Introduction to Ayurveda : आयुर्वेद का संक्षिप्त परिचय और इतिहास
दोषवैषम्य से उत्पन्न रोगों के निवारण के लिए चिकित्सा की जाती है. श्रेष्ठ चिकित्सा उसी को कहा गया है, जिससे एक रोग शांत हो जाये, किन्तु दूसरे रोग की उत्पत्ति न हो. […]
दोषवैषम्य से उत्पन्न रोगों के निवारण के लिए चिकित्सा की जाती है. श्रेष्ठ चिकित्सा उसी को कहा गया है, जिससे एक रोग शांत हो जाये, किन्तु दूसरे रोग की उत्पत्ति न हो. […]
“भगवान ब्रह्मा की पुत्री सरस्वती बड़ी ही सुकुमारी और मनोहर थी. हमने सुना है कि एक बार उसे देखकर ब्रह्माजी काममोहित हो गए थे, यद्यपि वह स्वयं वासनाहीन थी. ब्रह्माजी को ऐसा …” […]
कुछ सत्य कभी सामने नहीं आ पाते. मैक्समूलर की आत्मकथा आत्मप्रशंसा से भरी हुई है. इसमें उन्होंने स्वयं को भारतीयों का मसीहा बताया है … […]
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मार्कण्डेय काटजू का कहना है कि “वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में लिखी गई मूल रामायण में राम भगवान नहीं हैं, केवल एक राजकुमार हैं (और बाद में एक राजा), लेकिन तुलसीदास की रामचरितमानस में वे भगवान बन जाते हैं.” […]
हिन्दू एक सनातन धर्म है जो जीने का सलीका सिखाता है, जो ब्रह्माण्ड को ब्रह्मा (सृजनकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता) और महेश (संहारकर्ता) के रूप में पूजता है. एक ऐसा धर्म जिसमें केवल मूर्तिपूजा ही नहीं की जाती, बल्कि प्रकृति के हर रूप को पूजा जाता है. […]
आज कुछ लोग प्राचीन भारत के ऐतिहासिक तथ्य भी इस प्रकार से ढूंढकर लाते हैं कि द्रौपदी के पांच पति थे तो इसका मतलब कि उस समय बहुपति विवाह प्रचलित था. राजा दशरथ की तीन रानियां थीं, तो इसका मतलब जनसामान्य में भी बहुपत्नी विवाह प्रचलित होगा … […]
भारतीय पुराणों और साहित्यों में अपने सौंदर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्यों में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किया गया है. […]
आर्य संस्कृति नदियों के तटों पर फली, फूली और बढ़ी है. बड़े बड़े प्राचीन नगर नदियों के तटों पर ही समृद्ध हुए. जैसे सरयू के तट पर अयोध्या, क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जयिनी, त्रिवेणी के तट पर प्रयाग, यमुना के तट पर मथुरा आदि. पंजाब तो सप्तसिंधु प्रान्त कहलाया ही. […]
‘सुदर्शन’ शब्द दो संस्कृत शब्दों से बना है- ‘सु’ जिसका अर्थ है “अच्छा/शुभ” और ‘दर्शन ‘जिसका अर्थ है “दृष्टि”. ऋग्वेद में सुदर्शन चक्र का उल्लेख श्रीविष्णु के एक प्रतीक और समय के पहिये के रूप में भी किया गया है. […]
संपूर्ण विश्व को मोह में पड़ा हुआ देखकर देवी ने अट्टहास किया, जो दैत्यों को भयभीत करने वाला था. इस अट्टहास को सुनकर दैत्यराज महिषासुर ने क्रोधित होकर अपने दूतों को उस हास ध्वनि के उद्गम-स्थल का पता लगाने के लिए भेजा. दूतों ने जब … […]
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