सभी के लिए क्यों महत्वपूर्ण है नरक चतुर्दशी का त्योहार? जानिए इस पर्व की कथाएं और महिमा

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नरक चतुर्दशी

Narak Chaturdashi and Choti Deepawali ki katha

किसी भी व्यक्ति के जीवन में दो चीजें सबसे महत्वपूर्ण हैं- प्रकाश और संपन्नता. किसी भी मेहनती व्यक्ति का पुरस्कार संपन्नता ही है. जीवन को सुख-सुविधापूर्वक चलाने के लिए हर तरह के अंधकार से दूर होकर संपन्नता का होना बहुत जरूरी है. इन दोनों की प्राप्ति की कामना के लिए दीपावली (Deepawali) से बड़ा और कोई त्योहार नहीं. दिवाली का त्योहार धन-संपदा की देवी मां लक्ष्मी (Maa Lakshmi) के स्वागत के रूप में मनाया जाता है और इसी से यह सुख-समृद्धि की कामना के लिए सबसे बड़ा और प्रमुख त्योहार है.

यूं तो भारत में लगभग हर दिन ही कोई न कोई व्रत-त्योहार मनाया जाता है, इसीलिए भारत को त्योहारों की भी भूमि कहा जाता है, लेकिन इन सब में दीपावली का स्थान सबसे प्रमुख है. सुख-संपत्ति और ऐश्वर्य देने वाली महालक्ष्मी का पूजन सभी के लिए अनिवार्य है. कोई भी समाज या राष्ट्र की शक्ति का आधार धनसंपदा ही है और इन सभी संपदाओं की अधिष्ठात्री देवी भगवती लक्ष्मी जी ही हैं और उन्हें प्रसन्न किए बिना कोई भी समाज या देश सुखी नहीं रह सकता. इसीलिए सभी त्योहारों में दीपावली का पर्व अपना विशेष महत्व रखता है.

पंच पर्वों का महापर्व- दीपावली

इंसान की हमेशा से ही अंधकार से लड़ने और उस पर विजय पाने की मजबूत इच्छा शक्ति और लगातार प्रयास को याद दिलाता है दीपावली का यह त्योहार. लेकिन दिवाली का त्योहार अकेले नहीं आता, अपने साथ कई पर्व लेकर आता है. धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज के रूप में 5 दिनों तक चलने वाला यह त्योहार भारत और नेपाल समेत दुनियाभर के कई देशों में मनाया जाता है. ये पांचों ही पर्व अलग-अलग संदेश देते हैं, लेकिन सबका अर्थ एक ही है- प्रकाश की अंधकार पर या बुराई पर अच्छाई की जीत. इन्हीं पंच पर्वों में से एक है नरक चतुर्दशी (Naraka Chaturdashi) का त्योहार.

क्यों मनाया जाता है नरक चतुर्दशी का त्योहार

दीपावली से ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली छोटी दिवाली (Choti Deepawali) को ही ‘नरक चतुर्दशी’ और ‘रूप चौदस’ कहा जाता है. नरक चतुर्दशी का त्योहार किसी भी व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. कहते हैं कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन विधि-विधान से पूजा करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन श्रीकृष्ण ने भयंकर राक्षस नरकासुर का वध करके धरती को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था. इसी के साथ, इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा की जाती है, जिससे अकाल मृत्यु का भय दूर होता है. नरक चतुर्दशी के दिन भगवान शिव, भगवान वामन, मां काली और हनुमान जी की भी पूजा की जाती है.

लगाया जाता है उबटन, मिलता है रूप का आशीर्वाद

नरक चतुर्दशी के त्योहार का संबंध स्वच्छता और अंधकार को मिटाने से है. इस दिन लोग घरों की सफाई करके घर की सारी गंदगी, जिसे दरिद्रता के समान ही माना गया है, निकालकर बाहर फेंक देते हैं, ताकि दिवाली के दिन महालक्ष्मी का स्वागत किया जा सके. यह दिन केवल घर की ही नहीं, बल्कि शारीरिक स्वच्छता के लिए भी महत्वपूर्ण है. इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तेल लगाकर स्नान किया जाता है. इसी दिन उबटन लगाने की भी परंपरा है. कहा जाता है कि ऐसा करके भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से सौंदर्य और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.

नरक चतुर्दशी के दिन क्या किया जाता है-

नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने का विशेष महत्व है. इस दिन तिल के तेल से शरीर की मालिश की जाती है और उसके बाद एक औषधीय पौधे ‘चिरचिरा’ की पत्तियों को पानी में डालकर स्नान कर दिया जाता है. यह भी कहा जाता है कि नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है. नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे के जल को नहाने के पानी में मिलाकर स्नान किया जाता है. कहते हैं कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है.

नरक चतुर्दशी के पीछे की मान्यता यह है कि दिवाली आने से कई दिनों पहले लोग साफ-सफाई में जुट जाते हैं. इससे उनका शरीर मैला हो जाता है और दिवाली के दिन महालक्ष्मी का प्रवेश होता है और लक्ष्मी जी को स्वच्छता बहुत प्रिय है. इसीलिए दिवाली से ठीक एक दिन पहले शरीर की अच्छे से सफाई की जाती है और घर की बाकी गंदगी को भी बाहर निकाल दिया जाता है.

स्नान करने के बाद दक्षिण दिशा की तरफ हाथ जोड़कर यमराज से सभी पापों को क्षमा करने की प्रार्थना की जाती है. ऐसी भी मान्यता है कि घर का कोई सदस्य एक दिया जलाकर उसे पूरे घर में घुमाकर घर के बाहर (किसी मंदिर के बाहर या किसी पेड़ के नीचे) कहीं दूर रख आता है. इससे घर की सभी बुराइयां और बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं. यह दिया यम का दिया कहलाता है, या एक तेल का दिया घर के मुख्य द्वार से बाहर की तरफ मुख करके जलाया जाता है.

नरक चतुर्दशी के दिन इन बातों का रखें ध्यान

इसी के साथ, शाम के समय सभी देवताओं की पूजा करने के बाद दीपदान किया जाता है और तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों तरफ और घर के बाहर रखे जाते हैं. कहते हैं कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं. इस दिन पीपल, तुलसी, बरगद और आंवले के पेड़ के नीचे भी दिया जलाया जाता है. ध्यान रहे कि इस दिन किस कोई भी जीव हत्या ना करें. इस दिन सूर्योदय से पहले ही उठा जाता है. घर की साफ-सफाई कर लें और दक्षिण दिशा को तो बिल्कुल भी गंदा न रखें. नरक चतुर्दशी के दिन तेल का दान नहीं किया जाना चाहिए.


नरक चतुर्दशी को लेकर कई लोक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से दो प्रमुख हैं-

(1) गवान श्रीकृष्ण के हाथों नरकासुर के वध की कथा

एक समय नरकासुर नाम के राक्षस ने तपस्या करके भगवान से बहुत सारी शक्तियां अर्जित कर लीं. उसके बाद उसने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करके अपने अत्याचारों से सभी देवताओं और साधु-संतों को त्रस्त कर दिया. नरकासुर ने 16,100 स्त्रियों को भी बंधक बना लिया था. उसी के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवताओं और साधु-संतों ने भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की शरण में जाकर उनसे प्रार्थना की. तब श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ जाकर नरकासुर का वध कर दिया.

नरकासुर को मिला था यह वरदान

दरअसल, नरकासुर को यह वरदान था कि जब तक उसकी माता ही उसे मारने की अनुमति नहीं देंगी, तब तक भगवान भी उसे नहीं मारेंगे. कहते हैं कि नरकासुर धरती मां का पुत्र था और सत्यभामा धरती मां का ही अंश थीं. इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण सत्यभामा जी को अपने साथ ले गए थे. जब सत्यभामा ने नरकासुर के अत्याचारों को देखा तो उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराने के लिए उन्होंने भगवान को उसे मारने की अनुमति दे दी.

इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध कर दिया और उसकी कैद से 16,100 स्त्रियों को भी मुक्त कराया. लेकिन वे सभी 16,100 स्त्रियां भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही उन पर मोहित हो गईं. उन सभी ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि वे उनसे विवाह कर लें. इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने 16,100 रूपों में प्रकट होकर उन सभी स्त्रियों से विवाह किया और उन्हें अपनी रानी होने का गौरव दिया. उसी दिन से नरक चतुर्दशी का त्योहार मनाने की परंपरा शुरू हुई. भगवान श्रीकृष्ण अपने इतने रूपों में अपनी सभी रानियों के साथ रहते थे.

(2) राजा बलि की कथा

नरक चतुर्दशी को लेकर राजा बलि (Raja Bali) की भी कथा कही जाती है. राजा बलि भक्तराज प्रहलाद के पुत्र थे. वह राक्षस जाति के तो थे, लेकिन अपने पूर्वजों के प्रभाव से भगवान के भी बहुत बड़े भक्त थे. एक बार राजा बलि ने स्वर्ग का राज्य पाने के लिए 100 यज्ञों का अनुष्ठान किया. 99 यज्ञ करके बलि ने तीनों लोक अपने नाम कर लिए थे. इस पर देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि राजा बलि के 100 यज्ञ पूरे न हो पाएं, नहीं तो स्वर्ग पर राक्षसों का राज हो जाएगा.

तब भगवान विष्णु राजा बलि के पास उस समय गए, जब बलि अपना 100वां यज्ञ करने जा रहे थे. राजा बलि ने यह प्रतिज्ञा की थी कि 100 यज्ञ पूरे हो जाने तक जो भी याचक उनसे कुछ भी मांगेगा, वह उसे जरूर देंगे. भगवान विष्णु ब्राह्मण बालक का वेश बनाकर राजा बलि के पास पहुंचे और उनसे तीन पग भूमि मांगी. राजा बलि तीन पग भूमि देने को सहमत हो गए. उसी समय राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें सावधान किया और कहा कि यह ब्राह्मण बालक भगवान विष्णु ही हैं, जो तीन पग भूमि में तुम्हारा सब कुछ ले जाएंगे, लेकिन राजा बलि नहीं डरे.

राजा बलि ने निभाई अपनी प्रतिज्ञा, भगवान हुए बहुत प्रसन्न

बलि ने अपनी प्रतिज्ञा को निभाना ही उचित समझा. उन्होंने ब्राह्मण बालक को तीन पग भूमि दान में दे दी. तभी भगवान विष्णु अपने असली स्वरूप में वापस आ गए और अपने 2 पगों में उन्होंने तीनों लोक नाप लिए. तब राजा बलि ने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए स्वयं को भी भगवान को दान कर दिया. इस पर भगवान विष्णु राजा बलि से बेहद प्रसन्न हुए. उन्होंने बलि से कहा कि तुम्हें जो मांगना हो, मांग लो.

इस पर राजा बलि ने भगवान से कहा कि “हे प्रभु! त्रयोदशी से अमावस्या तक, तीनों दिनों में हर साल मेरा राज्य हो और मेरे राज्य में जो भी मनुष्य दीपावली मनाए, उसके घर में लक्ष्मीजी का वास हो. इसी के साथ, जो भी मनुष्य चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करें, उसे अकाल मृत्यु का भय कभी न हो”. यह सुनकर भगवान और भी प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा बलि को ये सभी वरदान दे दिए. कहते हैं कि तब से नरक चतुर्दशी व्रत, पूजन और दीपदान की परंपरा शुरू हुई.

पढ़ें – दीपावली पर किए जाने वाले कुछ सरल कार्य या उपाय, जिनसे घर आएं शुभ-लाभ


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