अंतरिक्ष में बढ़ता कचरा (Space Junk)

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आज मनुष्य ने इतना ‘वैज्ञानिक विकास’ कर लिया है कि केवल धरती ही नहीं, साफ-सुथरे और शून्य अंतरिक्ष में भी कचरा (Trash in space) जमा कर दिया है. इतना कचरा जो भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है. वैज्ञानिकों के अनुसार, धरती पर कचरे के बाद अगली सबसे बड़ी समस्या अंतरिक्ष में कचरे की है और यह समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है. यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ESA) अंतरिक्ष में घूम रहे बड़े-बड़े आकार के कचरे को धरती पर लाने की तैयारी कर रही है.

इसके लिए यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने स्विट्जरलैंड की स्टार्टअप कंपनी क्लियर स्पेस एसए (Clear Space SA) से करीब 10.20 करोड़ डॉलर का समझौता भी किया है. यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने इस अभियान के लिए उसे साल 2019 में चुना था. क्लियर स्पेस का प्रक्षेपण साल 2025 में होगा. वहीं, अंतरिक्ष के कचरे से निपटने के लिए ब्रिटेन अपने डेमो मिशन की शुरुआत कर चुका है.

पृथ्वी की कक्षा में इंसान की बनाईं बहुत सी चीजें जैसे कृत्रिम उपग्रह, रॉकेट्स, यान आदि जो अब काम करना बंद कर चुके हैं, अंतरिक्ष में ही घूम रहे हैं. ये सभी बेकार चीजें अंतरिक्ष का कचरा या मलबा कहलाती हैं. इस कचरे में उल्कापिंडों के टुकड़े भी शामिल हैं. अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के अनुमान के मुताबिक, अंतरिक्ष में इस समय 20 हजार से भी ज्यादा छोटे-बड़े उपकरण कचरा बन चुके हैं और पृथ्वी की निचली कक्षा (Lower orbit) में चक्कर लगा रहे हैं. अब इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.

अंतरिक्ष में किस तरह का कचरा या खतरा मौजूद है?

ऐसे कृत्रिम उपग्रह (Artificial Satellites) जिनका समय पूरा हो चुका है या अब वे काम करना बंद कर चुके हैं और अंतरिक्ष में फालतू घूम रहे हैं, उन्हें ही कचरा या मलबा (Space Junk) कहा जाता है. इंसान की तरफ से जानबूझकर छोड़ दिए गए या किसी घटना के कारण वहीं रह गए औजार या अपशिष्ट. रॉकेट स्टेज जो अंतरिक्ष में पहुंचकर उपग्रह लॉन्च करने के बाद भी वहीं रह गए. रॉकेट के आगे के कोन, पेलोड के कवर, बोल्ट्स और काफी हद तक भरे हुए फ्यूल टैंक, बैटरीज और लॉन्चिंग से जुड़े अन्य हार्डवेयर आदि.

ये सभी फालतू उपकरण अंतरिक्ष में तेज रफ्तार के साथ घूमने में लगे हैं. इन सभी के एक-दूसरे के टकराने पर इनके और भी छोटे-छोटे टुकड़े हो गए हैं और ये सभी टुकड़े भी कचरे के रूप में वहीं उसी रफ्तार से घूम रहे हैं. इस तरह अंतरिक्ष के इस कचरे की मात्रा में वृद्धि होती जा रही है. इस कचरे के चलते सबसे ज्यादा जोखिम वाला स्थान पृथ्वी से 410 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद ISS (अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन) है.

अंतरिक्ष में बड़ी तेजी से चक्कर लगा रहा ये ‘कचरा’

उपग्रहों (Artificial Satellites) को उनके कार्यों के आधार पर पृथ्वी की निचली कक्षा, मध्यम कक्षा और उच्च कक्षा (Low orbit, medium orbit and high orbit) में प्रक्षेपित (Launch) किया जाता है. पृथ्वी से लगभग 2000 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित निचली कक्षा में सक्रिय और निष्क्रिय, दोनों ही तरह के सैटेलाइट्स की बड़ी भारी भीड़ है.

निचली कक्षा में तेज रफ्तार से पृथ्वी का चक्कर लगाने वाले सैटेलाइट्स की भरमार है. कुछ सैटेलाइट्स तो केवल 90 मिनट में ही पृथ्वी का एक चक्कर लगा लेते हैं. ऐसे में एक छोटी सी चीज भी इन सैटेलाइट्स को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं, क्योंकि सैटेलाइट्स या उनसे निकले टुकड़े भी लगभग 8 मीटर प्रति सेकेंड या 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से कक्षा में घूमते रहते हैं.

इस कचरे के खतरनाक होने की क्या है वजह?

अंतरिक्ष में मौजूद कचरे या मलबे के खतरनाक होने की सबसे बड़ी वजह इस कचरे की रफ्तार ही है. बेकार हो चुके उपकरणों के ये टुकड़े बहुत तेजी से चक्कर लगा रहे हैं. पृथ्वी की निचली कक्षा में (जहां भारतीय सैटेलाइट्स पर टेस्ट किया गया) चीजें अपनी कक्षाओं में रहने के लिए आमतौर पर 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं. इतनी रफ्तार से अगर कोई 100 ग्राम की चीज भी किसी से टकरा जाती है, तो वैसा ही असर पड़ता है, जितना 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलता हुआ कोई 30 किलो का पत्थर किसी से टकराने पर पड़ेगा.

एक छोटा सा टुकड़ा भी कर सकता है बड़ा नुकसान

जो कचरा अंतरिक्ष में मौजूद है, उनमें से कुछ तो 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा तेज रफ्तार से घूम रहे हैं. एक बड़े सैटेलाइट को नुकसान पहुंचाने के लिए एक छोटे से टुकड़े की यह रफ्तार काफी है. कोई भी टुकड़ा किसी सैटेलाइट से टकराकर उसे खराब कर सकता है. इस तरह सैटेलाइट्स के लिए वातावरण असुरक्षित होता जा रहा है, क्योंकि बहुत से सैटेलाइट्स उसी कक्षा में स्थापित किए जाते हैं.

ऐसा कोई भी टुकड़ा या खराब सैटेलाइट किसी अंतरिक्ष यान से भी टकरा सकता है. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के अनुसार, अंतरिक्ष में घूम रहा कचरा आपस में टकराकर एक रिएक्शन कर रहा है, जिससे धरती के कम्युनिकेशन सिस्टम पर खराब असर पड़ सकता है. ये कचरा हमारे वायुमंडल के लिये भी काफी खतरनाक हो सकता है. अगर कोई बड़ा टुकड़ा पूरी तरह नष्ट हुए बिना हमारे वायुमंडल में आ जाए तो विनाशक असर हो सकता है.

अंतरिक्ष में किसका कितना कचरा (किस देश के कितने टुकड़े)?

♦ वैज्ञानिकों की जानकारी के मुताबिक, अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में इस समय लगभग 8,400 टन से भी ज्यादा गैर-जरूरी हार्डवेयर मौजूद हैं, जो कि कचरे के रूप में इधर-उधर घूम रहे हैं. अभी अंतरिक्ष के इस तरह के कचरे में काफी इजाफा होना है, क्योंकि व्यावसायिक अंतरिक्ष उद्योग (Commercial Space Industry) तेजी से बढ़ने वाला है और ज्यादा संख्या में पृथ्वी की कक्षा में रॉकेट भी छोड़े जा रहे हैं.

♦ अंतरिक्ष में मौजूद कचरे को लेकर NASA की नवंबर 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, अंतरिक्ष में बेकार हो चुके उपकरणों के लगभग 20,000 टुकड़े चक्कर लगा रहे हैं. इन टुकड़ों में से 34 प्रतिशत अमेरिका के और केवल 1.07 प्रतिशत टुकड़े भारत के हैं. अंतरिक्ष में अमेरिका के लगभग 6,401 टुकड़े घूम रहे हैं, जबकि भारत के केवल 206 टुकड़े हैं. नासा के मुताबिक, अंतरिक्ष में भारत के 89 टुकड़े पेलोड और 117 टुकड़े रॉकेट के हैं.

♦ नासा के मुताबिक, पिछले 10 सालों में अंतरिक्ष में लगभग 50 प्रतिशत कचरा बढ़ा है. सितंबर 2008 तक अंतरिक्ष में 12,851 टुकड़े मौजूद थे, जिनकी संख्या नवंबर 2018 तक बढ़कर 19,173 तक पहुंच गई. इस दौरान, अंतरिक्ष में अमेरिका की गतिविधियों से 2,142 टुकड़े बढ़े हैं… और भारत से केवल 62 टुकड़े बढ़े. सितंबर 2008 तक अंतरिक्ष में अमेरिका के 4,259 और भारत के 144 टुकड़े थे.

♦ नासा का कहना है कि भारत के एंटी-सेटेलाइट परीक्षण (Anti-satellite test) से चार सौ टुकड़े बिखर गए. तो फिर इस हिसाब से, अभी अंतरिक्ष में भारत के 606 टुकड़े मौजूद होंगे. उसके बाद भी यह कुल कचरे का केवल 3.12 प्रतिशत ही है. भारत से लगभग 20 गुना ज्यादा कचरा चीन का है. उसके लगभग 3,987 टुकड़े अंतरिक्ष में घूम रहे हैं.

सैटेलाइट्स की भीड़भाड़ वाली एक और जगह- क्लार्क बेल्ट

अंतरिक्ष में भीड़भाड़ वाली एक और जगह है- क्लार्क बेल्ट (Clark Belt), जो पृथ्वी से लगभग 35,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर है. भू-स्थैतिक उपग्रह (Geostationary satellites) और भू-समकालिक उपग्रह (Geosynchronous satellites) यहीं पर घूमते रहते हैं. प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक आर्थर सी. क्लार्क (Arthur C. Clarke) के सम्मान में इसे ‘क्लार्क बेल्ट’ नाम दिया गया है.

मालूम हो कि क्लार्क ने साल 1945 में ही संचार उपग्रहों (Communication satellites) की अवधारणा पेश की थी. क्लार्क बेल्ट में घूर्णन की आदर्श गति (Ideal speed of Rotation) पृथ्वी की घूर्णन गति से पूरी तरह मेल खाती है. इस ऊंचाई पर एक सैटेलाइट हमेशा एक ही स्थान के ऊपर होता है (जियोस्टेशनरी), या हर दिन एक ही समय पर एक ही जगह के ऊपर होता है (जियोसिंक्रोनस).

अन्य शब्दों में, क्लार्क बेल्ट वह कक्षा या ऑर्बिट है, जहां पर अगर कोई सैटेलाइट है तो वह पृथ्वी से हमेशा एक ही स्थान पर दिखाई देगा. यह कक्षा भूमध्य रेखा पर स्थित होगी और यहां सैटेलाइट के अपनी धुरी पर घूमने की दिशा पृथ्वी के समान होगी.


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About Sonam Agarwal 238 Articles
LLB (Bachelor of Law). Work experience in Mahendra Institute and National News Channel (TV9 Bharatvarsh and Network18). Interested in Research. Contact- sonagarwal00003@gmail.com

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