Chandrayaan Mission : भारत का चंद्रयान मिशन क्या है और इसके क्या उद्देश्य हैं – महत्वपूर्ण तथ्य

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चंद्रयान मिशन (इसरो)

Chandrayaan Mission ISRO India

चन्द्रमा (Moon) हमेशा से ही इंसान के लिये एक कौतूहल का विषय रहा है. चन्द्रमा को लेकर हमेशा से ही वैज्ञानिकों सहित पूरी मानव जाति जिज्ञासु रही है. चंद्रमा हमारा निकटतम ब्रह्मांडीय पड़ोसी और सौरमंडल का ऐसा पिण्ड है जिस पर मानव ने कदम रखा है. पृथ्वी के सबसे करीब इस ग्रह को पृथ्वी से बाहर जीवन के लिये काफी उपयुक्त माना जाता रहा है. यही वजह है कि अनेक देशों की अंतरिक्ष एजेंसियाँ समय-समय पर चन्द्रमा पर अपने यान भेजती रही हैं. भारत भी इस कार्य में पीछे नहीं है.

हमारे भारत ने अंतरिक्ष में लगातार नई उपलब्धियाँ हासिल की हैं. थुंबा से शुरू हुआ भारत का अंतरिक्ष सफर काफी आगे निकल चुका है. तमाम चुनौतियों को पार करता हुआ भारत आज अंतरिक्ष की दुनिया में ऊँची छलांग लगाने के साथ ही वैश्विक स्तर पर अपनी मजबूत पहचान बना चुका है. इसी कड़ी में भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को पहले चंद्र मिशन (Lunar Mission) के तहत चंद्रयान-1 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित (Launch) किया था. इस मिशन से पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चन्द्रमा के रहस्यों को जानने में न सिर्फ भारत को मदद मिली, बल्कि दुनिया के वैज्ञानिकों के ज्ञान में भी विस्तार हुआ.

चंद्रयान मिशन (Chandrayaan Mission)

चंद्रयान मिशन-1 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा लॉन्च किया गया था और यह चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन था. अंतरिक्ष यान को 22 अक्टूबर 2008 को PSLV C-11 के संशोधित संस्करण द्वारा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश) से लॉन्च किया गया था. यान को 8 नवंबर 2008 को सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया था. इसके बाद 22 जुलाई, 2019 को GSLV Mk III-M1 द्वारा चंद्रयान-2 मिशन को लॉन्च किया गया था. बहुप्रतीक्षित मिशन चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग 14 जुलाई को स्थानीय समयानुसार दोपहर 2:35 बजे किए जाने की घोषणा की गई है.


चंद्रयान-1 (What is Chandrayaan 1)

वर्ष 1999 में, भारतीय विज्ञान अकादमी (Indian Academy of Sciences) ने चंद्रमा पर एक भारतीय वैज्ञानिक मिशन शुरू करने का विचार किया. इस पहल के बाद वर्ष 2000 में एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के साथ चर्चा हुई. सिफारिशों के आधार पर, ISRO द्वारा एक राष्ट्रीय चंद्र मिशन टास्क फोर्स (National Lunar Mission Task Force) का गठन किया गया था.

इसके बाद, भारत का पहला चंद्र मिशन चंद्रयान-1 22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था. चंद्रयान-1 पांच दिन बाद 27 अक्टूबर 2008 को चन्द्रमा के पास पहुँचा था. वहाँ पहले तो उसने चन्द्रमा से 1000 किमी दूर रहकर एक वृत्ताकार कक्षा में उसकी परिक्रमा की.

उसके बाद वह चन्द्रमा के और नजदीक गया और 12 नवंबर, 2008 से केवल 100 किमी की दूरी पर से हर 2 घंटे में चन्द्रमा की परिक्रमा पूरी करने लगा. इस अंतरिक्ष यान का वजन 1380 किलोग्राम था. इस अंतरिक्ष यान में भारत, अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, स्वीडन और बुल्गारिया में बने 11 वैज्ञानिक उपकरण भी लगाए गए थे.

चंद्रयान-1 के उद्देश्य-

• चन्द्रमा की सतह पर जल और बर्फ का पता लगाना,
• चन्द्रमा पर खनिज और रासायनिक तत्त्वों का पता लगाना,
• चंद्रमा की सतह का उच्च-रिजॉल्यूशन रिमोट सेंसिंग करना.
• चंद्रमा के दोनों ओर (निकट और दूर) की 3-डी तस्वीर तैयार करना,
• अपने भविष्य के सॉफ्ट-लैंडिंग मिशनों के लिए चंद्र सतह पर एक Sub-satellite के प्रभाव का परीक्षण करना.

चंद्रयान-1 की महत्वपूर्ण बातें-

भारत के इस मिशन ने चंद्रमा पर आयरन, एल्यूमीनियम और मैग्नीशियम की सटीक माप के साथ-साथ टाइटेनियम और कैल्शियम की उपस्थिति का सफलतापूर्वक पता लगाया. चन्द्रमा की सतह पर एक हॉरिजॉन्टल गुफा जैसी संरचना प्राप्त हुई थी जिसे लावा क्यूब (Lava Cube) कहा जाता है. यह लगभग 1.7 किमी की लंबाई और 120 मीटर की चौड़ाई में पाई गई.

यान ने चंद्रमा की सतह की 70 हजार से भी अधिक तस्वीरों को भेजने के अलावा चंदमा के ध्रुवीय क्षेत्र के स्थायी रूप से छायादार क्षेत्रों में पहाड़ों और क्रेटर के सुन्दर दृश्यों को कैमरे में कैद किया. यान से मिले डेटा की क्वालिटी काफी अच्छी थी. चंद्रयान-1 के डेटा का उपयोग करके चन्द्रमा पर बर्फ संबंधी जानकारी एकत्र की गई.

इस मिशन को 2 साल के लिए भेजा गया था. इस यान ने चन्द्रमा के चारों ओर 3400 से अधिक परिक्रमाएँ की थीं. 29 अगस्त 2009 को अंतरिक्ष यान के साथ संचार (Communication) टूट जाने पर यह मिशन समाप्त हो गया था.

यह अंतरिक्ष यान चन्द्रमा की कक्षा में 312 दिन (10 महीने 6 दिन) तक रहा था और परिष्कृत सेंसरों (Sophisticated Sensors) से बड़े स्तर पर डेटा भेजता रहा. इस समय तक यान ने अधिकतर वैज्ञानिक उद्देश्यों को पूरा कर लिया था. इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 386 करोड़ रुपये या 60 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी.


चंद्रयान 2 (Chandrayaan 2)

चंद्रयान-1 की सफलता के बाद चंद्रयान-2 भारत का दूसरा चंद्र मिशन है. चंद्रयान -2 अगस्त 2019 में लॉन्च किया गया था. यह इसरो के पिछले मिशनों की तुलना में अत्यधिक जटिल मिशन था और इसमें चन्द्रमा के अज्ञात दक्षिणी ध्रुव का पता लगाने के लिए एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर भी शामिल था. ये सभी भारत में विकसित किए गए थे.

इस मिशन को चन्द्रमा की स्थलाकृति, भूकंप विज्ञान, खनिज पहचान और वितरण, सतह और रासायनिक संरचना, मिट्टी की थर्मो-भौतिक विशेषताओं और चन्द्रमा के कमजोर वातावरण की संरचना के विस्तृत अध्ययन के लिए डिजाइन किया गया था, जिससे चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में एक नई समझ पैदा हुई.

चंद्रयान-2 मिशन को 3,850 किलोग्राम (8,490 पाउंड) के अनुमानित लिफ्ट-ऑफ द्रव्यमान के साथ 22 जुलाई, 2019 को GSLV Mk III-M1 द्वारा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश) से लॉन्च किया गया था. 20 अगस्त, 2019 को चंद्रयान-2 को सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किया गया. 2 सितंबर, 2019 को चंद्र ध्रुवीय कक्षा में (Lunar Polar Orbit) 100 किमी की दूरी से चंद्रमा की परिक्रमा करते समय यह यान विक्रम लैंडर लैंडिंग की तैयारी में अपने ऑर्बिटर से अलग हो गया था.

इसके बाद, विक्रम लैंडर पर दो डी-ऑर्बिट युद्धाभ्यास (De-orbit Maneuvers) किए गए ताकि इस यान की कक्षा को बदला जा सके और 100 किमी x 35 किलोमीटर की कक्षा में चंद्रमा का चक्कर लगाना शुरू किया जा सके. विक्रम लैंडर का उतरना योजना के अनुसार था और 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक सामान्य प्रदर्शन देखा गया.

6 सितंबर 2019 को उतरने का प्रयास करते समय लैंडर अपने इच्छित प्रक्षेपवक्र (Intended Trajectory) से भटक जाने पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. लैंडर से ग्राउंड स्टेशन तक संपर्क टूट गया था. दुर्घटना की वजह एक सॉफ्टवेयर गड़बड़ी बताई गई थी . लैंडिंग विफल होने के कारण रोवर को चंद्रमा की सतह पर तैनात नहीं किया जा सका. इसरो जुलाई 2023 में चंद्रयान-3 के साथ दोबारा लैंडिंग का प्रयास कर रहा है.

चंद्रयान-2 का उद्देश्य

• चंद्रमा की सतह पर पानी की स्थिति और प्रचुरता का पता लगाना,
• चंद्रमा की सतह में मौजूद तत्त्वों का अध्ययन कर यह पता लगाना कि उसकी चट्टानें और मिट्टी किन तत्त्वों से बनी है,
• चन्द्रमा पर मौजूद खाइयों और चोटियों की संरचना का अध्ययन करना,
• चन्द्रमा की सतह का घनत्व और उसमें होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना,
• चन्द्रमा के ध्रुवों के पास के तापीय गुणों, ionosphere में इलेक्ट्रानों की मात्रा का अध्ययन करना,
• चन्द्रमा की सतह पर पानी, हाइड्रॉक्सिल के निशान ढूंढना,
• चंद्रमा के सतह की त्रिआयामी तस्वीरें (Three-dimensional pictures) लेना.

चंद्रयान-2 की महत्वपूर्ण बातें-

इसरो की रिपोर्ट के मुताबिक, चंद्रयान-2 ने चंद्रयान-1 के निष्कर्षों को बढ़ावा दिया. इस मिशन ने चंद्रमा के ‘दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र’ (South Polar Region) को लक्ष्य बनाया. चंद्रयान 2 को एक चुनौतीपूर्ण मिशन माना गया क्योंकि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पहले किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा पूरी तरह से अज्ञात था.

चंद्रमा की धुरी के कारण, उसके दक्षिणी ध्रुव के कुछ क्षेत्र हमेशा अंधेरे रहते हैं, विशेषकर क्रेटर और उनमें पानी होने की संभावना अधिक होती है. ध्रुवीय क्षेत्रों में बहुत कम कोण पर होने के कारण क्रेटरों को कभी सूर्य की रोशनी नहीं मिली होगी और इस प्रकार, ऐसी सतहों पर बर्फ की उपस्थिति की संभावना बढ़ गई है.

सभी अंतरिक्ष अभियानों में किसी भी देश ने चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में अंतरिक्ष यान उतारने का प्रयास नहीं किया है. इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतरिक्ष अन्वेषण (Space Exploration) में अग्रणी स्थान मिला. इस मिशन ने चंद्रमा की संरचना में विविधताओं का अध्ययन करने और चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास का पता लगाने के लिए चंद्रमा की सतह के व्यापक मानचित्रण (Mapping of Lunar Surface) पर ध्यान केंद्रित किया.


चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3)

चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्रमा मिशन है और जुलाई 2019 के चंद्रयान-2 का अनुवर्ती (follow-up) है. मिशन में तीन प्रमुख मॉड्यूल होंगे- प्रणोदन मॉड्यूल (2,148 किलोग्राम), लैंडर मॉड्यूल (1,726 किलोग्राम) और 26 किलोग्राम के वजन वाला रोवर (Propulsion Module, Lander Module and Rover). प्रोपल्शन मॉड्यूल लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन को 100 किमी की चंद्र कक्षा (Lunar Orbit) तक ले जाएगा.

रॉकेट की लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से की जाएगी. इस मिशन के लिए इसरो GSLV Mark 3 लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल करने जा रहा है. मिशन का पहला उद्देश्य चन्द्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग और रोवर को चंद्रमा पर घूमते हुए प्रदर्शित करना है. उसके बाद रोबोटिक रोवर को इस पर छोड़ा जाएगा, जो चन्द्रमा के बारे में नई जानकारी और सैंपल्स इकट्ठा करेगा.

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