सांप-सीढ़ी नहीं देता अपने खिलाड़ी को एक भी मौका, जबकि चौपड़ में नहीं है सब कुछ भाग्य पर निर्भर

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Snake Ladder and Ludo

Snake Ladder and Ludo (सांप-सीढ़ी और चौपड़ या लूडो)-

सांप-सीढ़ी के खेल (Snake Ladder Game) में दिमाग बिल्कुल भी नहीं लगाना पड़ता, बस पासा फेंको और गोटी आगे बढ़ाते जाओ. गोटी 98 नंबर तक पहुंच चुकी है, बस 2 अंक और….मिल गए तो बच गए और अगर नहीं मिले तो फिर वही चक्र शुरू. लेकिन अक्सर यही होता है कि 99 की संख्या पर मौजूद खेल का सबसे लंबा सांप गोटी को डस लेता है और खेल की शुरुआत एक बार फिर से करनी पड़ती है. ये खेल ही कुछ ऐसा है. इस खेल में हमारी या आपकी जीत काफी हद तक किस्मत पर निर्भर होती है. इसमें जितना दुख सांप के मुंह में जाने पर होता है, उतनी ही खुशी सीढ़ी चढ़ जाने पर होती है.

भारत के सबसे पुराने खेलों में से एक है सांप-सीढ़ी

सांप-सीढ़ी भारत के सबसे पुराने खेलों में से एक है. इस खेल का आविष्कार भारत में ही हुआ था और धीरे-धीरे दुनियाभर में लोकप्रिय हो गया. माना जाता है कि इस खेल का आविष्कार 13वीं शताब्दी के संत ज्ञानेश्वर ने किया था, लेकिन कुछ सूत्रों के अनुसार, ये खेल द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व से भी पुराना है. उस समय ये खेल सारिकाओं या कौड़ियों की सहायता से खेला जाता था. खेल को एक कपड़े पर बनाया जाता था, जिसमें कई खाने बने होते थे और उन खानों को ‘घर’ कहा जाता था. हर एक घर को दया, करुणा, विश्वास, विनम्रता और भय आदि नामों से जाना जाता था.

इतने नाम हैं सांप-सीढ़ी के

तब इस खेल को कैलाशा पटम, मोक्षपट, परम पदम, ज्ञान चौपड़ यानी ज्ञान का खेल भी कहा जाता था. इसके अलावा, कई जगहों पर इस खेल को ‘लीला’ भी कहा जाता था, यानी मनुष्य का धरती पर तब तक जन्म लेते रहना, जब तक वह अपनी बुराइयों को छोड़ नहीं देता. वहीं, आंध्र प्रदेश में इसे ‘वैकुंतापाली’ और ‘परमापदा सोपनम’ के नाम से भी जाना जाता है. अंग्रेजों ने इस खेल का नाम ‘स्नेक्स् एंड लैडर्स्’ रखा.

क्या संदेश देता है यह खेल?

इस खेल का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ आम लोगों को धर्म-मर्यादाओं का ज्ञान देना भी था. सीढ़ियों को सद्गुण या अच्छे कर्मों और सांपों को अवगुण या बुरे कर्मों का प्रतीक माना जाता था. उद्देश्य होता है सांप-सीढ़ियों को पार करते हुए 100 नंबर की संख्या तक पहुंचना. यानी बुराइयों से बचते हुए और अच्छाई का मार्ग अपनाते हुए आगे बढ़ते चले जाना.

98 की संख्या तक पहुंचते-पहुंचते यह खेल अपना सही समय आने तक धैर्य रखना सिखाता है. सांप की तरह गुस्सा या हिंसा जीव को सीधे पाताल में गिरा देती है, जबकि अच्छे विचार और कर्म उसे सीढ़ियों के सहारे उन्नति की ओर ले जाते हैं.

इस खेल को ‘मोक्षपट’ इसलिए कहा जाता था, क्योंकि इस खेल के 100वें पायदान पर पहुंचने को मोक्ष मिलने की तरह ही देखा जाता था. इस खेल का सार भी यही है कि जब व्यक्ति अच्छे कर्म करता चला जाता है, तब ही उसे मोक्ष मिल पाता है. वहीं, बुरे कर्म करने वाले लोगों की बुराइयां उन्हें सांप की तरह अवनति की ओर ही ले जाती हैं. वे आगे पहुंचकर भी अपनी एक बुराई या गलती की वजह से फिर से नीचे की तरफ लुढ़क जाते हैं और एक बार फिर जीवन की शुरुआत करनी पड़ती है.

भगवान शिव-पार्वती का पसंदीदा खेल- चौपड़

सांप-सीढ़ी की ही तरह चौपड़, चौसर या लूडो (Ludo) भी भारत का प्राचीनतम और बेहद लोकप्रिय खेल है, जिसे भगवान शिव और माता पार्वती द्वारा भी खेला जाता है. यह भगवान शिव का पसंदीदा खेल है. राजा-महाराजाओं में तो ये खेल बेहद लोकप्रिय हुआ. अलग-अलग स्थानों पर इस खेल को अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इसमें 4 खिलाड़ी होते हैं और चारों के पास अलग-अलग रंगों की पट्टियां और खाने होते हैं- लाल, नीला, पीला और हरा. इन खानों को ‘घर’ कहा जाता है और इन्हीं खानों से हर खिलाड़ी अपने खेल की शुरुआत करता है.

हर खिलाड़ी की चार-चार गोटियां होती हैं. इस खेल को छह कौड़ियों या पासे से खेला जाता है. पासा फेंकने पर जितने भी अंक आएं, उसके अनुसार ही अपनी गोटी चलनी पड़ती है. अगर किसी खिलाड़ी की गोटी उसके विरोधी की गोटी के स्थान पर आ जाती है तो विरोधी खिलाड़ी की वह गोटी वापस अपने घर आ जाती है और फिर से वही चक्र शुरू करती है. लेकिन इस खेल की खासियत ये है कि यह खेल पूरी तरह से किस्मत पर निर्भर नहीं होता. खिलाड़ी को भी मौका मिलता है अपनी चाल चलने का, अपनी गलती सुधारने का और बाधाओं से बच निकल के अपने लक्ष्य तक पहुंचने का.

सांप-सीढ़ी और लूडो में यही है अंतर

सांप-सीढ़ी का खेल एक और बात बताता है कि जीवन में कुछ भी व्यक्ति के हाथ में नहीं है. सब कुछ उसके भाग्य पर निर्भर है. उसके सामने जो भी आए (पासे में अंकों की तरह), उसे वो करना ही पड़ता है. जो रास्ता सामने आए, उस पर बढ़ना ही पड़ता है, उस पर इंसान का कोई जोर नहीं.

जबकि लूडो में भाग्य और व्यक्ति के कर्म, दोनों ही साथ-साथ चलते हैं, जैसा कि असल जीवन में होता है. किस्मत हमारे सामने कई रास्ते खोलती है, कई मौके देती है और कई बाधाएं आती हैं (पासे में अंकों की तरह), अब ये हम पर निर्भर करता है कि हमें पहले क्या करना है और किस रास्ते पर जाना है. यह खेल व्यक्ति की बुद्धिमानी, कुशलता, निर्णय क्षमता और दूरदर्शिता की परीक्षा लेता है, कुछ गलतियों को सुधारने का अवसर भी देता है, जैसा कि असल जीवन में होता है.

आज भी युवाओं में इन दोनों का क्रेज बरकरार

ज्यादातर लोगों ने सांप-सीढ़ी और लूडो का खेल जरूर खेला होगा और आज भी खेलते हैं. ये सिर्फ खेल नहीं बल्कि बचपन में गर्मियों की छुट्टियां काटने के सबसे मजेदार माध्यम थे. पूरा दिन इन खेलों को खेलते हुए कैसे बीत जाता था, पता ही नहीं चलता था. लोगों के ऊपर इन खेलों का जादू किस कदर हावी है, ये तो इसी से पता चलता है कि आज के डिजिटल जमाने में भी ये खेल अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए हैं. अब लोग सांप-सीढ़ी और लूडो को अपने फोन में ही खेलते हुए दिख जाते हैं, वो भी ऐसे समय में जब 3D और एनिमेशन वाले खेलों की भरमार है, तब भी युवाओं में इन खेलों का क्रेज बना रहना इन खेलों की तरह ही जादुई है.

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LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

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