What is Earthquake : भूकंप क्यों आते हैं, सबसे ज्यादा भूकंप कहां आते हैं

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भूकंप की परिभाषा, प्रकार, कारण और प्रभावित क्षेत्र (Earthquake definition, types, causes and affected areas)

“हमारे सौरमंडल में हमारी पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां जीवन है. पृथ्वी को स्वस्थ रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि पृथ्वी का बुखार बढ़ने (ग्लोबल वार्मिंग) या इसके कांपने (भूकंप) का नतीजा इस पर रहने वाले सभी जीवों को ही भुगतना पड़ता है.”

भूकंप क्या है (What is Earthquake)- भूकंप जानमाल को भारी क्षति पहुंचाने वाली सबसे ज्यादा विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है. आमतौर पर भूकंप (Earthquake) शब्द का अर्थ पृथ्वी के कंपन (Vibration of Earth) से होता है.

भूकंप का आना एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें पृथ्वी की सतह के अंदर से एनर्जी के निकलने की वजह से तरंगें उत्पन्न होती हैं. ये तरंगें सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी में कंपन पैदा करती हैं. भूकंप से उत्पन्न तरंगों को भूकंपीय तरंगें (Seismic Waves) कहते हैं, जो पृथ्वी की सतह पर गति करती हैं या फैलती हैं.

चूंकि भूकंप मुख्य रूप से मानव शक्ति से परे एक प्राकृतिक घटना है, इसलिए इससे बचने का एकमात्र उपाय ‘सावधानी और बचाव’ ही है. अगर कोई व्यक्ति गलत जगह पर है, तो उसके लिए भूकंप बहुत ही खतरनाक साबित हो सकते हैं, क्योंकि भूकंप से इमारतें गिर सकती हैं, भूस्खलन (Landslide) की घटना हो सकती है, साथ ही कई अन्य घातक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं. समुद्र तल में आने वाला भूकंप पानी को ऊपर की ओर धकेलता है और सुनामी (Tsunami) जैसी भारी लहरें पैदा कर सकता है.

instrument used to measure the vibration of the earth is called a seismograph
Seismograph (सिस्मोग्राफ)

सिस्मोग्राफ (Seismograph)- पृथ्वी के कंपन को मापने वाले यंत्र को सिस्मोग्राफ कहते हैं, यानी भूकम्पीय तरंगों को ‘सिस्मोग्राफ (Seismographs)’ से मापा जाता है. सीस्मोग्राफ एक उपकरण (Instrument) होता है, जिसका इस्तेमाल भूकंप से जुड़ी डिटेल्स जैसे बल, अवधि आदि को मापने और रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है.

भूकंप मूल या हाइपोसेंटर (Hypocenter)- पृथ्वी की सतह के नीचे का वह स्थान या बिंदु, जहां से यह ऊर्जा निकलती है, या पृथ्वी की सतह के नीचे जिस स्थान पर भूकंप का केंद्र स्थित होता है, उसे भूकंप मूल या फोकस या उद्गम केंद्र या अवकेंद्र या हाइपोसेंटर (Hypocenter) कहा जाता है. यहां से यह ऊर्जा भूकंपीय तरंगों के रूप में बाहर की ओर सभी दिशाओं में फैलती हुई पृथ्वी की सतह तक पहुंचती है.

अधिकेंद्र (Epicenter)- फोकस के ठीक ऊपर, या पृथ्वी की सतह के ऊपर का वह स्थान जहां भूकंपीय तरगें सबसे पहले पहुंचती हैं, अधिकेंद्र (Epicenter) कहलाता है. भूकंप की तीव्रता और इससे होने वाली हानि अधिकेंद्र पर सबसे ज्यादा होती है… और इससे दूर जाने पर हानि कम होती जाती है.

earthquake focus hypocenter epicenter


भूकंप की तीव्रता को किससे और कैसे मापा जाता है
(Measurement of Earthquake)
सभी भूकंप अपनी तीव्रता और परिमाण (Intensity and Magnitude) में अलग-अलग होते हैं. कंपन को मापने वाले यंत्र को सिस्मोग्राफ कहते हैं.

रिक्टर पैमाना (Richter Scale)-
रिक्टर पैमाने को परिमाण पैमाने (Magnitude scale) के रूप में भी जाना जाता है. इससे भूकंप के दौरान उत्पन्न ऊर्जा का मापन किया जाता है. भूकंप के दौरान निकलने वाली ऊर्जा को 0-10 तक पूर्ण संख्या में व्यक्त किया जाता है. हालांकि, 2 से कम और 10 से ज्यादा रिक्टर तीव्रता के भूकंप को मापना आमतौर पर संभव नहीं है.

10 या उससे ज्यादा की तीव्रता के भूकंप नहीं आ सकते, क्योंकि भूकंप की तीव्रता उस दोष (फॉल्ट) की लंबाई से जुड़ी होती है, जिस पर यह होता है. यानी जितना लंबा फॉल्ट, उतना बड़ा भूकंप. 10 तीव्रता का भूकंप उत्पन्न करने के लिए फिलहाल कोई फॉल्ट मौजूद नहीं है.

रिक्टर पैमाने पर हल्के भूकंप (Light Earthquake) की तीव्रता 4 से 4.9 के बीच मापी जाती है. छोटे भूकंपों की तरह अक्सर दुनियाभर में ये हल्के भूकंप आते हैं, या हल्के झटके महसूस किए जा सकते हैं, लेकिन आमतौर पर इस तीव्रता के भूकंप से नुकसान नहीं होता है.

मरकैली पैमाने (Mercalli Scale)-
मरकैली स्केल का प्रयोग भूकंप की तीव्रता मापने (Intensity scale) के लिए किया जाता है. इससे घटना के दौरान दिखाई देने वाले नुकसान का मापन किया जाता है. इसे 1-12 की सीमा में व्यक्त किया जाता है.


भूकंप क्षेत्र (Earthquake Zone)- पृथ्वी का वह क्षेत्र, जिसके चारों ओर ज्यादातर भूकंप आते हैं, उसे भूकंपीय क्षेत्र या भूकंप बेल्ट (Seismic zone or Earthquake belts) के रूप में जाना जाता है.

सबसे ज्यादा भूकंप कहां आते हैं
(Where do most Earthquakes occur)
रिंग ऑफ फायर (Ring of Fire) को प्रशांत रिम या सर्कम-पैसिफिक बेल्ट भी कहा जाता है. यह प्रशांत महासागर के साथ स्थित एक ऐसा क्षेत्र है, जहां ज्यादातर एक्टिव ज्वालामुखी और भूकंप रिकॉर्ड किए जाते हैं. पृथ्वी के 75 प्रतिशत ज्वालामुखी (450 से ज्यादा ज्वालामुखी) रिंग ऑफ फायर के किनारे ही स्थित हैं. पृथ्वी के 90 प्रतिशत भूकंप भी इसी क्षेत्र में आते हैं, जो ज्वालामुखी और भूकंप के बीच एक सम्बन्ध को दर्शाता है.

रिंग ऑफ फायर प्रशांत, भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई, जुआन डे फूका, कोकोस, नाजका, उत्तरी अमेरिकी और फिलीपीन प्लेट्स सहित कई टेक्टोनिक प्लेटों के बीच लगभग 40,000 किमी तक फैला हुआ है. रूस, अमेरिका, कनाडा, जापान, बोलीविया, चिली, ऑस्ट्रेलिया, पापुआ न्यू गिनी, इक्वाडोर, पेरू, ग्वाटेमाला, मेक्सिको, कोस्टा रिका, फिलीपींस, इंडोनेशिया, अंटार्कटिका और न्यूजीलैंड रिंग ऑफ फायर में स्थित कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं.

ring of fire volcano

भारत के भूकंपीय क्षेत्र-
(Seismic zones of India)
भारतीय उपमहाद्वीप भूकंप सहित कई प्राकृतिक आपदाओं से बहुत प्रभावित है. भारत का लगभग 59 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र अलग-अलग तीव्रता के भूकंपीय खतरों के प्रति असुरक्षित है. शहरीकरण, बड़े पैमाने पर अवैज्ञानिक निर्माण और बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से भूकंपों की संख्या में वृद्धि हुई है.

भारत का भूकंपीय क्षेत्र मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid-continental belt) में शामिल किया जाता है. यानी भारत में अलग-अलग स्थानों पर भूकंप से होने वाली क्षति की संभावना भी अलग-अलग है. इस आधार पर भारत को चार भूकंपीय क्षेत्रों में बांटा गया है- जोन 2, 3, 4 और 5. इसमें जोन 2 सबसे कम खतरनाक है, तो वहीं जोन 5 सबसे ज्यादा खतरनाक है.

जोन 5 (बहुत खतरनाक या अत्यधिक क्षति)- पूर्वोत्तर भारत के सातों राज्य, कच्छ, हिमालय प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और अंडमान निकोबार दीप समूह.

जोन 4 (बहुत या उच्च क्षति)- उत्तरवर्ती भाग का हिस्सा जम्मू और कश्मीर से शुरू होकर हिमाचल प्रदेश तक, दिल्ली और हरियाणा का हिस्सा, महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र तक फैला है.

जोन 3 (सामान्य क्षति)- देश का ज्यादातर हिस्सा इसी के अंतर्गत आता है जिसमें राजस्थान, कोंकण तट आदि शामिल हैं.

जोन 2 (सबसे कम खतरनाक या सबसे कम क्षति)- इस जोन में कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और राजस्थान शामिल हैं.


भूकंप की गहराई (Depth of Earthquake)
भूकंप की तरंगों को मापने और उनसे होने वाले नुकसान का आकलन करने के लिए भूकंप के फोकस या केंद्र की गहराई का पता लगाना बहुत महत्वपूर्ण है.

उथले भूकंप या छिछले केंद्र के भूकंप (Shallow earthquakes)- उथले भूकंपों का उद्गम केंद्र या फोकस 0 से 70 किलोमीटर की गहराई पर होता है. इन्हें साधारण भूकंप भी कहा जाता है.

मध्यवर्ती भूकंप (Intermediate earthquakes)- मध्यवर्ती भूकंपों का उद्गम केंद्र 70 से 300 किलोमीटर की गहराई पर होता है.

गहरे भूकंप (Deep earthquakes)- गहरे भूकंपों का फोकस 300 से 700 किलोमीटर की गहराई पर होता है. इन्हें पातालीय भूकंप भी कहा जाता है.

कौन सा भूकंप कितना विनाशकारी- भूकंप का केंद्र या फोकस जितनी ज्यादा गहराई में होता है, उतना ही कम विनाशकारी होता है, क्योंकि तरंगों के सतह तक पहुंचने तक यह काफी कमजोर पड़ चुका होता है. ज्यादातर भूकंप कम गहराई या उथले फोकस वाले आते हैं. चूंकि ये सतह के नजदीक होते हैं, इसलिए ये बहुत ही विनाशकारी होते हैं.


भूकम्पीय तरंगें (Earthquake Waves)

भूकम्पीय तरंगों की स्पीड अलग-अलग घनत्व वाले पदार्थों से गुजरने पर बदल जाती है. अगर पूरी पृथ्वी एक जैसे पदार्थों से मिलकर बनी होती, तो भूकम्पीय तरंगें एक सीधी रेखा में एक समान स्पीड से चलतीं.

भूकंप की तरंगें मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं
(Two types of Earthquake waves)-
भूगर्भिक तरंगें (Body waves)
धरातलीय तरंगें (Surface waves)

भूगर्भिक तरंगें- भूगर्भिक तरंगे भूकंप के केंद्र से ऊर्जा के निकलने की वजह से उत्पन्न होती हैं. ये तरंगें पृथ्वी के आंतरिक भागों से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं. भूगर्भिक तरंगे भी दो प्रकार की होती हैं. इन्हें P और S तरंगें कहा जाता है-

P Waves- P तरंगों को प्राथमिक तरंगें या अनुदैर्ध्य तरंगें कहा जाता है. ये सतह पर आने वाली पहली तरंगें हैं. P तरंगें ध्वनि तरंगों की तरह होती हैं. यानी ये तीनों माध्यमों- ठोस, तरल और गैस से यात्रा करती हैं. ये सबसे तेजी से चलने वाली तरंगें हैं. इनकी औसत स्पीड 6 से 15 किमी/सेकेंड होती है.

S Waves- S तरंगें भूकंप आने के कुछ समय बाद आती हैं, इसलिए उन्हें द्वितीयक तरंगें या गौण तरंगें या अनुप्रस्थ तरंगें कहते हैं. S तरंगों की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि ये केवल एक ठोस माध्यम से यात्रा करती हैं. इनकी स्पीड P तरंगों से कम होती है (5 से 7 किमी/सेकेंड).

धरातलीय तरंगें- भूगर्भिक तरंगों और धरातलीय शैलों के बीच जो नई तरंगें उत्पन्न होती हैं, उन्हें धरातलीय तरंगें या L तरंगें कहते हैं. ये तरंगें धरातल के साथ-साथ चलती हैं. ये केवल ठोस धरातलीय भागों में ही चलती हैं. भूकंप के दौरान सबसे ज्यादा विनाश और जान-माल का नुकसान यही तरंगें करती हैं. इनकी स्पीड सबसे कम होती है. चट्टानों या ठोस पदार्थों में इनकी स्पीड करीब 3.5 किमी/सेकेंड होती है.

पृथ्वी के क्रस्ट का वह स्थान, जहां कोई तरंग नहीं पहुंच पाती, उसे भूकंपीय छाया क्षेत्र (Seismic Shadow Zone) कहते हैं.


भूकंप क्यों आते हैं या भूकंप आने के क्या कारण हैं-
(What are the causes of Earthquake)

जैसे किसी तालाब में पत्थर का टुकड़ा फेंकने पर उसके चारों तरफ तरंगें बनने लगती हैं, उसी तरह पृथ्वी के आंतरिक भागों में हलचल के कारण भूकंप के झटके आते हैं. जब टेक्टोनिक प्लेटों में अचानक गति होती है या वे टूटती हैं, तो इससे भूकंप की उत्पत्ति होती है. ज्यादातर भूकंप ऊपरी मेंटल में उत्पन्न होते हैं. आमतौर पर भूकंप का मुख्य कारण धरातल पर संतुलन का बिगड़ना है. या इस संतुलन के बिगड़ने के मुख्य कारण-

(1) प्राकृतिक कारण (Natural causes of Earthquake)-

ज्वालामुखी क्रिया (Volcanic action)-
ज्वालामुखी क्रियाओं को भूकंप के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है. वास्तव में, ज्वालामुखी क्रिया और भूकंप की घटनाएं एक-दूसरे के साथ इस तरह जुड़ी हुई हैं कि वे एक-दूसरे का पर्याय तक बन जाती है.

दरअसल, जब पृथ्वी का मैग्मा, विस्फोटक गैसें और जलवाष्प सतह से ऊपर की ओर आने की कोशिश करते हैं, तो इस दौरान वे पृथ्वी के क्रस्ट (Earth’s crust) पर तेजी से धक्के के साथ विस्फोट करते हैं, जिससे चट्टानों में कंपन पैदा हो जाता है.

वहीं, कई बार मैग्मा बाहर आने की कोशिश तो बहुत करता है, लेकिन कठोर चट्टानों के कारण बाहर नहीं आ पाता. इस पर वह मैग्मा चट्टानों में कंपन पैदा कर देता है. इस प्रकार, ज्वालामुखी क्षेत्रों में कई बार बिना ज्वालामुखी विस्फोट के भी भूकंप आ जाते हैं.

इस तरह की भूकंपों की तीव्रता ज्वालामुखी उद्गार की तीव्रता पर निर्भर करती है. जैसे 1968 में सिसली द्वीप के माउंट एटना ज्वालामुखी के अचानक तेजी से उद्गार के कारण वहां बहुत तेज भूकंप आया था.

volcano lava

विवर्तनिक भूकंप या टेक्टोनिक भूकंप (Tectonic Earthquakes)-
प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics) सिद्धांत के मुताबिक, पृथ्वी की ऊपरी लगभग 80 से 100 किमी मोटी परत को स्थलमण्डल या लिथोस्फीयर (Lithosphere) कहा जाता है. इसमें क्रस्ट और ऊपरी मेंटल का कुछ हिस्सा शामिल है. यह कई टुकड़ों में टूटी हुई है और इन टुकड़ों को प्लेट्स कहा जाता है. पृथ्वी की क्रस्ट 7 बड़ी प्लेटों में बंटी हुई है, जो 50 मील तक मोटी हैं.

ये प्लेट्स मेंटल की उष्ण और सघन चट्टानों पर लगभग 10-40 मिलीमीटर/वर्ष (या कुछ प्लेट्स 160 मिमी/वर्ष) की स्पीड से तैरती रहती हैं या खिसकती रहती हैं. यानी क्रस्ट की सतह के नीचे ये प्लेट्स लगातार गतिशील रहती हैं. इससे ये प्लेट्स एक-दूसरे से टकराती हैं, या एक-दूसरे से रगड़ती हैं, जिससे ये फॉल्ट लाइनों का निर्माण कर शॉक वेव्स उत्पन्न करती हैं.

इन्हीं प्लेट्स के गतिशील होने से पृथ्वी पर महाद्वीपों, महासागरों, पर्वतों या ऊंचे-नीचे स्थानों आदि का निर्माण होता है, साथ ही भूकंप और ज्वालामुखी का कारण भी बनता है. अक्सर देखा गया है कि ज्यादातर भूकंप इन प्लेटों की सीमाओं पर ही आते हैं.

वलन और भ्रंशन (Fold and Fracture)-
भूगर्भिक हलचलों (Geological Movements) के कारण जब चट्टानों में सिकुड़न या तनाव पैदा होता है, तो उससे भी भूकंप आते हैं. 1950 में असम में इसी तरह का भूकंप आया था. ज्यादातर नए वलित पर्वतों जैसे हिमालय, रॉकीज में इसी तरह के भूकंप आते हैं.

पृथ्वी का संतुलन बिगड़ना (Isostatic Disturbance)
पृथ्वी की ऊपरी परत अपने में संतुलन बनाए रखती है, लेकिन जब ऊंचे भागों का पदार्थ निचले भागों में आकर दबाव बढ़ाता है, तो यह संतुलन बिगड़ने लगता है. जब चट्टानें इस संतुलन को बनाए रखने की कोशिश करती हैं, तो पृथ्वी की ऊपरी परत में कंपन पैदा हो जाता है, जो भूकंप का कारण बनता है. जैसे 1949 में हिंदुकुश में इसी तरह का भूकंप आया था.

(2) मानवीय कारण (Human causes of Earthquake)

प्राकृतिक कारणों के अलावा कुछ मानवीय क्रियाएं भी भूकंप का कारण बनती हैं. हालांकि ऐसे भूकंप की तीव्रता कम होती है.

जलीय भार (Water Load)
नदियों पर बांध बनाकर बड़े बड़े जलाशय बनाए जाते हैं. जब इन जलाशयों में जरूरत से ज्यादा जल भर जाता है, तो चट्टानों पर जल का दबाव बढ़ जाता है. इससे पृथ्वी के क्रस्ट में एक अव्यवस्था पैदा होने लगती है, जिससे भूकंप का भी निर्माण होने लगता है. जैसे 1967 में महाराष्ट्र के कोयना बांध (Koyna Dam in Maharashtra) के कारण इसी तरह का भूकंप आया था.

खनन क्षेत्रों में कभी-कभी ज्यादा खनन कार्य से भूमिगत खानों की छतें ढह जाती हैं, जिससे भूकंप के हल्के झटके महसूस किए जाते हैं. बड़े स्तर पर होने वाले जीवाश्म ईंधन के खनन से भूकंप की कुछ घटनाएं सामने आई हैं, जैसे 2013 में स्पेन की वैलेंशिया खाड़ी के पास आए भूकंप का यही कारण था.

भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन (Overexploitation of groundwater) से पृथ्वी के क्रस्ट के स्वरूप में बदलाव हो सकता है और यह भी भूकंप का कारण बन सकता है, जैसे 2011 का लोर्का भूकंप. इनके अलावा परमाण्विक परीक्षण (Nuclear Tests) और अन्य विस्फोटक, कार्बन कैप्चर और स्टोरेज, हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग, विशाल और संरचनाओं के निर्माण भी भूकंप के कारण बनते हैं.

देखिए- नॉलेज फैक्ट्स


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About Sonam Agarwal 238 Articles
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