Ramayan : जब लक्ष्मण जी को आया भरत जी पर क्रोध, तब श्रीराम ने कही यह बात
“कितनी ही बड़ी आपत्ति क्यों न आ जाए, लेकिन आखिर पुत्र अपने पिता को कैसे मार सकता है अथवा भाई अपने प्राणों के समान प्रिय भाई की हत्या कैसे कर सकता है?” […]
“कितनी ही बड़ी आपत्ति क्यों न आ जाए, लेकिन आखिर पुत्र अपने पिता को कैसे मार सकता है अथवा भाई अपने प्राणों के समान प्रिय भाई की हत्या कैसे कर सकता है?” […]
श्रीराम की प्रतिज्ञा को सुनकर सीता जी चिंता में पड़ जाती हैं. वे श्रीराम को अपनी चिंता का कारण भी बताती हैं. […]
गोस्वामी तुलसीदास जी के संबंध में हरिऔध जी के हृदय से स्वयं ही फूट पड़ी निम्नलिखित प्रशस्ति अपनी समीचीनता में बेजोड़ है. कहने की आवश्यकता नहीं है कि- “कविता तुलसी से नहीं, बल्कि तुलसी से कविता गौरवान्वित हुई है. तुलसीदास जी को पाकर वाणी धन्य हो उठी है.” […]
शोभा की खान, सुशील और विनम्र सीताजी सदा श्रीराम के अनुकूल रहती हैं. यद्यपि घर में बहुत से दास-दासियाँ हैं और सभी सेवा की विधि में कुशल हैं, फिर भी सीताजी घर की सब सेवा अपने ही हाथों से करती हैं. […]
“यदि इस समय मैं आपकी आँखों पर बंधी अहंकार की पट्टी खोलकर वास्तविक सत्य के दर्शन न कराऊँ तो मैं अपने कर्तव्य पालन से वंचित रह जाऊंगी, क्योंकि हर पत्नी का यह धर्म है कि कुमार्ग पर भटके पति को सत्य की राह पर ले आये.” […]
जापान, कम्बोडिया, मलेशिया, थाईलैंड, ईराक, इंडोनेशिया, बर्मा, पाकिस्तान, भूटान, बाली, जावा, सुमात्रा आदि अनेक देशों में तो पुरातन भित्ति चित्रों, मंदिरों और संग्रहालयों में रामकथा (Ram Katha) मौजूद है. […]
“हमारे राक्षस जहां भी जाते हैं, उन्हें हर जगह केवल राम ही राम दिखाई देते हैं.” […]
किसी ने मुझसे पूछा कि यदि राम के समय पुष्पक विमान बन सकते थे, पत्थरों से समुद्र पर सेतु बनाए जा सकते थे, तो आज … […]
रावण हनुमान जी का उपहास करते हुए कहता है, “बंदरों को अपनी पूँछ से बड़ी ममता होती है. अतः तेल में कपड़ा डुबोकर उसे इसकी पूँछ में बाँधकर आग लगा दो. पूँछ में आग लगाकर इसे … […]
सीता जी हनुमान जी जैसा वानर देखकर बहुत डर जाती हैं. हनुमान जी सीताजी को पूरी रामकथा सुना देते हैं और यह भी बता देते हैं कि उन्हें श्रीराम ने ही भेजा है, तो भी सीताजी हनुमान जी पर विश्वास नहीं करती. […]
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