Shri Krishna and Shalva
यह कहानी भगवान श्रीकृष्ण और शाल्व के बीच हुए युद्ध की है. मृत्तिकावर्त का राजा शाल्व शिशुपाल का मित्र था, जो कि श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था. शाल्व की श्रीकृष्ण से शत्रुता की कहानी बड़ी पुरानी थी. शाल्व न केवल श्रीकृष्ण को बल्कि पूरे यदुवंश को ही समाप्त करने की प्रतिज्ञा कर चुका था. इसके लिए उसने द्वारका की समस्त शक्तियों को बारीकी से देखा और उन्हें समझने की कोशिश की.
और तब शाल्व को यह भी समझ आ चुका था कि द्वारका पर जल और थल मार्ग से चढ़ाई करना संभव नहीं था. तब शाल्व ने विलुप्त हो रही वैमानिकी तकनीक को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया था. वह अपने प्रयोग में सफल भी हुआ था. उसने वैदिक टेक्नोलॉजी से एक विमान का निर्माण किया था, जिसका नाम उसने ‘सौभ’ रखा था.
इस कहानी से इस बात की जानकारी मिलती है कि प्राचीन काल से ही मनुष्य उड़ान भरने का स्वप्न देखता आया है, विमान के निर्माण का प्रयास करता रहा है. इसमें सफलता और असफलता दोनों ही मिली है.
कैसा था शाल्व का विमान? क्या क्षमतायें थी इस विमान की? इस विमान में शाल्व द्वारा क्या तकनीक प्रयोग में लाई गई थी? साथ ही ऐसी क्षमता विकसित कर लेने के बाद भी शाल्व की पराजय कैसे हुई? आइये जानते हैं-
शाल्व ने इस प्रकार बनाई थी हमले की योजना
द्वापरयुग के महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका सबसे शक्तिशाली राज्यों में से एक थी. द्वारिका जैसा सुरक्षित दुर्ग जल और थल मार्ग से अभेद्य था. शाल्व ने अपने सेनापति से कहा कि समुद्र में बसी द्वारका का दुर्ग अभेद्य है. घुसना संभव नहीं, लेकिन आकाश मार्ग से उस पर हमला किया जा सकता है. इससे वे भ्रमित हो जाएंगे और तब हम सेना सहित आक्रमण कर देंगे, क्योंकि वे किसी विमान से हमला होने की बात सोच भी नहीं सकते.
द्वारका की सुरक्षा के दे दिए गए थे आदेश
द्वारका में भी इस बात की भनक लग गयी कि शाल्व अचानक हमला बोल सकता है, पर किसी ने यह नहीं सोचा था कि शाल्व तो विमान द्वारा आकाशमार्ग से धावा बोलेगा.
उग्रसेन ने आदेश दे दिया कि नगर में आने-जाने वालों पर कड़ी नजर रखी जाए. बिना चिन्ह या मुद्रा के किसी को भी प्रवेश न करने दिया जाए. दुर्ग पर पर लगे यंत्रों का फिर से निरीक्षण किया जाए और दुर्ग के अंदर तरह-तरह के हथियार दुरुस्त रहें. जहां कहीं भी समुद्र पार करने के पुल हैं, उन्हें तोड़ दिया जाए. जहाजों को रोक दिया जाए. किले के चारों ओर की खाईयों में सूलियां लगा दी जाएं.
द्वारका पर शाल्व का आक्रमण
शाल्व ने सौभ विमान पर बैठकर द्वारका पर धावा बोल दिया. शाल्व का सेनापति विदूरक और मंत्री द्युम्न, दंतवक्र आदि भी उसके साथ थे. हथियारों से लैस बड़ी लंबी सेना भी साथ थी, जो द्वारिका के बाहर डेरा डाले हुए बैठे थी. विमान पर बैठा शाल्व आकाशमार्ग से ही अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करने लगा. द्वारका पहली बार ऐसा कोई विमान देख रही थी.
शाल्व भगवान श्रीकृष्ण को ढूंढ रहा था, लेकिन श्रीकृष्ण उस समय इन्द्रप्रस्थ गए हुए थे. द्वारका की जनता घबरा रही थी, क्योंकि सब कुछ अप्रत्याशित था. शाल्व ने द्वारिका के बाहरी हिस्सों को काफी क्षति पहुंचाई. वह द्वारका की सेना को भ्रमित करके और बाहरी सुरक्षा को नष्ट कर अपनी सेना को घुसाने के प्रयास में था. उसे इन सबमें शुरुआती सफलता भी हासिल हो गई थी.
भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने संभाली कमान
भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने रथ पर सवार होकर सबको ढांढस बंधाया और युद्ध का ऐलान कर दिया. उद्धव, चारुदेष्ण, सात्यकि, साम्ब भाइयों के साथ अक्रूर, कृतवर्मा, भानुविन्द, गद, शुक, सारण आदि बहुत से वीर निकलकर उनके साथ हो लिए. ये सभी एक से बढ़कर एक महारथी थे.
शाल्व के सैनिकों और यदुवंशियों में भयंकर युद्ध होने लगा. प्रद्युम्न और शाल्व के बीच युद्ध हुआ. इस युद्ध में प्रद्युम्न ने एक बड़ी भूमिका निभाई थी.
ऊपर से विमान पर बैठकर युद्ध कर रहे शाल्व ने प्रद्युम्न को घायल और मूर्छित कर दिया.
तब प्रद्युम्न के सारथी दारुकपुत्र ने चतुराई दिखाते हुए उन्हें युद्ध से हटा ले गया. कुछ देर बाद जब प्रद्युम्न की मूर्च्छा टूटी. तब उन्होंने सारथी से कहा, “तुमने मुझे रणभूमि से भगाकर ठीक नहीं किया. मैं ताऊ बलराम जी और पिता जी से क्या कहूंगा? लोग यही कहेंगे कि मैं युद्ध से भाग गया?” तब दारुकपुत्र ने कहा कि ‘क्षमा करें राजकुमार! मैंने सारथी का धर्म निभाया है’.
प्रद्युम्न फिर युद्ध में लौटे.
प्रद्युम्न ने लिया युक्ति से काम, शाल्व हुआ पराजित
इस बार प्रद्युम्न ने युक्ति से काम लिया और शाल्व के विमान को और नीचे लाने के लिए बाध्य किया. और जैसे ही विमान थोड़ा और नीचे आया, प्रद्युम्न ने शाल्व को एक ही बाण से गंभीर रूप से घायल कर दिया. बाध्य होकर शाल्व को द्वारका से भाग जाना पड़ा, क्योंकि वह उस समय युद्ध करने की स्थिति में नहीं रहा था.
निःसंदेह यह श्रीकृष्ण के पुत्रों की असाधारण विजय थी, क्योंकि ऐसे हमले का उन्हें आभास भी न था.
तकनीकी रूप से देखा जाए तो शाल्व का विमान पुष्पक विमान जैसा श्रेष्ठ नहीं था. शाल्व का विमान बहुत ज्यादा ऊँचाई भी प्राप्त नहीं कर सकता था. और इसीलिए शाल्व को जल्द ही विमान सहित द्वारका से भाग जाना पड़ा था. हालांकि वह बाद में फिर से अधिक तैयारी के साथ इससे भी बड़े हमले की योजना बना रहा था, जिसे अनदेखा करना एक द्वारका के लिए एक बड़ी भूल होती.
अतः श्रीकृष्ण जब द्वारिका वापस आए, तब उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया गया. श्रीकृष्ण को यह पता चल चुका था कि ‘शाल्व उनसे निजी शत्रुता रखता है, इसलिए मुझे ही उससे युद्ध करने के लिए जाना चाहिए. पूरी द्वारका को युद्ध की अग्नि में क्यों झोंका जाए.’
श्रीकृष्ण और शाल्व का युद्ध
और तब श्रीकृष्ण ने नगर और लोगों की सुरक्षा का भार बलराम को सौंपा और अपने चुने हुए कुछ साथियों के साथ मृत्तिकावर्त पर चढ़ाई कर दी. सब तरफ हल्ला मच गया कि द्वारकाधीश श्रीकृष्ण आ गए. चूंकि श्रीकृष्ण को प्रद्युम्न से यह जानकारी मिल चुकी थी कि शाल्व का विमान कितने वेग से उड़ सकता है, और कितनी ऊँचाई प्राप्त कर सकता है, अतः उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्रों का चयन भी उसी के अनुरूप किया था.
इस युद्ध में श्रीकृष्ण के सामने टिकते न देख शाल्व ने छल का खूब सहारा लिया. मायापति श्रीकृष्ण ने भी शाल्व के भ्रमजाल में उलझे रहने का तब तक नाटक किया, जब तक कि शाल्व खुद ही असावधान नहीं हो गया. और तब अवसर पाते ही श्रीकृष्ण ने एक ही बाण से सौभ विमान को नष्ट कर दिया. यह विमान ही शाल्व की शक्ति था, अतः उसके नष्ट होते ही वह युद्ध में अधिक देर तक न ठहर सका और श्रीकृष्ण के हाथों बुरी तरह पराजित हुआ.
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