धनतेरस पर किन-किन देवी-देवताओं की होती है पूजा? किन बातों का रखें ध्यान?

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धनतेरस

Dhanteras Festival Diwali

कार्तिक महीने (Kartik) में त्योहारों की धूम रहती है. दीपोत्सव या दिवाली (Diwali) पांच दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जो धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्त होता है. दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी मनाई जाती है और छोटी दिवाली से एक दिन पहले धनतेरस का त्योहार (Dhanteras) मनाया जाता है. धनतेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है.

धनतेरस के दिन कुछ नया खरीदने की परंपरा है. माना जाता है कि धनतरेस के दिन जो भी खरीदा जाता है, वह लाभ देने वाला होता है और उसमें लगातार वृद्धि होती जाती है. लोग इस दिन को धन संपदा की वृद्धि के रूप में मनाते हैं और इसलिए इस दिन मां लक्ष्मीजी (Maa Lakshmi) की पूजा भी होती है. इसी दिन देवताओं के वैद्य और आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि का भी अवतरण हुआ था, इसीलिए इस त्योहार को ‘धनतेरस’ नाम दिया गया है.

समुद्र मंथन में प्राप्त हुए 14 रत्नों में से एक हैं धन्वंतरि

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और असुरों की तरफ से किए गए समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए 14 रत्नों में मां लक्ष्मी के साथ धन्वंतरि (Dhanvantari) भी शामिल हैं. कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि की पूजा से आरोग्य या अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है और आरोग्य को सबसे बड़ा धन कहा गया है, इसीलिए मां लक्ष्मीजी के साथ धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि जी की भी पूजा की जाती है.

कहा जाता है कि जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे, तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था, इसीलिए इस दिन चांदी या पीतल के बर्तन खरीदने का रिवाज है. जहां पीतल (पीली धातु) को धन्वंतरि की धातु माना गया है, तो वहीं चांदी (सफेद धातु) को चंद्रमा या शीतलता का प्रतीक माना जाता है. लोकमान्यताओं के अनुसार, इस दिन कोई भी वस्तु खरीदने से उसमें तेरह गुना वृद्धि होती है. कुछ लोग इस दिन धनिया के बीज भी खरीदकर अपने घर में रखते हैं और कुछ लोग इन बीजों को अपने गमलों या बगीचों में बोते भी हैं.

धनतेरस पर कुबेर और यमदेव की भी होती है पूजा

धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर (Shri Kuber) और मृत्यु के देवता यमदेव की पूजा का भी विशेष महत्व है. इस दिन की शाम को घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दिये जलाने की परंपरा है. धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा में दिया जलाया जाता है, जिससे अकाल मृत्यु का डर या अनजाना भय दूर होता है. इस दिन यमदेव की पूजा क्यों की जाती है, इसके पीछे एक लोककथा प्रचलित है-

कथा के अनुसार, एक समय यम देवता (Yam Devta) के एक दूत ने उनसे प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई सरल उपाय है, तब यमदेव ने कहा कि जो भी धनतेरस की शाम दक्षिण दिशा में दिया जलाकर रखेगा, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी. इस मान्यता के अनुसार, लोग धनतेरस की शाम दक्षिण दिशा की ओर दिया जलाकर रखते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से मृत्युदेव यमराज के कोप से पूरे परिवार की सुरक्षा होती है. इस दिन दीपदान करने की भी परंपरा है.

धनतेरस के दिन क्या और कैसे की जाती है खरीदारी

धनतेरस के दिन खील-बताशों की भी खरीदारी की जाती है. यह भी कहा जाता है कि धनतेरस के दिन विवाहित महिलाओं को श्रृंगार का सामान उपहार में देने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. इसी दिन लोग दीपावली की रात लक्ष्मी, गणेश की पूजा के लिए मूर्तियां भी खरीदते हैं. क्या आप जानते हैं कि दिवाली पूजन के लिए लक्ष्मीजी और गणेश जी की कैसी मूर्तियां खरीदी जाती हैं, जिससे आपके घर में सुख संपत्ति का आगमन हो. वैसे भगवान तो अपने उपासक के सरल भाव और उसकी सच्ची भक्ति से ही प्रसन्न होते हैं, लेकिन किसी भी तरह की पूजा के अपने कुछ नियम होते हैं, जिनका पालन करने से घर में संपन्नता बनी रहती है.

मां लक्ष्मीजी को धन की देवी कहा जाता है. इनकी भक्ति करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. लेकिन धन भी वहीं टिक पाता है, जहां बुद्धि होती है, इसलिए मां लक्ष्मीजी के साथ दिवाली के दिन बुद्धि के देवता श्री गणेश जी (Shri Ganeshji) की भी पूजा की जाती है. कहते हैं कि मां लक्ष्मी का स्वभाव बहुत ही चंचल होता है, ये एक जगह अधिक समय तक नहीं ठहरतीं. लक्ष्मीजी की कृपा सदा आपके ऊपर बनी रहे, इसके लिए आपको कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना होगा-

मूर्तियां खरीदते समय इन बातों का रखें ध्यान

जब आप दिवाली पूजन (Deepawali Poojan) के लिए लक्ष्मीजी की मूर्ति लेने जाएं तो ध्यान रखें कि लक्ष्मी की ऐसी मूर्ति न खरीदें जिसमें मां लक्ष्मी उल्लू पर विराजमान हों. ऐसी मूर्ति को काली लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. मां लक्ष्मी की ऐसी मूर्ति लेनी चाहिए जिसमें वो कमल पर विराजमान हों. उनका हाथ वरमुद्रा में हो और धन की वर्षा करता हो. कभी भी खड़ी हुईं मां लक्ष्मी की मूर्ति न लेकर आएं. ऐसी मूर्ति को लक्ष्मी मां के घर से जाने की मुद्रा में तैयार माना जाता है.

वहीं जब आप दिवाली की पूजा के लिए गणेश जी की मूर्ति लेने जाएं तो ध्यान रखें कि गणेश की मूर्ति में उनकी सूंड बाएं हाथ की तरफ मुड़ी हो. दायीं तरफ मुड़ी हुई सूंड शुभ नहीं मानी जाती है. साथ ही सूंड में दो घुमाव भी न हों. गणेश जी की मूर्ति में उनके साथ उनका वाहन मूषक जरूर होना चाहिए. गणेश जी के हाथ में मोदक हों. ऐसी मूर्ति सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है.

सोने, चांदी, पीतल या अष्टधातु की मूर्ति खरीदने के साथ क्रिस्टल के लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति की पूजा करना शुभ माना गया है. ध्यान रखें कि दिवाली पूजा के लिए लक्ष्मी और गणेश जी की एक साथ जुड़ी हुई मूर्ति कभी नहीं लेनी चाहिए. दोनों मूर्तियां अलग-अलग ही हों. पूजा के समय मां लक्ष्मी की मूर्ति हमेशा भगवान गणेश के दाहिनी ओर रखें, क्योंकि महालक्ष्मी जी को गणेश जी की माता कहा जाता है. इस तारा के उपाय करने से लक्ष्मीजी और गणेशजी की कृपा सदा आपके ऊपर बनी रहती है.

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