Shri Krishna Leela : भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के वस्त्र क्यों चुराए थे?

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Shri Krishna Leela : Shri Krishna Gopi Vastraharan

भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की बाल-लीलाओं के संबंध में एक कथा ये कही जाती है कि जब कुछ गोपियां नदी में निर्वस्त्र होकर नहा रही थीं, तब श्रीकृष्ण ने उन गोपियों के वस्त्र चुरा लिए थे. यहां कुछ अलग प्रजाति के लोग ये सवाल भी पूछ लेते हैं कि नहाती हुईं निर्वस्त्र गोपियों को छिपकर देखने वाला भगवान कैसे हो सकता है?

तो पहली बात ये है कि जब भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसा किया था, तब उनकी आयु मात्र 6 वर्ष की थी. जिन गोपियों के वस्त्र उन्होंने चुराए थे, उनमें और श्रीकृष्ण के बीच माता-पुत्र जैसा संबंध था. अपनी इस लीला से भगवान श्रीकृष्ण ने सभी स्त्री-पुरुष को एक बहुत बड़ा संदेश दिया है.

भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के वस्त्र चुरा लिये. गोपियां श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती हैं कि वे उनके वस्त्र उन्हें लौटा दें, तब श्रीकृष्ण उन्हें स्वयं जल से बाहर निकलकर वस्त्र लेने के लिए कहते हैं. इस पर गोपियां उनसे कहती हैं कि वे इस अवस्था में जल से बाहर नहीं आ सकतीं, तब श्रीकृष्ण उनसे कहते हैं कि तो फिर तुम निर्वस्त्र होकर नदी में गई ही क्यों थीं?

इसी के साथ, श्रीकृष्ण ने गोपियों को वस्त्र देने के लिए शर्त रखी कि, “तुम सब मुझे रोज स्वयं ही माखन दिया करोगी और अब कभी यशोदा मैया से मेरी शिकायत नहीं करोगी”. गोपियों ने तुरंत बाल श्रीकृष्ण की ये बात मान ली.

अब जरा सोचिये, कि श्रीकृष्ण तो एक बहुत छोटे से बच्चे के रूप में थे जब उन्होंने, निर्वस्त्र होकर नदी में नहा रहीं गोपियों के वस्त्र चुराए थे. लेकिन अगर यही कार्य भगवान की जगह कोई दुष्ट प्रजाति का व्यक्ति करता, तो वे सब गोपियां क्या करतीं?

श्रीकृष्ण ने तो गोपियों के सामने बच्चों जैसी शर्त रखी थी. ब्लैकमेल करने के नाम पर उनसे माखन मांग लिया था, लेकिन अगर श्रीकृष्ण की जगह उस समय वहां कंस का कोई दुष्ट सैनिक आ जाता, तो वह तो कैसी भी शर्त रख सकता था..

बस यही सीख देने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने ये लीला की थी. अपने इस कार्य के माध्यम से वे बताना चाहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे कि कोई भी उस व्यक्ति का फायदा उठा सके या उसे ब्लैकमेल कर सके.

अपनी इस लीला से श्रीकृष्ण का उन गोपियों को साफ संदेश था कि सार्वजनिक स्थानों पर निर्वस्त्र होकर न नहाया जाए, क्योंकि आततायी और राक्षस लोग चारों तरफ घूमते रहते हैं. ऐसे में मर्यादा का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. कभी भी किसी भी तरह की घटना घट सकती है.

भगवान की कहानियों का समझें सही भाव

हमेशा से ही अलग-अलग कवियों ने भगवान की लीलाओं का अलग-अलग तरह से वर्णन किया है, अपनी-अपनी बुद्धि और सामर्थ्य से उसकी व्याख्या करने की कोशिश की है और आज भी यह सब जारी है, लेकिन भगवान की हर एक लीला मानव कल्याण और एक महत्वपूर्ण संदेश से ही जुड़ी होती है. कुछ कुप्रचारों के चलते उनकी किसी भी लीला को संदेह की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उनके सही भाव को समझने का प्रयास किया जाना चाहिए.

ऐसे मनगढ़ंत अर्थ न निकालें

श्रीकृष्ण की इसी लीला में कुछ लोगों ने तो ऐसा भी अर्थ निकाल लिया कि “वस्त्र माया का प्रतीक हैं और आत्मा-परमात्मा के बीच बाधा पैदा करते हैं… ” कृपया इस तरह की मनगढ़ंत बातों या अर्थों पर यकीन न करें. श्रीकृष्ण की इस कहानी का ऐसे अर्थ से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि जब बात आत्मा और परमात्मा के मिलन की होती है, तब शरीर पर धारण किए गए वस्त्र-आभूषण कोई बाधा उत्पन्न नहीं करते.

बल्कि श्रीकृष्ण ने तो गोपियों से ये कहा था कि ‘नदी में निर्वस्त्र होकर स्नान करना जल देवता और उसमें रहने वाले जीवों का अपमान है’.


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