संघनित होता है तो बादल बनते हैं. जब बादल घने और संतृप्त हो जाते हैं, तो वे वर्षा के रूप में जमीन पर गिरते हैं जिसे हम बारिश कहते हैं.
बादल पानी की छोटी बूंदें या बर्फ के क्रिस्टल होते हैं, जो हवा में तैरते हैं. सूर्य द्वारा होने वाली वाष्पीकरण प्रक्रिया के कारण हवा नम या गीली हो जाती है. यह नम हवा पृथ्वी की सतह से उठती है और ऊपर की ओर बढ़ती है और अधिक ठंडी हो जाती है. पर्याप्त ऊंचाई पर, हवा में मौजूद जलवाष्प संघनित होकर बूंदों का निर्माण करती है. ये बूंदें हवा में रहती हैं और हमें बादलों के रूप में दिखाई देती हैं.
बादल पानी की छोटी बूंदों या बर्फ के छोटे रवों का समूह हैं जो कि पर्याप्त ऊंचाई पर स्वतंत्र हवा में जलवाष्प के संघनन के कारण बनते हैं. चूंकि बादलों का निर्माण पृथ्वी की सतह से कुछ ऊंचाई पर होता है, इसलिए ये अलग-अलग आकार के होते हैं.
स्वतंत्र हवा में जब संघनन की प्रक्रिया लगातार होती रहती है, तो संघनित कणों का आकार बड़ा होता रहता है. जब हवा का प्रतिरोध गुरुत्वाकर्षण बल के विरुद्ध उनको रोकने में असफल हो जाता है, तब यह पृथ्वी की सतह पर गिरते हैं. इसलिए जलवाष्प के संघनन के बाद नमी के मुक्त होने की अवस्था को ही वर्षण कहा जाता है. यह द्रव या ठोस अवस्था में हो सकता है.
वर्षण जब पानी के रूप में होता है तो उसे वर्षा कहा जाता है. जब तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से कम होता है, तब वर्षण हिमकणों के रूप में होता है, जिसे हिमपात कहा जाता है. कभी-कभी वर्षा की बूंदें बादल से मुक्त होने के बाद बर्फ के छोटे गोलाकार ठोस टुकड़ों में बदल जाती हैं और पृथ्वी की सतह पर पहुंचती हैं जिन्हें ओला पत्थर कहा जाता है. ये ओला पत्थर ठंडी परतों से गुजरने वाले वर्षा के जल से बनते हैं.
♦ बादलों की ऊंचाई, विस्तार, घनत्व और पारदर्शिता या अपारदर्शिता के आधार पर बादलों को चार भागों में बांटा गया है-
• पक्षाभ मेघ
• कपासी मेघ
• स्तरी मेघ
• वर्षा मेघ
पक्षाभ मेघ – पक्षाभ मेघों का निर्माण 8,000 से 12,000 मीटर की ऊंचाई पर होता है. ये पतले और बिखरे हुए बादल होते हैं जो पंख के समान दिखाई देते हैं. ये हमेशा सफेद रंग के होते हैं.
कपासी मेघ – कपासी मेघ रुई के समान दिखाई देते हैं. यह आमतौर पर 4,000 से 7,000 मीटर की ऊंचाई पर बनते हैं. ये बादल चपटे होते हैं और छितरे तथा इधर-उधर बिखरे हुए से दिखाई देते हैं.
स्तरी मेघ – स्तरी मेघ परतदार बादल होते हैं जो कि आकाश के बहुत बड़े भाग पर फैले होते हैं. ये बादल आमतौर पर या तो ऊष्मा के ह्रास या अलग-अलग तापमानों पर हवा के आपस में मिलने से बनते हैं.
वर्षा मेघ – वर्षा मेघ काले या गहरे स्लेटी रंग के होते हैं. ये पृथ्वी की सतह के काफी नजदीक बनते हैं. ये बादल सूर्य की किरणों के लिए बहुत ही अपारदर्शी होते हैं. कभी-कभी ये बादल इतनी कम ऊंचाई पर होते हैं कि ये सतह को छूते हुए से दिखाई देते हैं.
Read Also : सामान्य ज्ञान और रोचक तथ्य
Tags : how clouds are formed, badal kaise bante hain, dew fog frost clouds, how does it rain, varsha kaise hoti hai
Copyrighted Material © 2019 - 2024 Prinsli.com - All rights reserved
All content on this website is copyrighted. It is prohibited to copy, publish or distribute the content and images of this website through any website, book, newspaper, software, videos, YouTube Channel or any other medium without written permission. You are not authorized to alter, obscure or remove any proprietary information, copyright or logo from this Website in any way. If any of these rules are violated, it will be strongly protested and legal action will be taken.
Be the first to comment