Ramayan Prem Katha
जिस परिवार में भाई-बहनों के बीच प्रेम होता है, पति-पत्नी में प्रेम होता है, आपस में एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या का कोई भाव नहीं होता, कोई लालच नहीं होता, कोई स्वार्थ नहीं होता, एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव होता है, बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान और उनकी देखभाल करते हों… वह परिवार बहुत मजबूत बन जाता है और कठिन से कठिन हालात भी आसानी से गुजर जाते हैं. कोई भी बाहरी ताकत अपने स्वार्थ के लिए उस परिवार को तोड़ नहीं पाती. रामायण हमें यही बताती है.
रामायण ही हमें सिखाती है कि-
भाई-भाई विपत्ति बाँटने के लिए होते हैं,
न कि संपत्ति का बंटवारा करने के लिए.
किसी ने मुझसे पूछा कि यदि राम के समय पुष्पक विमान बन सकते थे, पत्थरों से समुद्र पर सेतु बनाए जा सकते थे, तो आज कहाँ गई वह टेक्नोलॉजी? तब के बाद से ऐसा होते हुए देखा है कभी?
मैंने कहा, श्रीराम के समय में तो और भी ऐसा बहुत कुछ हुआ था जो तब के बाद से होते हुए नहीं देखा गया…
तब के बाद से,
किसी राज्य के लिए दो भाईयों का वैसा प्रेम भरा युद्ध देखा-सुना है कभी?
लेकिन हाँ, राज्य के लिए एक-दूसरे के प्राण लेने वाले भाईयों के बारे में तो बहुत सुना होगा..
तब के बाद से,
अपने माता-पिता की एक इच्छा पर, बिना किसी शिकायत के प्रेम से पूरा वैभव त्यागकर वनवास स्वीकार करने वाली संतान और बेटे-बहू के बारे में सुना है कभी?
लेकिन हां, घर-संपत्ति के लिए अपने माता-पिता को घर से निकाल देने या वृद्धाश्रम छोड़ देने वाली संतानों के बारे में तो बहुत सुना होगा..
तब के बाद से,
अपने बड़े भाई के लिए सारी सुख-सुविधाएं त्यागकर पीछे-पीछे वन जाने वाले छोटे भाई के बारे में सुना है कभी?
लेकिन हाँ, घर-संपत्ति के लिए अपने बड़े भाई के खिलाफ कोर्ट में जाने वाले छोटे भाईयों के बारे में तो बहुत सुना होगा..
तब के बाद से,
इतना बड़ा राज्य पाने के बाद भी अपने बड़े भाई को ही राजा मानकर संन्यासी की तरह रहने वाले छोटे भाई के बारे में सुना है कभी?
लेकिन हाँ, राज्य के लिए अपने ही भाई के खिलाफ षड्यंत्र रचाने वाले भाईयों के बारे में तो बहुत सुना होगा..
जिन लोगों का श्रीराम-सीता जी के साथ कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध भी नहीं था, उन सबने भी सीता जी को बचाने के लिए श्रीराम का पूरा साथ दिया और अपने प्राणों की चिंता किए बिना पूरे उत्साह से इतने बड़े युद्ध में भाग लिया.
तब के बाद से, किसी नारी के सम्मान को बचाने के लिए इतने बड़े युद्ध के बारे में सुना है कभी?
पढ़िए रामायण में, जिसमें साफ शब्दों में लिखा है कि “उस समय उस सुंदर नगरी अयोध्या में निरंतर आनंद में रहने वाले, अनेक शास्त्रों का श्रवण करने वाले, लोभरहित और अपने ही धन में संतुष्ट रहने वाले धर्मात्मा मनुष्य रहते थे. कामी, क्रूर, कृपण और नास्तिक तो ढूंढने पर भी नहीं मिलते थे. ऐसा कोई न था जो वेदों के छः अंगों को न जानता हो, व्रत-उपवास आदि न करता हो, या दीन या दुखी हो. वहां के स्त्री-पुरुष अपनी इंद्रियों को वश में रखने वाले, प्रसन्नचित्त, हर्षयुक्त, सुशील और महर्षियों के समान पवित्र थे.”
तब के बाद से, ऐसे राजा और राज्य के बारे में देखा-सुना है कभी?
जब सोच में अंतर होता है, सोचने के तरीके में अंतर होता है, तभी तो टेक्नोलॉजी में अंतर होता है..
सोच पीछे जाएगी तो टेक्नोलॉजी भी पीछे जाएगी ही..
श्रीराम और लक्ष्मण
“इस संसार में हर एक की परछाई काली है, बस श्रीराम की ही परछाई उजली है, जिसे ‘लक्ष्मण’ कहते हैं.” जब श्रीराम को वनवास हुआ, तो लक्ष्मण जी ने भी खुद को साथ ले जाने के लिए आखिरकार श्रीराम को मना ही लिया. वनवास के दौरान तीनों एक-दूसरे का पूरा ध्यान रखते.
प्रेम में बड़ी शक्ति होती है. सम्बन्धों को निभाने के लिए ढेर सारे संसाधनों की जरूरत नहीं होती. धर्म, प्रेम और समर्पण हो तो हर सम्बन्ध चिरंजीवी हो जाता है और जीवन सुख से भर जाता है. सम्बन्धों के मध्य धर्म था, और धर्म के पीछे पीछे प्रेम! सो कठिनाइयां भी अधिक कठिन नहीं लगीं. दुर्गम पहाड़ों के बीच भी जीवन स्वर्गिक हो गया.
वाल्मीकि जी बताते हैं कि लक्ष्मण जी श्रीराम के दूसरे प्राण के समान थे. श्रीराम कोई भी उत्तम भोजन लक्ष्मण जी को खिलाए बिना नहीं खाते थे. लक्ष्मण जी शेषनाग के अवतार हैं, अतः क्रोधी स्वभाव के हैं, पर श्रीराम का प्रेम उन्हें बांधे रखता है. श्रीराम के प्रति लक्ष्मण जी के प्रेम को व्यक्त करते हुए किसी ने बड़ी ही सुन्दर पंक्तियाँ लिखी हैं कि-
पालने में लखन व राम जी लिटाये गए,
लेटते ही करुणा सदन चुप हो गए,
किन्तु लक्ष्मण कुछ ऐसा तेज रोये उन्हें,
रोता देख धरती गगन चुप हो गए,
राजवैद्य आए कोई रोग न बता सका तो,
ज्योतिषी भी करके यतन चुप हो गए,
गुरु ने उठाया और लखन को राम के
चरण में लिटाया तो लखन चुप हो गए…
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