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Dharm aur Adharm : क्या धर्म ही सारे झगड़ों की जड़ है (धर्म और अधर्म)

कर्ण ने जिसे अपना धर्म माना, उसे श्रीकृष्ण ने धर्म नहीं माना. कर्ण लाख तर्क देता रहा कि दुर्योधन ने तो उसके ऊपर उपकार किया है, अतः उसे अपना मित्रता का धर्म निभाना है. लेकिन वह भूल रहा था कि …. […]

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धर्म और अध्यात्म

Bhagavad Geeta Adhyay 16 : भगवद्गीता – सोलहवाँ अध्याय (दैवासुर सम्पद्विभाग योग)

आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य कहा करते हैं कि जगत्‌ आश्रयरहित, सर्वथा असत्य और बिना ईश्वर के, अपने-आप केवल स्त्री-पुरुष के संयोग से उत्पन्न है, अतएव केवल काम ही इसका कारण है. इसके सिवा और क्या है? […]

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Sita Vanvas Ramayan : श्री राम ने सीता जी को वनवास क्यों दिया?

और फिर श्रीराम और सीताजी को सदैव के लिए अलग-अलग करने का जो काम रावण जैसा इतना बड़ा राक्षस न कर सका, वह काम श्रीराम की प्रजा ने कर दिया. वही प्रजा जिसने बड़े आंसुओं के साथ 14 वर्षों तक श्रीराम का बेसब्री से इंतजार किया था, वही प्रजा जिसने श्रीराम के वापस लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया था, दीपावली मनाई थी, उत्सव मनाया था. […]

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Shambuk Vadh in Valmiki Ramayana : श्रीराम ने शम्बूक का वध क्यों किया?

क्या वास्तव में श्रीराम ने शम्बूक का वध केवल इसलिए किया था क्योंकि वह एक शूद्र होकर तप कर रहा था? क्या और कोई कारण नहीं था? और क्या श्रीराम के राज्य में शंबूक ही एकमात्र शूद्र था? […]

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धर्म और अध्यात्म

Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 15 : भगवद्गीता – पन्द्रहवाँ अध्याय (पुरुषोत्तम योग)

अच्छी और बुरी योनियों की प्राप्ति गुणों के संग से होती है एवं समस्त लोक और प्राणियों के शरीर तीनों गुणों के ही परिणाम हैं. अन्य सब योनियों में तो केवल पूर्वकृत कर्मों के फल को भोगने का ही अधिकार है, जबकि मनुष्य योनि में नवीन कर्मों के करने का भी अधिकार है. […]

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धर्म और अध्यात्म

Bhagwan Shri Krishna Gita : सबसे प्रधान अथवा सबसे श्रेष्ठ कौन है?

गंगा जी के समान तीर्थ नहीं है, श्रीविष्‍णु भगवान से बढ़कर देव नहीं है और गायत्री से बढ़कर जपने योग्य मंत्र न हुआ, न होगा.” गायत्री की इस श्रेष्‍ठता के कारण ही भगवान ने उसे अपना स्वरूप बतलाया है. […]

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धर्म और अध्यात्म

Satv Raj Tam Meaning : सत्व, रज, तम के गुण और प्रभाव (सात्विक, राजसिक, तामसिक)

मनुष्य जैसा आहार करता है, वैसा ही उसका अन्तःकरण बनता है और अन्तःकरण के अनुरूप ही उसकी श्रद्धा भी होती है. आहार शुद्ध होगा तो उसके परिणामस्वरूप अन्तःकरण भी शुद्ध होगा. आहार की दृष्टि से भी किसी मनुष्य की पहचान हो सकती है कि वह मनुष्य किस प्रवृत्ति का होगा. […]

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धर्म और अध्यात्म

Bhagavad Gita Adhyay 14 : श्रीमद् भगवद्गीता – चौदहवाँ अध्याय (गुणत्रय विभाग योग)

सत्त्वगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है और रजोगुण से निःसन्देह लोभ तथा तमोगुण से प्रमाद और मोह उत्पन्न होते हैं और अज्ञान भी होता है॥17॥ सत्त्वगुण में स्थित मनुष्य स्वर्ग आदि उच्च लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस मनुष्य मध्य में अर्थात मनुष्य लोक में ही रहते हैं और तमोगुण के कार्यरूप निद्रा, प्रमाद और आलस्य आदि में स्थित तामस मनुष्य अधोगति को अर्थात कीट, पशु आदि नीच योनियों को तथा नरकों को प्राप्त होते हैं॥18॥ […]

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धर्म और अध्यात्म

Bhagavad Gita Chapter 13 : श्रीमद् भगवद् गीता – तेरहवाँ अध्याय (क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग)

सत्त्व, रज और तम- इन तीनों गुणों के साथ जो जीव का अनादिसिद्ध संबंध है एवं उनके कार्य रूप सांसारिक पदार्थों में जो आसक्ति होगी, उसकी वैसी ही वासना होगी, वासना के अनुसार ही अंतकाल में स्मृति होगी और उसी के अनुसार उसे पुनर्जन्म प्राप्त होगा. इसीलिये यहाँ अच्छी-बुरी योनियों की प्राप्ति में गुणों के संग को कारण बतलाया गया है. […]

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धर्म और अध्यात्म

मेहनत या भाग्य : पुरुषार्थ या प्रारब्ध? दोनों में कौन है अधिक बलवान?

रघुनन्दन! पूर्वजन्म के तथा इस जन्म के पुरुषार्थं (कर्म) दो भेड़ों की तरह आपस में लड़ते हैं. उनमें जो भी बलवान्‌ होता है, वही दूसरे को क्षणभर में पछाड़ देता है. इस जन्म में किया गया प्रबल पुरुषार्थ अपने बल से पूर्वजन्म के पौरुष या दैव को नष्ट कर देता है और पूर्वजन्म का प्रबल पौरुष इस जन्म के पुरुषार्थ को अपने बल से दबा देता है. उन दोनों में जो अधिक बलवान्‌ होता है, वही विजयी होता है. […]