शूर्पणखा ने इस प्रकार किया श्रीराम-सीता जी के बल और सौंदर्य का बखान

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Shri Ram Sita

वनवास की अवधि पूरी होने में एक वर्ष ही शेष रह गया था. श्रीराम-सीताजी और लक्ष्मण जी पंचवटी में एक कुटिया बनाकर शांति से रह रहे थे, कि एक दिन रावण की बहन शूर्पणखा पंचवटी में गई, तो दोनों राजकुमारों (श्रीराम और लक्ष्मण) को देखकर विकल (काम से पीड़ित) हो गई. शूर्पणखा एक सुंदर युवती का रूप धारण कर श्रीराम के पास आकर उनसे उनका परिचय जानती है और कहती है-

“श्रीराम! तुम्हारा रूप-सौंदर्य तो अपूर्व है. आज से पहले किसी देवता में भी ऐसा रूप देखने में नहीं आया है. मैंने तीनों लोकों को खोज देखा. मेरे योग्य पुरुष संसारभर में नहीं है. मैं तुम जैसे पुरुषोत्तम के प्रति पति की भावना रखकर आई हूं. न तुम्हारे समान कोई पुरुष है, न मेरे समान स्त्री. विधाता ने यह संयोग बहुत विचार कर रचा है. अतः तुम दीर्घकाल के लिए मेरे पति बन जाओ.”

शूर्पणखा की इस प्रकार की बातें सुनकर श्रीराम ने सीताजी का परिचय देते हुए कहा, “हे आदरणीय देवी! मैं विवाह कर चुका हूं.”

इस पर शूर्पणखा ने सीता जी को देखकर कहा, “अरे इस कुरूप, विकृत, वृद्धा, अबला स्त्री में क्या रखा है? मुझे देखो, मैं प्रभाव से संपन्न हूं और अपनी इच्छा-शक्ति से सभी लोकों में विचरण कर सकती हूँ. मैं ही तुम्हारे योग्य हूं. तुम मुझे अपनी भार्या के रूप में देखो.”

तब श्रीराम कहते हैं, “परन्तु मैं एकपत्नी व्रत ले चुका हूं.”

यह सुनकर शूर्पणखा श्रीराम से लक्ष्मण जी के विषय में पूछती है, “क्या तुम्हारा यह छोटा भाई अकेला है?” तब श्रीराम कहते हैं, “हां वन में तो अकेला ही है.”

यह सुनकर शूर्पणखा श्रीराम को छोड़कर तुरंत लक्ष्मण जी के पास जा पहुंची और बोली, “मैं तुम्हारे इस सुंदर रूप के योग्य हूँ, तुम्हारी परम सुंदरी भार्या बन सकती हूँ.” राक्षसी के ऐसा कहने पर सुमित्रानंदन लक्ष्मण मुस्कुरा कर कहते हैं, “हे देवी! अभी तो आप भैया से याचना कर रही थीं. मैं तो अपने भाई श्रीराम का दास हूं. तुम मेरी पत्नी बनकर दासी क्यों बनना चाहती हो?”

सीता जी का अपमान कर उन्हें मारने के लिए झपटी शूर्पणखा

लक्ष्मण जी के इस प्रकार कहने पर शूर्पणखा बहुत क्रोधित हो जाती है. वह श्रीराम के पास लौट आती है और कहती है, “तुम दोनों भाई मिलकर मेरा परिहास कर रहे हो न? तुम इस कुरूप, विकृत, वृद्धा और धंसे पेट वाली पत्नी का आश्रय लेकर मेरा आदर नहीं कर रहे हो. आज तुम्हारे सामने ही मैं इसे खा जाऊंगी.”

वह श्रीराम से कहती है, “तुम्हारे इस छोटे भाई को भी मार डालूंगी. इन दोनों के न रहने पर तुम्हें इस दंडकवन में मेरे साथ विहार करना ही पड़ेगा…” और ऐसा कहकर वह बड़े-बड़े नेत्रों वाली शूर्पणखा क्रोध में भरकर सीता जी को मारने के लिए उन पर झपटी. तब श्रीराम और लक्ष्मण जी सीता जी को बचाने का प्रयास करते हैं, जिसमें लक्ष्मण जी के हाथों शूर्पणखा की नाक कट जाती है.

तब शूर्पणखा विलाप करती हुई खर-दूषण के पास गई और उन्हें श्रीराम के साथ युद्ध के लिए ललकारा. राक्षसों की विशाल सेना तैयार की गई. इतनी बड़ी सेना को आते देख श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहते हैं कि ‘सीता को पर्वत की कंदरा में छिपा दो.’ यह सुनकर लक्ष्मण जी सीता जी को वहां से ले जाते हैं.

श्रीराम के सौंदर्य को देखकर राक्षस भी रह गए चकित

वहीं दूसरी ओर, राक्षसों की सेना चारों तरफ से श्रीराम को घेर लेती है. लेकिन फिर श्रीराम के सौंदर्य को देखकर राक्षसों की सेना भी चकित रह गई. वे उन पर बाण ही न छोड़ सके. खर-दूषण ने अपने मंत्री से कहा-

“हमने अब तक न जाने कितने ही मनुष्य, देवता, नाग, असुर और मुनि देखे हैं. कितने ही देवताओं को जीता है और कितने ही मनुष्यों को मार डाला है, लेकिन हमने जन्मभर में ऐसी सुंदरता कहीं नहीं देखी. ये अनुपम पुरुष वध करने योग्य नहीं हैं.” फिर खर-दूषण श्रीराम से कहते हैं, “छिपाई हुई अपनी पत्नी हमें तुरंत दे दो और दोनों भाई जीते-जी घर लौट जाओ. हम तुम दोनों भाईयों को नहीं मारेंगे.”

यह सुनकर श्रीराम ने हंसकर कहा, “हम मनुष्य हैं, लेकिन दैत्यकुल का नाश करने वाले और मुनियों की रक्षा करने वाले हैं, दुष्टों को दण्ड देने वाले हैं. यदि बल न हो तो घर लौट जाओ. संग्राम में पीठ दिखाने वालों को मैं नहीं मारता. रण में चढ़ आकर कपट-चतुराई करना और शत्रु पर दया दिखाना तो कायरता है.”

यह सुनकर खर-दूषण का हृदय जल उठा. फिर वे शत्रु को बलवान जानकर सावधान होकर दौड़े और श्रीराम के ऊपर बहुत प्रकार के अस्त्र-शस्त्र बरसाने लगे. राक्षस चौदह हजार हैं और श्रीराम जी अकेले. पहले तो श्रीराम बहुत देर तक उनसे युद्ध करते रहे, लेकिन फिर उन्होंने राक्षसों की सेना पर माया बाण चला दिया, जिससे शत्रुओं की सेना एक-दूसरे में राम रूप ही देखने लगी और आपस में ही युद्ध करके लड़ मरी.

शूर्पणखा गई रावण के पास, किया श्रीराम के बल और सीता जी के सौंदर्य का बखान

युद्ध में खर-दूषण के मारे जाने के बाद शूर्पणखा ने जाकर रावण को भड़काया. फिर रावण के सब कुछ पूछने पर शूर्पणखा श्रीराम का परिचय देती हुई रावण से कहती है-

“भैया! अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र जिनका नाम राम है, वे पुरुषों में सिंह के समान हैं. मुनियों के वस्त्र में भी उनका रूप-सौंदर्य कामदेव से भी बढ़कर है. एक बार देख लो, तो दृष्टि हटाने का जी नहीं चाहता. अपने विशाल धनुष से राक्षसों पर महा विषैले सर्पों के समान बाणों की वर्षा करते हैं.”

“महाबली राम युद्धस्थल में कब धनुष खींचते हैं और कब भयंकर बाण हाथ में लेते और कब उन्हें छोड़ते हैं, इसका तो पता भी नहीं चल पाता है. बस इतना ही दिखाई देता है कि उनके बाणों की वर्षा से राक्षसों की सेना मर रही है. ऐसा लगता है कि वे पृथ्वी को राक्षसों से विहीन ही कर देंगे.”

“श्रीराम अकेले और पैदल थे तो भी उन्होंने कुछ देर के भीतर ही खर-दूषण सहित 14,000 भयंकर बलशाली राक्षसों का अपने तीखे बाणों से वध कर दिया. ऋषि-मुनियों को अभय देते हुए उन्होंने पूरे दंडक वन को राक्षसों की विघ्न बाधाओं से मुक्त कर दिया है. उनकी भुजाओं का बल पाकर मुनि लोग वन में निर्भय होकर रहने लगे हैं.”

“राम का एक बड़ा तेजस्वी भाई भी है, जो गुण-पराक्रम और रूप-सौंदर्य में उन्हीं के समान है. उसका नाम लक्ष्मण है. वह पराक्रमी भाई अपने बड़े भाई राम का प्रेमी और भक्त है. उसकी बुद्धि बड़ी ही तेज है. वह राम का दाहिना हाथ और दूसरा प्राण है. दोनों भाइयों का बल और प्रताप अतुलनीय है. वे माया की विद्याएं भी जानते हैं. दोनों भाई दैत्यों का वध करने में लगे हैं. मैं तेरी बहिन हूँ, यह सुनकर वे मेरी हँसी करने लगे.”

“राम की धर्मपत्नी भी उनके साथ है. उसका नाम सीता है. वह शुभ लक्षणों से संपन्न है और अपने पति को बहुत ही प्रिय है. वह सदा अपने स्वामी का प्रिय और हित करने में ही लगी रहती है. उसकी आंखें विशाल और मुख पूर्णचंद्र के समान है. उसके केश, नासिका, गर्दन और रूप बड़ा ही सुंदर और मनोहर है. दूसरी लक्ष्मी के समान दिखाई देने वाली वह सीता इस दंडक वन की देवी सी जान पड़ती है.”

“सीता के शरीर की कांति स्वर्ण के समान है. उसके सभी अंग अत्यंत सुंदर हैं. देवताओं, गंधर्वों आदि में भी उसके समान कोई दूसरी सुंदर स्त्री नहीं है. धरती पर उसके समान रूपवती नारी मैंने आज तक नहीं देखी. वह जिसकी भार्य हो, उसका जीवन स्वर्ग के अधिपति इंद्र से भी ज्यादा भाग्यशाली है. उसके रूप की समानता करने वाली भूमंडल में कोई दूसरी स्त्री नहीं है.”

“भैया! वह स्त्री तुम्हारे ही योग्य है. मैं तो तुम्हारे लिए ही उस स्त्री को लाने भी गई थी, लेकिन राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने मुझे इस तरह कुरूप बना दिया. अगर तुम्हें सीता को अपनी भार्या बनाने की इच्छा हो तो शीघ्र ही अपना दाहिना पैर आगे बढ़ाओ और उस सुंदरी सीता को अपनी भार्या बनाने का प्रयास करो. राक्षसराज रावण! अगर तुम्हें मेरी बात पसंद हो, तो निःसंकोच मेरी कहे अनुसार ही कार्य करो.”

शूर्पणखा की बातें सुनकर रावण ने अपने मंत्रियों से सलाह ली. मंत्रियों ने उसे छल से सीता जी का हरण कर लाने की सलाह दी, जिसका उसके छोटे भाई विभीषण और पत्नी मंदोदरी ने विरोध किया. उन दोनों की सलाह को अनसुना कर रावण सीता-हरण का विचार कर वहां से चल दिया.

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